जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
जय जवान, जय महान्
महत्वाकांक्षी साम्राज्यवादी अकबर ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने का दृढ़ निश्चय किया था। राज्य की स्थापना करने, उसे सुरक्षित एवं संगठित रखने के लिए एक विशाल, सुसज्जित, सुशिक्षित, सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित सेना की आवश्यकता थी। पहले बादशाह का ध्यान वर्तमान मुगल सेना के दोषों की ओर गया था।
मुगल सैन्य व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह था कि अफसरों को नकद वेतन देने के स्थान पर जागीरें दी जाती थीं। यह प्रथा वह 1575 ई. में समाप्त कर पाया। सैनिक अफसर तथा सरकारी नौकरों को नकद वेतन दिया जाने लगा। एक अन्य दोष था घोड़ों को दागने की प्रथा का न होना यद्दपि यह प्रथा शेरशाह सूर के जमाने में प्रचलित थी। इससे झूठे घोड़ों को दिखला देने की संभावना बनी रहती थी। मनासबदारों को घोड़ों की संख्या के अनुसार भत्ता मिलता था। अतः प्रत्येक घोड़े को दागने की प्रथा प्रारंभ हुई और प्रत्येक अफसर के घोड़ों के लिए दागने के चिह्न अलग थे। वर्ष में कम से कम एक बार बख्शी के सामने घोड़े प्रस्तुत किए जाते थे।
अकबर के पास पांच विभिन्न प्रकार की सेनाएं थी। इनका संक्षिप्त विवरण जान लेना रोचक होगा।
अधीनस्थ राजाओं को अपनी सेना के साथ साम्राज्य की सेवा करनी पड़ती थी। सेनाओं का संगठन राजा लोग अपने खर्चे पर करते थे। वही इसके सेनापति होते।
अकबर के समय में मनसबदारों (पद या दर्जा प्राप्त) का प्रचलन प्रारंभ हुआ। सेना का संगठन पद के आधार पर किया गया। ऊपर से नीचे की श्रृंखला में कुल 33 पद थे। सबसे छोटे मनसबदार के पास 10 सैनिक और सबसे बड़े के पास 12 हजार सैनिक होते। पांच सौ से ढाई हजार सैनिकों वाला मनसबदार ‘अमीर’ कहा जाता और उससे अधिक सैनिक रखने वाले को ‘अमीरे-आजम’ कहा जाता। सबसे बड़ी सैनिक उपाधि ‘खान-ए-खानान’ (खानखाना) थी जो एक समय में एक ही व्यक्ति को दी जाती थी। 5 हजार से ऊपर के मनसब प्रायः मुगल राजवंश के राजकुमारों के लिए सुरक्षित रहते। कोई भी व्यक्ति 7 हजार से अधिक का मनसब न प्राप्त कर सका। मनसबदारों को ऊंचे वेतन दिए जाते थे जिनमें से आधा उन्हें अपनी सेना की व्यवस्था में खर्च करना होता था और शेष अपने ऊपर।
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