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अमेरिकी यायावर

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


मैने हल्की सी गर्दन मोड़कर जब मेरी एन की तरफ देखा तो वह बोल पड़ी, “जब हम कैनेडा छोड़कर गये होंगो, तब मैं मुश्किल दो साल की रही होऊँगी, मेरी बड़ी बहन उस समय चार साल की रही होगी और छोटी बहन डेसिरी तो मरसै में ही पैदा हुई थी। बचपन के दिन तो बहुत आनन्द के थे, विशेषकर जब तक कि मैं छोटी थी और मेरी छोटी बहन पैदा नहीं हुई थी। डेसिरी के पैदा होने के लगभग एक साल बाद पिता को अपनी नौकरी में झटका लगा था। उनकी एक गलती की वजह से रूस के उत्तर पश्चिमी तट पर उनका जहाज डूब गया था। कम्पनी का नुकसान भी हुआ और उनके कुछ सहयोगी मर गये थे। पिताजी की स्वयं की जीवन रक्षा भी मुश्किल से ही हो पाई थी। उसके बाद तो सभी कुछ बिगड़ता चला गया। माँ, जिन्हें बाहर काम करना बिलकुल भी पसन्द नहीं था, उन्हें मजबूरन नौकरी पकड़नी पड़ी। पिता शराब के नशे में रहने लगे और हमारी माली हालत बिगड़ती चली गई। हम दोनों बहनों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं रह गया था। पिता या तो घर में नहीं होते और यदि होते तो भी, हमसे कभी ठीक से बात तक नहीं करते थे। मेरी बड़ी बहन क्लेयर कुछ गलत संगत में पड़ गई थी। माँ का सारा ध्यान अपने काम और डेसिरी पर रहता, मेरी ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं था। बड़ी बहन क्लेयर जो कि किसी की कोई बात नहीं सुनती थी, उसे पूरी आजादी मिली हुई थी और छोटी डेसिरी को प्यार, मैं चूँकि कुछ जिम्मेवार थी इसलिए सब मुझसे ही घर के काम करने की अपेक्षा रखते थे। इन्हीं हालातों में पहले स्कूल और फिर बाद में कालेज में बैचलर की डिग्री किसी तरह से पूरी हुई। दो वर्ष पहले जब पिता का देहांत हो गया और बड़ी बहन घर छोड़कर कहीं चली गई, तब तक मुझे समझ में आने लगा था कि अब अपने जीवन के बारे में स्वयं ही सोचना होगा। डेसिरी अभी हाई स्कूल में है, और माँ किसी तरह अपनी नौकरी कर रही है। ऐसी स्थिति में बिना छात्रवृत्ति के कहीं भी अध्ययन करना मुश्किल होता है। अमेरिका आकर तो और भी अधिक। इसके अलावा मैं फ्राँस में तो रहना ही नहीं चाहती थी, इसलिए वहाँ से तो निकलना ही था।”
मैं चुपचाप सुनता रहा और वह अपनी जिंदगी की और भी बातें धीरे-धीरे मुझे बताती रही। अगले डेढ़ घंटे में अपने जीवन की बहुत सी बातें मेरी एन ने मुझे बताईं। गाड़ी चलाते हुए मैं उसकी दिलचस्प कहानी सुनता रहा और वह अपने बारे में बताती रही। उसकी बातें सुनते हुए मैं सोच रहा था कि मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं घटा है, जिसके बारे में किसी और को बताया जा सके। साधारण सी जिंदगी है मेरी! कितना कुछ घटता है लोगों की जिंदगी में और कैसे वे यह सब सहते हैं!
आगे की यात्रा में वह अपने फोन के ब्राउसर में लगातार बड़े ही ध्यान से कुछ पढ़ती रही। हम लगभग साढ़े ग्यारह बजे बास्टन में वाल्थेम के हाली डे इन एक्सप्रेस पहुँच गये। यहाँ हमारे लिए दो क्वीन बेड वाला कमरा आरक्षित था। कमरे की इलेक्ट्रॉनिक चाबी वाले दो कार्ड लेकर हम तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में पहुँच गये। अब तक मेरी एन का मूड शायद ठीक हो गया था। उसके चेहरे के भाव अब बिलकुल संयत लग रहे थे। दिन भर पैदल घूमने और चलते रहने के कारण शरीर थका तो था ही, साथ ही कई बार गर्मी के कारण शरीर में पसीना आया और फिर वातानुकूलित जगहों में वह सूखा भी। मुझे स्नान की त्वरित आवश्यकता अनुभव हो रही थी। मैने मेरी एन से कहा, “यदि आप स्नान करना चाहती हों या फिर बाथरूम का प्रयोग करना चाहती हों तो कर लें, क्योंकि मैं दिन भर की थकान मिटाने के लिए देर तक स्नान करना चाहता हूँ।” उसने अनमनी सी अवस्था में सिर हिलाया और कहा, “मैं ठीक हूँ।”
मैने कहा, “ओके”।
हालीडे-इन की यह इमारत बहुत साफ-सुथरी थी और कमरे के अंदर चादरें और बाथरूम में तौलिये नये और अच्छे कपड़े के थे। लंबा स्नान करने के बाद अपने शरीर को तौलिए से पोंछते हुए मैं बाथरूम का पर्दा हटाकर टब के बाहर निकलने ही वाला था कि अचानक अपने स्थान पर जड़वत् खड़ा रह गया! मेरे ठीक सामने पूर्णतया निर्वस्त्र मेरी एन खड़ी हुई थी! बाथरूम में टब के सामने दो वाशबेसिनों की कतार थी, जो कि लगभग आठ फीठ लंबी एक पट्टी पर बने हुए थे। इसी आठ फीट की बेसिन के पीछे वाली दीवार पर लगे आठ गुणा चार फीट के विशालकाय दर्पण में उसकी निर्वस्त्र पीठ और उसके कंधे से पीछे जाते हुए लाल और भूरे बाल और नग्न नितम्ब दिख रहे थे! मैं इतना हतप्रभ हो गया था कि कुछ क्षणों तक मैं कोई प्रतिक्रिया ही नहीं कर पाया। लेकिन जब मेरी बुद्धि ने सहज प्रतिक्रिया में तौलिया लपेटनी चाही मेरी एन ने जिसकी दृष्टि अभी भी बाथटब की मुँडेर को देख रही थी! बिना एक भी शब्द बोले आगे बढ़कर अपना दायाँ पैर बाथटब के अंदर रखा और फिर बायाँ पैर भी उठाकर मुझसे मुश्किल से छह इंच की दूरी पर खड़ी हो गई। उसकी दृष्टि मेरी दृष्टि से मिलने की बजाय नीचे झुकती हुई मेरी छाती को देख रही थी। मैने अपने हाथ का तौलिया अपने बीच से हटाकर बाथटब के ऊपर लगी जाली पर रखी बाकी की सूखी तौलियों पर रख दिया और मेरी एन की ओर बगैर पलकें झपकाए देखने लगा। मेरी एन की नजरें अभी भी झुकी हुई थीं और उसके गाल बाकी चेहरे की त्वचा से अधिक लाल दिख रहे थे। मैंने अपने दायें हथेली से उसके बायें गाल की त्वचा को अनुभव किया तो पाया कि उसके गालों की त्वचा गर्म थी। वह गर्मी उसके गालों से होती हुई कानों तक चली गई थी।


मंगलवार


अगली सुबह जिस समय मेरी नींद खुली, घड़ी साढ़े सात बजा रही थी और सूरज की रोशनी खिड़की से आती हुई तिरछी होकर उस मेज पर पड़ रही थी जिस पर एक पतला एल सी डी टीवी रखा हुआ। टीवी की स्क्रीन पर कुछ भी नही चल रहा था। मैं अचानक चौंक कर उठने लगा तभी मेरी बगल में लेटी मेरी एन कुनमुनाई और उसने आँखे खोल दीं। उसने मंद स्मित भाव से मुझे देखा तो मैंने भी उसे हल्की सी मुस्कान वापस दे दी। एक मिनट से भी कम समय में पिछली रात का दृश्य मेरी स्मृति में पुनर्जीवित हो उठा। मेरी एन आगे खिसकते हुए अपनी बाहों को खोल पुन मुझसे लिपट गई। अटपटी सी अवस्था में कुछ क्षणों तक मेरा और उसका शरीर आपस में चिपके रहे। फिर मैने लगभग फुसफुसाकर उसके कहा, “अब हमें तैयार होना चाहिए, क्योंकि अब हमें घूमने निकलना है।” उसने लगभग अनमने मन से मुझे उठकर जाने दिया। बिस्तर में लेटते समय तक तो हमारे ऊपर पतली रजाई पड़ी हुई थी, परंतु वहाँ से उठकर जाते समय मुझे अपने नग्न होने का और मेरी एन मुझे जाता हुआ देख रही थी, इसका अपरोक्ष और गहरा अहसास हो रहा था।
स्नान करते हुए भी मैं विभ्रम की अवस्था में था। अचानक इन बदले हुए हालात में समझ में नहीं आ रहा था कि अब मेरी एन से क्या और किस तरह बात की जाये, इस विषय पर नित्य कर्म से निपटते समय मैं गंभीरता से सोचता रहा। अपनी ओर इस अटपटी स्थिति में वातावरण को सामान्य बनाने के लिए बाथरूम से निकलने के बाद मैं मेरी एन से बोला, “कहते हैं कि बॉस्टन का ट्रैफिक बहुत बदनाम है, इसका मतलब यदि हम रोज आफिस जाने वाले लोगों के समय पर निकले तो ट्रैफिक में ही समय बितायेगें, इसलिए ऐसा करते हैं कि नौ बजे के बाद ही निकलते हैं, इसका मतलब है कि मैं कुछ समय तक व्यायाम कर सकता हूँ।”
असल में मैं कुछ समय एकांत में चाहता था ताकि पिछली रात की घटना पर विचार कर अपना आगे का कार्यक्रम निर्धारित कर सकूँ। अगर हम तुरंत निकलते तो ट्रैफिक में तो फँसते ही, साथ ही मैं अभी यह नहीं समझ पाया था कि अब हमारा आपसी व्यवहार, विशेषकर इन परिस्थितियों में मेरा मेरी एन के प्रति व्यवहार कैसा होना चाहिए। इस यात्रा की तैयारी में मैने जितनी भी परिस्थितियाँ सोची थीं उनमें इस परिस्थिति के उपस्थित होने का कोई भी विचार नहीं आया था। मेरी एन ने लगभग चहकते हुए कहा, “ठीक है तब तक मैं तैयार हो जाती हूँ।”
मैने उससे कहा, “ठीक है, मैं व्यायाम करके आता हूँ।” ट्रेड मिल पर अपने रोज के चलने और दौड़ने के कार्यक्रम की बजाए आज मैने 5 मिनटों के बाद ही चलने की बजाए दौड़ना शुरु कर दिया ताकि सघन व्यायाम मेरे मस्तिष्क को शांत करने में सहायता कर सके। वस्तुतः अमेरिकी फुटबाल की भाषा में नियति ने कल रात मुझे पूरी तरह “टेकल” कर दिया था ताकि मेरे पास उस स्थिति से बच निकलने का कोई मार्ग न रहे!
मुझे पुनः याद आया कि यात्रा आरंभ के समय फेशबुक में अन्य सहपाठियों से पूछते समय, पता नहीं क्यों, लेकिन मेरे मन में एक बार भी यह विचार नहीं आया था कि मेरी सहयात्री कोई लड़की भी हो सकती है। लेकिन अन्य किसी छात्र की बजाय, जब मेरी एन ने सड़क यात्रा पर चलने की बात की तब से ही मेरे मन को यह बात खटकने लगी थी कि एक लड़की के साथ मुझे यात्रा में पता नहीं कैसे और कितने समझौते करने होंगे। डेलावेयर गैप तक तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था, मेरी एन और मेरे बीच एक सम्मानीय दूरी और तटस्थता थी। इससे कभी-कभी कृत्रिमता का आभास होता था। लेकिन मैं और मेरी एन दोनों इस स्थिति के लिए अभ्यस्त हो रहे थे। कुल मिलाकर मैं थोड़ा-थोड़ा आश्वस्त होने लगा था कि आगे की यात्रा भी ठीक ही रहेगी। लेकिन डेलावेयर गैप के जंगल में मेरी अपनी ही गलती से अचानक एकांत में जंगली भालू से सामना हो जाने के समय से मैं गंभीर अपराधबोध से ग्रस्त था। लेकिन लगता है कि उस घटना का यह विचित्र फल मिला था।
हे भगवान! मेरा प्रारब्ध क्या फल दे रहा है! क्या हुआ जो स्थिति इस अवस्था में पहुँच गई थी? आजकल के “पालिटिकली करेक्ट” समय में यदि व्यक्ति सावधानी न रखे, तो साधारण क्रिया कलाप भी यौन शोषण का कारण माने जा सकते हैं। दुर्भाग्य से मैंने भारत में कार्पोरेट जगत् में काम किया है इसलिए इस प्रकार की समस्याओं के बारे में मैं जानता हूँ, अन्यथा यदि मैं भारत से सीधे एक छात्र की तरह आता तो इस प्रकार के विचार मेरे मन में कदाचित् ही आते! मैंने ऐसा क्या किया जो मेरी एन को कोई ऐसा संकेत मिला जिसका फल उसने कल रात मुझे दिया था! सोचते-सोचते अचानक मुझे याद आया कि बीते कल हम गूगनहाइम म्यूजियम में पिकासो के उत्तेजित करने वाले चित्रों को देखते रहे थे! और उन चित्रों का विश्लेषण और उनकी व्याख्या का प्रश्न मैंने ही उससे किया था। अब मैं उसे कैसे समझाऊँ कि मैं ठहरा भारत के एक छोटे से नगर में पढ़ा हुआ कम्प्यूटर इंजीनियर! जहाँ पढ़ाई करते समय हमें कुछ पता नहीं होता कि पिकासो क्या है और उसकी कलाकृतियाँ क्या? हो सकता है कि आईआईटी या महानगरों में पढ़ने वाले छात्रों को यह सब पता हो, पर बाकी के कालेजों के लड़के तो यह सब जीवन में आगे चलकर रुचि अथवा इस बारे में इच्छा जाग्रत होने पर ही सीखते हैं। क्या पिकासो के बारे में पूछने मात्र से कोई अनपेक्षित संकेत मेरी एन को मिला था? क्या उसने निष्कर्ष निकाल लिया कि मुझे असल में मालूम था कि पिकासो किस प्रकार की चित्रकारी करता है और मैंने जानबूझ कर उससे म्यूजियम में लगे चित्रों की व्याख्या उससे जाननी चाही थी, ताकि मैं उसे ढँके-छुपे अभिसार के संकेत भेज सकूँ! लेकिन गूगनहाइम म्यूजियम की योजना तो मैंने नहीं बनाई थी! और किसे पता था कि गूगनहाइम म्यूजियम में इस तरह के चित्र प्रदर्शित किए जा रहे होंगे! मुझे तो गूगनहाइम म्यूजियम के बारे में भी मेरी एन से सुन कर ही पता चला था! कहाँ फँस गया? क्या कर दिया मैंने? उलझन की बात यह है कि मैं मेरी एन से भी नहीं पूछ सकता कि कल उसके मन में क्या चल रहा था? भविष्य में कभी देखूँगा…
लेकिन दूसरी ओर अब मेरी एन से इस तरह की अंतरंगता हम दोनों के लिए समस्या बन सकती थी!
क्या मैं इस स्थिति से निकल सकता हूँ? जितना मेरी एन को अभी तक मैं समझा हूँ, उससे वह हल्के अथवा दुर्बल चरित्र वाली लड़की तो कतई नहीं लगती? उसके मन और बुद्धि में क्या आया होगा? बाथरूम का दरवाजा खोल लेना तो कोई बड़ी बात नहीं? यहाँ के घरों में बाथरूम और अंदर के कमरों में चिटकनी नहीं होती। बल्कि अंदर से घुमाने वाला ताला होता है, जिसे आपातकालीन स्थिति में बाहर से किसी भी साधारण पिन से खोला जा सकता है। अगर मेरी जगह वह होती और उसकी जगह मैं, तो मैं भी उसके स्नान करते समय अंदर जा सकता था। परंतु एक ही घर के रहने वाले लोगों में भी, ऐसा कभी नहीं होता, कयोंकि एक सामान्य सभ्य व्यक्ति ऐसा कभी नहीं करता। इस व्यवस्था का कारण यह है कि यहाँ अधिकांशतः लोग अकेले रहते हैं, तथा आपात् कालीन स्थितियों में लोगों का जीवन बचाने के लिए यह व्यवस्था बहुत काम आती है। मेरी एन के मन में क्या चल रहा होगा? मैं उसके लिए इतना अंतरंग नहीं था। जो कुछ उसने किया, उसके लिए उसे अवश्य ही अभूतपूर्व साहस की आवश्यकता पड़ी होगी! उसके स्थान पर मैं होता शायद वह करने का साहस कर पाता जो उसने किया था!
मेरी दिलचस्पी तो केवल उत्तरी अमेरिका की यात्रा में थी। उसके लिए यदि कोई साथी न भी मिलता तो भी चलता था। यथार्थ में किसी लड़की से निकट तो क्या दूर के संबंध बनाना भी, मेरी दूर-दूर तक किसी भी योजना में नहीं था। ऐसा नहीं था कि मेरी एन बदसूरत अथवा किसी प्रकार से भी अयोग्य थी, बात बस केवल इतनी थी कि जीवन के इस भाग में मैं किसी भी लड़की में किसी भी प्रकार की दिलचस्पी नहीं लेना चाहता था। परंतु, दूसरी ओर बिना कारण किसी को दुःख देना भी मेरे स्वभाव में नहीं है। उस समय तो मेरे आश्चर्य का पारावार नहीं रहा था, जब पिछली शाम जिस समय मैंने तौलिया अपने बीच से हटाया तो मेरी एन ने मुझसे दबी आवाज में सबसे पहला सवाल यह पूछा था, “तुम समलैंगिक तो नहीं हो?” मेरी स्वाभाविक उत्तर तो निश्चित ही “नहीं” में था। साथ ही उसकी यह बात सुनकर बरबस मेरी इच्छा हो आई थी, कि मैं उसकी ऐसी किसी भी विचारधारा को गलत सिद्ध करूँ। शायद इसी प्रश्न का समुचित उत्तर देने के लिए आगे की हमारे बीच होने वाली कार्यवाही में मैने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। परंतु एक बात से मैं स्वयं अपने आप पर अभी तक आश्चर्यचकित था। उसके टब में इस प्राकृतिक अवस्था में प्रवेश करने के बाद मैंने क्यों अपना तौलिया अपने बीच से हटा दिया था। यह बात केवल मैं जानता हूँ कि मैंने आज से पहले मेरी एन के बारे में इस दृष्टि से नहीं सोचा था, तब किस कारण से मैंने अपना तौलिया अपने बीच से हटा दिया था? केवल मैं ही इस बात का साक्षी हूँ कि उस समय तक मेरे मन में उससे शारीरिक संसर्ग की कोई इच्छा जाग्रत नहीं हुई थी! शारीरिक संसर्ग तो केवल प्रतिक्रिया भौतिक स्वरूप हुआ था। मैं स्वयं इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ रहा था?
