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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...


दाखिली यानी अंदर या भीतर की सेना का कार्य आंतरिक शांति तथा सुव्यवस्था बनाए रखना होता था। ऐसे सैनिकों को राजकोष से वेतन मिलता था। यह सेना मनसबदारों के अधीन होती थी। लेकिन अहदी (वादा करना या वचन देना) सेना सीधे बादशाह से संबद्ध होती थी, जो उसके अंगरक्षक का काम करती थी। अहदी सेना में कुलीन लोग होते थे जिन्हें बड़े ऊंचे वेतन दिए जाते। वे बादशाह पर तन-मन-धन सब कुछ न्योछावर कर देने के लिए वचनबद्ध होते थे। यह स्वतंत्र सेना होती और सीधे बादशाह से आदेश प्राप्त करती थी। प्रत्येक सैनिक को पांच घोड़े रखने पड़ने थे।

स्थायी सेना सदैव बादशाह के नियंत्रण में रहती थी जिसे किसी भी कार्य के लिए वह फौरन बुला सकता था। बादशाह स्वयं इस सेना का संचालन करता था।

इस सेना के विभिन्न भाग थे। अश्वारोही सेना मुगल सेना का महत्वपूर्ण एवं प्रधान अंग मानी जाती थी। भारत में अभी बंदूकों का बहु-प्रचलन नहीं हुआ था इस कारण अश्वारोही सेना मैदानी युद्ध में अति प्रभावशाली सिद्ध होती थी। ऊबड़-खाबड़ तथा पर्वतीय प्रदेशों में पैदल सेना प्रभावी थी। इसके दो भाग थे-एक तो बंदूकची और दूसरे तलवारबाज। अकबर के समय इनकी संख्या 12 हजार थी।

अकबर हाथियों को बहुत पसंद करता था। अकबर की हस्ति सेना में, शेरशाह सूर की तरह, 5 हजार प्रशिक्षित हाथी थे। बादशाह उनके खाने और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देता था। उत्तरी भारत में तोपों का प्रयोग सबसे पहले बाबर ने किया था। अकबर ने तोपखाने में सुधार कर उसे और उपयोगी बनाया। जल-युद्ध के लिए बड़ी-बड़ी नावों का प्रयोग किया जाता था। इनका प्रयोग बंगाल, बिहार और सिंध में होता था। लाहौर तथा इलाहाबाद में नावों के निर्माण की व्यवस्था की गई थी।

मुग़ल सैनिक-संगठन की एक बहुत बड़ी विशेषता शाही खेमें की व्यवस्था थी। जब बादशाह स्वयं सेना के साथ होता था उस समय शाही खेमा साथ चलता था। ख्ेामा एक नगर का रूप धारण कर लेता था। वह पांच से बीस मील तक विस्तृत होता और उसमें एक से दो लाख तक व्यक्ति विद्यमान रहते। इस विशाल जन समुदाय में पूर्ण संयम तथा अनुशासन बना रहता। केवल चार घंटे के भीतर इसकी व्यवस्था कर दी जाती थी। शाही खेमें में आवश्यकता की हर वस्तु उचित मूल्य पर मिलती थी।

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