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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...


इस प्रकार 1564 ई. तक राजपूतों से अकबर केे संबंध उनको विविध प्रकार से प्रलोभित करने तथा मैत्री संबंध स्थापित करने के प्रयासों पर आधारित थे। इस संबंध में इतिहाकारों के विरोधी मत हैं। एक मत के अनुसार अकबर की यह नीति धार्मिक सहिष्णुता और वैवाहिक संबंध स्थापित करने की नीति से संबद्ध है। इसी मत के अनुसार 1562 ई. (या 1563) में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 ई. में जजिया कर की समाप्ति इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। दूसरे मत के अनुसार राजपूत नीति में राजनीतिक उपयोगिता का विचार अधिक था तथा यह नीति धार्मिक सहिष्णुता या बौद्धिक प्रभाववश नहीं अपनाई गयी थी। राजपूतों से अकबर के वैवाहिक संबंधों की स्थापना को भी सशक्त राजाओं व जमीदारों के प्रति मुगलों की नीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है कि राजपूत सरदारों से राजपूताना तथा अन्य स्थानों पर राजनीतिक संबंधों को निश्चित रूप प्रदान करने में इन वैवाहिक संबंधों का विशिष्ट हाथ था। बेटी को विवाह में देने वालों को रिश्ता स्वीकार करने वाले के सम्मुख झुकना पड़ता था। इस प्रकार बादशाह की उच्च स्थिति स्वतः ही निर्धारित हो जाती थी। कभी-कभी अपनी मुसीबत दूर किए जाने के उपलक्ष्य में राजपूत राजा अपनी बेटी बादशाह को दे देते थे। 1562 ई. में ऐसा ही हुआ कि जब आमेर के राजा भारमल को अकबर से बांछित सहायता मिलने का वचन मिल गया तो उसने अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह अकबर के कर दिया।

अकबर ने हिन्दू पत्नियों के संबंध में अपनी सदाशयता का पूरा परिचय दिया। उसने हिन्दू पत्नियों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की। उनके संबंधियों को ऊंचे पद दिए, ऊंचा रुतवा दिया और पांच हजार से सात हजार तक के मनसब प्रदान किए ।

यहां अकबर के व्यक्तित्व का संक्षिप्त आकलन कर लेना अभीष्ट होगा।

योग्य सेनापति की हैसियत से वह साहसी और दिलेर था, फिर भी उसमें बड़ी दया और कोमलता भी थी; वह आर्दशवादी था, स्वप्नदर्शी था, साथ ही कार्यक्षेत्र का आदमी थी, वह लोगों का ऐसा नेता था जो अपने अनुयाइयों में गहरी स्वामिभक्ति उकसा सके। योद्धा की हैसियत से उसने हिंदुस्तान के बड़े हिस्सों पर फतह हासिल की, लेकिन उसकी निगाहें एक दूसरी ही तरह की विजय पर लगी हुई थीं-वह लोगों के दिल और दिमाग पर विजय हासिल करना चाहता था। उसकी मजबूर कर देने वाली आंखों में, जैसा कि उसके दरबार के एक पुर्तगाली जेसुइट ने हमें बताया है, ‘‘धूप में दमकते हुए समुंदर’’ की सी झलक थी यानी उसकी आंखों में चमकती हुई सच्चाई थी। अखंड भारत के पुराने स्वप्न ने उसमें एक नया रूप ग्रहण किया और यह एकता महज सियासी एकता न थी बल्कि लोगों को एक चेतना में ढालने वाली थी। 1556 ई. से लेकर अपने राज्यकाल के करीब पचास साल तक उसने बराबर यही कोशिश की। बहुत से राजपूत सरदारों को, जो किसी तरह दूसरे के काबू में न आने वाले थे, उसने अपनी तरफ मिला लिया। उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किए। उसका बेटा जहांगीर (सलीम) आधा मुगल और आधा राजपूत हिंदू था।

अकबर राजपूतों का बड़ा प्रशंसक था और उनसे अपना संबंध मानता था। अपनी ब्याह संबंधी और दूसरी नीति से उसने राजपूत राजाओं से निकटता पैदा कर ली थी। इसकी वजह से सल्तनत में बड़ी पायेदारी आई। मुगलों और राजपूतों के इस सहयोग से न महज सरकारी हुकूमत और फौज पर असर पड़ा पर कला-संस्कृति और रहन-सहन के तरीकों में भी परिवर्तन आए। मुगल अमीर रफ्ता-रफ्ता और भी ज्यादा हिंदुस्तानी होते गए और राजपूतों पर ईरानी संस्कृति का असर पड़ा।

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