पर अब तो वह सब हो चुका था, अब मुझे इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए? यदि इसका कारण केवल हम दोनों की अवसरवादिता थी, तब तो सम्भवतः यह प्रसंग दोबारा न उठे। यदि यह अवसरवादिता नहीं थी और वह शारीरिक संपर्क स्वेच्छा से बनाए रखना चाहती थी तो क्या उसके कारण मेरे लिए क्या कोई समस्या बनने वाली थी? स्पष्टतः तो यह कोई विशेष समस्या नहीं थी, परंतु इस प्रकार के शारीरिक संसर्ग के दूरगामी परिणाम हो सकते थे। दूसरी तरफ ऐसा भी हो सकता था कि यह सब केवल अचानक हुआ हो और मेरी एन किन्हीं प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में आकर ऐसा कर बैठी हो? इस परिस्थिति में मुझे अपने अनर्गल विचारों के कारण कोई ऊट-पटाँग और अनपेक्षित कार्य, जो कि एक सभ्य व्यक्ति को शोभा नहीं देता है, उसे नहीं करना है। कभी-कभी हम अपनी ही छोटी सोच में कोई ताना-बाना बुन लेते हैं, और वास्तव में कुछ खास बात नहीं होती।
यदि यह प्रसंग लम्बा चल गया तब क्या समस्या होने वाली थी? मुझे उससे क्या कठिनाईयाँ उत्पन्न होने की संभावना थी?  मुझे इस संबंध में यह अवश्य ध्यान रखना होगा कि, और कुछ नहीं तो भी कम से कम आगे के दिनों में मेरे जीवन के प्रमुख कार्य (रिसर्च और यह सड़क यात्रा आदि) सुचारू रूप से चलते रहें। आगे की आगे देखी जायेगी। यदि इस कारण हमारे आपसी संबंध बिगड़े तब आगे की यात्रा मुश्किल हो सकती थी। हो सकता है कि वापस ही लौटना पड़ जाये। मुझे दोनों ही स्थितियों के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना था। यह सब सोचते-सोचते मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मैं ट्रेड मिल पर लगभग 14 डिग्री के कोण पर पिछले आधे घंटे से दौड़ रहा था, जब कि सामान्य परिस्थितियों में मैं 7 या 8 डिग्री के कोण पर ही दौड़ता हूँ। इस व्यायाम में मेरा सारा शरीर बुरी तरह पसीने से तर-बतर हो गया था, पर मन और मस्तिष्क लग रहा था कि हवा में तैर रहे हैं। मैं ट्रेड मिल से उतर कर कुछ समय तक वजन उठाता रहा और पुनः लगभग 10 मिनटों तक फिर से ट्रेड मिल पर दौड़ता रहा। व्यायाम कक्ष से निकलने से पहले मैंने पाँच-छह कप पानी पिया और फिर सीढियों के रास्ते चढ़ता हुआ अपने कमरे में पहुँचा, कमरे में घुसते समय मेरी घड़ी सवा आठ बजा रही थी। मेरा अंदाजा था कि अब तक मेरी एन तैयार होकर या तो नाश्ते की मेज पर नीचे पहुँच गई होगी, अथवा निकलने ही वाली होगी। कमरे में घुसते ही मैंने देखा कि वह अपना सामान सूटकेस में रखकर बंद कर रही थी।
मैं अपने सूटकेस की ओर कपड़े निकालने के लिए बढ़ा तो देखा कि मेरे अधोवस्त्र मेरी वाली स्ट्राली के ऊपर ही रखे थे। मैं एक क्षण के लिए भौचक्का सा सोच रहा था कि मेरे अंडरगारमेन्ट्स वहाँ कैसे आ गये! क्या मैं पहले ही बाहर निकाल कर उन्हें रख गया था? याद करने पर भी मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आया। मुझे क्या हो रहा था? उसने मुझे देखते हुए कहा, “तुम भी फटाफट तैयार हो जाओ तो फिर नाश्ता करके निकलते हैं।” मैने सहमति में सिर हिलाया और कड़े व्यायाम के बाद पसीने से भीगे अपने शरीर को साफ करने के उद्देश्य से अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ बढ़ा ताकि स्नान करके साफ हो सकूँ। तभी मेरे और बाथरूम के बीच में पड़े बिस्तर के दूसरी तरफ से उठकर मेरी ओर आती हुई मेरी एन बोली, “मैं स्नान कर चुकी हूँ, पर क्या हुआ। फिर से स्नान कर लूँगी।”
हम बड़ी मुश्किल से नाश्ते के समय तक, जो कि साढ़े नौ बजे के बाद मिलना बिलकुल बंद हो जाता है, नीचे पहुँच पाये। मुझे तब तक बहुत जोरों की भूख लग रही थी। यदि वहाँ नाश्ता न मिलता तब आज तो कहीं न कहीं जाकर नाश्ता अवश्य ही करना पड़ता। अंतिम क्षणों में हमने अपने लिए नाश्ता लिया और उसे खाने के बाद अपना सामान आदि लेकर कमरे से चेक आउट किया। होटल से निकलते-निकलते लगभग 9:45 हो रहा था। कुल मिलाकर यातायात की दृष्टि से देर निकलना ठीक ही रहा था, क्योंकि इस समय तक रोज के आफिस जाने वाले लोह अपने कार्यालय पहुँच चुके थे और सड़कें खाली पड़ी थीं। हम वहाँ से निकल सीधे राजमार्ग 95 पर उत्तर की ओर चले और फिर मार्ग 3 को लेकर शहर में प्रवेश कर गये। इस समय शहर के अंदर की लगभग सभी सड़कें खाली पड़ी थी। कुछ लोग हमारे आगे जा रहे थे और हम संभवतः 20-25 मिनटों में सीधे बॉस्टन के बंदरगाह वाले क्षेत्र में पहुँच गये।
यहां की हारबर वॉक, एक्वयेरियम आदि प्रसिद्ध हैं। हम कुछ समय तक बंदरगाह के आस-पास के क्षेत्र में घूमते रहे और फिर टिकट लेकर वहाँ बने एक्वेरियम (समुद्री जंतुओं का प्रदर्शन स्थल) में जाकर मछलियाँ, सील और अन्य समुद्री जीव-जंतुओं को देखते रहे। मंगलवार होने के बाद भी आज यहाँ काफी भीड़ थी, असल में स्कूलों के बच्चे अपनी अध्यापिकाओं के साथ और माँए अपने छोटे बच्चों को लेकर घुमाने निकली थीं। कहीं-कहीं भीड़ इतनी अधिक हो जाती थी कि मेरी एन मेरे हाथ को अपने हाथ से पकड़ लेती थी ताकि हम लोगों की भीड़ में एक दूसरे से अलग न हो जाएँ। एक्वेरियम में समुद्री जीवन को छोटी-बड़ी काँच की दीवारों से सुरक्षित किए हुए कमरों मे रखा जाता है। लगभग जैसे घरों में रखी हुए मछलियों को आयताकार कमरों रखते हैं, बस एक्वेरियम के कमरे कभी-कभी 10 या 12 फीट तक चौड़े, 5 या 6 फीट ऊँचे होते हैं तथा इनकी गहराई 2-3 फीट से लेकर 5-6 फीट अथवा और अधिक हो सकती है। समुद्री जंतुओं में कुछ को तो मैंने पहले देखा है या उनके बारे में पढ़ा है, परंतु कुछ अन्य अत्यंत विचित्र आकार और बनावट के जीव-जंतु दिखते हैं। छोटी-छोटी पेंग्वुइनों का जल विहार देखने में जो आनन्द आया, उसके बारे में लिखकर बताना कठिन है। इसी प्रकार विशालकाय कछुए और एनाकॉण्डा भी जो प्रकृति में प्राप्त अद्भुत जंतुओं में जाने जाते हैं, उन्हें अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला।
वहाँ से निकलते समय तक दिन के एक बजे से अधिक ही हो रहा था। भोजन के उद्देश्य से हमने गूगल पर आस-पास की पिज्जा की दुकानों की खोज की। गूगल ने अनुभवी गाइड की तरह बताया कि एक बरटूची तो आपके पिज्जा पास में ही है। इस जानकारी को प्राप्त करते ही हम दोनों टहलते हुए “बरटूची” पहुँच गये और दोपहर के भोजन में भरपेट पिज्जा का भोज किया। मैं यहाँ से अब शीघ्रतिशीघ्र निकल लेना चाहता था, ताकि समय रहते बैंगोर तक पहुँच सकूँ। मेन राज्य के बैंगौर नगर से भी आगे जाकर एकेडिया नेशनल पार्क के एक छोटे-से इन में रात्रि के विश्राम के लिए हमारा कमरा आरक्षित था। एकेडिया पार्क में प्रसिद्ध नामों वाले सभी होटल दो सौ डॉलर से कम के उपलब्ध ही नहीं थे, इसलिए मुझे इस छोटे से इन में कमरा लेना पड़ा था।
बॉस्टन मे और भी बहुत से स्थान देखने लायक हैं, परंतु अन्य स्थानों की जगह मैंने हार्वर्ड और एम आई टी के कैम्पस देखने अधिक पसन्द किए। इन दोनों ही विश्वविद्यालयों में हम दोनों ही किसी भी छात्र को नहीं जानते थे, इसलिए कक्षाओं में जाना संभव नहीं था। अधिक-से-अधिक पुस्तकालय जाया जा सकता था। लेकिन हम दोनों ही इस बारे में बहुत उत्सुक नहीं थे। मेरा मन एकेडिया तक जाकर फिर पुनः वहाँ से वापस न्यूयार्क लौटने की योजना बनाने में उलझा हुआ था, क्योंकि मुझे अपना पासपोर्ट कैनेडा के दूतावास से वापस लेना था। मेरी एन भी इस समय अपनी किन्हीं उधेड़-बुनों में थी।
दोपहर में भर पेट पिज्जा खाने के बाद मुझे अक्सर सुस्ती आ जाती है। यदि आज भी ऐसा हुआ तो कार चलाते समय नींद आने की समस्या हो सकती थी। अभी तक मेरी एन ने न तो कार चलाने के बारे में कोई पहल की थी और, न ही मैने उसे कार चलाने के लिए आमंत्रित किया था। मुझे ठीक से यह भी मालूम नहीं था कि वह यथावत कार चलाना जानती भी थी या नहीं! इसी विचार अपनी खुमारी को मिटाने के उद्देश्य से मैंने मेरी एन से कहा, “कुछ देर तक आस-पास देखकर फिर यहाँ से चलते हैं।“ उसने चुपचाप सहमति में सिर हिला दिया। हमारे बीच आपस में बातें कम होने का का एक बड़ा कारण भाषा थी। मेरी एन स्वाभाविक तौर फ्रेंच में बात करना पसंद करती थी और मैं हिन्दी में। हम थोड़ी देर तक आस-पास घूमते रहे। टहलते हुए हम बाजार में एक ऐसी जगह पहुँचे, जहाँ कई प्रकार की दुकानें थी, लगभग हाट जैसी जगह थी। इन दुकानों पर बॉस्टन हार्बर के चित्र के साथ टी शर्ट और टोपियाँ और कई प्रकार के कपड़े और सैलानियों वाले सामान इत्यादि मिल रहे थे। अचानक मेरी एन के दुकान के पास रुक कर वहाँ रखी टोपियाँ देखने लगी। उनमें से उसने एक टोपी चुनी और उसके दाम दुकानदार को दे दिए। मैने कौतूहल में उससे पूछा,  “यह टोपी तुम पहनना चाहती हो?” मेरी एन ने आगे बढ़ वह टोपी मेरे सिर पर रखी और बोली, “यह तो मैने तुम्हारे लिए ली है।” मुझे किसी प्रकार की भी टोपी पहनने का बिलकुल भी शौक नहीं है, पर इस स्थिति में मैं उससे क्या कहता? थोड़ी देर और टहलने के बाद हमें एक ओरियंटल महिला लोगों के रेखा चित्र बनाती दिखी। अचानक मेरी एन की आँखें चमकी और उसने मुझसे पूछा, “तुम अपना चित्र बनवाओगे?” मैने शालीनता से कहा, “चित्र तो आपका बनना चाहिए। मेरे चित्र में क्या रखा है।” वह लगभग अपना मन बनाने लगी। कुछ क्षणों के बाद बोली, “यदि तुम्हें पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं, मेरा मन है कि तुम इससे चित्र बनवाओ, यदि अच्छा बना तो मैं भी बनवाऊँगी।” हमने चित्रकार से पूछा कि चित्र बनवाने के कितने लगेगें। वह बोली, “35 डॉलर।” कुछ समय की हील-हुज्जत के बाद बात 25 डॉलर पर तय हुई। लगभग 15 मिनट के छोटे से समय में उसने मेरी आँखों के सामने मेरा चित्र बना दिया। मुझे आश्चर्य यह हुआ कि सड़कों पर टहलते ये साधारण से दिखने वाले चित्रकार इतनी जल्दी कैसे लोगों के चित्र बना लेते हैं। मेरा चित्र बन गया तो मेरी एन ने उसे 25 डॉलर दे दिये। मैने उससे पूछा, “और आप?” वह बोली, “मैं कहीं और बनवा लूँगी, अब चलते हैं।” मैं इस सारे कार्यक्रम से हतप्रभ था! मैने उसे 25 डॉलर देने चाहे तो वह बोली, “नहीं कोई बात नहीं। इतना तो चलता है।“ मुझे यह सब बड़ा ही अटपटा लग रहा था। मैंने उससे पूछा, “क्या आपको उसका बनाया चित्र पसंद नहीं आया?” वह बोली, “चित्र तो पसंद आया, लेकिन अब हमें निकल देना चाहिए। मैं आगे कहीं बनवा लूँगी।” उसके इस उत्तर में मैं समझ नहीं पाया कि वह वास्तविकता में क्या चाहती थी।  मैंने आगे इस बारे में अधिक नहीं सोचा, क्योंकि स्वयं मेरा मन अब आगे की ड्राइव में उलझा हुआ था। मैंने उससे कहा, “ठीक है, तब निकलते हैं, यदि समय से पहुँच गये तो आवश्यकता लायक आराम कर फिर कल एकेडिया में प्रकृति का आनन्द लेंगे।“ मेरी एन ने सहमति में सिर हिलाया और हम वहाँ से निकल पड़े। शहर के बाहर निकलते हुए हमने उत्तर की ओर जाने वाला राजमार्ग 95 फिर पकड़ा और हमारी कार दोपहर का ट्रैफिक सड़कों पर अपनी सत्ता फैलाए उससे पहले ही हम शीघ्रता से नगर के बाहर की ओर उत्तर की ओर निकल पड़े।
मैं अपने विचारों की तन्द्रा मे डूबा हुआ आलस्य की अवस्था में पहुँच रहा था, तभी अचानक मेरी एन का स्वर मेरे कानों में पड़ा, “मरसै में हम एलेक्जान्द्र बूलिवार्ड में रहते थे। हमारा घर एक चौराहे पर था। ऊपर की मंजिल पर। पहले हम कहीं और रहते थे, जब तक पिता की शिपिंग वाली नौकरी थी। अब मुझे कुछ खास याद नहीं है कि वह घर कैसा था। हाँ केवल यह याद है कि घर के आगे बड़ा जंगला होता था, मैं ऊपर वाली बालकनी से नीचे सड़क पर आने जाने वाली कारों को देखा करती। एक बार मुझे याद है कि क्लेयर और मेरी लड़ाई हुई थी और मैने उसका कोई सामान जोर से सड़क पर फेंक दिया था, जो कि किसी जाती हुई कार पर गिरा था। बहुत हंगामा हुआ था। क्लेयर ने सबको साफ बता दिया कि वह सामान मैने फेंका था। मुझे कई थप्पड़ पड़े और बहुत देर तक डाँट पड़ती रही थी। उसी समय से मेरी और क्लेयर की आपस में ठन गई थी। न उसने कभी मुझे बड़ी बहन का प्यार दिया और न ही मैंने उसे अपेक्षा रखी। अगर क्लेयर और मैं आपस में अच्छे दोस्त बन जाते, तो शायद मेरी जिंदगी कुछ और ही होनी थी। क्लेयर ने हमेशा वही किया, जो उसे अच्छा लगा। स्कूल की बस से लेकर, स्कूल तक और वापस हमारे मोहल्ले में भी उसकी दादागीरी अन्य बच्चों पर हर जगह चलती। लेकिन, उसकी दादागीरी का मुझे कभी कोई फायदा नहीं मिलता था। वह केवल अपनी खुद की दोस्त है। वह जितनी समस्याएँ खड़ी करती है और जितना अपने आस-पास के लोगों को परेशान करती है, मैं उसकी भरपाई करती रहती हूँ। मुझे ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है। पर बचपन से हमेशा ही ऐसा होता रहा है।”
मुझसे रहा नहीं गया। मैं बोला, “आप ऐसा क्यों करती थीं? छोटी उम्र में तो समझ में आता है पर बाद तक क्यों? एक बार जब समझ में आ गया कि वह इन बातों का कोई ख्याल नहीं करती, तब उसके बाद भी ऐसा करना कहाँ तक ठीक है। आप उसकी बड़ी बहन तो थी नहीं, बल्कि आप तो उससे छोटी थीं, इस स्थिति में उसकी गलतियों के लिए आप कैसे जिम्मेदार हुईं?”
मेरी एन ने मुझे कुछ ऐसे भावों से देखा, जैसे वह जानती हो कि वह जो कुछ कर रही है, वह जानती है कि गलत है, पर फिर भी ऐसा करने से अपने आपको रोक नहीं सकती। मेरी एन मरसै में अपने जीवन के बारे में टुकड़ों-टुकड़ों में बताती रही और मैं चुपचाप सुनता रहा। एकेडिया के पास तक पहुँचते-पहुँचते मुझे मेरी एन के जीवन की कुछ और झाँकी मिल गई थी। अच्छी बात यह थी कि उसके बोलते रहने से मुझे नींद नहीं आई, अन्यथा जब ड्रॉइविंग एकरस हो जाती है तो नींद के झोंके बहुत तेज आते हैं। बैंगोर तक पहुँचते हमें थकान भी हो रही थी और भूख भी लग आई थी।
मैंने मेरी एन से पूछा, “भोजन कहाँ करने के बारे आप क्या सोच रही हैं? मुझे तो वेजिटेरियन भोजन ही करना है, इसलिए सबवे और पिज्जा के अतिरिक्त अधिक कुछ समझ में नहीं आता है। आपका क्या ख्याल है?”
मेरी एन बोली, “ठहरो मैं देखती हूँ कि कहाँ और क्या खा सकते हैं।” वह अपने फोन के इंटरनेट से बैंगोर के खाने की जगहें देखने लगी। थोड़ी देर बाद उसने जीपीएस में एक पता अंकित कर दिया और हम उसके दिशा निर्देशों का अनुसरण करते हुए लगभग 10 मिनटों में अपनी मंजिल तक पहुँच गये। वहाँ पहुँचने पर मैंने ध्यान दिया कि हम लोग किसी इटालियन रेस्तरां के सामने हैं। रेस्तरां बैंगोर के डाउन टाउन इलाके में था। हमने रेस्तरां से थोड़ी दूर मुख्य सड़क पर अपनी कार पार्क की। इस समय वहां पार्किग मीटर पर पैसे डालने की जरूरत नहीं थी। फिर भी एहतियातन मैने 2 क्वार्टर डाल दिये। रेस्तरां के अंदर घुसने पर मैंने पाया कि इस समय पूरे रेस्तरां में, एक कोने में केवल दो लोग, एक आदमी और औरत, मेज के आमने-सामने बैठे थे और उनके बीच में बेबी सीट में एक बच्चा बैठा था, माँ-पिता अपने भोजन के साथ-साथ कभी-कभी बच्चे को भोजन के टुकड़े खिला रहे थे। रिसेप्शन पर खड़ी लड़की ने हमसे पूछा, ”आपके साथ कितने लोग हैं?” मैने उसे बताया, “हम दो लोग ही आये हैं।“ उसने हमें अपने पीछे आने का इशारा किया और आगे चल दी। बीच में रुककर उसने पूछा कि आप बूथ में बैठेंगे या फिर टेबल पर। मैं कुछ बोल पाता, इससे पहले ही मेरी एन बोल पड़ी, “बूथ ही अच्छा रहेगा।” बूथ यहाँ अधिकांशतः दो आमने सामने पड़े सोफे और उनके बीच में बनी हुई मेज को कहते हैं, इन सोफों पर कृत्रिम चमड़े अथवा रेक्सीन के कवर लगे होते हैं। इस प्रकार के आयोजन में बैठकर खाने में कुछ एकांत मिल जाता है। इसके बनिस्बत सीधी कुर्सियों और मेज पर खाने में उतनी अधिक सुविधा नहीं रहती। यह अलग बात है कि कुछ लोग बूथ में खाना पसंद नहीं करते। मुझे बूथ में खाना, साधारण मेजों की बजाय अधिक पसंद है, क्योंकि सोफों पर पैर लटकाकर नहीं बैठना पड़ता।
वेट्रेस के आने पर मैंने मेरी एन से कहा, “आप यहाँ क्या खाना चाहेंगी? पहले आप ही बता दें।“ मैं इस बीच में मेन्यू से झूझ रहा था। यहाँ के भोजन में विश्वसनीय तौर पर अभी तक कोई भी शाकाहारी भोजन नहीं ढूँढ़ पाया था। केवल केप्रीस नाम की कोई चीज लग रहा थी जिसके शाकाहारी होने की संभावना थी। काफी सोच विचार के बाद मैंने निर्णय लिया कि यह “कैप्रीस” ही ठीक रहेगा, जब आर्डर बताने को हुआ तो पाया कि परिचारिका तो कब की जा चुकी थी। मैने मेरी एन की तरफ देखा और पूछा, “क्या आपने वेट्रेस को अपने भोजन के बारे में बता दिया?” मेरी एन बड़ी शांति से बोली, “मैने उसे आर्डर दे दिया है, तुम डेजर्ट सोचकर बता देना।” मैं चौंका और बरबस उससे पूछ बैठा, “आपने शाकाहारी खाना ही बोला है ना?” मेरी एन ने मुझे इस तरह देखा, जैसे कि मैं कोई पाँचवी कक्षा का विद्यार्थी होऊँ। फिर बोली, “मैंने उसे विशेष पास्ता प्राइमावेरा बनाने को कहा है, जो वैसे तो उनके मेन्यू में नहीं है, पर मैने उनके रुओटा डि मेनजाना में ही पास्ता मिलाकर बनाने को कहा है, और उसे झुकीनी और ब्रॉकली (हरी गोभी का फूल) भी डालने को कहा हैं।” मैने मेरी एन से पूछा, “आप क्या ले रही हैं?” वह सामान्य भाव से बोली, “मैं भी वही ले रही हूँ, तभी तो वह हमारे लिए स्पेशल बनाने को तैयार हुआ है।” मैने उसे धन्यवाद दिया तो वह बोली, “चिंता मत करो, मैं इस अहसान के बदले में कुछ-न-कुछ वापस ले ही लूँगी। हम फ्रेंच लोग किसी का हिसाब बाकी नहीं रखते।” अमेरिका के लिए हम दोनों विदेशी हैं, इसलिए यहाँ अंग्रेजी में वार्तालाप करने में हम दोनों को ही समस्या आती है। पर हमारी मिली-जुली सरकार ठीक ही चल रही है, किन्हीं बातों को मैं आसानी से समझ लेता हूँ, तो किन्हीं और बातों को वह आसानी से समझ लेती है।
भोजन समाप्त करते-करते आठ से कुछ ऊपर ही हो रहा था। गर्मियों की शाम को आठ बजने के बाद भी अभी उजाला लगभग वैसा ही था, जैसा कि भारत में गर्मियों में साढ़े पाँच या छह बजे के समय होता है। इस हिसाब से 9 बजे तक भी कार की हेड लाइट खोलने की जरूरत नहीं पड़ने वाली थी। कुछ समय से पहले ही मेरा ध्यान गया था कि यहाँ पर शाम के इस समय सड़कें बिलकुल खाली पड़ी थीं और इक्का-दुक्का वाहन दिख रहे थे। हमें ट्वाइलाइट मोटल तक पहुँचते हुए लगभग 9 बज रहा था। एलिसवर्थ शहर में हम जहाँ रुकने वाले थे, वह एक मंजिला फैली हुई इमारतों का झुण्ड था। इसमें लगभग 10 या 12 इकाइयाँ थीं, जो कि लगभग स्वतंत्र घरों की तरह दिख रहीं थीं।  इमारत कुछ स्वतंत्र घर और कुछ मोटल की तरह लग रही थी। छोटे शहरों में जहाँ बहुत अधिक सैलानी नहीं आते, इस तरह के होटल ही चल सकते हैं। इस प्रकार होटल चलाने का रोज का खर्चा बहुत नहीं होता, इस प्रकार कम आमदनी वाले लोग छोटे-छोटे इन बनाकर अपना भी काम चलाते हैं, और सैलानियों को भी रुकने की अच्छी सुविधा मिल जाती है।
रिशेप्सन पर खड़ी महिला ने हमारा नाम पूछा और अपने कम्प्यूटर में देखने लगी। कुछ समय पश्चात् उसने अपनी आँखों को मेरी एन की दृष्टि से मिला दिया। उन आँखों में एक विशेष भाव था, उत्सुकता से भरा हुआ लेकिन साथ ही व्यक्तिगत स्वंतत्रता का सम्मान करता हुआ। वह मेरी एन से बोली, “मैं देख रही हूँ कि आपने दो बिस्तरों वाले कमरे का आरक्षण किया था, परंतु, दुर्भाग्य से आज ही हमारे एक कमरे में पानी का पाइप फट गया है, जिसके कारण हमने उसमें जाने वाला पानी बंद कर दिया है, उस कमरे में दो बिस्तर थे,  लेकिन अब मेरे पास जो कमरा बचा है, उसमें एक ही क्वीन आकार का बिस्तर है, उम्मीद है कि आप लोगों का काम उसमें चल जायेगा?”
