जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
साम्राज्य-विस्तार की बहुरंगी धाराएं
अपनी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ बना लेने के बाद अकबर ने साम्राज्य विस्तार का कार्य आरंभ कर दिया। वह जानता था कि किसी भी महत्वाकांक्षी गंतव्य का छोटा रास्ता नहीं होता। इस हेतु अकबर को राजपूतों और अफगानों से लोहा लेना था। अकबर ने पहले इनके विगत क्रियाकलापों, व्यवहारों और मानसिक सोच का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया। उनके युद्ध और सत्ता के मनोविज्ञान को समझा। इन दो शक्तियों के साथ संघर्ष में उसने दो भिन्न प्रकार की नीतियों का अनुसरण करने का निश्चय किया। और इसी योजना के तहत पहले उसने अफगानों के राज्यों को जीतकर, उन्हें निर्मूल कर, वहां अपना शासन स्थापित किया क्योंकि वह जानता था कि अफगान बड़ा धूर्त, चालाक और अविश्वसनीय प्राणी होता है। पूर्व में भी अफगानों के साम्राज्य के ध्वंसावशेष पर ही मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई थी, अतः अफगानों का अस्त्तित्व मुगल साम्राज्य के लिए घातक हो सकता था। दूसरी शक्ति राजपूतों की थी। राजपूत केवल अपनी आजादी के भूखे थे, विश्वासघात नहीं करते थे, वचन के पक्के थे। अतः जिन राजपूत राजाओं ने उसके आधिपत्य को स्वीकार कर लिया, उनको अभयदान देकर उनका राज्य लौटा दिया और उन्हें अपना मित्र, सहयोगी व संबंधी बना लिया।
मालवा के सुल्तान बाज बहादुर द्वारा प्रजा के उत्पीड़न और उसकी विलासता की सूचना मिलने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई करने का अकबर को बहाना मिल गया। उसने आदम खां के नेतृत्व में सेना मालवा भेजी। एक संक्षिप्त युद्ध के बाद बाज बहादुर भाग निकला। आदम खां ने मालवा पर अधिकार कर लिया और सारी संपत्ति अपने कब्ज़े में कर ली। खजाना देखकर उसकी नियत खराब हो गई। अकबर को उसने सिर्फ 5 सौ हाथी भेज दिए। पूरी स्थिति ज्ञात होने पर अकबर ने स्वयं मालवा जाकर आदम खां की खबर ली। तब उसने सारी संपत्ति बादशाह को सौंप दी। अकबर मालवा से लौट पड़ा। मार्ग में रणथंभौर का दुर्ग था। उसे फतह किया।
अगले वर्ष 1562 में अकबर अजमेर गया। करौली में उसे बताया गया कि शरीफुद्दीन हुसैन मिर्जा के आतंक से जयपुर का राजा भारमल पहाड़ियों में छिपा रहता है। वैसे वह स्वयं अति चतुर और बुद्धिमान हैं। अकबर के कहने पर भारमल को उसके सामने पेश किया गया। राजा भारमल अकबर का दरबारी बनना चाहता था। अतः राजा ने अपनी पुत्री हरखाबाई का विवाह अकबर से करने का प्रस्ताव रखा। इसके पहले अकबर बिहारी मल कछवाहे की बेटी से विवाह कर चुका था। अब यह राजपूत कन्या से दूसरा विवाह। यद्दपि हुमाऊँ ने उसे राजपूतों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने की सीख दी थी परंतु उसने सोचा कि कहीं ऐसे विवाहों को लेकर राजपूत समाज का क्रोध न उबल पड़े! फिर उसने स्वयं तर्क किया कि अगर ऐसा होना होता तो पहले विवाह के समय ही हो जाता और भारमल यह प्रस्ताव भी न रखता। अकबर ने राजपूतों से संबंध और सुदृढ़ करने के लिए विवाह की स्वीकृति दे दी।
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