बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी आओ बच्चो सुनो कहानीराजेश मेहरा
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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।
राजू के पापा ने राजू और उसके टीचर को एक साथ बैठाया। राजू के पापा ने टीचर को राजू के बारे में सब सच बता दिया।
टीचर उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया। टीचर ने कुछ देर सोचा और फिर राजू के पिता की तरफ मुखातिब होकर बोला “अब आप ही बताएं कि हम कोई बच्चा झूठ बोल रहा है या सच इसका पता कैसे लगायें?” अब स्तब्ध होने की बारी राजू के पिता की थी।
राजू के पिता काफी देर तक सोचते रहे लेकिन उनकी समझ में टीचर के सवाल का जवाब नहीं आ रहा था।
कुछ देर सोचने के बाद टीचर बोला “देखिये, इस सवाल का जवाब आप तो क्या कोई भी नहीं दे पायेगा और ये जब से सृष्टि बनी है तब से ही ये सवाल ज्यों का त्यों है इसलिए हमें इसको ऐसे ही छोड़ देना चाहिए और अपनी इन्द्रियों का इस्तेमाल और भी अच्छी तरीके से करना चाहिए और उनके अनुसार अपने अपने कर्म करने चाहिए जैसे कि राजू यदि झूठ का साथ देता है तो आपको उसको देखते रहना है कि वो कोई ऐसी हरकत तो नहीं कर रहा जिससे लगे कि वो कुछ गलत कर रहा है और यदि वो ऐसा कर रहा है तो उसको आपको टोकना है और उसे सच्चाई पर चलने को कहना है। मैं भी अपनी इंद्री का और अच्छी तरह से इस्तेमाल करूंगा ताकि जो सच बोल रहा हो उसके साथ अन्याय न हो।”
राजू के पिता अब थोड़ा संतुष्ट हुए। वे टीचर की बातों से समझ गए थे कि सच्चाई का सच पता लगाना मुश्किल है आज के जमाने में।
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