जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
राणा प्रताप का मिथक
राणा प्रताप के विषय में जनश्रुति है कि उन्होंने अकबर के सामने कभी सिर नहीं झुकाया और मजबूर होकर वे जाकर जंगल में रहने लगे। वहां के आदिवासी और भील उनके सहायक थे। राणा जंगल में घास की रोटियां खाकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। पर इतिहास कुछ और ही बताता है।
अकबर की राजपूत नीति के अवरोध का सुर मेवाड़ के राणा प्रताप द्वारा प्रस्तुत किया गया। प्रताप राणा उदय सिंह का पुत्र था जिसकी 1572 ई. में मृत्यु हो गई थी। अपने छोटे भाई जगमल को सैनिक विप्लव के द्वारा गद्दी से हटाकर राणा प्रताप ने राज्य प्राप्त किया। जगमल अकबर के दरबार में पहुंचा, अकबर ने उसे जागीर प्रदान की। जगमल के दरबार में शरण लेने के बावजूद मेवाड़ की गद्दी के संबंध में हस्तक्षेप करने का अकबर का कोई इरादा नहीं था। दूसरी ओर राणा भी अकबर के साथ संघर्ष नहीं चाहता था हालांकि उसकी जोधपुर के राव चन्द्रदेव और सिरोही के राव सुर्तन सिंह से दोस्ती थी जिन्होंने शाही सत्ता के प्रति बगावत की थी। अकबर को इस बात का एहसास था कि राणा का रवैया कालांतर में उसकी गुजरात विजय के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उसने पहले मानसिंह, फिर भगवान दास और टोडरमल को मेवाड़ के शासक को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने हेतु तैयार करने के लिए भेजा। परंतु राणा ने व्यक्तिगत रूप से दरबार में जाकर बादशाह की अधीनता स्वीकार करने की पेशकश ठुकरा दी। उसने अपने पुत्र अमर सिंह को अवश्य दरबार में भेज दिया।
मुग़ल दरबार तथा समुद्र पार देशों के मध्य मेवाड़ की राह से सूरत तथा अन्य बंदरगाहों से जो वाणिज्य स्थापित हुआ था उसमें व्यवधान उपस्थित होने लगा। व्यापारियों के माल की लूटमार भी होने लगी।
अकबर का शाही आवेग जाग्रत हो उठा जिसके वशीभूत होकर उसने मालवा के बाज बहादुर, गुजरात के मुजफ्फर, बंगाल के दाऊद, सिंध के जानीबेग तथा कश्मीर के युसुफ आदि शासकों को तहस-नहस कर डाला था। इसी भावना के वशीभूत होने के कारण उसका राणा से संघर्ष हुआ। मेवाड़ पर तत्समय राणा के स्थान पर किसी मुस्लिम शासक का आधिपत्य होने की दशा में भी अकबर उससे यही व्यवहार करता।
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