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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

मुग़लकाल में हिंदी-गौरव

अकबर के समय में खड़ी बोली हिंदी शिष्ट समाज की भाषा हो चली थी। फारसी को राजभाषा का दर्जा अकबर ने अपने मंत्री टोडरमल के आग्रह पर दिया था। अकबर ने जिस सामासिक संस्कृति पर जोर दिया वह ईरानी कम भारतीय अधिक थी। यही वह संस्कृति थी जिसमें हिंदू-मुस्लिम एकता की वास्तविक झलक दिखाई देती थी। इस संस्कृति के पोषक मुसलमान इस देश की भाषा को अपनी भाषा मानने लगे थे। वैसे तो अमीर खुसरो (1253-1325 ई.) के समय से ही अधिसंख्य जनता, चाहे हिंदू हो या मुसलमान, हिंदी के अलावा दूसरी भाषा न बोलती थी और न जानती ही थी।

अकबर के चारो ओर हिंदी का वातावरण व्याप्त था। राजमहल में तीन प्रधान हिंदू रानियां थीं। दरबार में भी कई हिंदू सिपहसालार, मंत्री और कविगण मौजूद थे। चतुर्भुज दास, गंग, आसकरण, पृथ्वीराज, मनोहर, नरहरि, बीरबल (ब्रह्म कवि) और रहीम जैसे हिंदी कवि और लगभग 16 हिंदी भाषी हिंदू चित्रकार अकबर से जुड़े थे। इन सभी से अकबर के संपर्क की भाषा हिंदी थी। तानसेन की बंदिशें हिंदी में थीं, जिन्हें अकबर बख्ंाूबी समझता था। उसके इबादतखाने में हिंदू धर्मशात्रियों से चर्चा हिंदी में होती थी।

अकबर ने तानसेन को ‘कंठाभरणवाणी विलास’ और जैन संत विजय सूरी को ‘काली सरस्वती’ की उपाधियां दी थीं। उसकी प्रिय बंदूक का नाम ‘संग्राम’ था। हाथियों से अकबर को बहुत लगाव था। उसके प्रिय हाथियों के नाम थे-झलपा, दामूदर, लखना, जगना, दिल शंकर, बाल सुंदर, समान, चाचर आदि। यह प्रथा आगे भी चलती रही।

अकबर ने स्वयं को निरक्षर बताया है। इस आत्मस्वीकृति में सच्चाई बस इतनी है कि उसने स्वयं कभी कुछ नहीं लिखा। कबीर की तरह भले ही अकबर ने मसि-कागज न छुआ हो, हाथ में कलम न गही हो परंतु वह हिंदी में कविता करता था। अकबरनामा के अनुसार अकबर की कविता में ‘रंग-फरेबियां’ होती थीं। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘‘लाल कलावंत (चित्रकार) बचपन से ही अकबर की सेवा में रहा था और उसने बादशाह को हिंदी का राई-रत्ती ज्ञान करवा दिया था।’’ अकबर ने, अन्य विषयों के अतिरिक्त जहांगीर को हिंदी की शिक्षा भी दिखलाई थी।

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