जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
इबादतखाना बंद कर देने के बाद भी अकबर का धार्मिक विवेचन और चिंतन समाप्त न हुआ। वह विभिन्न धर्मों के विशेषज्ञों को अपने राजमहल में बुलवाता और उनसे धार्मिक सिद्धांतों तथा धर्म के तत्वों को समझने का प्रयास करता। इस धार्मिक चर्चा से उसके ज्ञान कोष में अत्यंत वृद्धि हो गई, उसका दृष्टिकोण व्यापक, उदार एवं सहिष्णु हो गया। वह अब किसी एक धर्म में बंधा नहीं रह सकता था। अब किसी धर्म में उसे अपने में समेट लेने की क्षमता नहीं रह गई। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सभी धर्मों में न्यूनाधिक बाह्य आडम्बर हैं और सभी में कुछ न कुछ चिरंतन सत्य हैं क्योंकि सभी का ध्येय एक है और सभी के मौलिक तत्व एक से हैं। इस विचारधारा के फलस्वरूप अकबर में साम्प्रदायिकता, कट्टरता, असहिष्णुता, अंधविश्वास आदि शून्य हो गए। उसकी बुद्धि इस प्रकार प्रशिक्षित हो गई कि उससे उसे अंतर्दृष्टि, स्थिरता और समता प्राप्त हो गई। उसने प्रबुद्धशील सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया।
अकबर चाहता था कि हिंदू और मुसलमान सहिष्णुता की नीति अपनाएं, एक दूसरे को समझें। मुसलमानों में हिंदुत्व के प्रति श्रद्धा जगाने के लिए उसने फैजी से रामायण, महाभारत, योगवशिष्ट और कुछ वेदांत का भी फारसी में अनुवाद करवाया। हिंदुओं के बीच इस्लाम के प्रति श्रद्धा जगाने को उसने एक छोटा-सा (10 श्लोकों का) उपनिषद भी लिखवाया जिसका नाम अल्लोपनिषद है। इसमें अरबी और संस्कृत के पद हैं, यथा- ‘अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते।’
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