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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117
आईएसबीएन :978161301295

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

ड्यूक : महावीर ऑथेलो, राज्य के आम दुश्मन तुर्कों के खिलाफ हमें तुम्हारी सेवाएँ फौरन हासिल करनी चाहिए। मैं आपको देख नहीं पाया, स्वागत श्रीमान ब्रैबेन्शियो! आज रात आपकी अमूल्य राय से हम अभी तक वंचित थे, अब आप भी सहायता करें।

ब्रैबेन्शियो : वही तो मैं आपसे चाहता हूँ। श्रीमानों के श्रीमन्त, मुझे क्षमा करें! न तो मेरी स्थिति ने ही, न राज्य-कार्य में से किसी बात ने आज की रात मुझे नींद से जगाया है। राज्य के इस आम खतरे ने भी मुझमें दिलचस्पी पैदा नहीं की है। क्योंकि मेरा अपना दुःख ऐसी भीषण बाढ़ की तरह है जो सारे दुःखों को निगलने की सामर्थ्य रखता है, किन्तु स्वयं अभी तक वैसा ही प्रचण्ड है।

ड्यूक : क्यों? क्या हुआ?

ब्रैबेन्शियो : मेरी पुत्री! आह मेरी पुत्री!

सिनेट के सदस्य : क्या वह नहीं रही? (मर गई)

ब्रैबेन्शियो : हाँ, मेरे लिए वह मर चुकी है। उसे धोखा दिया गया है। मुझसे चुरा लिया गया है, नीमहकीमों से खरीदी गई जड़ी-बूटियों और जादू से उसकी बुद्धि हर ली गई है। क्योंकि कोई साधारण बुद्धिवाला भी, जिसकी बुद्धि अपाहिज, अंधी और अभावग्रस्त नहीं है, बिना जादू के जाल में फँसे ऐसी भयंकर भूल नहीं कर सकता।

ड्यूक : कौन है वह आदमी जिसने गैरकानूनी तरीके से तुम्हारी पुत्री को विवेक से और तुमको तुम्हारी पुत्री से अलग किया है? कानून के कठोर हाथ को तो आप स्वयं समझकर लागू करने का अधिकार रखते हैं, भले ही दण्ड पाने वाला व्यक्ति मेरा पुत्र ही क्यों न हो?

ब्रैबेन्शियो : आह! श्रीमंत ड्यूक का मैं सादर अभिवादन करता हूँ। यह है वह आदमी, यही है वह मूर, जिसे आपने विशेष आज्ञा देकर राज्यकार्य के सम्बन्ध में यहाँ बुलाया है।

सब : हमें इसके लिए खेद है।

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