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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

मानवतावादी दृष्टिकोण का विकास

राजनीतिक अहम् अहमिका की तुष्टि के बाद अब आध्यात्मिक और धार्मिक विकासक्रम में अकबर की मानवतावादी धारणाएं पनप रहीं थीं, सामाजिक विचारों का विकास हो रहा था। लोक मंगल की भावना और लोकहित की साधना में वह सहज रूप से आसक्त हो रहा था। अपने शासन के बहुत प्रारंभ से ही अकबर का ज़मीर गुलामी-प्रथा को लेकर दुखी था। अकबर ने अपने शासन के सातवें वर्ष (1562-63) में ही एक हुक्मनामा जारी करके शाही सैनिकों पर पाबंदी लगा दी थी कि वे विरोधी सेना के पराजित सैनिकों की स्त्रियों, बच्चों और रिश्तेदारों को न गुलाम बनाएं, न उनको बेचें और न गुलाम बनाकर अपने पास रखें। बादशाह का विचार था कि बागियों को मारना, कैद में रखना और कोड़े लगाना मुल्क पर नियंत्रण रखने के लिए भले ही आवश्यक हो पर वहीं उन बागियों की मासूम औरतों और बच्चों को किसी तरह का नुकसान पहुंचाना नाइंसाफी है। इसी हुक्मनामे में ही कहा गया कि किसी मर्द या औरत, बालिग या नाबालिग बच्चे को गुलाम नहीं बनाया जाएगा और भारतीय मूल की किसी रखैल या गुलाम को खरीदा या बेचा नहीं जाएगा क्योंकि इनका ताल्लुक कीमती जानों से है। तज्किरतुल मुलुक के लेखक रफीउद्दीन इब्राहीम शीराजी ने इसकी पुष्टि की है। शीराजी लिखते हैं कि जब 1563-64 में वे आगरा में थे उनके एक दोस्त ने एक गुलाम बेच दिया। इसकी खबर पाकर शहर कोतवाल ने दोस्त का एक कान कटवा लिया और दूसरों को आगाह करने के मकसद से कटा हुआ कान किले की दीवार पर कील से जड़वा दिया। गुलामों और रखैलों की बिक्री पर रोक का एक कारण कदाचित यह भी था कि अकबर की एक ब्राह्मण रखैल ने उसे बताया था कि दास-व्यापार के कारण उसकी सल्तनत में हर साल कोई दो लाख लोगों की कमी हो रही है।

लेकिन गुलाम बनाने और बेचने पर यह पाबंदी एक संस्था के रूप में नहीं थी। इस दिशा में अकबर ने 8 मार्च 1582 को एक अहम कदम उठाया और उसने अपने सारे गुलामों को आजाद कर दिया। गणमान्य व्यक्तियों की एक सभा में उसने ऐलान किया, ‘‘हमने उन तमाम शाही गुलामों को आजाद कर दिया है जिनकी तादाद सैकड़ों और हजारों से ज्यादा है। जिनको हमने (युद्धबंदी के रूप में) पकड़ा है उनको मेरे गुलामों में गिनना इंसाफ और दानिशमंदी (अक्लमंदी) की हद से आगे बढ़ना है।’’ उस दिन के बाद जिल्ले-सुब्हानी ने खुदाई इल्म से कुब्बत हासिल करते हुए अपने गुलामों को ‘चेलों’ का नाम दिया।

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