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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

रिश्ते


आज राजू के घर उसके चाचा जी और उनका परिवार आया हुआ था इस कारण घर में ज्यादा ही शोर शराबा था। राजू को ये सब पसंद नहीं आ रहा था। उसके व्यवहार से उसकी माँ और पापा को पता लग रहा था कि वो उनके आने से खुश नहीं था। कई बार तो वह झल्ला भी जाता था जब उसके पापा उसको कुछ काम के लिए कहते थे। कुछ दिनों बाद उसके चाचा जी और उनका परिवार वापिस अपने घर चला गया। उसके चाचाजी भी जाते हुए कह गए थे कि लगता है कि राजू हमारे आने से खुश नहीं है लेकिन उसके पापा ने अपने भाई को किसी तरह से समझाया कि वह बच्चा है और उसे दुनिया दारी की समझ नहीं है लेकिन राजू के चाचा संतुष्ट नहीं हुए थे।

राजू के चाचा के जाने के बाद उसके पापा ने उसे बुलाया और कहा, "क्या बात है राजू? मैंने देखा कि जिस दिन से आपके चाचा जी आये थे उस दिन से आपने न ढंग से उनसे बात की, ना ही उनके बच्चों को सही से सम्मान दिया, क्या बात है?"

तब राजू बोला, "पापा मुझे घर में शोर शराबा बिलकुल भी पसंद नहीं है।"

उसके पापा ने प्यार से कहा, "बेटा, लेकिन ये तो हमारे रिश्ते हैं जिन्हें हमें निभाना होगा। तुम इस तरह से उनके आने पर झुंझलाहट में रहोगे तो वो समझ जायेंगे कि उनके आने से तुम खुश नहीं हो। मानो कल तुम उनके घर जाओगे और वो भी तुम्हारी तरह ही व्यवहार करें तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा?"

राजू बोला, "पापा, मुझे अच्छा नहीं लगता जब कोई हमारे घर में आकर हो हल्ला करता है। मुझे शांति पसंद है बस।" इतना कह कर राजू अपने कमरे में चला गया।

राजू के पापा समझ गए कि राजू इस तरह समझने वाला नहीं है उसको रिश्तों की महत्ता के बारे में बताना पड़ेगा।

कुछ दिनों बाद उसके माँ और पापा राजू से बोले, "राजू मुझे और तुम्हारी माँ को गाँव में जाना पड़ रहा है वहाँ पर अपनी जो खेती की जमीन है उनका तुम्हारे दादा जी नवीनीकरण करवा रहे हैं इसलिए हम दोनों को वहाँ जाना पड़ रहा है और इसके लिए हो सकता है कि एक हफ्ता भी लग जाये। इसलिए तुम्हें अकेला ही रहना पड़ेगा, हम तुम्हें साथ लेकर जायेंगे तो तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान होगा। तुम चाहो तो अपने चाचा जी के परिवार को बुला सकते हो या फिर अकेले रहो। जैसी तुम्हारी मर्जी।"

राजू बोला, "मैं अकेला ही ठीक हूँ।"

अगले दिन उसके पापा और माँ गाँव को चले गए। सुबह तो उसके स्कूल जाने में कट गई लेकिन दोपहर के बाद शाम होत-होते उसको अकेलापन खाने लगा। शाम के समय उसने बड़ी मुश्किल से खाना बनाया, उसकी हालत खराब थी। रात को भी उसे अकेले सोने में डर लग रहा था। उसने वो रात बड़ी मुश्किल से काटी।

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