मैं अपने मन में सोच रहा था कि कमरा तो मैंने आरक्षित किया है, पर यह पूछ मेरी एन से रही है! इसके पहले कि मैं मेरी एन से पूछकर उसे कुछ उत्तर दे पाता, मेरी एन ने सहानुभूति में सिर हिलाते हुए कहा, “कोई बात नहीं, हमें दो बिस्तरों की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, हमारा काम एक से भी चल जायेगा।” उसकी बात सुनते हुए मैं यह सोचे बगैर नहीं रह पाया। समय कितनी जल्दी बदल जाता है! अभी चार-पाँच दिन पहले ही न तो मैं और न ही मेरी एन, ऐसा दूर-दूर तक सोच भी नहीं सकते थे! हम अपना काम तो एक क्वीन बेड पर चला सकते थे, पर साधारणतः क्वीन बेड और वे भी जिनका गद्दा बहुत आरामदायक होता है, विशेष कर उन पर दो लोग आराम से तब तक नहीं लेट सकते हैं, जब तक कि उनके शरीर आपस में सटे हुए न रहें। इतना गुलगुला होता है कि उस बिस्तर पर सोने वाले दोनों लोग अनजाने में आपस में चिपक ही जाते हैं। पति-पत्नी के लिए तो संभवतः वह ठीक ही है, पर हम दोनों! हालत ऐसी थी कि यदि मैं उससे कहता, कि मैं सोफे पर लेट सकता हूँ, तो इस बात की अच्छी खासी सम्भावना थी कि वह बुरा मान जाती।
हाथ मुँह आदि धोने के बाद, मैं आराम से बिस्तर के अपनी तरफ वाले दायें भाग पर लेटकर, टी वी के “साई-फाई” चैनल में “स्टार ट्रेक डीप स्पेश नाइन” का जो अंक टी वी पर आ रहा था उसे देखने लगा। मेरी एन हाथ मुँह आदि धोने के बाद यह कहकर चली गई कि मैं रिसेप्शनिस्ट से पूछ कर आती हूँ कि एकेडिया में कहाँ घूमना चाहिए और आस-पास क्या और देखने लायक है।
मुझे टी वी देखते हुए शायद आँख लगी ही थी कि कमरे का दरवाजा खुला और मेरी एन अंदर आई। उसके हाथों में एक वाइन की बोतल थी, आधी नींद के कारण मैं मेरी एन और उस बोतल को देखकर समझने की कोशिश कर ही रहा था, कि तभी मेरी एन बोली, “रिसेप्शनिस्ट जो कि इस मोटल की आधी हिस्सेदार भी है, उसने हमें सही कमरा न दे पाने के लिए और अपना आभार जताने के लिए इसे भेंट दिया है।“ मैं अभी उसकी बात को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि वह पुनः वापस यह कहती हुई लौट गई कि मैं उसका दिया हुआ वाइन ओपनर तो रिसेप्शन पर ही भूल आई। मैं बंद हुए दरवाजे और मेज पर रखी वाइन की बोतल को देख रहा था। यह कोई रेड वाइन थी। मुझे वाइन में कोई दिलचस्पी नहीं है, और रेड वाइन में तो बिलकुल ही नहीं। मीठी व्हाइट वाइन फिर भी चल जाती है, पर ऐसा लग रहा था कि मेरे कार्यकलाप अस्थायी तौर पर मेरी एन के नियंत्रण में थे। जब तक स्थिति बिलकुल ही असह्य न हो जाती, चुपचाप देखते रहना ही अधिक अच्छा था।
मेरी एन ने वापस आकर काफी मशीन के पास रखे दो काँच के गिलासों को आधा-आधा वाइन से भरा और उसमें से एक मुझे पकड़ा दिया। टी वी पर “स्टार ट्रेक” अभी भी चल रहा था, उसने पूछा, “क्या किसी चैनल पर हाऊ आई मेट योर मदर आ रहा है?” उसकी बात के उत्तर में मैने चैनल बदलने शुरु कर दिए और एक-के-बाद एक सारे चैनल देख डाले। उसका पसंदीदा सीरियल किसी चैनल पर नहीं दिख रहा था। हम दोनों बिस्तर पर पिछले हैड बोर्ड से पीठ और सिर का हिस्सा टिकाकर कोई पुरानी कामेडी टी वी पर देखते रहे।
हमारे दो बार वाइन ले चुकने के बाद जब मेरी एन तीसरी बार वाइन डालने के लिए उठी तो उसने बाकी बची वाइन गिलासों में डालने के बाद टी वी के पास की लाइटें बुझा दीं और केवल दरवाजे और बाथरूम के पास वाली हल्की लाइट जलती व छोड़ दी। दूसरी बार वाइन का गिलास खत्म होते समय तक और बिस्तर की चौड़ाई अधिक न होने के कारण हम दोनों ही बिस्तर पर एक दूसरे के पास होकर लेटने को मजबूर हो गये थे। तीसरी गिलास से मैंने अभी एक दो घूँट ही लिए होंगे कि मुझे यह आशंका होने लगी थी, कि कल एकेडिया में घूमने का मजा लेने से पहले, अभी एक और आवश्यक, परन्तु सामान्य भाषा में आनन्ददायी काम मुझे आज रात करना था। तभी मेरी एन ने मेरे हाथ से गिलास लेकर अपनी तरफ वाली सिरहाने की मेज पर रखा और अपना गिलास भी वहीं रख दिया। बिस्तर पर अधिक देर तक एक दूसरे से दूर रहने की कोई गुंजाइश नहीं थी। मेरी एन निश्चित रूप से कुछ शरारतें सोच रही थी। अब तक वाइन ने मेरे मष्तिष्क पर अपना प्रभाव बढ़ाकर उसे कुछ ऐसी अवस्था में ला दिया था जिसके प्रभाव में अंततोगत्वा मैंने अपने आपको नियति के हाल पर छोड़ दिया था।


बुधवार


सुबह लगभग सात बजे उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद मुझे ध्यान आया कि मैंने यह तो सोचा ही नहीं था कि इस मोटल में व्यायाम की व्यवस्था भी है कि नहीं। टहलता हुआ मैं रिसेप्शनिष्ट की डेस्क तक गया, हालाँकि अब तक मुझे वहाँ पर व्यायाम कक्ष नहीं दिखा था, इसलिए उसके होने की संभावना बहुत ही क्षीण थी। पर फिर भी मुझसे रहा नहीं गया और मैने रिसेप्शनिष्ट से व्यायाम के बारे में पूछ ही लिया। रात वाली रिसेप्शनिष्ट अब भी वहाँ थी, संभवतः वह रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक काम करती हो? मेरा एक मित्र पार्ट टाइम काम करने के लिए कभी-कभी होटल में रिसेप्शनिष्ट का काम करता है, इसलिए मुझे मालूम था कि प्रायः इन लोगों की ड्यूटी 12 घंटों तक की होती है।

रिसेप्शनिष्ट की दृष्टि में कौतूहल था, उसने उत्तर देने से पहले कुछ कहना चाहा, परंतु फिर उसने अपने आप को मेरे सवाल पर केंद्रित किया और बोली, “सॉरी हमारे यहाँ हेल्थ रूम नहीं है, यहाँ आने वाले अधिकतर लोग और हम सभी प्रकृति विहार से ही अपना व्यायाम करते हैं, आप बायीं ओर बने लॉन में अथवा यहाँ आस-पास टहलकर व्यायाम कर सकते हैं।” मैंने उसे धन्यवाद दिया और बाहर निकल आया। कुछ देर तक मैं प्रकृति का आनन्द लेता रहा, वहाँ पड़े झूले जो कि संभवतः बच्चों के लिए थे, उन पर बैठकर झूलने का भी आनन्द लिया। लगभग एक घंटे बाद जब तक मैं अपने कमरे पर पहुँचा तो देखा कि मेरी एन नहा धोकर तैयार हो गई थी। उसने मुझे कमरे में आते देखा तो बोली, “आर यू अप फॉर सम मोर एक्सरसाइज?” मैं चौंक गया और बगैर कुछ भी सोचे-समझे बोला, “हाँ क्यों नहीं।” उन कुछ आखिरी क्षणों में ही मुझे समझ में आया कि उसका मतलब क्या था। पर अब तक तीर कमान से निकल चुका था।
हम नौ बजे नाश्ते की मेज पर पहुँचे। इस बीच में रिसेप्शनिष्ट जा चुकी थी, उसकी जगह एक पके बालों वाले मोटे अधेड़ व्यक्ति ने ले ली थी। मैने ब्रेड, मक्खन और जैली तथा सीरियल ले लिया। हम दोनों ने टीवी पर न्यूज देखते हुए नाश्ता किया और वापस आकर कमरे से अपना सामान लिया। यहाँ से लगभग 20-25 मिनट की दूरी पर एकेडिया पार्क का प्रवेश द्वार था।
पार्क में घुसने से पहले हमने कार ले जाने की $20 की फीस दी। डेलावेयर गैप की हाइकिंग में मिला भालू अब भी मेरी स्मृति में अंकित था, इसलिए मैने टिकट के पैसे लेने वाली काउंटर क्लर्क से पूछा कि इस पार्क में कौन-कौन से जानवर होते हैं। उसके कुछ उत्तर देने से पहले ही वहाँ खड़े पार्क रेंजर ने इस बारे में अधिक सोचे समझे बिना साधारण से स्वर में उत्तर दिया कि यहाँ तो अधिकतर खरगोश, हिरण आदि हैं, कभी-कभार रैकून और लोमड़ी दिख जायें तो बड़ी बात है। कार को अंदर ले जाते समय मैं सोच रहा था कि अच्छा ही है, अन्यथा डेलावेयर के बाद पुनः इस प्रकार का अनुभव मेरी एन के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकता था। मेरी एन ने मेरी और पार्क रेंजर की बात सुनी थी, पर उसने इस बारे में कोई बात नहीं की, शायद उसे इस विषय में अधिक चिंता नहीं थी।
मेन राज्य अमेरिका के सुदूर उत्तर पूर्व में स्थित है और इसकी सीमाएँ कनाडा से मिलती हैं। भौगोलिक आकार में इसे पुराने समय में योरोप में प्रयोग होने वाले हैट की तरह समझा जा सकता है। दक्षिण का हिस्सा कुछ फैला हुआ है और उत्तरी हिस्सा कुछ सकरा और टोपी की तरह लगभग गोल है। मेन का सबसे उत्तरी हिस्सा कनाडा के न्यू ब्रन्सविक प्रांत की अपेक्षाकृत उत्तरी ध्रुव के अधिक समीप है। एकेडिया नेशनल पार्क के बारे में कहा जाता है कि इसकी परिकल्पना चार्ल्स इलियट नामक आर्किटेक्ट ने की थी। यहाँ के मूल निवासी वाबानाकी जाति के रेडि इण्डियन लोग होते थे, जिन्हें खत्म कर फ्राँसीसियों ने इसे अपना उपनिवेश बनाया था। कालांतर में मेन अमेरिका का हिस्सा बन गया।
एकेडिया यहाँ के रेगिस्तानी पर्वत के अधिकतकर हिस्से पर फैला हुआ है। गर्मियों को छोड़ दिया जाये तो बाकी सारे वर्ष यहाँ इतनी ठंड होती है कि वनस्पति केवल सूखे तनों के रूप में रह जाती है। वनस्पति न होने के कारण और एक के बाद एक 6-7 पर्वत बने होने के कारण इस क्षेत्र को मरुस्थली पर्वतीय द्वीप का नाम दिया गया था।
हम लोग रूट 3 से आये थे जो कि इस द्वीप के उत्तरी हिस्से से प्रविष्ट होकर उत्तर पूर्व की दिशा से दक्षिण दिशा की ओर लगभग समुद्र के किनारे-किनारे जाता है। हल्स कोव यात्री केन्द्र से पार्क में प्रवेश करने के बाद बार हार्बर के क्षेत्र से होते हुए पहले तो कुछ समय तक हम पार्क के किनारे-किनारे कार से ही घूमते रहे।
हमारे वहाँ पहुँचने के समय कुछ बादल छाये हुए थे और समुद्र के बिल्कुल किनारे चट्टानों पर पानी और धुंध आपस में मिलकर अनोखा दृश्य उपस्थित कर रहे थे। रास्ते में आते हुए हमें जितनी कम संख्या में कारें सड़कों पर दिखीं थी, उसी से यह तो स्पष्ट था कि इस क्षेत्र की जनसंख्या अधिक नहीं है। ऐसा लगता है कि पूरे मेन राज्य में ही जनसंख्या काफी कम है। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि इसके बावजूद भी सड़कें और मकान आदि वैसे ही दिखते हैं जैसे कि बाकी अमेरिका में। साफ-सुथरी और अच्छी सड़कें जिनमें गड्ढे आदि नहीं थे। पार्क में जाने वाली हर कार या फिर हर व्यक्ति के लिए पाँच डालर ली जाने वाली फीस यहाँ के रख-रखाव में निश्चित रूप से योगदान देती होगी। शायद इसीलिए 1916 में बनाया गया यह पार्क आज भी सुरक्षित है और पर्यटकों का हर गर्मियों में मनोरंजन करता है।
पार्क में घुसते ही यातायात को केवल एक तरफ जाने की अनुमति है, इसलिए हमारी कार समुद्र के किनारे-किनारे केवल उत्तर से दक्षिण की ओर जाती रही। लोग इतने कम थे कि हमने कई बार अपनी कार सड़क पर बनी दो लेनों में से दायीं तरफ वाली लेन में सड़क पर ही खड़ी कर दी और रुक कर विशाल समुद्र और तट पर आती उसकी लहरों का खेल देखते रहे। कुछ दूर जाने के बाद हमें एक सुनिश्चित पार्किंग स्थल दिखा। वहां पर अपनी कार खड़ी करने के बाद तो हम दोनों लोग लगभग आधे घंटे तक ऊबड़-खाबड़ चट्टानों के बीच अपने पैरों को पानी में लटका कर बैठे रहे और लहरों के पानी को उतरते चढ़ते देखते रहे। अनछुई या मनुष्यों के द्वारा कम छेड़ी गई प्रकृति को देखने का आनन्द इतना शीतल था कि हमें पता ही नहीं लगा कि समय कितनी जल्दी निकल गया।
पार्क लूप रोड से होत हुए हम रेतीले समुद्री तट (सैंड बीच) पर पहुँचें। ठंड और वर्षा के कारण समुद्री रेत गीली हो गई थी। पार्किंग की जगह ऊँची जमीन पर थी और रेतीले बीच पर जाने के लिए 50-60 सीढ़ियाँ उतरकर नीचे जाना पड़ा। कुछ देर तो हम वहाँ पर आये और लोगों को रेत में खेलते हुए देखते रहे। परंतु वहाँ पर काफी ठंड थी, यहाँ तक कि थोड़ी देर बाद वह ठंड असुविधाजनक लगने लगी। इसलिए ज्योंही मेरी एन मुझसे बोली कि मुझे तो ठंडी रेत अच्छी नहीं लग रही है, मैने भी उसकी बात का समर्थन किया और हम दोनों लौट पड़े। यदि बारिश न हुई होती तो संभवत यहाँ छाँव में और सूखी रेत में बैठने या रेत के घरौंदे बनाने का आनन्द लिया जाता, परंतु इस स्थिति में तो हमें केवल असुविधा ही हो रही थी।
थंडर होल और ऑटर प्वाइंट होते हुए हम लोग कुछ समय तक लिटिल हंटर्स बीच में रुके फिर वहाँ से जार्डन हाउस के लिए चल पड़े। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या यहाँ पर हाइकिंग की जा सकती है? हालाँकि मेरी एन के साथ होने से मैं हाइकिंग के लिए पूरी तरह निश्चिंत होकर अपना मन नहीं बना पा रहा था। ऑटर प्वाइंट पर हमें दो आर-वी (एक ऐसी बस जिसमें कमरे, शौचालय आदि बने होते हैं) मिले, जिनके पर्यटक संभवतः मिलकर घूमने निकले थे। उनसे बातें होने पर यह पता लगा कि आगे के कुछ पुल ऐसे थे जिनकी छत ऊँची नहीं थी, इसलिए द्वीप के पूर्वी क्षेत्र में जाने के लिए उन्हें काफी घुमावदार रास्ता लेना पड़ रहा था। मैंने मेरी एन से सलाह मशविरा किया और यह तय किया गया कि जार्डन प्वाइंट पर कुछ समय आस-पास देखने के बाद हमें वापस निकलना होगा। यहाँ से न्यूयार्क लगभग 7 घंटे की दूरी पर था। हमने निर्णय लिया कि हम न्यूयार्क सिटी के थोडा पहले कहीं कनेक्टीकट में रात को किसी होटल में रुक जायेंगे।
यह विचार आते ही कि, मैने अभी रात के लिए होटल का कमरा आरक्षित नहीं किया है, मैने अपने फोन से इंटरनेट पर होटल देखना चाहा, तो पाया कि फोन पर वायरलैस का कोई सिग्नल नहीं था। सिग्नल न पाकर कुछ राहत सी हुई कि कम-से-कम इतने बड़े और विरल बसे प्रदेश में वायरलेस का सिग्नल कम है, नहीं तो ऐसा लग रहा था कि जैसे यहाँ सब कुछ “परफेक्ट” हो!
जार्डन प्वाइंट के पास कार खड़ी करने के बाद हम वहाँ की नेचर ट्रेल पर पैदल चलते रहे, परंतु लगभग 1 किलोमीटर के बाद ही मैने वापस लौट चलने का सुझाव रखा, जिसे मेरी एन ने तुरंत मान लिया। मेरी एन के तुंरत मान लेने से ही मुझे यह भी स्पष्ट पता चल पाया कि मेरी एन वाकई ट्रेल पर जाने की इच्छुक नहीं थी और शायद मेरा मन रखने के लिए जा रही थी। स्पष्ट होने लगा था कि सुरक्षित प्राकृतिक स्थानों की बात तो ठीक थी, परंतु रोमाञ्चकारी प्रयोगों और अनजानी जगहों में उसकी कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी।
एकेडिया पार्क के क्षेत्र में शाकाहारी भोजन भी नहीं दिख रहा था, इसलिए मैं भी अब वहाँ से निकलने के लिए उत्सुक था। परंतु जल्दी-जल्दी करते हुए भी हम वहाँ से निकलने से पहले कई जगहों पर रुके। मेरी एन ने इन सभी स्थानों की कई फोटो लीं। अभी तक की यात्रा में मैंने भी सर्वाधिक फोटो यहीं पर लीं होंगी। इसके पहले न्यूयार्क में अधिकांश फोटो मेरी एन ने ली थीं, कुछ मैंने भी लीं थीं, परंतु यहाँ की प्रकृति इतनी सुंदर और लुभावनी थी मैं बरबस फोटो खींचने के लिए रुक जाता था।
एल्सवर्थ में रुक कर हम एक सबवे में गये और वहाँ पर बैठकर खाने की बजाए रास्ते के लिए सैंडविच ले लिए। मुझे अब स्टैमफोर्ड कनेक्टीकट पहुँचने की जल्दी हो रही थी। मानचित्र में वहाँ का मार्ग देखते समय अब न्यूयार्क मात्र पासपोर्ट लेने के लिए जाने में, मुझे कोफ्त हो रही थी। यदि हम यहाँ से माँट्रियाल जाते तो लगभग 4-5 घंटे का रास्ता था। पर हमें तो दक्षिण जाना था फिर वहाँ से पुनः लौटकर उत्तर पश्चिम की ओर आना था, तब हम माँट्रियाल पहुँचते।
वापसी के रास्ते में हम कठिनाई से अभी बैंगोर तक पहुँच पाये होंगे कि मेरा ध्यान मेरी एन पर चला गया। दिन भर चलने और पेट में खाना पहुँचने के बाद उसका शरीर निढाल हो गया था और वह चैन की झपकी ले रही थी। सोती हुई मेरी एन को देखकर मैं सोचने लगा कि इंसान सोते समय कितना निश्छल दिखता है, जब व्यक्ति के मन और बुद्धि विलीन हो जाते है तो उसका चेहरा कितना आनन्दमय दिखता है। इस समय उसके चेहरे को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उसने जीवन में क्या सुख-दुःख सहे हैं। सब कुछ साफ था खाली स्लेट की तरह।
मुझे याद नहीं था कि रूट 95 पर रेस्ट एरिया कहाँ था, साथ ही मुझे भी कुछ-कुछ आलस आने लगा था, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले एक डंकिन डोनट से काफी लेने के लिए और कार में गैस भरने के लिए मैं रुका। कार रुकने से मेरी एन की नींद खुली तो मैने उसे आश्वस्त किया, “कोई समस्या नहीं है, केवल काफी और कार में गैस लेने के लिए रुक रहा हूँ, क्या तुम्हारे लिए भी काफी ले आऊँ?” उनींदी अवस्था में उसने उत्तर दिया कि उसे अभी कुछ नहीं चाहिए।
नींद भगाने के लिए बगैर दूध वाली काली काफी लेकर मैं पुनः कार में सवार हुआ और हम दक्षिण की ओर चल पड़े।
मेरी एन जिस तरह से सुस्त और अधलेटी हो रही थी, उससे मुझे अकेले ही कार संभालनी थी और सजग होकर चलानी थी। मैने धीमी आवाज में हिन्दी गाने कार के सीडी प्लेयर पर लगा लिए और गायकों के साथ गुनगुनाते हुए कार चलाने लगा। मार्ग में मैने शहर का नाम जब पोर्टलैण्ड देखा तो मन में यह विचार उठा कि भारत में एक ही नाम के दो शहर किसी भी प्रदेश में नहीं मिलते, कम से कम मेरी जानकारी में तो नहीं हैं। हाँ, वहाँ पर मोहल्लों और सड़कों के नाम एक ही मिल जाते हैं, जैसे अशोक नगर, पटेल नगर या गाँधी मार्ग आदि। परंतु अमेरिका में जहाँ का क्षेत्रफल भारत से सात गुना अधिक है और लगभग सारा क्षेत्र बसा हुआ है, यहाँ पर शहरों के नाम तथा सड़कों के नाम, दोनों ही बार-बार प्रयोग होते रहते हैं, जैसे पोर्टलैण्ड, मेन या फिर पोर्टलैण्ड, ओरेगन। डोवर, एडीसन और न्यूआर्क जैसे शहर तो कई प्रदेशों में हैं। अमेरिका के कई शहरों के नाम या तो यहाँ के मूल निवासियों यानि की रेड इण्डियन लोगों की भाषा के शब्दों से बने होते हैं, अथवा यूरोप के विभिन्न देशों वासियों की भाषाओँ अथवा नामों पर आधारित होते हैं। मेन राज्य के कही क्षेत्रों के नाम रेड इण्डियनों की भाषा के नाम पर मिले, परंतु न्यू हैम्पशायर और फिर मेसाचुसेट्स और नीचे के प्रदेशों जैसे रोड आइलैण्ड और कनेक्टीकट में अंग्रेजी और यूनाइटेड किंग्डम के क्षेत्रों के ही नाम ही मिलते हैं, जैसे ग्लोसेस्टर, ब्रॉक्टन, न्यूटन, हार्टफोर्ड, वूस्टर आदि जिनका नामकरण यूनाइटेड किंग्डम से विस्थापित होने वाले लोगों ने किया है।
मेन छोड़ने के बाद हमने न्यू हैम्पशायर में प्रवेश किया। कहते हैं कि यहाँ पर फाल बड़ी सुहावनी होती है। असल में शरद ऋतु के समय ठंड के कारण पेड़ों के पत्ते लाल और पीले होते हुए बिलकुल झड़ जाते हैं। झड़ने से कुछ पहले के समय में पेड़ों के पत्ते ठंड के कारण लाल, बैंगनी और पीले रंगों में दिखते हैं। दूर से देखने पर उनके रंग बड़े मनोहर दिखते हैं, परंतु यदि आपका ध्यान इस बात पर जाये कि ठंड के कारण पत्ते कष्ट से जल रहे हैं, तो भावुक व्यक्ति के मन को उदास भी कर देते हैं। अगर कभी समय मिला तो शायद यहाँ भी सितम्बर या अक्टूबर की शुरुआत में आऊँगा। मैंने ऐसे कई फोटोग्राफ देखे हैं जिनमें बड़े-बड़े पेड़ों की लंबी कतारे लाल, पीले और बैंगनी रंगो में ढँकी दिखती है। यों तो मेन से लेकर कैरोलाइना ताकि सभी जगह फाल के रंग दिखते हैं, परंतु न्यू हैम्पशायर का फाल इन सभी में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
लगभग 4 घंटे के बाद पोर्ट्समाउथ का शहर निकलने के समय तक मैं इस ऊहापोह में ही था कि राजमार्ग 95 पर ही आगे चला जाये या फिर राजमार्ग 495 पकड़ कर अभी से ही पूर्व दिशा की ओर चलें। इस तरह मैं बॉस्टन और कनेक्टीकट के रास्ते में पड़ने वाले कई शहरों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों से बच कर निकल सकता था। इस समय रात के अंधेरे में रास्ते में कुछ देखने या जानने के लिए कुछ विशेष था भी नहीं!
