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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

मुग़लिया मेनीफेस्टो

देश में शांति तथा सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए अकबर ने विद्रोहियों का दमन करना आवश्यक समझा। वह जानता था कि कठिनाई और विरोध ही उसके पराक्रम को निखारेंगें। अतः दमन में क्रूरता के तत्व को उसने क्षमा-दान नीति से स्थानापन्न कर दिया। आंतरिक शांति के लिए हिंदुओं और मुसलमानों में परस्पर सद्भावना और सहयोग आवश्यक था। इससे मुगल साम्राज्य की नींव मजबूत करना और उसे स्थायित्व प्रदान करना उसका प्रथम लक्ष्य था। वह जानता था कि मुगल भारत में बड़े अलोकप्रिय हैं क्योंकि भारतीय जनता उन्हें बर्बर और विदेशी समझती थी। मुगलों ने दो बार अफगानों से राज्य छीना और राजपूतों को खनवा तथा अन्य युद्धों में परास्त किया था। अतएव अफगानों और राजपूतों दोनों के दिलों में हार की कसक थी और वे मुगलों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। अकबर ने इस घृणा को दूर करने और एकता स्थापित करने का लक्ष्य रखा। कालांतर में इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदारता, धार्मिक सहिष्णुता और ‘सुलह-कुल’ (सबके साथ मेल) की नीति का अनुसरण करने का निश्चय किया।

अकबर ने अपनी उदार नीति के फलस्वरूप जनता की चहुंमुखी उन्नति को अपना लक्ष्य बना लिया। प्रजा की उन्नति के लिए क्षुद्र प्रयोजनों से ऊपर उठकर अनेक प्रकार के प्रशासनिक और सामाजिक सुधार, भूमि संबंधी सुधार और वाणिज्यिक सुधार आवश्यक थे जो समय आने पर किए। बौद्धिक उन्नति के लिए हिंदी, संस्कृत को प्रश्रय देना और फारसी के अध्ययन को प्रोत्साहन देना जरूरी था। प्रजा की सांस्कृतिक उन्नति के लिए साहित्यकारों और कलाकारों को प्रश्रय देना आवश्यक समझा गया। आध्यात्मिक उन्नति हेतु धार्मिक साहिष्णुता की नीति का अनुसरण करना और पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता देना जरूरी माना।

सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में बांधकर विश्व बंधुत्व की भावना को परिपुष्ट किया जा सकता है। यह स्वप्न चंगेज खां से प्रेरित था और इस्लाम धर्म के अनुकूल था। अपने साम्राज्य में शांति तथा एकता स्थापित करने के बाद ही इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है। संपूर्ण भारत में सार्वभौम सत्ता स्थापित करने के लिए एक विशाल सेना का सुदृ़ढ़ संगठन आवश्यक था। भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बांधने के बाद मध्य-पूर्व तथा पश्चिम एशिया को उससे आबद्ध किया जा सकता था। यह तभी हो सकता है जब अतीत की भावुकता से मुक्त होकर समय के साथ परिपक्व हुआ जाय।                            
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