लोगों की राय

संभोग से समाधि की ओर

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर...


बहुत दिनों के बाद वह आया। वह लड़का प्रौढ़ हो गया था। वृक्ष ने उससे कहा कि आओ मेरे पास। मेरे आलिंगन में आओ। उसने कहा छोड़ो, यह बकवास। यह बचपन की बातें हैं।
अहंकार प्रेम को पागलपन समझता है, बचपन की बातें समझता है!
उस वृक्ष ने कहा आओ मेरी डालियों से झूलो...नाचो।
उसने कहा छोड़ो ये फिजूल की बातें। मुझे एक मकान बनाना है। मकान दे सकते हो तुम?
वृक्ष ने कहा, मकान? हम तो बिना मकान के ही रहते हैं। मकान में तो सिर्फ आदमी रहता है। दुनिया में और कोई मकान में नहीं रहता है, सिर्फ आदमी रहता है। तो देखते हो आदमी की हालत-मकान में रहने वाले आदमी की हालत? उसके मकान जितने बड़े होते जाते हैं आदमी उतना छोटा होता चला जाता हैं। हम तो बिना मकान के रहते हैं। लेकिन एक बात हो सकती है कि तुम मेरी शाखाओं को काटकर ले जाओ, तो शायद तुम मकान बना लो।

और वह प्रौढ़ कुल्हाड़ी लेकर आ गया और उसने उस वृक्ष की शाखाएं काट डालीं! वृक्ष एक ठूंठ रह गया, नंगा। लेकिन वृक्ष बहुत आनंदित था।
प्रेम सदा आनंदित है, चाहे उसके अंग भी काटे जाएं। लेकिन कोई ले जाए, कोई ले जाए कोई बांट ले, कोई सम्मिलित हो जाए साझीदार हो जाए।
और उस लड़के ने तो पीछे लौटकर भी नहीं देखा! उसने मकान बना
लिया। और वक्त गुजरता गया। वह ठूंठ राह देखता है, वह चिल्लाना चाहता है, लेकिन अब उसके पास पत्ते भी नहीं थे, शाखाएं भी नहीं थी। हवाएं आतीं और वह बोल भी नहीं पाता बुला भी नहीं पाता। लेकिन उसके प्राणों में तो एक ही गूंज थी कि?...आओ, आओ।
और बहुत दिन बीत गए। तब वह बूढ़ा आदमी हो गया था, वह बच्चा। वह निकल रहा था पास से। वृक्ष के पास आकर खड़ा हो गया तो वृक्ष ने पूछा कि क्या कर सकता हूं और मैं तुम्हारे लिए-तुम बहुत दिन बाद आए!
उसने कहा तुम क्या कर सकोगे? मुझे दूर देश जाना है धन कमाने के लिए। मुझे एक नाव की जरूरत है।

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login