सड़क पर लगे दिशा निर्देशों पर ध्यान गया तो आगे एक्जिटर शहर आने वाला था। कहने को तो सभी सबवे एक जैसा सैंडविच ही बनाते हैं, पर वास्तविकता यह है कि हर दुकान का सैंडविच एक जैसा नहीं होता है, दोपहर के अपने सैंडविच में मैंने वेजी पेट्टी भी नहीं ली थी, शायद इसलिए इस कारण भी मुझे फिर से भूख लगने लगी थी, मैंने मेरी एन से पूछा, “हम एक्जिटर शहर पहुँचने वाले हैं, मुझे तो भूख लग रही है, क्या आप भी कुछ खाना चाहती हैं? उसने कहा, “अभी भूख तो नहीं लग रही, पर यदि आगे रुकने का मन न हो तो मैं भी खाना खा सकती हूँ।“ हमारी बातचीत से मेरी एन, जो कि अब एक स्व-नियुक्त नेवीगेटर (मार्ग निर्देशक) का काम रही थी, सजग हुई और उसने जीपीएस में आगे मार्ग में आने वाले रेस्तराँ देखने शुरु किये। कुछ ही क्षणों में वह बोली, “रूट 95 से थोड़ा हटकर पूर्व दिशा में एक पिज्जा एकेडमी आने वाला है, क्या पिज्जा खाना है?” मैंने सहर्ष कहा, “हाँ, वही ठीक रहेगा।”
हमने रूट 95 छोड़ दिया और निकास लेकर पिज्जा एकेडमी की ओर चल पड़े। मैंने मेरी एन से पूछा, “क्या आप यह जानती हैं कि यहाँ पास में ही फिलिप्स एक्सिटर एकेडमी है, जिसमें फेशबुक का मार्क जकरबर्ग पढ़ने गया था?” मेरी एन बोली, “सच?” मैने दोहराया, “हाँ, यह सच है कि मार्क जकरबर्ग यहीं के हाई स्कूल में पढ़ने आया था।” मैंने आगे बताया, “मेरे एक साथी से ही मुझे पता चला था कि मार्क जकरबर्ग यहीं पर पढ़ने आया था। उसके बाद आगे वह हार्वर्ड में पढ़ने गया था।” मेरी एन मेरी बात से काफी आश्चर्य चकित हुई, शायद उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था, मुझे भी यह बात इत्तेफाक से ही अपने एक मित्र से मालूम हुई थी। हमने फिलिप्स एकेडमी को बाहर से देखा और उसके आस-पास एक बार चक्कर भी लगाया तत्पश्चात् पिज्जा एकेडमी में पिज्जा खाने गये।
हमने रूट 495 और 95 का जंक्शन मिलने से पहले ही रूट 95 छोड़ दिया था, इसलिए मैं दुविधा में था कि क्या किया जाये? जीपीएस तो 495 पर जाने के लिए कह रहा था, परंतु मेरी सोच यह थी कि यदि मैं 95 पर ही चलता रहा तो अच्छा रहेगा, क्योंकि रूट 95 के आस-पास अधिकांश घनी आबादी बसी होती है, उसका कारण यह है कि यह यहाँ का पुराना राजमार्ग है, इसलिए इस पर संभवतः विश्राम स्थल भी अधिक मिल सकते हैं। पुरुषों के लिए तो अधिक समस्या नहीं होती और गैस स्टेशन पर भी शौचालय मिल जाते हैं, परंतु महिलाओँ के लिए रेस्ट एरिया के शौचालय अधिक साफ सफाई वाले होते हैं। अंत में मैने यही सोचा कि जीपीएस के सहारे ही आगे की यात्रा तय की जाए।
पिज्जा खाकर हमने रूट 111 पकड़ा और फिर आगे रूट 125 पकड़ कर रूट 495 में मिल गये। आराम करने और पिज्जा इत्यादि खाने के बाद अब मेरी एन भी सामान्य जागरूक अवस्था में आ गई थी। पिज्जा खाते समय हम लोग मार्क जकरबर्ग की असामान्य सफलता के बारे में बातें करते रहे। मैं और मेरी एन दोनों ही उसकी एप्लीकेशन का भरपूर उपयोग करते हैं, परंतु उसकी व्यापारिक बुद्धि प्रशंसा करने लायक थी। अचानक मेरी एन ने बातों का रुख मेरी तरफ मोड़ दिया और मुझसे पूछ बैठी, “मैं तो फ्रांस के बहुत पेचीदे विश्वविद्यालयीन नियमों के कारण और उससे भी अधिक अपने परिवार से दूर भागने की इच्छा के कारण यहाँ अमेरिका पढ़ने आ गई थी। इसके अतिरिक्त मुझे हमेशा लगता रहा है कि जब तक हम कैनेडा में थे, हमारा जीवन में बहुत आराम और वैभव था, इसलिए बार-बार इच्छा होती है कि मैं  वापस वहाँ जाऊँ। क्या तुम भी ऐसे ही किसी कारण से अमेरिका आये हो?”
मेरी एन का सवाल तो सीधा और साधारण था, परंतु उसका सीधा उत्तर देना मेरे लिए संभव नहीं था। शायद मैं उसे सीधा उत्तर देना भी नहीं चाहता था! जिस तरह उसने अपने बारे में मुझे बहुत कुछ बताया था, लगभग उसी तरह मेरी भी इच्छा हो रही थी कि मैं भी उसे अपने बारे में बताऊँ। फिर भी इस धरती पर, भारत में रहने वालों के और यदि भारत के आस-पास के देशों को छोड़ दिया जाये तो, अन्यत्र देशों में रहने वाले लोगों का जीवन इतना अधिक भिन्न होता है कि इस साधारण सी बात का उत्तर इतना सरल नहीं होता। सतह पर तो ऐसा लगता है कि कुल मिलाकर सब कुछ एक जैसा है, पर हमारी पुरानी और नई, तथा आज के विश्व से अत्यधिक प्रभावित जीवन शैली बड़ी गड्डमड्ड सी हो रही है। जब मेरी चुप्पी साधारण उत्तर देने के समय से कुछ अधिक की हो गई तब, वह अफसोस सा करती हुई बोली, “यदि मैंने तुमसे कुछ अधिक निजी बात पूछ दी हो तो रहने दो।” यह सुनकर मैं तुरंत बोला, “नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं सोच रहा था कि कहाँ से शुरु करूँ और क्या बताऊँ। भारत में हम लोगों का जीवन, दुनिया के अन्य देशों के लोगों से कुछ अलग ही होता है, इसलिए कहाँ से शुरु करूँ, यही सोच रहा था।”
मैने कहना शुरू किया, “मैं भारत में एक छोटे शहर में पला और बढ़ा हूँ। मेरे पिताजी का एक छोटा सा जनरल स्टोर होता था। मेरी तीन बड़ी बहने हैं, और मैं सबसे छोटा हूँ। बहनों की शादी और मेरी पढ़ाई की फीस देते-देते मेरे पिताजी इतने अधिक ऋण से दब गये कि सामान सही समय से न खरीद पाने और व्यापार को ठीक से न चला सकने के कारण मेरे कालेज की पढ़ाई खत्म होने के समय तक ही उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ गई। भारत में जो विकास की गति चल रही है उसके दो प्रमुख प्रभाव दिखते हैं, एक तो आयात और विदेशी निवेश के कारण अब लगभग सभी वस्तुएँ उपलब्ध हैं जो कि हमसे पिछली पीढ़ी को उपलब्ध नहीं थी, दूसरा इन वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें से शिक्षा खर्च भी है। हमारे यहाँ 20-25 साल पहले इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए केवल सरकारी कालेज ही होते थे, पर अब निजी कालेजों की भरमार है। मैंने भी अपने निकट के महानगर में एक निजी कालेज में पढ़ाई की है।
घर में सबसे छोटा होने के कारण कभी-भी जिम्मेदारियाँ मुझ पर नहीं आई, लापरवाही मेरी आदत बन गई, इन्हीं कारणों से परिवार में मुझसे कोई किसी प्रकार की आशा भी नहीं करता था। यहाँ तक कि, जब कभी भी पिताजी ने मुझसे किसी भी काम में मदद माँगी तो मेरी लापरवाही के कारण कुछ न कुछ गड़बड़ हुआ और इसलिए धीरे-धीरे मुझसे अधिक आशा नहीं करने का अभ्यास मेरे आस-पास के सभी लोगों को हो गया था। इसी तरह मैंने दुकान के काम में उनका हाथ कभी भी नहीं बँटाया, क्योंकि तब यह मुझे बहुत छोटा काम लगता था। पहले तो मेरी बड़ी बहनें कई जिम्मेदारियाँ सम्भालती थीं, परंतु एक-एक करके शादी करने के बाद अपने-अपने पतियों के साथ रहने लग गईँ। शायद तुम्हें मालूम हो कि हमारे यहाँ अधिकतर शादियाँ पारिवारिक संबंधों के सहारे से होती हैं, और इन सभी कारणों से विवाह के समय सभी रिश्तेदारों और विवाह में आमंत्रित लोगों की आव-भगत करने में ही अच्छा-खासा धन खर्च हो जाता है, दहेज की प्रथा कुछ कम तो हुई है, पर इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, इसलिए अभी भी विवाहों में बहुत खर्च होता है। मँहगाई और इच्छाएँ बढ़ जाने के कारण विवाह बहुत खर्चीले हो गये हैं।
इन स्थितियों में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मुझे पहली नौकरी नई दिल्ली में मिली। जब अपने खर्चे खुद संभालने पड़े, तब पिताजी की स्थिति का अनुभव होना आरंभ हुआ। वे कैसे यह सब कर पाये, यह बात मुझे आज भी आश्चर्यचकित करती है। अपने खर्च कम रखने के लिए मैंने दो अन्य व्यक्तियों के साथ साझे में किराये पर मकान लिया। मेरी सोच यह थी कि मैं अपने वेतन से कुछ धन बचाकर पिता को भेज पाऊँगा। इस तरह मैं अपने माँ-पिता को हर संभव मदद करता रहा। एक साल में ही उनके बचे हुए ऋण खत्म हो गये और आर्थिक स्थिति यहाँ तक सुधर गई कि अब मेरे माता-पिता चिंता रहित जीवन जी सकते थे।”
मेरी एन बोली, “यह तो अच्छी बात है कि तुम अपने अभिभावकों की आर्थिक मदद कर पाये। तब तो तुम्हारा सब काम ठीक ही हो गया था, फिर यहाँ पढ़ने क्यों आये?”
मैने कहा, “मैं जिस कंपनी में काम करता था, वह एक अमेरिकन कंपनी के लिए साफ्टवेयर बनाती है। हम लोग शाम के समय से काम आरंभ करते और देर रात तक काम करते रहते। अक्सर हमें जल्दी बुला लिया जाता और सप्ताहांत पर भी काम करने के लिए कहा जाता। इसी कारण सोने और काम करने में ही सारा समय चला जाता। देखो, कितनी विचित्र बात है, जब मेरे पास पैसे नहीं होते थे, तब समय था और नई-नई वस्तुएँ खरीदने और अपने साथियों के बीच उनका प्रदर्शन करने की चाहत थी। जब पैसे कमाने का सिलसिला शुरू हुआ ताकि उन पैसों से मैं अपनी सभी इच्छाएँ पूरी कर सकूँ, तब एक तो समय ही नहीं था, और परिवार की जिम्मेदारियाँ के अहसास के कारण अपने-आपको रोकना पड़ा।”
सड़क पर भीड़ बिलकुल भी नहीं थी और हमारी कार 75 से 80 मील की गति से चली जा रही थी। शायद मेरी बात सुनकर मेरी एन कुछ सोचने लगी थी। कुछ समय तक शांति बनी रही। मैं हिचकिचा रहा था कि आगे उसे बताऊँ या नहीं। वह जितनी सरलता से अपने बारे में बताती रही थी, मेरे लिए उतना ही सरल होना इतनी आसानी से संभव नहीं था। उसका सारा जीवन कैनेडा, फ्रांस और अब अमेरिका में गुजर रहा था, जहाँ का जीवन लगभग एक जैसा है। शायद अपने बारे में इतनी बात करना ही ठीक रहेगा।
मैं इसलिए चुपचाप अपने भूतकाल के जीवन के बारे में सोचते हुए शांति से कार चलाता रहा। पाँच-सात मिनट बाद मेरी एन अपनी तंद्रा से जागी और बोली, “फिर क्या हुआ?”
इतनी देर में अब मैं अपने विचारों में कहीं दूर खो गया था। उसकी बात सुनकर पुनः मेरा ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ। मैं उसकी तरफ देखा और पूछ बैठा, “किस बारे में?”
मेरी एन मेरी तरफ मुड़कर बोली, “तुम दिल्ली में काम कर रहे थे, फिर आगे क्या हुआ, यहाँ पढ़ने क्यों आये?” मुझे याद आया, कि इससे पहले मैं उसे दिल्ली में व्यतीत अपने जीवन के बारे में बता रहा था।
मैंने पुनः बताना शुरु किया।
 “दिल्ली के दक्षिण पूर्व में यमुना नदी के पार मेरा आफिस था, इसीलिए मैंने आफिस से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर ही जहाँ किराए का मकान सस्ता मिल रहा था, वहीं ले लिया था। दो साल तक वहाँ रहने के बाद मैं थोड़े और महँगे घर में किराए पर अकेले ही रहने गया। चार मंजिल के इस नये मकान में 8 हिस्से थे। हर मंजिल दो भागों में बँटी हुई थी। जिस आफिस में मैं काम करने जाता था, उसमें काम करते हुए लगभग तीन साल हुए थे, तब एक दिन रिसेप्शन पर बैठने वाली एक लड़की ने मुझे आफिस में अंदर जाते समय रोककर, मुझसे मेरे ही घर का पता बताया और यह सुनिश्चित किया कि मैं वहीं रहता हूँ। मेरे हामी भरने पर उसने बताया, “मैं भी उसी मकान में तुमसे दो मंजिल ऊपर रहती हूँ और मैने तुम्हें आते-जाते भी देखा है।“
मैंने उसे अपने मकान पर कभी भी नहीं देखा था। शायद ऐसा इसलिए भी हुआ होगा क्योंकि मैं शाम के समय कभी घर पर नहीं होता था। हर सुबह मैं रात में देर से काम करने या फिर सप्ताहांतो पर मित्रों के साथ पार्टी में जाने के कारण सो रहा होता था और दोपहर के बाद जब मैं निकलता, तब अधिकांश मकान सूना सा पड़ा रहता था। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि उस मकान के सभी किराएदार मेरी तरह का काम करने वाले अविवाहित लोग ही थे।
मैंने उससे पूछा, “क्या आप उस घर में नई रहने आयी हैं?”, मुझे लगभग निश्चय था कि मैं उसे काफी दिनों से रिशेप्सन पर बैठे देख रहा था। शायद वह हमारे किराए वाले मकान में कुछ दिनों पहले ही रहने आई हो?” वह बड़े आत्मविश्वास से दिल्ली वाले लहजे में बोली, “मैं तो वहाँ दो साल से रह रही हूँ, तुम पिछले एक साल से ही वहाँ रह रहे हो ना?” मैंने उसे उत्तर दिया, “हाँ, यह तो ठीक है, मैं इस मकान में पिछले साल ही रहने आया हूँ।”
वह बोली, “मेरा सोचना सही था। तुमने मुझे घर पर कभी भी नहीं देखा?” मैं क्या कहता, मुझे तो बिलकुल भी उसकी याद नहीं थी। असल में तो मुझे यह भी नहीं मालूम था कि हमारे घर वाले मकान के किस हिस्से में कौन रहता था? दिल्ली आने के बाद से काम में मैं इतना व्यस्त हुआ था कि मुझे आस-पास की खबर ही नहीं रहती थी। कभी-कभी अपने कालेज के या फिर आफिस के मित्रों के साथ पार्टी करने के लिए बाहर निकलने अथवा माल जाने को छोड़कर, मेरी दुनिया आफिस और घर में ही सिमटी हुई थी।
बात आई-गई हो गई। इसके बाद आने वाले रविवार को घर से बाहर निकलते समय अचानक मुझे याद आया कि रिसेप्शन वाली लड़की वहीं रहती है, मैंने सोचा कि पता तो करूँ कि वह कहाँ रहती है? दो मंजिल ऊपर चढ़कर देखने गया तो उस समय वहां दोनो हिस्सों के दरवाजों पर ताले लटक रहे थे। मैं वापस लौट आया। मैने सोचा आफिस में ही पूछ लूँगा कि वह कहाँ रहती है। लेकिन कुछ दिनों के बाद इसके बारे में बिलकुल ही भूल गया।
कुछ समय और बीतने के बाद जब वह रिसेप्शन पर पुनः दिखी तो इस बार मैंने उससे पूछ ही लिया कि वह कौन सी मंजिल और किस हिस्से में रहती है। वह बोली, “मैं तुम्हारे विपरीत दिशा वाले हिस्से में चौथी मंजिल पर रहती हूँ।“ उस समय रिसेप्शन पर दो लड़कियाँ और भी थीं, मुझसे बात करते-करते उसने उनको निर्देश दिया, “मुझे भूख लगने लगी है और मैं कुछ खाकर आती हूँ, तब तक तुम लोग रिसेप्शन को देखो।“ उसके बाद वह मेरी ओर पलटी और बोली, ”मेरे साथ बाहर चलकर कुछ खाना पसंद करोगे?” मैं अभी ही चाय पीकर वापस आ रहा था, कुछ काम भी था जिसके लिए मेरा बॉस जल्दी कर रहा था। मैं इसी उहापोह में था कि जाऊँ कि न जाऊँ, तभी वह बोली, “अरे आ जाओ, मैं अपनी फिगर का ख्याल रखती हूँ और बहुत अधिक नहीं खाती।” मैंने भी सोचा चलो चलते हैं, बाद में आकर जल्दी काम कर लेंगे।
पास के रेस्तराँ में जाकर उसने एक दोसा आर्डर किया तो मैंने भी साथ देने के लिए काफी ले ली। उसका नाम नीता शर्मा था। उस दिन के बाद धीरे-धीरे हमारी दोस्ती बढ़ती गई।
मैं अचानक अपने काम की मशीनी दुनिया से निकलकर एक रूमानी दुनिया में पहुँच गया। नीता साधारण उत्तर भारतीय लड़कियों से कुछ अधिक ही गोरी थी। उसकी त्वचा में वह विशेष चमक थी जो कि सामान्यतः धनी लोगों के परिवारों की लड़कियों में होती है, हालाँकि वह थी एक मध्यम वर्गीय परिवार से! आफिस में जब मेरे अन्य सहकर्मियों को यह मालूम हुआ कि मेरी और नीता की आपस में दोस्ती चल रही है, तो कई लोग मुझसे जलने लगे, वहीं मैं अपने आपको भाग्यशाली समझने लगा।
हमारी दोस्ती बढ़ती गई। अगले कुछ महीनों तक मुझे सप्ताहांत की शामों का इंतजार रहता। मैं ओवरटाइम से दूर भागने लगा और काम से अधिक ध्यान नीता के साथ समय बिताने में लगाने लगा। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। दीवाली के सप्ताहांत पर जब मैं अपने माँ-बाप से मिलने अपने घर गया तो वे मुझे शादी करने की सलाह देने लगे, उन्होंने कुछ लड़कियों के नाम भी सुझाए। तब मैंने उन्हें बताया कि नीता मेरी दोस्त बन चुकी है और शायद हम आपस में शादी कर लेंगे। मैंने नीता से इस बारे में बात नहीं की थी, पर मैं आश्वस्त था कि वह भी यही सोच रही है।
काम पर दिल्ली लौट कर आने के बाद वाले सप्ताहांत के दिन जब हम एक दूसरे की बाहों में थे, तब मैने उसे अपने माँ-बाप से हुई बातचीत के बारे में बताया। एक क्षण के लिए मुझे लगा कि वह चौंक गई है, पर उसके चेहरे पर छायी मोहक मुस्कान को देखकर मैं उस बात को भूल गया। उसकी वह मुस्कराहट देखते ही मैं सब कुछ भूल जाता था । वैसे भी वह शाम शुक्रवार की शाम थी और मेरा सारा ध्यान उसके साथ बीतने वाले वक्त पर केंद्रित था। कई घंटों बाद इस बार यह विषय उसने उठाया और बोली, “तुम्हें नहीं लगता है कि हमारा समय कितना अच्छा बीत रहा है, एक बार शादी हुई तो फिर बच्चे होंगे और धीरे-धीरे हम भी और लोगों की तरह दुनिया के झंझटों में खो जायेंगे। अभी तो हमारे मस्ती करने के दिन हैं, क्या तुम्हें शादी करने की बहुत जल्दी है?” उसकी यह बात सुनकर मैंने उससे तो कुछ नहीं कहा, परंतु यह सुनकर मेरा “मेल इगो” जाग उठा और इस बारे में आगे बात करना मैंने छोड़ दिया। उस समय मुझसे इस वार्तालाप के पीछे उसकी जो मंशा थी, उसका असली मतलब नहीं समझ में आया था, क्योंकि तब मेरा सारा ध्यान उसके आकर्षक शरीर पर था और उसके साथ होने वाले आनंददायी अनुभव पर केंद्रित था। यह वह समय था जब मुझे उसकी हर बात अच्छी लगती थी!
