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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...


अकबर के समकालीनों के ऐसे अनेक वक्तव्य मिलते हैं जिनके अनुसार वह साधारण प्रजा-जनों की सोहबत में खुश रहता था। यह मेल-जोल उसकी ‘नौजवानाना मनमर्जियों’ का अंग था जिससे कभी-कभी वह उलझन में पड़ जाता थ। 1560-61 के दौरान वह आगरा के मेलों और सरायों में घूमता हुआ पाया गया। 1577 ई. में उसने एक रात एक गांव के मुखिया के यहां गुजारी। 1580-82 के दौरान वह इसलिए चिंतित पाया गया कि रोजाना ऐसा मौका कैसे पैदा किया जाए कि कोई साधारण आदमी या कुलीन उससे मिल सके और बातचीत कर सके।’ उसने साधारण लोगों के कुछ पेशे भी सीखे थे, अनेक कारोबारों को जानता था और कभी-कभी अपने लोगों के सामने खुश होकर बढ़ई या लुहार या शस्त्रकार के कामों का प्रदर्शन करता था।

आइने अकबरी में खिदमतियों का जिक्र मिलता है जहां उनका परंपरागत पेशा चोरी-डकैती बताया गया है। इनको अछूत माना जाता था। अकबर ने मुकुंदी नामक एक व्यक्ति को उसकी जाति का मुखिया बना दिया। उसे खिदमतराय का लक़ब दिया जिससे उसकी जाति के लोग खिदमतिया कहलाने लगे। उसके लोगों ने चोरी-डकैती छोड़ दी और वे महल के तथा अन्य स्थानों पर पहरेदार बना दिए गए।

ऊंट के मुंह में जीरे की तरह ये छिटपुट उदाहरण हैं। आरोप लगाया जाता है कि अकबर के यहां सामाजिक विषमताओं और असमानताओं के उन्मूलन का व्यापक तो क्या कोई सुसंगत प्रयास तक अगर नहीं मिलता तो यह अप्रत्याशित नहीं है। बादशाह के रूप में वह शोषण और दमन की विशाल व्यवस्था का प्रमुख था और उसके रोजमर्रा के कार्यकलाप भी परस्पर गुंथे हुए थे। लेकिन दास प्रथा पर प्रतिबंध हो या स्त्रियों के लिए और अधिक अधिकारों की मांग हो इनको सिर्फ उपरोक्त आरोप से एक तानाशाह की सनक कहकर रद्द नहीं किया जा सकता। उसके पीछे एक सच्चे आध्यात्मिक विकास की प्रेरक शक्ति काम कर रही थी। ऐसा लगता है कि उसका अंतःकरण बिल्कुल निर्लिप्त और मुक्त था जो उसकी महत्ता को आलोकित करता है। यह बात सिर्फ धर्म के समन्वय से पैदा नहीं हुई थी जो अपने आप इस उच्चता को जन्म नहीं दे सकता था। यहां ऐसी बुद्धि का विकास यकीनी तौर पर नजर आता है जो अधिकाधिक मानवतावादी रूप ले रही थी। वास्तव में यह दावा किया जा सकता है कि अकबर के यहां परम्परागत भारत की समालोचना की वे प्रारंभिक चिनगारियां दिखाई देती हैं जिन्होंने आगे चलकर भारतीय पुनर्जागरण के काल में शोलों का रूप ले लिया।

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