जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
भटकता हुआ बचपन
पख्तून नेता शेरशाह के दबाव के कारण हुमाऊँ को फारस में अज्ञातवास करना पड़ रहा था। हमीदा बानू साथ थी। बालक अकबर को कंधार भेज दिया गया। उस समय उसकी उम्र मात्र 15 माह की थी। माहम अनगा, जीजी अनगा और अतका खां उसकी सेवा में थे। एक दिन माहम अनगा ने मिर्जा असकरी से कहा, ‘‘तुर्की प्रथा के अनुसार जब बच्चा पैरों चलने लगता है तो पिता या उसका प्रतिनिधि अपनी पगड़ी फेंककर बच्चे को मारता है ताकि वह जमीन पर गिर पड़े। कहा जाता है कि इस टोटके से बच्चे को नजर नहीं लगती।’’ मिर्जा ने तुरंत पगड़ी उतार कर अकबर पर फेंकी, उसको लगी जिससे वह गिर पड़ा। उसके बाद उसके सौभाग्य के लिए बाबा हसन अब्बुल की दरगाह पर ले जाकर अकबर का मुंडन कराया गया।
18 नवम्बर 1545 को हुमाऊँ ने काबुल जीत लिया। अकबर कंधार से काबुल लाया गया। वह तीन वर्ष के ऊपर का हो चुका था। यह वक्त उसके खतने के लिए मौजूं था। लिहाजा उत्ता बाग में शिविर लगाए गए। बेगमें और बड़े-बड़े लोग उत्ताबाग पहुंचे। वहां बैरम खां भी मौजूद था। बड़ी धूम-धाम से खतने की रस्म पूरी की गई। शाही दावतें हुईं। मनोरंजन के लिए अमीर एक दूसरे से कुश्ती लड़े। हुमाऊँ ने स्वयं इमाम कुली कुर्ची से और उसके भाई मिर्जा हिंदाल ने यादगार नासिर मिर्जा से कुश्ती लड़ी।
हुमाऊँ के जीवन की विडंबना यही रही कि उसके भाई सदैव उसके विरुद्ध रहे। अपने पिता बाबर को दिए गए वचन के अनुसार उसने विद्रोही, या कहें उपद्रवी, भाइयों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया। इस कारण वह हिंदुस्तान में मुकम्मिल तौर पर जम नहीं पाया। वह मानता था कि संसार में जो कुछ होता है उसके पीछे एक सुनिश्चित दैवी इच्छा काम करती है। मिर्जा कामरान ने काबुल में विद्रोह कर दिया और किला अपने कब्जे में कर लिया। हुमाऊँ का परिवार किले में ही था। उसने मोर्चा संभाला, तोपों के मुंह किले की ओर कर दिए। कामरान मुकाबला तो नहीं कर पाया पर उसने कुछ बच्चों को तोपों के आगे फेंक दिया। अकबर को ऐसे स्थान पर खड़ा कर दिया जहां हुमाऊँ की तोपों से एक चींटी तक का बचना मुश्किल था। यह देखकर तोपों के मुंह बंद कर दिए गए। इसी बीच कामरान की हरकतों से ख़फा होकर कई अमीर हुमाऊँ की सेवा में आ गए। यह देखकर कामरान घबरा गया। उसने आत्म-समर्पण कर दिया।
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