हम पहले की तरह मिलते रहे, नीता ढूँढ़-ढूँढ़ कर नये रेस्तरां बताती और बड़े चाव से नये-नये किस्म के भोजन मँगाती। हम एक बार डांसिग बार वाले एक पब में भी गये। परंतु वहाँ म्यूजिक इतनी तेज आवाज में बज रहा था कि मैं उसे अधिक देर तक नहीं सह पाया और हम वहाँ से जल्दी ही वापस निकल गये।  लगभग दो तीन महीने बाद बात-चीत के बीच में मैंने उससे कहा, “हमारी कम्पनी को कुछ और काम मिला है, जिसके कारण हमारा एक आफिस बैंगलोर में भी खुल रहा है, मेरा बास मुझसे कह रहा है कि यदि मैं बंगलौर जाने को राजी हो जाऊँ, तो वह मुझे प्रमोशन भी देगा। तुम इस बारे में क्या सोचती हो? क्या मैं बंगलौर जाना स्वीकार कर लूँ?“ वह बोली, “यह तो बहुत ही अच्छी बात है। प्रमोशन का मौका नहीं छोड़ना चाहिए।” मैंने उससे कहा, “मैं पहले जाकर वहाँ पर इंतजाम करता हूँ, तुम कुछ समय बाद आ जाना।” वह बोली, “हाँ, वह तो है, परंतु मेरी नौकरी तो यहाँ पर है, नौकरी छोड़ दूँगी तो पैसा कम हो जायेगा। इसके अतिरिक्त मेरा तो सारा परिवार भी यहीं हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कभी-कभी साउथ इंडियन खाना अलग बात है, पर हमेशा खाना मेरे बस की बात नहीं है। मैं दक्षिण भारत में नहीं रहना चाहती।”
हम दोनों को मालूम था कि मेरा वेतन उसके वेतन से लगभग दूना तो अभी ही था, यदि मुझे प्रमोशन मिल जाता तो और भी अधिक हो जाना था। इस लिहाज से उसके वेतन का पैसा कम हो जाना हमारे लिए कोई बड़ी समस्या नहीं था। वह बंगलौर में भी आसानी से नयी नौकरी ढूँढ़ सकती थी। परिवार तो उसका शादी के बाद छूटना ही था और घर में यदि भोजन बनाना हो तो आप अपनी इच्छा के अनुसार भोजन बना सकते हैं। परंतु उस समय मैंने इस बारे में अधिक जोर नहीं डाला।
कुछ दिनों बाद मेरे बॉस के कई बार कहने पर जब मैंने नीता से दोबारा इस बारे में बात की तो वह बड़े ही बेबाक ढंग से बोली, “देखो, हम दोनों अच्छे दोस्त हैं, पर हम आपस में विवाह नहीं कर पायेंगे।” उसकी इस बात को सुनकर मैं भौचक्का रह गया। मैने उसे समझने और समझाने की कोशिश की, परंतु वह अपना मन बना चुकी थी। उसने मुझे साफ शब्दों में बता दिया कि वह विवाह अपने घर वालों की मर्जी से करेगी, हाँ वह मुझसे दोस्ती रख सकती है। मुझे यह बात अटपटी लगी। कुछ समझ में नहीं आया कि वह ऐसा क्यों कह रही है?”
यह कह कर मैं चुप हो गया। हमारी कार इस समय हार्टफोर्ड, कनेक्टीकट से निकल रही थी। हार्टफोर्ड को इंश्योरेन्स टाउन के नाम से जाना जाता है। अमेरिका की कई इंश्योरेन्स कंपनियों का मुख्यालय या तो अब भी इस शहर में हैं या फिर पहले कभी हुआ करता था। न्यू हैम्पशायर, मेसाचुसेट्स, रोड आइलैंड और कनेक्टीकट को न्यू इंग्लैण्ड के नाम से भी जाना जाता है। भौगोलिक स्थिति में यह क्षेत्र इंग्लैण्ड अथवा ब्रिटेन की तरह कर्क रेखा से काफी उत्तर में स्थित है, इसलिए यहाँ की जलवायु भी ब्रिटेन जैसी है, जिसके कारण ब्रिटेन से आने वाले लोगों ने अमेरिका में बसने के लिए इस क्षेत्र को पसंद किया। मैंने हार्टफोर्ड के पार होने तक अपना सारा ध्यान सड़क के यातायात पर ही रखा। मुझे यहाँ एक के बाद एक पुलिस की गाड़ियाँ दिख रहीं थी, इसलिए मैं गाड़ी तेज चलाने अथवा किसी निर्देश को न मानने की गलती करके पुलिस के फाइन का आह्वाहन नहीं करना चाहता था। मेरी एन ने भी शायद पुलिस की गाड़ियाँ देखी थीं, इसलिए वह भी मेरा ध्यान बँटाना नहीं चाहती थी।
हार्टफोर्ड निकलने के कुछ देर बाद जबकि सड़क पर यातायात पुनः कम हो गया था, तब वह फिर बोल पड़ी, “मैं तुम्हारे देश के बारे में अधिक तो नहीं जानती, परंतु इतना तो जानती ही हूँ कि तुम्हारे देश का इतिहास बहुत पुराना है और तुम लोग परंपरावादी हो। तुम्हारी दोस्त ने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया? क्या तुम्हारी कोई और भी दोस्त थी? या उसका कोई और दोस्त था?”
मेरी एन की बात सुनकर मेरा ध्यान पुनः हमारी बातचीत पर गया। उसकी बात सुनकर और अपने देश पर आक्षेप लगता देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा। उसके प्रश्न के उत्तर में जब मुझे कोई असरदार बात नहीं सूझी, तो बात संभालने के उद्देश्य से मैंने भारत के बदलते हुए समाज की बात कही।
मैं बोला, “पुरुष तो चिर काल से अपने मनोरंजन के लिए स्त्रियों का प्रयोग करते आये हैं, परंतु अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद की दूसरी पीढ़ी से भारत में स्त्रियों की स्वतंत्रता बढ़ी है। स्वतंत्रता के समय और उसके आस-पास के कुछ वर्षों में पैदा हुए लोगों ने कमोबेश आजादी की हवा में साँस ली है। इसके साथ-साथ टीवी और सूचना प्रसारण की क्रांति ने विश्व भर की जानकारी हम लोगों को सुलभ करवा दी। फिर भी उस पीढ़ी को दहेज जैसी कु-प्रथा और नारी सम्मान जैसी मूलभूत बातें सीखने में समय लगा। साठ और सत्तर के दशक में पैदा हुए लोगों में से अधिकांश ने स्वाभाविक रूप से स्त्रियों का सम्मान करना सीखा।
परंतु असली परिवर्तन अस्सी के दशक और उससे भी अधिक 90 के दशक में पैदा हुए लोगों में दिखता है। इस समय में पैदा हुई लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों से बराबरी कर रही हैं, बल्कि पढ़ाई के मामले में तो लड़कों से आगे भी निकल गई हैं। लड़कियों के स्वावलंबी बनने से दहेज की कु-प्रथा पर भारी आघात हुआ है। इसका एक कारण यह भी हुआ कि जब लड़कियाँ घर से बाहर निकल कर काम करने लगीं तो उनकी स्वतंत्र विचारधारा भी बनने लगी। उन्होंने समाज के द्वारा तय किये जाने वाले विवाह की जगह अब अपने लिए जीवन साथी स्वयं चुनने शुरु कर दिए।
इसीलिए अब बहुत से विवाह लड़का-लड़की स्वयं तय करते हैं और माता-पिता तथा परिवार की भूमिका तो केवल दिखावे की होती है। पर अन्य देशों की तरह जैसे-जैसे यह अधिकार नवयुवकों और युवतियों ने अपने हाथ में लिया तो पाश्चात्य देशों की तरह, धीरे-धीरे अब यही अधिकार समय के साथ उनकी जिम्मेदारी भी बनता जा रहा है। इस जिम्मेदारी के कारण पड़ने वाला दबाव नीता जैसी लड़कियों में दिखता है, जो ठीक से निश्चय नहीं कर पा रहीं कि अपने विवाह का निर्णय वे स्वयं लें और अपना जीवन अपने बल-बूते जियें या फिर अपने परिवार की समृद्धि का लाभ उठाते हुए भौतिक सुख सुविधाओं वाला जीवन अपनाने के लिए उनके निर्देश में विवाह करें।  
शायद इसीलिए इस स्वच्छंद काल में स्त्रियाँ पुरुषों की तरह जीवन साथी चुनने और शारीरिक संबंध बनाने में प्रयोगवादी हो गईं है और जैसा पहले पुरुष करते थे अब वे सभी अच्छे-बुरे काम महिलाएँ भी  करने लगी हैं। नीता के संबंध में मैं व्यर्थ ही उसके साथ जीवन बिताने के सपने देखने लगा था। अनजाने में मेरे माँ-बाप ने भी इस विचार का बीज मेरे मन में बो दिया था। परंतु सही बात यह थी कि, गलती मेरी ही थी। अंत में मैंने यही निष्कर्ष निकाला था कि नीता और मेरे बीच में मुख्य अंतर मनोभावना का था। मेरी मनोभावना उसके साथ जीवन बिताने की थी और उसकी मनोभावना अभी स्वच्छंद रहने की थी।
उस समय तो मुझे समझ में नहीं आया था, पर जब मन शांत हुआ तो यह समझ में आया कि कुल मिलाकर सब अच्छा ही हुआ। यदि कहीं मेरे दबाव में आकर वह मेरे साथ विवाह कर लेती, तब यह भी हो सकता था कि आगे चलकर हम दोनों की आपसी असहमति इतनी बढ़ जाती कि हम फिर अलग होने के लिए मजबूर होते। वह स्थिति तो हम दोनों को लिए और अधिक कष्टकारी होती।
इस घटना के बाद मैं इतना व्यथित हो गया कि अगले कई सप्ताहों तक मेरा मन किसी भी कार्य में न लगा। उधर सही समय से अपने बॉस को अपने निर्णय की सूचना न दे पाने के कारण मेरा बॉस भी परेशान हो गया और उसने मेरी जगह हमारी ही टीम के दूसरे इंजीनियर को बैंगलोर जाने के लिए कहा। मेरा वह साथी चेन्नई शहर का था, जो कि बैंगलौर के पास था, इस कारण उसके लिए बैंगलोर वैसे भी अधिक उपयुक्त था, और यह स्वाभाविक था कि उसने बॉस का आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस तरह मेरा दोहरा नुकसान हो गया। मैं कई हफ्तों तक विक्षिप्त अवस्था में अपने काम में व्यस्त रहकर अपने मन को बहलाने की कोशिश करता रहा। अब जब भी मैं आफिस जाता तब नीता मुझे अक्सर रिसेप्शन पर बैठी मिलती, परंतु मेरा मन उससे पूरी तरह विरक्त हो चुका था और मैं उससे किसी प्रकार का कोई भी संबंध नहीं रखना चाहता था।
अब आगे के अपने जीवन के बारे में मेरे सामने दो विकल्प थे। मुझे इस नौकरी से तो निकलना ही था, परंतु कहाँ जाऊँ और क्या करूँ यह सवाल मेरे सामने मुँह बाये खड़ा था। मैंने कोशिश की, कि मुझे किसी ऐसी कंपनी में नौकरी मिल जाये, जो कि मुझे अमेरिका में नौकरी दे दे। परंतु इस कार्य में भी सफलता नहीं मिली, क्योंकि अमेरिका में नौकरी के लिए वीसा मिलने में एक समस्या यह थी कि अधिकांश अमेरिकन कंपनियाँ अधिकतर उन्हीं लोगों के लिए वीसा माँगती थीं जो कि कम से कम पाँच या छह वर्षों तक कार्य करने का अनुभव रखते थे।
मैं यदि दिल्ली में काम नहीं करना चाहता था तो इस अवस्था में मैं पूना, हैदराबाद, चेन्नई और बंगलौर में काम ढूँढ़ सकता था। मेरा मन इतना खराब हो गया था कि मैं अब यहाँ से बहुत दूर चला जाना चाहता था। सबसे पहले तो मैंने अपने लिए हैदराबाद में नौकरी ढूँढ़ी। वहाँ पैसा भी अधिक मिला और कुछ ऐसे लोग भी मिले जो कि अमेरिका पढ़ने के लिए आना चाहते थे। उनके साथ मिल कर मैंने तैयारी की और उसके बाद जी आर ई और टोएफएल की परीक्षाएँ देकर अमेरिकन विश्वविद्यालयों में प्रवेश की कोशिश करने लगा। मुझे पहला अवसर यूनिवर्सिटी आफ कैरोलाइना ने दिया और मैं यहाँ चला आया।“
मेरी एन मेरी कहानी बड़ी शांति से चुपचाप सुनती रही। अपनी बात कहने के बाद मैं लम्बी चुप्पी लगा गया। वह भी देर तक कुछ नहीं बोली। अब शायद वह मेरी स्थिति कुछ बेहतर समझ रही थी।
एक्सिटर से निकलने के बाद हमने वहीं से रूट 95 पकड़ने का इरादा पहले ही छोड़ दिया था, इसके बजाए हमने आगे जाकर रूट 290 और फिर रूट 90 पकड़ लिया। वहाँ से आगे जाकर हमने रूट 84 पकड़ा और दक्षिण दिशा में जाते हुए रूट 91 पकड़ लिया। रूट 91 ने हमें वापस रूट 95 में फिर से मिला दिया। मेन से न्यूयार्क वापस आने के रास्ते में रूट 95 से बचना मुश्किल ही हो जाता है, यह सोचता हुआ मैं होटल की पार्किंग में कार लेकर दाखिल हुआ। हमें अपने होटल तक पहुँचते हुए लगभग 12 बज गया था।
हमारी कार में सामान हर ओर फैल रहा था, इसलिए मेरी एन बोली, “मैं सामान व्यवस्थित करके रखती हूँ, तब तक तुम चेक इन कर लो।”  मेरे पैर लगातार एक ही अवस्था में रहने के कारण थक गये थे और कुछ देर के लिए चलना फिरना चाहता था। मैंने मेरी एन की ओर देखा और उससे पूछा, “आपको थकान लग रही होगी?” वह बोली, “हाँ, मैं बिस्तर पर पैर फैलाना चाहती हूँ।” मैं बोला, “मेरे पैर अकड़ गये हैं, कुछ देर के लिए पैदल टहलूँगा, तब अच्छा लगेगा। चलिए कमरे में चेक-इन करके और सामान पहुँचाने के बाद थोड़ी देर टहलने जाऊँगा।” वह बोली, “ओके”।
मैं रिसेप्शन पर पहुँचा और होटल में चेक इन करने के लिए रिसेप्शन पर खड़े व्यक्ति से अपना नाम बताया। रिसेप्शन पर खड़े क्लर्क ने मेरा अभिवादन किया और मेरा पहचान पत्र तथा क्रेडिट कार्ड लेकर हमारे लिए निर्धारित कमरे के लिए इलेक्ट्रानिक कार्ड देते समय पूछा, “आपको एक कार्ड चाहिए अथवा दो?” मैंने उसकी बात का उत्तर देते हुए कहा, “कृपया दो (चाबियाँ) कार्ड दे दीजिए।” रिसेप्शन के क्लर्क ने बताया था कि लंबी बिल्डिंग की दायीं ओर दूसरी मंजिल पर अंत में आपका कमरा है। कार्ड लेकर मैं वापस कार की ओर गया, तब तक मेरी एन कार में फैला सामान ठीक करके हमारे बैग कार के ट्रंक से निकाल चुकी थी। हमारी कार बिल्डिंग के बायीं ओर पार्क थी। मैने कार पुनः स्टार्ट की और उसे ले जाकर बिल्डिंग के दायीं ओर जहाँ पार्किंग मिली वहीं पार्क कर दिया। हम अपना सामान उठाकर बिल्डिंग के मुख्य द्वार की बजाए दायीं ओर के द्वार से प्रवेश कर सीढ़ियों के रास्ते ऊपर चले गये। लिफ्ट पास में ही थी, परंतु हम दोनों ही बहुत देर से कार में बैठे हुए थे, इसलिए पैरों को चलाना हमें अच्छा लग रहा था।
अभी तक के जितने भी हालीडे इन होटलों में हम रुके थे, लगभग सभी होटलों में कमरे में घुसते ही लगभग 6 फीट का गलियारा होता था। उसके ठीक बायीं अथवा दायीं ओर बाथरूम का दरवाजा होता था और सामने बाकी का कमरा। हर कमरे में निर्विवाद रूप से सामने एक लगभग 6 से 8 फीट चौड़ी और लगभग 4 या 5 फीट ऊंची बड़ी खिड़की होती थी। सामने की विशाल खिड़की पर दो तरह के पर्दे होते थे। इनमें से एक पर्दा बहुत हल्के सफेद कपड़े का होता था और दूसरा गहरे या अपारर्शी कपड़े का होता था। यह कमरा भी वैसा ही था। दिन भर पैदल चलने और थक जाने के कारण मैं सुबह बहुत जल्दी उठने की इच्छा नहीं रखता था। हमें यदि जल्दी न्यूयार्क पहुँचना होता तब तो हमें निश्चित तौर पर सुबह के यात्रियों की भीड़ में जाना पड़ता, जिसकी हमें कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। हमारा इरादा था कि या तो हम नौ बजे की कोई ट्रेन पकड़ेगे अथवा साढ़े नौ बजे तक कार से ही चले जायेंगे। यदि हम ट्रेन से जाते तो हमें कार लेने वापस आना पड़ता, इसके विपरीत यदि हम कार ले जाते तो न्यूयार्क में पार्किंग ढूँढना समस्या हो जाती। चूँकि कल मुझे केवल पासपोर्ट लेना था, इसलिए मैंने कार को कहीं दो घंटे की पार्किंग में ही खड़ा करने का विचार बना रखा। अन्यथा हमें 30-35 डॉलर की पार्किंग देनी पड़ती।
दिन भर की थकान के कारण अब स्नान करने की भी तीव्र इच्छा हो रही थी। मेरी एन बोली, “तुम जब तक स्नान करो, तब तक मैं कपड़े वाशिंग मशीन में डालकर आती हूँ।” मैं उससे बोला, “आप यदि कपड़े अभी डालेंगी तो कम से कम एक-डेढ़ घंटे तक जागना पड़ेगा। ऐसा करेंगे कि हम कपड़े माँट्रियाल के होटल में साफ कर लेगें, आज रहने देते हैं।” मेरी एन ने मेरी तरफ एक बार देखा परंतु उत्तर में कुछ नहीं बोली।
मैं स्नान करने चला गया। शावर के फव्वारे के नीचे खड़ा होकर अपने शरीर को पानी में भीगते देने के समय मैं बड़े गमगीन से मूड में था। शायद अपनी कहानी मेरी एन को सुनाने से मेरे मन के घाव फिर से हरे हो गये थे। मैंने स्वयं आगे बढ़कर नीता से शारीरिक सुख के लिए मैत्री नहीं की थी। हम तो बस यूँ ही मित्र बन गये थे, पर आगे जो कुछ हुआ उसने मेरा स्त्री जाति पर विश्वास हिला दिया था। पानी के नीचे आँखे बंद किये हुए मैं फव्वारे का आनन्द ले रहा था कि शावर का पर्दा खुला और मेरी एन भी शावर में आ गई। वह बोली, “मैं कपड़े डाल आई हूँ, इसलिए अब एक डेढ़ घंटे तो जागना ही पड़ेगा। तब तक अपनी थकान क्यों न मिटा लें। यह कहते हुए उसने हॉलीडे-इन के निजी साबुन की चौकोर टिकिया लेकर मेरे शरीर पर लगानी शुरु कर दी।” मेरा मूड अच्छा नहीं था, परंतु मैं अब मेरी एन से क्या कहता?
