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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

संरक्षक के साथ संघर्ष

बैरम खां ने अपने चार वर्षों के शासन-काल में अकबर को न केवल राज्य स्थापना की प्रारंभिक कठिनाइयों से मुक्त कर दिया और उसकी स्थिति को अत्यंत सुदृढ़ बना दिया वरन् उसके राज्य की सीमाओं में भी वृद्धि कर दी। काबुल से जौनपुर तक तथा कश्मीर से अजमेर तक अकबर की पूर्ण सत्ता स्थापित हो गई। ग्वालियर जीत लिया गया और रणथंभौर तथा मालवा को नतमस्तक करने का पूरा प्रयत्न किया गया। इस प्रकार बैरम खां ने संक्रमण-काल में बादशाह की श्लाघनीय सेवाएं कीं।

कई कारणो से बैरम खां के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाने लगे। इन षड्यंत्रकारियों में अहम भूमिका तुर्की अमीरों, धाय माहम अनगा और हरम की महिलाओं की थी। इनकी सबसे बड़ी शिकायत यह थी कि प्रधानमंत्री बैरम खां उनकी उपेक्षा करता था और खर्च के लिए पर्याप्त धन नहीं देता था। बैरम खां ने एक भूल की थी कि वह शिया मुसलमानों के साथ पक्षपात करता था। उन्हें ऊंचे पद देता था। इससे सुन्नी अमीर बड़े असंतुष्ट हो गए और बैरम खां के विरुद्ध बादशाह के कान भरने लगे। अकबर की उम्र अठारह की होने वाली थी और अब वह संरक्षक से मुक्त होकर शासन की बागडोर स्वयं संभालना चाहता था। फलतः बैरम खां की सत्ता समाप्त करने के लिए अमीरों और बादशाह में एक तरह से गठबंधन हो गया। इसी समय बैरम खां ने पीर मुहम्मद खां को पदच्युत करके निर्वासित कर दिया और उसकी जगह एक ईरानी को नियुक्त कर दिया। बादशाह ने बैरम खां के इस कार्य पर असंतोष प्रकट किया क्योंकि किसी को पद-च्युत या नियुक्त करने का एकमात्र अधिकार बादशाह के पास था। अब अकबर ने अधिकार से कुत्सित मनोवृत्ति वाले बैरम खां को पद-च्युत करने का निश्चय कर लिया।

बैरम खां जानता था कि अकबर स्वयं राजकाज संभालने वाला है। अतः वह सर्तक हो गया। वह अपने विश्वस्त अफसरों को शाही हाथी देने लगा। कुछ शाही हाथी और मंगवा लिए। यह अकबर को बुरा लगा, पर वह चुप रहा। मऊ के जमींदार तख्तामल का बैरम ने वध करवा दिया। अकबर फिर भी चुप रहा। बैरम बिला वजह हाथियों को अंधा करवा देता, उनके महावतों को मरवा देता। एक तरह से बैरम खां बगावत पर उतर आया था। अकबर द्वारा बैरम खां की उच्छृंखलता सहन करने का सबसे बड़ा कारण यह था कि बैरम खां हुमायूँ की बहन का बेटा था इसी कारण उसने बैरम खां को अल्पवयस्क अकबर का संरक्षक नियुक्त किया था। पर पानी सिर से ऊपर जा चुका था। अकबर समझ रहा था कि बैरम खां के कठोर और क्रूर हाथों में राज्य सुरक्षित नहीं रह सकता।

जब अकबर को पक्की तरह से मालूम हो गया कि बैरम खां के इरादे नेक नहीं हैं तो उसने माहम अनगा, मिर्जा शरफुद्दीन हुसेन तथा अन्य अमीरों से कहा कि राज की बागडोर अब वह अपने हाथ में लेना चाहता है और बैरम खां व उसके चाटुकारों को दंड देना चाहता है। अकबर के इस निर्णय की बैरम खां को भनक लग गई पर उसने कोई परवाह न की। वह लोगों को अकबर के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाता रहा। उपद्रव करवाता रहा। सिंधु में अमावस का ज्वार लाने का प्रयत्न करता रहा और इस तरह अनजाने अपने अपकर्ष का मार्ग प्रशास्त करता रहा।

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