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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
अकबर का बचपन भारी अस्थिरता में बीत रहा था। पता नहीं अकबर किस भीतरी प्रेरणा से प्रेरित और अबाध्य था कि उसने पढ़ना-लिखना स्वीकार नहीं किया। शिक्षक आते और हार कर चले जाते। उसकी रुचि खेल-कूद, कुश्ती आदि में थी। आठ वर्ष का बालक कबूतरबाजी और घुड़सवारी करने व कुत्ते पालने में लग गया। परंतु जब वह सोने जाता तब कोई आमिल फाजिल उसे कुछ पढ़कर सुनाता रहता। अनजाने ही उसने प्राचीन भारतीय श्रुति की अव्याहत परंपरा अपना ली। प्रज्ञा द्वारा वह ज्ञान लब्ध कर रहा था। अपने संशयों और विकल्पों को पीछे छोड़ रहा था। समय के साथ अकबर एक परिपक्व और समझदार शासक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। कला, साहित्य, संगीत में उसकी गहरी रुचि रही।
1551 ई. में नौ वर्षीय अकबर का, उसके चाचा हिंदाल की बेटी रजिया सुल्ताना के साथ विवाह कर दिया गया। हिंदाल मर चुका था। कदाचित पितृहीन कन्या को सहारा देने के लिए यह बाल-विवाह सम्पन्न हुआ था। हिंदाल की गजनी अकबर को मिल गई।
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अब कर्मभूमि की ओर
अब तक हुमाऊँ को दोनों भाइयों से छुटकारा मिल चुका था। मिर्जा हिंदाल काबुल की लड़ाई में मारा गया और कामरान को पकड़कर अंधा कर दिया गया। वह अपनी बीबी और नौकर के साथ मक्का चला गया जहां 1557 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
इस समय हुमाऊँ के पास एक सुसज्जित व सुदृढ़ सेना थी। भारत को जीतने का मौका मौजूं था। अफगान साम्राज्य अब पतनोन्मुख हो चला था। अतः उसे जीतना कठिन न था। उसने 12 नवम्बर 1554 को काबुल से प्रस्थान किया। पीछे छोड़ी गईं शाही महिलाओं की सुरक्षा का भार मुनीम खां को सौंप दिया गया। बैरम खां भी वहीं रुक गया। बारह वर्ष का अकबर सेना में सबसे आगे चल रहा था। हुमाऊँ जलालाबाद से जलमार्ग द्वारा विक्राम (पेशावर) पहुंचा।
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