मैने भी दूसरी साबुन की टिकिया लेकर उसे मेरी एन के शरीर पर रगड़ना शुरु कर दिया। कुछ समय बाद ऐसा लगने लगा जैसे कि पानी की फुहारों से साबुन के साथ-साथ मेरी स्मृतियाँ भी धुलने लगीं थी।
मेरी अभी तक की स्मृति में सम्भवतः मैंने सबसे अधिक देर तक स्नान उस रात ही किया होगा। लगभग 45 मिनट तक पानी की फुहारों का स्पर्श शरीर पर अनुभव करने के बाद हम दोनों ही अपने कपड़े पहन कर वाशिंग मशीन तक गये और धुले हुए कपड़े निकाल कर सुखाने के लिए ड्रॉयर में डाल आए। कपड़े सूखने में लगभग आधे घंटा तो लग ही जाना था। कमरे में वापस आये तो मैंने मेरी एन से पूछा, “क्या आप कॉफी पियेंगी?” उसने इन्कार में सिर हिलाया और बोली, “तुम पीना चाहो तो मैं तुम्हारे लिए बना सकती हूँ।”
मैंने उससे कहा, “नहीं बनाने की कोई जरूरत नहीं है, कॉफी तो नीचे रिसेप्शन पर भी मिल जायेगी।” हम दोनों वहाँ से उतरकर नीचे गये। मैनें कॉफी के बड़े थर्मस से कॉफी निकाली और पीने लगा, एक दो घूँट पीते ही समझ में आ गया कि वह काफी देर से रखी हुई कॉफी थी। मैने कॉफी वहीं ट्रेश कैन में पलट दी और हम अपने कमरे पर वापस चले गये। मेरी एन ने यह अनुभव करते हुए मुझे काफी पीने की इच्छा तो हो रही है, परंतु मैं काफी बनाने में आलस्य कर रहा हूँ, इसलिए मुझ पर तरस खाते हुए फटाफट एक ताजी कॉफी बना दी। उसे पीकर खत्म करने के बाद हम ड्रॉयर से कपड़े निकालने चले गये। अब तक रात के दो बजने में केवल पाँच मिनट बचे थे। मैं सोच रहा था कि कम-से-कम पाँच घंटों का आराम भी मिल जाता तो अच्छा रहता। पर कितना आराम मिलेगा यह तो मेरी एन पर निर्भर था।


गुरुवार


सुबह उठकर रोज की तरह मैं व्यायाम करने गया। इस बीच मेरी एन तैयार हो चुकी थी। मैंने भी झटपट स्नान किया और हम नाश्ते की मेज पर पहुँच गये। यात्रा में दोपहर का भोजन तो हर बार देर से और अधिकतर काम चलाऊ ही हो पा रहा था, इसलिए अब मैं नाश्ते पर अधिक ध्यान देने लगा था। हालीडे इन के अधिकतर होटलों में सुबह के नाश्ते में फल, जूस, सीरियल और ब्रेड आदि कमरे के किराए में शामिल होते हैं, इसलिए इन होटलों में रुकते समय सुबह अच्छा नाश्ता करके निकलना ही ठीक रहता है।

होटल से निकल कर थोड़ी ही दूर पर हमने दक्षिण की ओर जाने वाला रूट 95 फिर से पकड़ लिया और न्यूयार्क की ओर चल पड़े। यहाँ से लगभग 1 घंटे की दूरी पर केनेडा का दूतावास था। हम रूट 95 से जाकर रूट 278 में मिल गये और फिर हमने न्यूयार्क की उत्तर पूर्वी दिशा से शहर में प्रवेश किया। न्यूयार्क के पूर्वी किनारे पर चलते हुए शहर के मध्य में पहुँच कर हम पश्चिम की ओर चले और 47वीं स्ट्रीट से जाकर 6 वीं एवेन्यू पर बने हुए दूतावास पहुँच गये। दूतावास के आस-पास ढूँढ़ते हुए हमें अंत में 49 वीं स्ट्रीट पर 7वीं एवेन्यू के पास एक पार्किंग मिल गई। कार खड़ी कर हम वहाँ से पैदल वापस लौटे। मैं सोच रहा था कि यदि दो घंटे में काम हो जाये तब तो बहुत ही अच्छा रहेगा!
दूतावास में पहुँचकर मेरी एन ने फिर से आगे बढ़कर वहां के रिसेप्शन पर मेरे पासपोर्ट के बारे में पूछा। एक दो वाक्यों के आदान-प्रदान के बाद ही वह वापस लौट आयी और बोली, “पासपोर्ट देने वाला व्यक्ति अभी कहीं गया है, वह वापस आकर दे देगा।” वह वहाँ से एक टोकन लेकर वापस आ गई थी। लगभग 10 मिनटों के बाद ही हमारे टोकन का नंबर पासपोर्ट वाली खिड़की पर चमकने लगा। हम दोनों उस खिड़की पर पहुँचे तो मेरा पहचान पत्र और पासपोर्ट की रसीद से सत्यापित करने के बाद मेरा पासपोर्ट मुझे वापस कर दिया गया। हमारा काम आधे घंटे से भी कम समय में हो गया था। मुझे ऐसा लग रहा था कि एक बड़ा बोझ मन से निकल गया हो। हमारी यात्रा अब उस पड़ाव पर पहुँच रही थी, जिसमें संभवतः मेरी एन का व्यक्तिगत उत्साह अब मेरे उत्साह से अधिक हो रहा था। मेरे लिए तो अमेरिका और कैनेडा दोनों स्थान एक जैसे थे। जबकि वह अब अपने जन्म स्थान पर जाने के लिए तैयार थी, जहाँ जाने के लिए मेरी एन लम्बे समय से सपने देख रही थी, इसीलिए उसका उत्साह देखते ही बन पड़ रहा था।
आम तौर पर मेरी एन कार में बैठते समय अपनी सीट को पीछे करके अधलेटी अवस्था में बैठी रहती थी, परंतु पार्किंग लाट से निकलने के समय से ही वह सतर्क हो गई थी। मैनहटन से निकलने के लिए हेनरी हडसन पार्कवे ए लेकर हमने जॉर्ज वाशिंगटन पुल पार किया और उत्तरी न्यू जर्सी के रूट 4 को लेकर 17 में जा मिले और फिर वहाँ से 287 और फिर 87 को मिल गये। अब हमें यहाँ से लगातार इसी सड़क पर जाना था। कनाडा में पहुँचने के बाद इसका नाम ऑटो रूट 15 हो जाना था, पर यही सड़क सीधी क्यूबेक सिटी तक जाती है। हमारा रास्ता लगभग साढ़े आठ घंटे का था। इसका मतलब अभी लंबी दूरी तक गाड़ी चलानी थी। मैने मेरी एन से पूछा, “आप कुछ सुनना चाहेंगी या मैं हिन्दी गाने लगा लूँ।“ मेरी एन तरंग में थी, वह बोली, “जैसी तुम्हारी मर्जी।”
रूट 17 से 287 पर मिलने के बाद सड़क लगभग खाली हो गई थी। हमारी कार 75 से 80 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ रही थी। लगभग एक घंटे बाद एकरसता के कारण मुझे नींद आने लगी। मैने मेरी एन से तो इस बारे में कुछ नहीं कहा, परंतु कुछ देर चलने के बाद सड़क की सबसे दायीं ओर वाली पट्टी जिस पर साधारणतः कार चलाना मना होता है,बल्कि सड़क की इस पट्टी का केवल आपात् काल में ही रुकने के लिए किया जाता है। इसे सोल्डर भी कहते हैं। वहाँ कार रोकी। मेरी एन मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देख रही थी। मैने उसे बताया, “मैं ट्रंक में रखे आइस बाक्स से माउण्टेन ड्यू का एक कैन निकालना चाहता हूँ। क्या आपको भी कुछ पीना है?“ उत्तर में उसने बताया कि वह एक जिंजर ऐल ले लेगी। मैं ट्रँक से एक लेज़ का केवल आलू का और एक तोर्तिया चिप्स पैकेट भी निकाल लाया। इस तरह रुकने और चिप्स आदि निकालने की क्रिया ने और उसके बाद माउण्टेन ड्यू की कैफीन ने मुझे आलस और नींद से निवृत्त कर दिया।
लगभग 2 बजे तक हम न्यूयार्क की राजधानी एल्बैनी के पास पहुँच रहे थे। मैने मेरी एन से पूछा, “खाने का क्या करें?” वह बोली, “जहाँ तुम चाहो”, फिर एक दो मिनटों के अन्तराल के बाद फिर से बोली, “किसी अच्छी जगह खाने के लिए रुकते हैं।” जाहिर था कि वह अच्छे मूड में थी। वह जीपीएस में लंच खाने की जगहें ढूँढ़ने लगी। थोड़ी देर के बाद वह बोली, “पनीरा ब्रेड कैसी रहेगी?” पनीरा मेरे लिए भी ठीक थी, वहाँ पर शाकाहारियों के लिए सैंडविच और राजमा का सूप मिल जाता है। मेरी एन ने जीपीएस में पनीरा ब्रेड के दिशा निर्देश लगा दिये। हम लगभग 10 मिनटों में एक मॉल में स्थित पनीरा ब्रेड पहुँच गये। मैने कार पनीरा ब्रेड के सामने बनी हुई पार्किंग में नीले रंग की पट्टियों वाली पहली पार्किंग जो कि विकलाँग कार चालकों के लिए बनी होती है, उसे छोड़ कर उसके बगल वाली पार्किंग में खड़ी कर दी। पनीरा ब्रेड का यह रेस्तराँ, दुकानों की कतार के शुरुआत ही में कोने पर था। काउण्टर पर खड़ी एक भारी-भरकम कॉकेशियन महिला ने हमारा स्वागत किया और हमसे हमारे आर्डर के बारे में पूछा। हम दोनों उसके दीवार पर लगे बोर्ड पर लिखे हुए भोजन की सूची देख रहे थे। मैं उस महिला से बोला, “क्या आप हमें एक मिनट दे सकती हैं?” हमारे पीछे और कोई भी नहीं था, यह देखते हुए उसने उदारता से कहा, “हाँ, कोई जल्दी नहीं है, आप सोच लें कि क्या खाना चाहते हैं।”
मैने निर्णय कर लिया और कहा, “मुझे एक चीज़ पनीनी और बीन्स का सूप दीजिए।“ मैं और रेस्तराँ की आर्डर लेने वाली क्लर्क मेरी एन की ओर उसके आर्डर के लिए देखने लगे। मेरी एन कुछ सेकेंडों के बाद बोली, “मुझे एक चिकन पनीनी और टोमेटो सूप दे दो।” लड़की ने आर्डर को कम्प्यूटर में अंकित किया और मुझे उसका बिल बताया। मैने अपने क्रेडिट कार्ड से उसका बिल चुकता किया और हम उसका दिया हुआ बजर लेकर, एक कोने में लगी दो लोगों वाली सीट और टेबल पर जा बैठे। मेरा ध्यान गया कि रेस्तराँ में कोने की त्रिकोणीय सीट पर एक वृद्ध व्यक्ति काफी पीते हुए अखबार पढ़ रहा था। इसके अतिरिक्त हमारे अलावा और कोई भोजन करने वाला वहाँ नहीं था। असल में दो बजे के लगभग का समय होने के कारण ऐसा स्वाभाविक था। यहाँ अधिकतर लोग सुबह साढ़े ग्यारह बजे से ही लंच करना शुरू कर देते हैं, एक बजे के बाद का लंच तो लेट माना जाता है।
मुश्किल से 2 मिनटों में ही हमारा बजर अपने स्थान पर नाचते हुए लाल रंग की रोशनी चमकाने लगा। मैं उठकर गया और काउण्टर पर रखे हुए दोनों सैंडविच ले आया। सैंडविच मेज पर रखने के बाद दोबारा काउण्टर की तरफ देखा तो हमारे सूप भी इंतजार कर रहे थे। मैं उन्हें भी ले आया। हम दोनों ने चुपचाप अपना भोजन समाप्त किया और अपनी सूप की कटोरी और सैंडविच की प्लेटें तथा दोनों ट्रे कूड़े के स्थान पर रख दीं और बाहर की ओर निकल पड़े। कार की ओर जाते हुए मेरी एन बोली, “ओह व्हॉट द हेक, कभी-कभी तो चिकन खा ही सकती हूँ।” मैं आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा, फिर पूछ ही बैठा, “क्या मतलब?” वह बोली, “तुमको देखकर मैं भी शाकाहारी भोजन करने की कोशिश कर रही थी। परंतु मैं इस स्वाद की इतना अभ्यस्त हूँ, कि अपने आपको रोकना मुश्किल है।”
कार में बैठकर उसकी बात सुनते समय अचानक मुझे अपने माता-पिता की बातचीत याद आ गई जो मैं बचपन में सुना करता था। कार स्टार्ट करके क्यूबेक सिटी का रास्ता पकड़ते हुए मैंने मेरी एन से कहा, “वैसे तो मेरा पूरा परिवार शाकाहारी है परंतु मैं उनमें से भी चुनकर ही भोजन किया करता था। मेरी माँ मुझे अलग-अलग प्रकार के व्यंजन खिलाने की कोशिश करती क्योंकि वह मेरा पालन पोषण इस तरह से करना चाहती थी कि मेरी स्वाद-ग्रंथि विकसित हो सके और किसी भी स्थिति में भोजन मेरे लिए समस्या का कारण न बने। परंतु जब भी पिताजी उस समय वहाँ होते, तो लगभग हमेशा उन दोनों के बीच विवाद हो जाता।
मेरे पिताजी हमेशा कहते, “हर व्यक्ति की स्वाद-ग्रंथि उसकी नितांत अपनी है। हम सभी एक विशेष किस्म के स्वाद का ज्ञान लेकर पैदा हुए हैं, इसीलिए अपने आप में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग किस्म के भोजन स्वतः पसंद आते हैं, इसके लिए उन्हें कुछ करना नहीं होता। जीवन में अनुभव और ज्ञान से आप अपनी भोजन की रुचि में परिवर्तन ला सकते हैं, परंतु यह एक क्रमवार प्रक्रिया है, जिसके लिए सबसे पहले आपकी बुद्धि और उसके बाद मन कटिबद्ध होने चाहिए। एक बार बुद्धि ने मन को राजी कर लिया तब उसके बाद तो आप कुछ भी खा सकते हैं। आपकी बुद्धि संभवतः शाकाहारी भोजन को अच्छा मान रही है, परंतु आपके मन ने उसे स्वीकार नहीं किया है, साथ ही शरीर को अभी इसका अभ्यास नहीं है। जब तक मन नहीं स्वीकारता है, तब तक कुछ नहीं हो पायेगा। बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि मन इतना अधिक विद्रोह कर दे कि जो कुछ बुद्धि या तुम्हारे लिए अच्छा है, उसके विपरीत प्रेरणा दे कर तुम्हें बिलकुल ही गलत दिशा में भेज दे। इसलिए पहले मन को वहाँ पहुँचाओ, जहाँ आप जो कुछ भी करना चाहते हो, उसके लिए मन स्वयं कारण ढूँढ़ने लगे। एक बार जब आप उस अवस्था में पहुँच गये, तब आप देखोगे कि जो कुछ भी आप करोगे उसे आप सहर्ष करोगे और फिर ऐसी परेशानी नहीं होगी।“
मेरी सारी बात को मेरी एन चुपचाप सुनती रही। लगता है कि वह सोच में पड़ गई थी। कुछ समय बाद वह बोली, “तुम्हारी बात तार्किक तो है, पर करना इतना आसान नहीं है।” मैंने सहमति में सिर हिलाया और बोला, “हाँ, यह बात सही है कि भोजन के लिए मन को साधना इतना आसान नहीं है, पर यह भी निश्चित ही है कि, इसके अलावा और कोई स्थायी तरीका नहीं है।”
मैं कार चलाते हुए सड़क पर ध्यान रखने में व्यस्त था। अपनी ही धुन में कार चलाते हुए थोड़ी देर बाद जब मेरा ध्यान गया तो मेरी एन की गर्दन लुढ़की हुई थी और वह झपकी ले रही थी। मैं कुछ देर तो चुपचाप कार चलाता रहा, फिर मैने हिन्दी गाने लगा लिए और उन्हें सुनते हुए मैं सड़क पर अपना ध्यान बनाए रहा। लगभग दो घंटे की ड्राइविंग के बाद, लंच में खाये हुए भोजन को पचाने के कारण मुझे अत्यधिक आलस आने लगा था और एकरसता को तोड़ने के लिए चाय या काफी पीने की तीव्र इच्छा हो रही थी। मैने ग्लेन्स फाल्स के क्षेत्र में कार राजमार्ग से शहर के अंदर की ओर मोड़ी और एक गैस स्टेशन पर जाकर रुका। कार में गैस भरी, अपने आपको निवृत्त किया और फिर काफी ली। जब मैं कार की ओर वापस आया तो मेरी एन भी कार से निकलती दिखाई दी। मैंने उससे पूछा, “क्या आप काफी पीना चाहती हैं?”, परंतु उसने स्पष्ट मना कर दिया। मैं मेरी एन के वापस आने का इंतजार करने लगा।
वापस आते ही मेरी एन ने पूछा, “यह कौन सा शहर है?” मैने उसे ग्लेन्स फाल्स का नाम बताया। हम कार में सवार होकर पुनः निकल पड़े। कार चलने के दो-तीन मिनट बाद ही मेरी एन फिर से सो गई। कार चलती रही, और हिन्दी गानों की धीमी आवाज मेरा मनोरंजन करती रही। कठिनाई से 10 मिनट बाद ही अचानक मेरी एन ने मेरी ओर देखा और पूछा, "तुम क्या पी रहे हो?" मैने उसे बताया कि मैं "रेगुलर कॉफी पी रहा हूँ, पर इसमें दूध और शक्कर मिलाई हुई है। क्या आपको भी कॉफी चाहिए थी?" मैंने कॉफी लेने के समय उससे पूछा था, परंतु शायद अब उसकी भी कॉफी पीने की इच्छा हो गई थी। परंतु प्रत्यक्ष में वह बोली,  "कोई बात नहीं, रहने दो। कुछ क्षणों बाद अचानक मेरे मुँह से निकल ही गया "अगर चाहें तो आप कप के ढक्कन को हटाकर थोड़ी चख सकती हैं।"। उसने एक क्षण सोचा और फिर मेरे हाथ से काफी ले ली। कप का ढक्कन हटाया और मेरा सुझाव मानकर एक चुस्की ली। दो-तीन घूँट लेने के बाद वह बोली, "कॉफी तो अच्छी है। कैसे बनायी?" मैने अपने कंधे उचकाये। "कैसे बनायी? जो काफी उसने दी थी उसमें दो हॉफ एन्ड हॉफ के छोटे कप डाले और चार पाउच शक्कर, बस! उसने फिर कहा, "अच्छी बनी है।" कुछ देर के बाद जब मेरा ध्यान उस पर गया तो वह अभी भी कॉफी पी रही थी। मैं समझ गया कि अब मुझे यह कॉफी नहीं मिलने वाली थी। मैंने सोचा कोई बात नहीं, मेरी नींद जा चुकी थी और चूँकि वह भी जाग गई थी, इसलिए अब नींद भगाने के लिए कॉफी की कोई जरूरत नहीं थी। हम लगभग एक-से डेढ़ घंटे में अमेरिका छोड़कर कैनेडा में प्रवेश करने वाले थे। मेरी जानकारी के अनुसार कैनेडा में गैस महँगी थी और मैंने पहले से ही सोच रखा था कि अमेरिका छोड़ने के पहले कार की टंकी पूरी भरवा लूँगा।
प्लैट्सबर्ग शहर में रुक कर मैने पुनः कार में गैस भरवायी और हम कैनेडा की ओर चल पड़े। पिछले एक घंटे से धीरे-धीरे मेरा अहसास बढ़ता जा रहा था कि अब कारें और भी कम दिख रहीं थी। हालाँकि सड़क अभी भी कभी 3 लेन और कभी 2 लेन की बनी रहती थी। जिस समय हम कैनेडा और अमेरिका की सीमारेखा पर पहुँचे, उस समय शाम का लगभग 7 बज रहा था। सीमा रेखा पर टोल बूथ की तरह निकास के लिए 4 बूथ बने हुए थे। सड़क के दूसरी ओर इसी तरह अमेरिका में वापस आने के लिए कारों के आगमन के टोल बूथ थे। 6 या 7 कारों के बाद हमारी बारी आने पर कैनेडा के सीमा रेखा निंयत्रण अधिकारी ने मेरा और मेरी एन का पासपोर्ट लिया और उसमें अंकित जानकारी देखने लगा।
मेरे एन के कागजात देखने के बाद अचानक उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई और वह बोला, “तो आप अपने गृह देश वापस आ रही हैं, वह भी इतने समय बाद! आपका स्वागत है।“ फिर मुझसे पूछने लगा, “आप यहाँ पर किसी मित्र के घर रुकेंगे अथवा होटल में?” इसके उत्तर में मेरी एन ने फ्राँसीसी भाषा में कुछ कहा। संभवतः उसने कोई प्रश्न भी पूछा, जिसके उत्तर में अधिकारी ने हमारे कागजातों में कुछ देखा और उसके प्रश्न का उत्तर दिया। उसका उत्तर सुनने के बाद मेरी एन ने कई लम्बे वाक्यों में अधिकारी से कुछ कहा। अधिकारी उसकी पूरी बात सुनने के बाद अपने कम्प्यूटर में कुछ देखता रहा। तत्पश्चात् अपने स्थान से उठकर कमरे में बैठे एक और व्यक्ति से उसने कुछ बात की। फिर वापस अपनी खिड़की पर आया और मेरी एन की ओर देखकर उसने सहमति में सिर हिलाया और अपने कम्प्यूटर में कुछ अंकित करने के बाद “बॉन वोयाज़” कहते हुए हमारे पासपोर्ट वापस लौटा दिये और यातायात रोकने वाला बैरियर हटाकर हमें जाने का निर्देश किया। मैं टोल बूथ से कार कैनेडा में अंदर ले गया, परंतु लगभग एक मील चलाने के बाद कार को सड़क के किनारे रोक कर मैं मेरी एन की तरफ घूमा।
मैंने मेरी एन से पूछा, “आपने उसे क्या बताया था कि हम कहाँ रुक रहे हैं? आपने उससे क्या पूछा था? मुझे तो चिंता लगने लगी थी कि लगता है मेरे कागज़ातों में कुछ कमी रह गई है।” मेरी एन के चेहरे पर उस बिल्ली जैसे भाव थे जो कि अभी-अभी मलाई खाकर हटी हो। वह अपने आप पर गर्व करती हुई बोली, “मैंने उसे बताया कि हम क्यूबेक में हॉलीडे इन होटल में रुकने वाले हैं, पर मैं अपने ब्बाय फ्रेण्ड को अपनी एक आण्ट से भी मिलाने ले जा रही हूँ। ऐसा इसलिए जरूरी है ताकि वे मेरी माँ को तुम्हारे बारे में मना सकें। उसके बाद मैंने उसे यह भी बताया कि मैं तुम्हें कैनेडा दिखाना चाहती हूँ, इसलिए क्यूबेक सिटी, माँट्रियाल, टोरेण्टो और न्यागरा फाल्स भी जाना चाहती हूँ।“
मैने कुछ आश्चर्य चकित होकर उससे पूछा, “अच्छा, मुझे नहीं मालूम था कि आपके कोई रिश्तेदार भी वहाँ रहते हैं?” वह बोली, “मेरी माँ की बड़ी बहन भी वहीं रहती हैं, जहाँ तक मुझे मालूम है वह एक विधवा हैं और उनका लड़का माँट्रियाल में रहता है।“
मैंने मेरी एन से फिर पूछा, “फिर आगे क्या हुआ? ऐसा लग रहा था कि उस अधिकारी ने अपने सहयोगी से भी इस बारे में कुछ बात की थी।” मेरी उत्सुकता का आनन्द लेती हुई वह बोली, “वह तो मैंने उससे पूछा था कि यदि सुरेश को कैनेडा की नागरिकता लेनी हो तब क्या करना होगा?“ मैं चौंक पड़ा। लेकिन मुझे कैनेडा की नागरिकता का क्या करना है। वह तिरछी मुस्कान के साथ बोली, “हाँ, वह तो ठीक है, पर भविष्य के बारे में कौन जानता है।” इस बीच मेरी उत्सुकता यह बात जानने में थी कि मैं कितने समय कैनेडा में रुक सकता हूँ। दूतावास के अधिकारी ने वीसा दिया था, परंतु यहाँ चेक पोस्ट वाला अधिकारी कुछ भी कर सकता था। मैंने पासपोर्ट पर एक्सिट की स्टैम्प देखकर मालूम करना चाहा कि मुझे कितने दिन की अनुमति मिली है। पर अफसोस! पासपोर्ट पर जो कुछ भी लिखा था वह फ्रांसीसी भाषा में था।
मैंने फिर मेरी एन से पूछा, “तो अब मुझे कितने दिन कैनेडा में रहने की अनुमति मिली है?” वह मुस्कराते हुए बोली, “अब तुम कैनेडा में छह माह तक रुक सकते हो”। यह सुनकर मुझे बहुत सान्त्वना हुई। तभी मेरी एन बोली, “वह अधिकारी बता रहा था कि वह चाहता तो तुम्हें एक सप्ताह का वीसा भी दे सकता था।“ मैंने उससे पूछा, “वह कैसे?” वह बोली, “अमेरिका, कैनेडा और मेक्सिको में एक आपसी अनुबन्ध है, जिसके कारण यदि आपके पास अमेरिका का वैधानिक वीसा हो तो ये देश ऑन अराइवल बीसा दे देते हैं।” मैं हतप्रभ रह गया! इस दुनिया में एक ही काम को करने के कितने रास्ते हैं!
