बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी आओ बच्चो सुनो कहानीराजेश मेहरा
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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।
सुख - दुःख
राजू के पापा ऑफिस से घर पहुंचे तो देखा राजू कि माँ गुमशुम सी बैठी थी और शून्य में झांके जा रही थी।
राजू के पापा अन्दर आ चुके थे लेकिन उनको तनिक भी भनक नहीं लगी थी। राजू के पापा ने हाथ लगा के पूछा, "राजू कि माँ क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही कहीं खोई हुई हो क्या बात है।"
इस पर राजू की माँ जैसे कहीं दूर से आई हो और बोली, "अरे आप आ गए, कब आये मुझे पता ही नहीं लगा।"
राजू के पापा बोले, "आज कुछ ज्यादा ही परेशानी में दिख रही हो क्या बात है।"
राजू की माँ बोली, "देखो ना आप हमारे मोहल्ले में सब से ज्यादा पढ़े लिखे हो लेकिन आप को अच्छी नौकरी भी नहीं मिली है और ना ही हमारे पास ज्यादा धन दौलत है और पड़ोस की बिमला को देखो उसका पति ना तो ज्यादा पढ़ा लिखा है और ना ही ज्यादा समझदार लेकिन उनके पास कितना पैसा है। आप और हम मिलकर भी राजू की कोई इच्छा पूरी नहीं कर पाते। कई बार तो हमें उसे ऐसे ही समझा बुझाकर मनाना पड़ता है जब वो कोई महंगी चीज की फरमाइश करता है।"
इस पर राजू के पापा बोले, "अच्छा तो ये बात है।"
पीछे से आकर राजू भी अपनी माँ का समर्थन करने लगा, "देखो पापा, बिमला आंटी के पास दो कारें है और हमारे पास एक मोटरसाइकिल भी नहीं है।"
राजू के पापा अब थोड़ा गंभीर होकर बोले, "राजू, यदि हम इन बातों पर ध्यान देंगे तो कभी भी खुश नहीं रह सकते क्योंकि हर किसी की ख्वाहिश इस दुनिया में पूरी नहीं हो पाती है और यदि सभी की सभी ख्वाहिशें पूरी हो जाएं तो इस दुनिया में सब लोग पैसे वाले हो जायेंगे तो फिर सब लोग पैसा लिए घूमेंगे लेकिन सामान बेचने वाला कोई नहीं होगा।"
राजू और उसकी माँ को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। राजू के पापा बोले, "मैंने पढ़े लिखे होने के साथ अच्छी नौकरी कि पूरी कोशिश की लेकिन मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिली इसका मतलब भगवान् चाहते हैं कि मुझे इसी नौकरी में संतुष्टि करनी पड़ेगी। इसलिए यदि मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिली तो क्या मैं इसी दुःख में भगवान् ने जो नौकरी मुझे दे रखी है उसको छोड़ कर घर बैठ जाऊं। बिमला के पति अनपढ़ है और वो अपना बिज़नेस चलाते हैं इसलिए उनके पास पैसा है। यदि भगवान् चाहता है कि उनके पास पैसा रहे तो उनके पास पैसा है। मैं ये कहूँगा कि भगवान् ने जो हमें दे रखा है हमें उसी पर संतुष्ट रहना चाहिए।" लेकिन राजू कि माँ और राजू फिर भी संतुष्ट नहीं थे।
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