धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
चित्रकला के बदलते रंग
इस्लाम में मूर्ति-पूजा सबसे भयानक शिर्क अर्थात ईश्वरीय लक्षणों को मनुष्यों और चित्रों से जोड़ने का दोष मानी जाती है। इससे यह सिद्धांत निकला कि मूर्ति निर्माण और चित्र-रचना भी शिर्क है। 14वीं सदी के एक लेखक मौलवी नबी ने लिखा है कि इस्लाम धर्म के अनुसार, ईश्वर की सृष्टि का अनुकरण करके तस्वीरें बनाना गुनाह का काम है। इस निषेध का परिणाम यह हुआ कि जहां एक ओर समर्थ मुसलमानों ने सबाब के लिए चित्रों और मूर्तियों का भंजन किया, वहीं साधारण मुस्लिम जनता ललित कला-मात्र से उदासीन रहने लगी।
बाद में ईरानी प्रभाव के कारण इस्लाम में उदारता आई। कई सौ वर्षों तक ईरानी प्रभाव पचाने के बाद इस्लाम की कट्टरता बहुत कुछ कम हो गई। इसी भावना से प्रेरित मुस्लिम समाज कलाओं की ओर आकर्षित हुआ और चित्र व संगीत भी वर्जित नहीं रहे। मुगल काल तक आकर भारत में हिंदुत्व का प्रभाव भी इस्लाम की उदारता का कारण बना। इसके सिवा, जब बादशाह अपनी जीवनियां लिखने या लिखाने लगे तो चित्रकारी का त्याग करना असंभव हो गया। मुगलों में कला के प्रेम का एक कारण यह भी रहा कि तैमूर के वंशजों ने ईरान और तुर्किस्तान में कला की अच्छी उन्नति की थी। तैमूर वंश का नाम कला के जागरण से संबद्ध माना जाता है। बाबर इसी वंश की संतान था। अतएव उसके वंशजों में कला के प्रेम का जगना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।
यों तो चित्रों की ओर सबसे पहले हुमाऊॅं ने ही ध्यान दिया था किंतु कुरान के चित्र-संबंधी निषेध का तर्कसम्मत खंडन अकबर ने किया। उसने कहा कि बहुत से लोग चित्रों से घृणा करते हैं किंतु मैं ऐसे लोगों को नापसंद करता हूँ। मेरा ख्याल है, ईश्वर को पहचानने का चित्रकारों का अपना अलग ढंग होता है। अकबर के राजमहल की दीवारें सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं।
जो कला भारत में मुग़ल-कलम कही जाती है वह वास्तव में भारतीय चित्र शैली है। अकबर के पहले, मुग़लों में जो चित्र शैली थी वह ईरानी थी। मुग़ल कलम तो शुद्ध भारतीय विधा थी और उसके जन्म के लिए अकबर जैसे भारतीयता-प्रेमी, उदारचेता और कल्पनाशील व्यक्ति की आवश्यकता थी। उसके चित्रकारों में, कुछ अपवादों को छोड़कर, सभी कलाकार भारतीय थे, जैसे-दशवंत, बसावन, केसू, लाल, मुकुंद, मधु, मनोहरदास, विशनदास, नान्हा, जान, महेश, तारा, खेमकरन, सांवला, हरिवंश और राम।
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