कैनेडा की सीमा रेखा आने से कुछ पहले ही मेरी एन सक्रिय हो गई थी और अब आटो रूट 15 पर चलते हुए सड़क के दोनों ओर के दृश्य को दिलचस्पी से देख रही थी। यहाँ के अधिकतर निशान फ्राँसीसी भाषा में थे। कहीं-कहीं अंग्रेजी में भी बोर्ड लगे थे। दूरी और गति सीमा के निर्देश भी किलोमीटरों में ही थे। हम लोग काफी देर से कार चलाने के कारण अपने पैर सीधे करना चाहते थे और अब मेरी एन भी फिर से कॉफी पीने के लिए उत्सुक थी। इस इच्छा से हमने अपने रास्ते पर आगे आने वाले कॉफी शाप “टिम होर्टमैन” का पता देखा और कुछ समय बाद कार हाइवे छोड़कर निकास पर बढ़ा दी। मेरी एन अब बिलकुल बच्चों की तरह उत्साहित हो रही थी। अमेरिका में राजमार्गो में प्रवेश करने के लिए अधिकतर गोल घुमावदार सड़क बनी होती है जो कि लगभग जलेबी जैसा आकार बनाती हुई एक छोटी सड़क से लगभग वृत्त बनाती हुई निकलती है और फिर पूरे 360 डिग्री का कोण बनाती हुई ऊपर बने राजमार्ग पर मिल जाती है। इसी तर्ज पर आजकल दिल्ली में भी कुछ फ्लाई ओवर बने हैं। अमेरिका में राजमार्ग को मिलाने वाली सड़क को रैंप के नाम से जाना जाता है। मैं जबसे यहाँ पर रह रहा हूँ, अमेरिका के विशाल क्षेत्रफल की बार-बार झलक मुझे इन रैंप वाली सड़कों से मिलती है, क्योंकि कभी-कभी ये सड़कें लगभग आधा से पौन किलोमीटर तक की लंबाई ले लेती हैं। मैं अमेरिका की रैम्पों की लंबाई पर आश्चर्य करता ही रहता हूँ, परंतु जब कैनेडा में राजमार्ग से बाहर निकला तो वहाँ पाया कि रैम्प की लंबाई और भी अधिक दिख रही थी। स्पष्ट दिख रहा था कि यहाँ के लोगों को जमीन की कोई कमी नहीं है। इसीलिए सब-कुछ विस्तार में फैला कर बनाया गया है। यह अलग बात है कि हम जिस क्षेत्र में घूम रहे हैं वह कनाडा के औसत घनत्व से अधिक घना है। परंतु फिर भी आबादी मुझे अमेरिका की अपेक्षाकृत कम ही दिख रही थी।
कॉफी शाप में कॉफी लेते हुए मेरी एन अपनी मातृभाषा में बड़े मजे से वहाँ दुकान चलाने वाली दो लड़कियों से बात कर हाल-चाल लेने लगी। राजमार्ग से कुछ हटकर बने इस कॉफी शाप के पास ही एक गैस स्टेशन और सबवे भी था। कॉफी और पानी पीने के कारण मुझे अपने को हल्का भी करना था, इसलिए मैं उस काम में व्यस्त हो गया। वापस आया तो मेरी एन कॉफी लेकर मेरा इंतजार कर रही थी। हम दोनों वापस कार में आ बैठे और क्यूबैक की और चल पड़े। हम माँट्रियाल से बाहर ही बाहर निकले जा रहे थे। यहां से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर क्यूबैक था, जहाँ हम लगभग दो घंटे में पहुँचने की आशा कर रहे थे। आटो रूट 15 से आगे बढ़ते हुए हमने आटो रूट 20 पकड़ लिया और दो लेन वाली सड़क पर हल्के यातायात में आगे बढ़ने लगे।
आटो रूट 20 माँट्रियाल और क्यूबैक के बीच में लगभग सारे रास्ते, आने और जाने दोनों तरफ दो-दो पट्टियों से बनी हुई सड़क है। सड़क के दोनों ओर लगभग 50 मीटर पीछे हट कर आने और जाने वाले दोनों ही तरफ इस राजमार्ग के दायीं ओर एक आने वाली और एक लौटने वाली (वन वे) दो पट्टियों की सड़क बनी हुई थी, रास्तें में बनी हुई फैक्ट्रियाँ, शो रूम, वेयर हाउस इन्ही अंदरूनी सड़कों पर बने थे। राजमार्ग तो केवल लम्बी दूरी की यात्रा करने वालों के लिए था। स्थानीय लोगों के लिए राजमार्ग के एक से दूसरी तरफ जाने के लिए कहीं राजमार्ग के नीचे से और कहीं ऊपर पुल के द्वारा सड़कें आती जाती थीं। आमतौर पर पूरे अमेरिका में भी ऐसा ही है। पर जहाँ कहीं भी अब तक मैने यात्रा की थी, डाउनटाउन जैसी स्थानों को छोड़ दें तो राजमार्ग के दोनों और पेडों या दीवारों की ऐसी आड़ होती है कि स्थानीय यातायात आमतौर पर देखने को ही नहीं मिलता है, पर यहाँ कैनेडा में इस राजमार्ग पर तो सब कुछ सपाट मैदान पर दूर-दूर तक दिख रहा था। कैनेडा का विस्तार यहीं से अनुभव होने लगा था। सब कुछ बहुत फैला-फैला। पहले-पहल जब मैं भारत से आया था तो भारत के बनिस्बत मुझे यूनिवर्सिटी के आस-पास ही सब कुछ बहुत फैला-फैला लगता था। माँट्रियाल के बाहर से निकलते हुए वहाँ कुछ घनी जनसंख्या का आभास हुआ था, परंतु वह भी बहुत थोड़ी देर ही रहा था। अच्छी खासी बनी हुई और साफ सुथरी सड़कें देखकर और विशेषकर यदि उन सड़कों पर बहुत कम कारें आ जा रही हों,  तो कुछ विचित्र सा अहसास होता है,  ऐसा दृश्य हमारे देश में तो केवल तभी दिखता है जब कर्फ्यू लगा हो!
लगभग 9 बजे के आस-पास हमने क्यूबेक सिटी के बाहरी क्षेत्र में प्रवेश किया। यहाँ से फिर सब कुछ अमेरिका की घनी बस्तियों जैसा लगने लगा। आस-पास के मकान सड़कें, लगभग एक जैसे ही लगते है, फर्क सिर्फ दिशार्निदेशों और दुकानों आदि पर लिखी फ्राँसीसी भाषा का है। हम जीपीएस के निर्देशों का अनुसरण करते हुए हालीडे इन की तरफ जा रहे थे। हम दोनों को ही अब तक तेज भूख लग रही थी। मैंने मेरी एन से कहा, “एक बार होटल में पहुँच गये तो पुनः निकलने का मन नहीं होगा। क्यों न रास्ते में ही कुछ खा लें।” मेरी एन इस बात से पूर्णतया सहमत थी।
उसने रास्ते में पड़ने वाले एक सबवे के दिशानिर्देश जीपीएस में लगा दिये और कुछ ही देर में हम सबवे पहुँचे। यह दुकान भी बिलकुल बंद ही हो रही थी। वहाँ पर खड़ी लड़की से मैने अंग्रेजी में आर्डर दिया तो वह मेरा मुँह देखने लगी। उसने जो कुछ कहा, वह मेरी समझ में नहीं आया, मुझे कुछ क्षणों बाद ही यह समझ में आ पाया कि एक तो मैं अंग्रेजी में बोल रहा था, उस पर मेरी एक्सेंट (उच्चारण की शैली) भी भारतीय थी, इसलिए वह मेरी बात पूरी समझ नहीं पाई थी। तब तक मेरी एन भी यह बात समझ गई थी, उसने प्राकृतिक अभ्यास से फ्राँसीसी में बोलते हुए उसे हमारा आर्डर दिया। मैं झेंपता हुआ सा एक ओर खड़ा रहा। सम्भवतः लगभग एक मिनट हुआ होगा कि अचानक मेरे मस्तिष्क का वह हिस्सा जो कि साधारण रूप से सक्रिय नहीं रहता है, जिसके कार्यकलाप को अंग्रेजी में “बैकग्राउण्ड प्रासेसिंग” भी कहते हैं, उसने अपना विश्लेषण करके मुझे यह बताया कि हमारे लिए सैंडविच बनाने वाली लड़की ने “वे” जिसका मतलब फ्रेंच में “हाँ” होता है, कहा था। मैं अपनी इस खोज से पहले तो बहुत प्रसन्न हुआ, फिर थोड़ी देर बाद पुनः यह समझ आने पर कि मुझे फ्राँसीसी भाषा में “हाँ” को समझने में ही इतनी देर लग गई थी, तब आगे तो कुछ भी समझना बहुत कठिन होने वाला था। कनाडा में प्रवेश करने के बाद से वहाँ के निवासियों से यह मेरा दूसरी बार संपर्क हुआ था। इससे पहले रूट 20 के हाइवे पर “टिम हॉर्टमेन” में कॉफी देने वाली लड़कियों से बात हुई थी, जो कि स्वाभवतः मैने अंग्रेजी में की थी और उन्होंने भी साधारण रूप से मुझे अंग्रेजी में ही उत्तर दिया था, तब मुझे ऐसा नहीं लगा था कि मैं अधिकांशतः फ्रेंच भाषा बोलने वाले देश में हूँ।
मैंने वैसे भी यहाँ के बारे में अभी तक यही सुन रखा था कि कनाडा के लोग न केवल अंग्रेजी समझते हैं, बल्कि आसानी से बोलते भी हैं। पर संभवतः रात के इस समय एक स्थानीय सबवे की दुकान पर काम करने वाली लड़की भी अंग्रेजी भाषा के प्रयोग में निपुण होगी, ऐसी आशा करना मेरी तरफ से भी ज्यादती थी। इधर चूँकि वह लड़की दूकान बंद करने के लिए भोजन की सामग्री समेटने लगी थी और इसी कारण सब्जियाँ कम मात्रा में और कुम्हलाई-सी लग रहीं थीं और अब समाप्त प्राय ही थीं, इसलिए उस बची हुई सामग्री का उपयोग कर उसने जो सैंडविच बनाकर दिया उसकी ब्रेड ढीली, ठंडी और कुछ गीली सी थी। सब्जियाँ भी कुम्हलाईं हुई थी, इन सब कारणों से जो सैंडविच हमने खाया, वह बस काम चलाने लायक था। पर अब सोचने का समय नहीं था। अमेरिका के लोग आमतौर पर “ठंडा सैंडविच” खाते हैं, शायद योरोप के लोग भी वैसा ही खाना खाते हैं, इसलिए पता नहीं मेरी एन को कैसा लगा था। उसके चेहरे से तो ऐसा नहीं लगा कि उसे कोई विशेष परेशानी हुई हो! हाँ मैने अवश्य अनमने होकर खाया। हमारे निकलते ही मैंने देखा कि उस लड़की ने काउण्टर के पीछे से आकर सबसे पहले “ओपन” के निशान वाली लाइट को बंद कर दिया और दूकान के मुख्य दरवाजे को भी बंद कर दिया। हम वहाँ से बाहर निकलकर कार में आ बैठे और वहाँ से होटल की ओर चल पड़े। हमारा होटल मुश्किल से 1 किलोमीटर की दूरी पर था और हम दो-तीन मिनटों में होटल पहुँच गये।
रिसेप्शन पर एक लगभग 30-35 वर्ष की आयु के व्यक्ति ने हमारा स्वागत किया। उसने हल्का सलेटी रंग का सूट पहना हुआ था। मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि यहाँ पर सर्विसेज वाले लोग अधिकतर सूट या कोट पहने रहते हैं। अभी तक मैंने सुरक्षा गार्ड, होटल रिसेप्शन, सेल्समैन, विवाह की पार्टी और माफिया के लोगों को ही अधिकांश तौर पर सूट में देखा है। रिसेप्शनिष्ट ने मेरा नाम पूछ कर हमारे आरक्षण को सुनिश्चित किया और होटल में हमारा स्वागत किया। उसने कमरे में जाने के लिए हमें कार्ड-की दी। उसे धन्यवाद देकर हम अपने कमरे की ओर चल पड़े। लिफ्ट में अंदर जाकर मैंने अपने की कार्ड के पैकेट को लिखे कमरे के नंबर पर ध्यान दिया तो यह पाया कि हमें चौथी मंजिल पर जाना था और हमारे कमरे का नंबर 402 था। इस होटल का यह हिस्सा भी नया बना हुआ लग रहा था। दीवारों और दरवाजों से नये पेंट की महक आ रही थी। कमरे में अंदर जाने पर हमने पाया कि बायीं तरफ स्नानघर था और कमरा सामने खुल रहा था। सामने दो क्वीन साइज के बैड पड़े हुए थे और उनके सामने एक बड़ी डेस्कनुमा अलमारी के ऊपर एक पतला “एल सी डी” टीवी रखा हुआ था। दोनों बिस्तरों पर चमकदार सफेद चादर और हर बिस्तर पर चार तकिए सिरहाने की तरफ टिके हुए थे।
मेरी एन रेस्टरूम का इस्तेमाल करने चली गई तथा मैंने खिड़की के पास रखी आरामदायक सोफे वाली कुर्सी पर अपने आपको स्थापित कर दिया। कुछ देर बाद मेरी एन बाथरूम से अपने लगभग गहरे लाल और किनारों पर भूरे बालों को तौलिए से पोंछती हुई निकली। मैं सोफे से उठ खड़ा हुआ और बाथरूम की ओर स्नान करने के लिए बढ़ चला। मुझे जाते हुए देखकर मेरी एन ने मेरा रास्ता रोक लिया और आँखों में आँखे डालकर बोली, “अधिक देर मत लगाना।”
बाथरूम से निकलकर सफेद बाथरोब पहने हुए जब मैं बाहर निकला तो देखा कि मेरी एन तकिए पर सिर टिका कर मजे से सामने रखे टीवी पर “हाऊ आई मेट योर मदर” का धारावाहिक देख रही थी। मुझे देखते ही उसने टीवी बंद कर दिया और बोली, “मैं बहुत खुश हूँ, यहाँ आने का कार्यक्रम बनाने के लिए शुक्रिया।” मैंने उत्तर में उससे कहा, “हाँ, मेरे लिए भी यह कार्यक्रम अभी तक अच्छा रहा है और आपके साथ ने इसका मजा और बढ़ा दिया है।” मैं अपने मन में सोच रहा था, “क्या जीवन है? कभी मन अच्छा होता है, कभी मन उदास! यह अनुभव केवल अच्छा है? या कि स्मरणीय?”
अब चूँकि इस कमरे में दो बिस्तर थे, इसलिए मैं सोच नहीं पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए, बाथरूम जाने से पहले मेरी एन ने जो कुछ कहा था, क्या अभी भी वह वही सोच रही थी, अथवा अब तक उसका ध्यान बँट चुका था? मेरी एन के चेहरे के भाव मुझे ठीक से समझ में नहीं आ रहे थे। एक क्षण के लिए मेरे मन की आँखों में नीता की तस्वीर उभरी, परंतु मैने सिर झटक कर अपना ध्यान वर्तमान में केँद्रित किया।
दोनों बिस्तरों के बीच जाकर मैं जैसे ही मेरी एन के सामने वाले बिस्तर पर बैठा मेरी एन ने अपनी बाहें लिहाफ से निकालकर मुझे अपनी ओर खींच लिया। मेरा ध्यान गया कि उसके शरीर पर अब वह बाथरोब नहीं था। वह धीमी आवाज में कुछ कह रही थी। मैंने सुनकर समझने की कोशिश की, परंतु असफल रहा क्योंकि फ्राँसीसी भाषा में बोल रही थी।


शुक्रवार


सुबह पाँच बजे के आस-पास मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि मेरी एन का बायाँ गाल मेरे सीने पर और गर्दन मेरे दायें कंधे के ऊपर असहज अवस्था में थी लेकिन वह बेसुध होकर सो रही थी। पहले तो मैंने उसे हिलाने से परहेज किया पर थोड़ी देर में उठने के लिए बेचैन होने के कारण धीरे-धीरे कर उसे खिसका दिया और बाथरूम की तरफ बढ़ा। बिस्तर के पैरवाले हिस्से से उठता हुआ मैं निकल ही रहा था कि पीछे से मेरी एन की आवाज सुनाई दी। “तुम नियम के बहुत पक्के हो, आलस नहीं आता?” मैंने मुड़कर उसे देखा और कहा, “क्यों नहीं, पर आज का दिन तो आपके लिए भी विशेष है!” वह अधलेटी होकर बोली, “हाँ, वो तो है, मैं अत्यंत उत्साहित हूँ।” मैं नित्यकर्म से निवृत्त होकर जिम में व्यायाम करने चला गया। जिम से लौटा तो मेरी एन कमरे में नहीं थी। स्नानाआदि करने के बाद जब मैने पाया कि मेरी एन कमरे में नहीं है तो बाहर जाने के उद्देश्य से मैने अपनी सेल में ली हुई पोलो की सफेद आधार पर क्षैतिज रेखाओं वाली टी शर्ट पहनी और नीली जीन्स डाल कर रेस्तराँ पहुँचा। मेरी एन वहाँ कहीं नहीं थी। मेरी नजरें उसे देख ही रहीं थी कि मैने उसे रिसेप्शन पर खड़े हुए पाया। वह रिसेप्शनिष्ट से वार्तालाप में डूबी हुई थी। मैं डायनिंग हाल से निकलता हुआ रिसेप्शन की ओर बढ़ रहा था तभी मेरी एन की दृष्टि मुझ पर पड़ी, वह तुंरत रिसेप्शनिष्ट को कुछ कह कर मेरी ओर बढ़ी।

उसको अपनी ओर आता देखकर मैं रुक गया। कुछ ही क्षणों में वह मेरे पास पहुंच गई और हम दोनों नाश्ते की मेजों की ओर बढ़ गये। वहाँ पर पहले से एक मेज पर एक जोड़ा और एक दूसरी मेज पर एक परिवार नाश्ता कर रहा थे। मैने हमेशा की तरह अपने लिए पहले सीरियल और फिर ब्रेड के साथ मक्खन लिया। हम दोनों नाश्ते की मेज पर बैठ गये। मेरी एन अपने लिए फ्रूट सलाड और उबले हुए आलू के साथ-साथ कुछ अधपके और कुछ देर तक उबाले गये अंडे भी लाई थी। हम दोनों ने चुपचाप टीवी में चल रहे समाचार देखते हुए नाश्ता खत्म किया, आज हम दोनों ही अपने-अपने ख्यालों में खोए हुए थे। मेरी एन अपनी मौसी और अपने परिवार के अन्य लोगों से मिलने के लिए व्यग्र थी। मैं आज क्यूबेक सिटी में किन स्थलों का भ्रमण कर सकता हूँ, इस उधेड़बुन में लगा हुआ था। मैंने चलते-चलते अपने लिए दो केले और एक सेब के साथ एक गिलास संतरे का जूस ले लिया। होटल से निकलकर हमने मेरी एन की आण्ट के घर का पता जीपीएस में अंकित किया और बढ़ चले। सुबह के यातायात में कारों की भीड़ होने के कारण लगभग हर सिग्नल पर कुछ समय लगा। रू ला केपेलिएर के पास बने उसकी मौसी के घर हम लगभग 9:30 बजे सुबह पहुँच पाये।
मेरा विचार था कि मेरी एन को उसकी मौसी के घर छोड़ कर मैं वहाँ से तुरंत वापस निकल जाऊँगा। मुझे क्यूबेक घूमना था और उसने अपने रिश्तेदारों से मुलाकात करनी थी। उनकी इस मुलाकात में मेरा कोई काम नहीं था! मैंने मेरी एन से रास्ते में पूछा था, “मैं तो क्यूबेक सिटी और आस-पास घूमने जाना चाहता हूँ, क्या आपको भी चलना है? क्या आपको उसके लिए समय मिलेगा?”  वह बहुत वर्षों के बाद अपने रिश्तेदारों से मिलने जा रही थी, ऐसी स्थिति में उसका स्वागत कैसा होगा! उनकी दिनचर्या कैसी है? इन सब बातों के बारे में उसे कोई अंदाजा नहीं है, इन कारणों को बताकर वह बोली, “मैं उन लोगों से बात करने के बाद में जैसी स्थिति होगी इस बारे में टेक्सट कर दूँगी।”
मैं उसकी बात से सहमत था। मुझे तो किसी भी अवस्था में कुछ फर्क नहीं पड़ता था। अगर वह उनके साथ अधिक समय बिताना चाहे तो मैं क्यूबेक सिटी में अपनी इच्छानुसार इधर-उधर घूम सकता था। बताए हुए पते पर पहुँच कर मैने कार को ड्रॉइववे में रोका। कार के दायें दरवाजे से निकल कर मेरी एन ने घर की घंटी बजाई तो कुछ क्षणों के बाद एक मध्यमवर्गीय महिला ने दरवाजा खोला। मेरी एन के मुँह से पहले के कुछ शब्द निकलते ही उसने आगे बढ़कर बड़ी गर्मजोशी से मेरी एन को गले लगाया। तभी उनका ध्यान कार और मुझपर गया। टूटी-फूटी अंग्रेजी में और इशारे में उन्होंने मुझे अंदर बुलाया। मैं औपचारिकता में झिझकता हुआ आगे बढ़ा, फिर मेरी एन से बोला, “क्यों न तुम लोग समय बिताओ, तब तक मैं निकलता हूँ, बाद में टेक्सट कर देना तो मैं फिर आकर तुम्हें ले जाउँगा।” हम लोग अभी उनके घर के दरवाजे के सामने ही खड़े थे। मेरी एन ने उनसे फ्रेंच में कुछ कहा और फिर मेरी तरफ मुँह करके बोली, “ठीक है फिर बाद में बात करते हैं।” मैं वापस मुड़ कर कार में बैठा और कार पीछे ले जाकर सड़क पर ले आया और जिस रास्ते से आया था उसी पर पर वापिस चल पड़ा। पहले चौराहे पर पहुँचते ही मेरी इच्छा हुई कि यहाँ आस-पास घूम कर देखना चाहिए कि यहाँ के लोग और उनके घर कैसे हैं! थोड़ी देर तक आस-पास की सड़कों पर कार घुमाने से यही अंदाजा लगा कि अमेरिका के जीवन स्तर से देखा जाये तो यह एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवारों की रिहायशी जगह है।
मार्ग में पड़ने वाली दुकानें, सड़कें और कारें आदि देखने पर सब कुछ लगभग अमेरिका जैसा ही लग रहा था। उसी प्रकार की चौड़ी सड़कें और सड़क से पीछे हटकर बनी दुकाने और आफिस आदि। अधिकतर कारें मध्यम आयु की दिख रहीं थी और उनमें से गिनती की ही लग्जरी कारें थीं। लगभग वैसा ही जैसा कि मैं अपने शहर में देखता हूँ। हाँ, न्यूयार्क, वाशिंगटन, बॉस्टन और न्यू जर्सी आदि में सड़कों पर दिखने वाली लग्जरी कारों की संख्या निश्चित रूप से यहाँ से अधिक थी। उस लिहाज से यहाँ की अर्थव्यवस्था अमेरिका के महानगरों से कमजोर लग रही थी। शायद माँट्रियाल यहाँ से अधिक धनी नगर हो?
