संभोग से समाधि की ओर
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संभोग से समाधि की ओर...
संभोग : समय-शून्यता की झलक
मेरे प्रिय आत्मन,
एक छोटी-सी कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा। बहुत वर्ष बीते, बहुत
सदियां। किसी देश में एक बड़ा चित्रकार था। वह जब अपनी युवा अवस्था में था,
उसने सोचा कि मैं एक ऐसा चित्र बनाऊं, जिसमें भगवान का आनंद झलकता हो। मैं
ऐसी दो आंखें चित्रित करूं, जिनमें अनंत शांति झलकती हो। मैं एक ऐसे व्यक्ति
को खोजूं, एक ऐसे मनुष्य को, जिसका चित्र जीवन के जो पार है, जगत के जो दूर
है, उसकी खबर लाता हो।
और वह अपने देश के गांव-गांव घूमा जंगल-जंगल उसने छाना, उस आदमी को, जिसकी
प्रतिछवि वह बना सके। और आखिर एक पहाड़ पर गाय चराने वाले एक चरवाहे को उसने
खोज लिया। उसकी आंखों में कोई झलक थी। उसके चेहरे की रूप-रेखा में कोई दूर की
खबर थी। उसे देखकर ही लगता था कि मनुष्य के भीतर परमात्मा भी है। उसने उसके
चित्र को बनाया। उस चित्र की लाखों प्रतियां गांव-गांव दूर-दूर के देशों में
बिकी। लोगों ने उस चित्र को घर में टांगकर अपने को धन्य समझा।
फिर बीस वर्ष बाद, वह चित्रकार बूढ़ा हो गया था। और उस चित्रकार को। एक ख्याल
और आया-जीवन भर के अनुभव से उसे पता चला था कि आदमी में भगवान ही अगर अकेला
होता तो ठीक था, आदमी मे शैतान भी दिखाई पड़ता है। उसने सोचा कि मैं एक चित्र
और बनाऊं, जिसमें आदमी के भीतर शैतान छवि हो, तब मेरे दोनों चित्र पूरे
मनुष्य के चित्र बन सकेंगे।
वह फिर गया बुढ़ापे में-जुआघरों में, शराबखानों मे, पागलघरों में, खोजबीन की
उस आदमी की जो आदमी न हो, शैतान हो। जिसकी आंखों नरक की लपटे जलती हों, जिसके
चेहरे की आकृति उस सबका स्मरण हो, जो अशुभ है, कुरूप है, असुंदर है। वह पाप
की प्रतिमा की खोज मे निकला एक प्रतिमा उसने परमात्मा की बनाई थी, वह एक
प्रतिमा पाप की भी बनाना चाहता था।
और बहुत खोजने के बाद एक कारागृह में उसे एक् कैदी मिल गया। जिसने सात
हत्याएं की थीं और जो थोड़े ही दिनों के बाद मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था।
फांसी पर लटकाया जाने को था। उस आदमी की आंखों में नरक के दर्शन होते थे,
घृणा जैसे साक्षात थी। उस आदमी के चेहरे की रूपरेखा ऐसी थी कि वैसा कुरूप
मनुष्य खोजना मुश्किल था। उसने उसके चित्र को बनाया। जिस दिन उसका चित्र बनकर
पूरा हुआ, वह अपने पहले चित्र को भी लेकर कारागृह को आया और दोनों चित्रों को
पास-पास रखकर देखने लगा कि कौन-सी कलाकृति श्रेष्ठ बनी हैं। तय करना मुश्किल
था। चित्रकार खुद भी मुग्ध हो गया था। दोनों ही चित्र अद्भुत थे। कौन-सा
श्रेष्ठ था, कला की दृष्टि से, यह तय करना मुश्किल था।
और तभी उस चित्रकार को पीछे किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी। लौटकर देखा, तो
वह कैदी जंजीरों में बंधा रो रहा है, जिसकी कि उसने तस्वीर बनाई थी! वह
चित्रकार हैरान हुआ। उसने कहा कि मेरे दोस्त, तुम क्यों रोते हो? चित्रो को
देखकर तुम्हें क्या तकलीफ हुई?
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