संभोग से समाधि की ओर
A PHP Error was encounteredSeverity: Notice Message: Undefined index: author_hindi Filename: views/read_books.php Line Number: 21 |
निःशुल्क ई-पुस्तकें >> संभोग से समाधि की ओर |
संभोग से समाधि की ओर...
इसीलिए मैं कहता हूं कि प्रेम है सीढ़ी और परमात्मा है उस यात्रा की अंतिम
मंजिल। यह कैसे संभव है कि दूसरा मिट जाए जब तक मैं न मिटूं? तब तक दूसरा
कैसे मिट सकता है? वह दूसरा पैदा किया है मेरे 'मैं' की प्रतिध्वनि ने। जितना
जोर से मैं चिल्लाता हूं कि 'मैं', उतने ही जोर से वह दूसरा पैदा हौ जाता
हैं। वह दूसरी प्रतिध्वनि है, उस तरफ 'इको' हो रही है मेरे 'मैं' की। और यह
अहंकार, यह 'इसे' द्वार पर दीवाल बनकर खड़ी है।
और 'मैं' है क्या? कभी सोचा आपने, यह 'मैं' है क्या? आपका हाथ है 'मैं' आपका
पैर है, आपका मस्तिष्क है आपका हृदय है? क्या है आपका 'मैं'?
अगर आप एक क्षण भी शांत होकर भीतर खोजने जाएंगे कि कहां है 'मैं' कौन-सी चीज
हैं 'मैं', तो आप एकदम हैरान रह जाएगे कि भीतर कोई 'मैं' खोजे में मिलने को
नहीं है। जितना गहरा खोजेंगे, उतना ही पाएंगे भीतर एक सनाटा और शून्य है,
वहां कोई 'आई' नहीं वहां कोई 'मैं' नही, वहां कोई 'इगो' नहीं।
एक भिक्षु नागसेन को एक सम्राट् मिलिंद ने निमंत्रण दिया था कि तुम आओ दरबार
मैं। तो जो राजदूत गया था निमंत्रण देने, उसने नागसेन को कहा कि भिक्षु
नागसेन, आपको बुलाया है सम्राट् मिलिद ने। मैं निमंत्रण देने आया हूं। तो
नागसेन कहने लगा, मैं चलूंगा जरूर; लेकिन एक बात विनय कर दूं पहले ही कह दूं
कि भिक्षु नागसेन जैसा कोई है नही। यह केवल एक नाम है, कामचलाऊ नाम है। आप
कहते है तो मैं चलूंगा जरूर, लेकिन ऐसा कोई आदमी कहीं है नहीं।
राजदूत ने जाकर सम्राट् को कह दिया कि बड़ा अजीब आदमी है वह। वह कहने लगा कि
मैं चलूंगा जरूर लेकिन ध्यान रहे कि भिक्षु नागसेन जैसा कही कोई हैं नहीं, यह
केवल एक कामचलाऊ नाम है। सम्राट् ने कहा, अजीब-सी बात है, जब वह कहता है, मैं
चलूंगा। आएगा वह!
वह आया भी रथ पर बैठकर! सम्राट् ने द्वार पर स्वागत किया और कहा, भिक्षु
नागसेन हम स्वागत करते हैं आपका।
वह हंसने लगा। उसने कहा, स्वागत स्वीकार करता हूं। लेकिन स्मरण रहे
भिक्षु नागसेन जैसा कोई है नहीं।
सम्राट् कहने लगा, बड़ी पहेली की बातें करते हैं आप। अगर आप नहीं हैं तो कौन
हैं कौन आया है यहां, कौन स्वीकार कर रहा है स्वागत, कौन दे रहा है उत्तर?
To give your reviews on this book, Please Login