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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...


जब अकबर का ध्यान चित्रकला को प्रोत्साहित करने की ओर गया तो उसने खुरासान के बहज़ाद (जिसे बाबर ने दुनिया का सबसे बड़ा चित्रकार कहा था) के शिष्यों को भारत बुलाया और उन्हीं कलाकारों ने भारत में मुग़ल-कलम की नींव डाली। इनके नाम अबुल फजल ने आइने अकबरी में दिए हैं, यथा-कलामक के फर्रूख, शीराज के ख्वाजा अब्दुस्समद और तबरेज के मीर सईद अली।

अबुल फजल के अनुसार, ‘किसी चीज की हू-ब-हू शबीह खींचने को तसवीर कहते हैं।’ इसलिए जब हम अकबर को अपने प्रमाणित आकृति चित्र (पोर्टेट) बनवाने के लिए चित्रकारों के सामने बैठे देखते हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उसने तो यह हुक्म जारी किया था कि उसकी सल्तनत के सभी प्रमुख लोगों के चित्रों का एक मुरक्का (एलबम) तैयार किया जाए। अकबर आकृति चित्रों को व्यक्ति की ऐसी थाती समझता था जो आने वाली नस्लों को सौंपी जा सके और इस तरह उसका अमरत्व सुनिश्चित हो।

इसी काल में ऐतिहासिक समूह चित्रों का प्रचलन आरंभ हुआ। इस श्रेणी का सबसे अच्छा चित्र ‘बुढ़ापे में अकबर की बीमारी’ (लगभग 1605 ई. में निर्मित) को कहा जा सकता है। यह मनोहर दास की रचना है। इस चित्र में कलाकार ने दृश्य के भागीदारों के मनोवैज्ञानिक संबंध पर ध्यान केंद्रित किया है। यहां बूढ़े अकबर को तीन-चैथाई दिखाया गया है। अकबर उदास चेहरे से अपने तीमारदार (संभवतः हकीम अली गीलानी) की आंखों में देख रहा है। बादशाह के पीछे खड़े (कदाचित) शहजादा-द्वय खुर्रम और खुसरो के चित्राकन में स्थिति की गंभीरता अच्छी तरह प्रतिबिम्बित होती है। उनके चेहरे की अभिव्यक्तियां और हाथों की मुद्राएं चिंता का द्योतन करती हैं। लेकिन दृश्य में शिकारी का प्रवेश वातावरण को थोड़ा हल्का बना देती है।

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