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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

उस बुजुर्ग ने आशा भरी नजरों से राजू की तरफ देखा और फिर पीछे हट कर एक कोने में बैठ गया। माँ मंदिर में पहुंची और मंदिर के पुजारी को सारा सामान देकर बोली “पंडित जी पूजा शुरू करवाइये।”

इतना कहते ही उस ह्रष्ट पुष्ट पंडित ने सारा सामान ले लिया और पूजा शुरू की। आधे घंटे तक पूजा करने के बाद पंडित जी बोले “माता अब पांच सौ एक रुपये भगवान् को चढ़ाइए।”

राजू की माँ ने झट से पैसे निकालकर पंडित जी को दे दिए। पंडित जी ने तुरंत वो रुपये अपनी थाली में रखे और हम सब के तिलक लगा कर आशीर्वाद दिया और कहा “माता पूजा संपन्न हुई” और उसके बाद उसने हमारी मिठाई में से दो लड्डू हमें दिए और कहा “ये लो प्रसाद” और सारा सामान लेकर मंदिर के पीछे बने अपने कमरे में चला गया।

माँ उसको केवल देखती रह गई। अब माँ के हाथ में सिर्फ दो लड्डू थे वो उनको लेकर वापिस घर की तरफ चलने लगी। राजू और उसके पापा भी उसके पीछे-पीछे थे। वो लोग जब वापिस उस बुजुर्ग व्यक्ति वाले स्थान पर पहुंचे तो देखा कि वहाँ बहुत भीड़ थी। राजू और उसके पापा ने लोगों से पूछा “कि क्या हुआ?” तो उनमें से एक व्यक्ति ने बताया कि एक बुजुर्ग व्यक्ति पड़ा है शायद भूख से मर गया है।

राजू ने भीड़ में घुस कर देखा कि वह वही बुजुर्ग आदमी था जो थोड़ी देर पहले उनसे खाना मांग रहा था। राजू वापिस अपनी दूर खड़ी माँ के पास पहुँचा और बोला “माँ वो बुजुर्ग भिखारी भूख से मर गया है और हम लोग सारा प्रसाद उस पुजारी को दे आये जो पहले से ही ह्रष्ट पुष्ट था, उसने भगवान् के नाम पर हमसे सारा सामान ले लिया और हमने भी बड़ी समझदारी से उसको दे दिया और तो और हमें लगा कि वो सारा सामान भगवान् के लिए है यदि वही सामान हम इस बुजुर्ग को दे देते तो शायद वह बच जाता। भगवान् ये कभी नहीं कहता कि भूखे को मार कर मुझ पर प्रसाद चढाओ।”

राजू की माँ की आँखों में आंसू थे उसने राजू को अपने आलिंगन में लिया और कहा “राजू मुझे माफ़ कर दो, आज से मैं किसी बुजुर्ग को पहले खाना दूँगी उसके बाद ही मंदिर में प्रसाद दूँगी।”

राजू ने माँ के आंसू साफ़ किये और बोला “माँ हमें स्कूल में पढ़ाया जाता है कि मानव सेवा ही भगवान् की सेवा है।”

माँ ने राजू के सिर पर हाथ फेरा और वो लोग घर की तरफ चल दिए। राजू के पापा भी उसकी समझदारी से प्रभावित थे।

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