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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

सुबह होते ही उसने अपने चाचा जी को फोन किया कि आप सब लोग घर पर आ जाएँ क्योंकि पापा और माँ गाँव गए हैं।

उसके चाचा जी ने सुना तो उसी शाम वो अपने परिवार सहित राजू के घर में आ गए। अब राजू को खाने की भी कोई चिंता नहीं थी क्योंकि चाची जी खाना बना देंगी और रात को भी उसे डर नहीं लगेगा।

राजू के चाचा जी उसी के घर से अपने ऑफिस आने जाने लगे। राजू अब अपने चाचाजी के बच्चों के साथ घुलमिल रहा था और उसे अब उनका शोर बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था। दो तीन दिन में ही राजू को वो परिवार अपना सा लगने लगा था। अब तो वो स्कूल में ये सोचता कि कब स्कूल छूटे और वो भाग कर अपने चाचा जी के बच्चों के साथ खेले। चाचीजी भी उसे अब बड़े प्यार से रखती थी तो वो भी अब चाहता था कि अब वो परिवार हमेशा के लिए उनके साथ रहे। उसके चाचा जी मैथ में अच्छे थे तो वो राजू को मैथ अच्छे ढंग से समझाते थे।

राजू अब उनका इतना आदी हो चुका था कि वो सोचता था कि यदि कल ये लोग चले जायेंगे तो उसका मन बिलकुल भी नहीं लगेगा। एक हफ्ता गुजर गया तो उसके पापा और माँ वापिस आ गए।

उसकी माँ ने आते ही राजू की चाचीजी को राजू की देखभाल करने के लिए शुक्रिया अदा किया। राजू के चाचा शाम को आये तो वो राजू की चाची से बोले कि चलो अब हम अपने घर चलते हैं, राजू के पापा माँ तो आ ही गए हैं।"

इसपर राजू रो दिया और उनसे पिछले बार के आने पर किये व्यवहार के लिए छमा मांगी और बोला कि आगे से में ऐसी गलती नहीं करूंगा। अब मैं समझ गया हूँ कि रिश्ते हमारे समाज के लिए जरूरी हैं और इनसे ही हमें मिलजुल कर रहने की प्रेरणा मिलती है।

तब राजू के चाचा और चाचीजी ने उसे गले लगाया और आशीर्वाद दिया। इतने में उसके पापा बोले, "राजू, इसी को बताने के लिए हमने तुम्हें अकेला छोड़ा था और मैं खुश हूँ कि तुम अब रिश्तों की अहमियत समझ गए हो।"

उसके बाद राजू ने अपने चाचा जी को हर त्यौहार पर आने को कहा और कहा कि आप नहीं आओगे तो मैं पूरे परिवार सहित आपके घर आ जाऊंगा।

सब लोग एक साथ हँस दिए।

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