मेरे पास अभी तक कनाडा के कोई भी सिक्के और नोट नहीं थे और अमेरिका के अनुभव के अनुसार पार्किंग आदि के लिए कुछ सिक्के तो लगने ही थे। इस उद्देश्य से मैं एक चौराहे पर बने अलट्रामार के गैस स्टेशन पर रुका और वहीं से जाकर अपने लिए एक लीटर पानी की बोतल ली, साथ ही 10 अमेरिकन डालर देकर वापसी में सिक्के ले लिए। हालाँकि कनाडा का एक डॉलर अमेरिका के 93 सेंट के बराबर होता है, परंतु काउण्टर एजेंट ने मुझे अमेरिकन और कनाडियन डॉलर को बराबर मानते हुए ही पैसे वापस किये। इस तरह से देखा जाये तो यदि मैने यहाँ पर सौ डॉलर खर्च किये तो 7 डालर का नुकसान होने वाला था। छात्र जीवन में पैसों की हमेशा किल्लत होने के कारण मेरा ध्यान हमेशा एक-एक पैसे पर जाता है, जबकि नौकरी करते समय भारत में मैं इन बातों पर ध्यान देने की इतनी आवश्यकता कभी अनुभव नहीं होती थी!
शातो फ्रान्टनॉक (फ्रान्टनॉक किला) और उसके आस-पास की जगहें देखने के उद्देश्य से लगभग 15 मिनट की ड्राइव करके मैं क्यूबेक के मुख्य सैलानी स्थलों के पास पहुँचा। थोड़ी देर तक कार इधर-उधर घुमाने के बाद मुझे वहाँ से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर एक खाली पार्किग दिखी। सड़कों पर लगे निर्देशों के अनुसार वहाँ केवल दो घंटे पार्किग की अनुमति थी। पार्किंग की समय सीमा के अनुसार मुझे निर्धारित समय से पहले ही वापस आकर पार्किग मीटर में और अधिक पैसा बढ़ाना होगा। इस समय घड़ी 10 बजा रही थी, इसलिए 11:45 का अलार्म अपने सेल फोन में सेट करना ठीक रहेगा, ताकि मुझे कम-से-कम 15 मिनट कार तक वापिस आने के लिए बचे रहें, यह सोचते हुए मैंने अपने फोन में अलार्म लगा लिया।
सबसे पहले मैं पार्लियामेंट बिल्डिंग पहुँचा। यह आजकल क्यूबेक प्रांत का राजकीय भवन कहलाता है। यह भवन काफी पुराना होने के बावजूद आज भी उपयोग में आता है, इसीलिए हमारे राष्ट्रपति भवन की तरह बहुत अच्छी हालत में है। भवन के अंदर जाने के लिए राजकीय अधिकार पत्र की आवश्यकता होती है, परंतु साधारण सैलानियों के लिए तो बाहर भी काफी जानकारी दिख जाती है। इसके सामने सौन्दर्य बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी सजावट की गई है। कई प्रकार के फूले वाले पौधे लगे हैं। भवन के दोनों ओर क्यूबेक प्रांत के शहीदों और इतिहास के प्रमुख और प्रसिद्ध लोगों की जानकारी पत्थरों पर लिखी हुई है। थोड़ी देर तक वहाँ पर उपलब्ध जो भी जानकारी अंग्रेजी में थी उसको पढ़ते हुए मैं वहाँ के वातावरण का आनन्द लेता रहा। इस भवन के सामने एक गोल चौराहे पर पत्थर के शिल्पों पर कई व्यक्ति कुछ विशिष्ठ मुद्राओं में खड़े हुए हैं। इनमें कुछ महिलाएँ भी हैं। इनकी वेशभूषा मध्यकालीन योरोप की तरह की है। मैं योरोप कभी नहीं गया हूँ, पर चित्रों आदि से जो भी जानकारी उपलब्ध है, उसका ध्यान करने से ऐसा लगता है कि जैसे मैं अमेरिका या कनाडा में न होकर योरोप के किसी शहर में होंऊँ।
किले का इतिहास – क्यूबेक सिटी सम्भवतः उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का एकमात्र जीवित दुर्ग के द्वारा सुरक्षित नगर है। लगभग साढ़े चार किलोमीटर की सुरक्षा दीवार से घिरा हुआ क्षेत्र सुदृढ़ दुर्ग कहलाता है। लगभग तीन सौ साल पहले जब नये फ्रांस के नाम से इस नगर की स्थापना हुई थी, तब इस दुर्ग का सामरिक महत्व था, जिसका उद्देश्य तत्कालीन रेड इंडियन, योरोप के अन्य देशों के आक्रमणों से इस क्षेत्र की सुरक्षा मुख्य ध्येय हुआ करता था। समय के साथ इस दीवार और दुर्ग की मरम्मत होती रही है, इसलिए इसकी हालत अब भी बहुत अच्छी है। यह अलग बात कि आजकल के मिसाइल युग में सुरक्षा के मायने और उसके प्रकार बदल गये हैं।
ला सिटाडेल दु क्यूबेक की सुरक्षा सितारे के व्यूह में बनी हुई है जो कि वाबॉन लोगों की रणनीति का ही एक हिस्सा है। इस सितारा रूपी व्यूह का आयोजन इस तरह किया गया है कि जिससे नदी की ओर से किये जाने वाले आक्रमणों से दुर्ग और जनता की रक्षा की जा सके। स्पष्ट है कि पुराने समय में आक्रमण की आशंका थल की बजाय जल मार्ग से अधिक ही रही होगी। योरोप के युद्धपोत समुद्र के रास्ते होते हुए इस नदी से होते हुए भारी सेना लेकर आक्रमण कर सकते होंगे। आक्रमणकारी इस मार्ग से नगर पर कब्जा करके अन्य क्षेत्रों में फैल सकते थे। यह अलग बात है कि अमेरिका के नार्थ कैरोलाइना से विभिन्न मार्गों पर कार से रास्ता तय करने के बाद और विशेषकर उत्तरी न्यूयार्क, मेन और कनाडा के क्यूबेक प्रांत में आज भी जनसंख्या का घनत्व देखकर और नगरों, सड़कों और दूर-दूर फैली बस्तियों को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि उन दिनों जब यह क्षेत्र जंगलों से भरा हुआ होगा, किसी भी सेना का इतना लंबा मार्ग तय कर दक्षिण से इस प्रकार आ पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य ही रहा होगा!
अचानक मेरे सेल फोन का अलार्म बजने लगा जिसे चुप करवाने के बाद मैं तुरंत ही वापस अपनी कार की तरफ तेजी से चल पड़ा, क्योंकि मैं समय से पहले ही पार्किंग मीटर तक पहुँच जाना चाहता था। चलते-चलते मैं काफी दूर आ गया था। इन सभी स्थानों पर अधिकतर जानकारी फाँसीसी भाषा में था, इसलिए मुझे मनपसन्द रूप में सबकुछ समझने में कठिनाई आ रही थी और मैं मेरी एन का साथ न होने की कमी को बेतरह महसूस करने लगा। मैंने सोचा कि बाद में जब वह मिलेगी तब मैं उससे अपनी जानकारी के संशय को मिटा सकूँगा। यह सोचते हुए मुझे मेरी एन की याद आई तो एक क्षण के लिए मेरे मन में यह विचार आया कि पता नहीं उसे कैसा अनुभव हो रहा होगा? दरवाजे पर जिस तरह स्वागत हुआ था, उससे तो यही लगता था कि वह भी अपने और अपने परिवार के बारे में पुरानी स्मृतियों का आदान-प्रदान कर रही होगी। इस बात की पुष्टि इससे भी हो रही थी कि अभी तक उसका एक भी टेक्स्ट नहीं आया था। अब तक मुझे कुछ भूख भी लगने लगी थी। कार के पार्किंग मीटर को उसका भोजन देकर मैं पुराने क्यूबेक सिटी की ओर चल पड़ा। वहाँ पर भोजन की कई प्रकार की सुविधाएँ मिल सकती थीं और मुझे कुछ अपने लायक भोजन मिल सकता था।
पुराने सिटी की पतली और तंग सड़कों पर टहलते हुए मुझे काफी देर हो गई। सबसे पहले मैं एक-के-बाद एक करके तीन स्थानीय भोजनालयों मे जाकर भोजन करने की इच्छा से गया और पता करने की कोशिश की। रेस्तराँ के स्वागत पर खड़े व्यक्तियों से बात करते समय यह समझ में आया कि वहाँ पर अधिकांश लोग केवल फ्रेंच में बात कर सकते थे और प्रयास करने के बाद भी मैं उन्हें ठीक से नहीं समझा पाया कि मैं शाकाहारी भोजन करना चाहता हूँ। उन्हें वेजीटेरियन शब्द से यह तो समझ में आता था कि मैं शाकाहारी भोजन चाहता हूँ, परंतु वह समझ जाने के बाद भी वे मुझसे कुछ आगे पूछते थे जो कि मुझे समझ में नहीं आता था। एक समस्या यह भी है कि अमेरिका तक में कई लोग शाकाहार के भारतीय संस्करण को ठीक से नहीं समझते हैं, क्योंकि इनमें से कुछ लोग तो मछलियों को भी शाकाहार ही समझते हैं, जैसा कि भारत के भी कई इलाकों में होता है। मुझे अक्सर इस बात से आश्चर्य होता है कि साधारण दृष्टि से देखने पर तो ऐसा लगता है यहाँ कई प्रकार के शाकाहारी व्यञ्जन उपलब्ध है, पर सुनिश्चित नहीं हो पाता कि इनमें कुछ माँसाहार तो नहीं मिला है। बाजार में नाना प्रकार के खाद्य पदार्थ दिख रहे थे, परंतु मेरे लिए निश्चित करना मुश्किल था कि वास्तव में क्या शाकाहारी है! इस दुनिया में नज़र अक्सर धोखा खा जाती है। शायद गाँधी जी के जैन धर्म से प्रभावित विचार, जो कि हमारे पूर्वजों को इतने पसंद आये कि उन्होंने न केवल अपने जीवन में धारण किये बल्कि आने वाली पीढ़ी का जीवन भी कुछ ऐसा प्रभावित किया कि हममें से कुछ लोग अभी भी अपने को बदल नहीं पाते हैं। यह अलग बात है कि आज के नवयुवक और युवतियाँ अधिक प्रयोगवादी हैं। जैसा कि मैने पहले नीता के संबंध में भी लिखा है, अब महानगरों में जीवन मूल्य बदल रहे हैं और आजकल के समय की महिलाएँ अपने भविष्य को अलग प्रकार से संवारना चाहती हैं और उसमें भोजन और सेक्स दोनों में ही विशेष प्रतिबंध उन्हें स्वीकार नहीं हैं।
कई अन्य स्थानों पर पूछने के बाद संतोषजनक जानकारी न मिलने पर मुझे पुनः अपने पुराने साथी सबवे का सहारा लेना पड़ा। कम-से-कम सबवे में मैं इशारे से अपनी रुचि की सब्जियाँ मिलाकर खा सकता हूँ। अब तक कार के मीटर का पेट भरने का समय फिर आने वाला था। फ्रेंच भाषा न समझ पाने के कारण मेरे अनुभव का मजा किरकिरा हो रहा था। भाषा की समस्या को अनुभव करते हुए मैंने सोचा कि क्यों न यहाँ के पार्क नेश्योनाल डि ला जॉक कार्तिए चला जाये। वहाँ पर ट्रेकिंग की जा सकती थी, इसके अतिरिक्त दक्षिण में नार्थ कैरोलाइना से ड्रॉइव करते हुए मैं बहुत उत्तर दिशा में आ गया था, आगे अपने जीवन में संभवतः क्यूबेक सिटी और इसके आस-पास की जगह से अधिक उत्तर दिशा के किसी क्षेत्र में, कम-से-कम इस धरती पर तो शायद ही कभी जा पाऊँ, इसलिये यहाँ की वनस्पति अपने प्राकृतिक रूप में देखने की लालसा भी थी। इस काम के लिए किसी भाषा को जानने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पेन्सिलवानिया में हुए अनुभव के कारण मेरी एन को अपने साथ दोबारा ट्रेकिंग पर ले जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। कम-से-कम निकट भविष्य में तो नहीं!
यह विचार मस्तिष्क में आते ही मैंने तुरंत पार्क जाने का फैसला किया। यदि मेरी एन के साथ यहाँ आना संभव हुआ तब तो ठीक है, अन्यथा यहाँ पर बहुत कुछ देख लिया था, अब कनाडा की प्राकृतिक छटा देखने देखने का समय आ गया था। यदि समय से वापस आ सका तो मान्टमोरेन्सी प्रपात जो कि यहाँ से अधिक दूर नहीं था वहाँ भी शाम तक जाने की कोशिश कर सकता हूँ।
कार लेकर मैं शीघ्रता से वहाँ से निकलकर चल पड़ा। जीपीएस के निर्देशानुसार मैं शहर की सड़कों से निकल कर उत्तर पश्चिम की ओर चला। कुछ दूर आगे जाकर आटो रूट 73 ही 175 बन जाता है, इसलिए पहले 73 और फिर 175 पर चलते हुए मैं लगभग 60 किमी और 55 मिनट की ड्रॉइव के बाद पार्क के गेट पर पहुँच गया। आटो रूट के दायीं ओर निकास लेकर राजमार्ग के नीचे से निकलकर यू टर्न करता हुआ पार्क के गेट तक पहुँचा था। यहाँ पर मार्ग निर्देश स्पष्ट नहीं थे, इसलिए पहले तो मुझे लगा शायद मैं गलत जगह आ पहुँचा हूँ। परंतु कुछ आगे जाने पर पुनः निर्देश दिखने लगे और मुझे निश्चित हुआ कि मैं सही जगह पर ही आया हूँ। पार्किग में गाड़ी खड़ी कर और अपनी पानी की बोतल में वहाँ पर लगे सार्वजनिक पीने के पानी को भर कर मैं लगभग लपकता हुआ ट्रेकिंग ट्रेल्स की ओर चला।
कैनेडा का क्यूबेक एक बड़ा प्रांत है। हम लोग क्यूबेक दक्षिणी भाग में थे। यह पार्क क्यूबेक सिटी के उत्तर में है। यहाँ के आगे फैले विस्तार का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस प्रांत का क्षेत्रफल 16.7 लाख वर्ग किमी है जो कि संपूर्ण भारत के क्षेत्रफल 32 लाख वर्ग किमी के आधे से थोड़ा अधिक है। उत्तरी ध्रुव की दिशा में मैंने इससे अधिक उत्तर के किसी स्थान की यात्रा पहली बार की थी।
एक यायावर के रूप में अपनी स्थिति को समझते हुए मैंने किंचित गर्व का अनुभव किया। इसी गर्व से भरा हुआ मैं पार्क के सूचना केन्द्र में पहुँचा। पार्क में लगे मानचित्र के अनुसार यहाँ पर चार रास्ते थे। ट्रेकिंग के सुझावों में से 2.5 मील, 4.5 मील लगभग 8 मील और 18 मील के चुनाव किये जा सकते थे। मैंने सोचा, यहाँ तक आने के बाद ढाई या साढ़े चार मील का क्षेत्र यदि पैरों पर चलकर देखा क्या बड़ा काम किया। इसलिए मन ही मन निर्णय किया कि 8 मील का चक्कर ही सही रहेगा। यदि 18 मील का चक्कर लगाने जाता तो समय अधिक लग सकता था। सेल फोन का सिग्नल चूँकि पार्क के स्वागत केन्द्र में ही पर बहुत अच्छा नहीं था, इसलिए जंगल में जाने के बाद सिग्नल मिलना और भी मुश्किल ही हो जायेगा। चूँकि अभी तक मेरी एन का कोई मेसेज नहीं आया था, इसलिए मैं भी अब लगभग 2-3 घंटो के लिए तो गायब हो ही सकता था।
ट्रेकिंग का उत्साह मुझे स्मरण दिला रहा था कि 4 मील की ट्रेक तो केवल शरीर को वार्म अप करने के लिए थी। आनन्द तो 8 से 15 मील की ट्रेकिंग में ही आने वाला था। यही सब सोचते हुए मैं 8 मील वाले ट्रेक पर चल पड़ा। मुश्किल से 5 मिनटों के अंतराल में ही मैं गहरे जंगल में पहुँच चुका था, और जैसा कि मैने पहले ही सोचा था सेल फोन में कोई सिग्नल नहीं था और फोन सिग्नल के लिए लगातार सर्च कर रहा था। इस तरह बार-बार अपने सिग्नल को खोजने में सेल फोन को लगातार बैटरी का प्रयोग करना पड़ता है, इसलिए बैटरी की बचत करने के उद्देश्य से मैंने फोन को एयरप्लेन मोड में डाल दिया। एक बार तो हैडफोन पर गाने सुनने की इच्छा हुई परंतु फिर डेलावेयर वाटरगैप के भालू की याद आते ही मैंने उसका इरादा त्याग दिया। यहाँ पर लोमड़ी, हिरण और मूस (नीलगाय) पाये जाने की जानकारी पार्क के संकेतों पर लिखी थी। परंतु जंगल तो जंगल ही होता है।
ट्रेकिंग करने का मुझे नया-नया शौक लगा है, पर अभी तक सबसे अधिक आनन्द इस बात का आता है कि इसके द्वारा मैं किसी भी क्षेत्र की वनस्पति और पृथ्वी की भौगोलिक जानकारी अपने साधारण स्वरूप में देख पाता हूँ। उतार चढ़ाव के पहाड़ी रास्तों और कभी-कभी नदी के किनारे चलते हुए यहाँ की प्रकृति देखने में बड़ा आनन्द आ रहा था। एक मोड़ पर मुड़ने के बाद अचानक मुझे लगा कि मुझे कोई देख रहा है। इधर-उधर देखने पर कोई भी नहीं दिखा, पर फिर भी मेरा मन नहीं माना। मैं जानता था कि मुझे कोई देख तो रहा है, पर वह कौन है, यह नहीं पता लग पा रहा था। दस पंद्रह कदम चलने के बाद यह अहसास इतना गंभीर हो गया कि मुझे रुकना ही पड़ा। मैं बिलकुल साँस रोक कर खड़ा हो गया और बहुत धीरे-धीरे इधर-उधर देखने लगा। मेरे सामने ऊपर पहाड़ी पर कोई नहीं था। दायें, बायें और पीछे भी कोई नहीं था। मुझे याद आया कि रास्ते में भी केवल एक सज्जन ही आते हुए मिले थे। असहज होता हुआ मैं सोचने लगा कि कौन है? तभी मेरा ध्यान पानी में झुकी हुई एक वृक्ष की टहिनियों के बीच से होता हुआ पानी में बिलकुल स्थिर खड़े एक मूस पर गया। वह मुझे एकटक देख रहा था। उससे निगाहें मिलते ही मुझे समझ में आ गया कि इस मूस (जंगली भैसे) की दृष्टि ही मेरा पीछा कर रही थी। चूँकि इस जंगल में इतने अधिक लोग नहीं आते हैं, इसलिए मनुष्य की पदचाप मूस का ध्यान आकृष्ट करने के लिए काफी थी। एक बार यह सुनिश्चित कर लेने के बाद कि हमें देखने वाला मूस ही था और अन्य कोई जानवर नहीं, मैं थोड़ा सहज हो गया था।
आगे चलते हुए मैं पहाड़ पर चढ़ता रहा। कच्चे रास्ते के किनारे-किनारे कई जगहों पर पुराने और मृत पेड़ों को गिराकर उन्हें इस तरह डाल दिया गया था कि वे सीधे मार्ग तो अवरुद्ध नहीं करते थे, परंतु मार्ग में इस तरह पड़े थे कि ऐसा अनुभव होता था कि वे सहज रूप में अपनी आयु पूरी करके गिर पड़े हैं। चूँकि ट्रेकिंग के लगभग अधिकांश रास्ते पर बजरी पड़ी हुई थी, इससे यह स्पष्ट था कि यह सारा क्षेत्र मनुष्यों की देख-रेख में हैं। पार्क रेंजर अथवा पार्क के कर्मचारियों ने जानबूझ कर इन्हें रास्ते में इस तरह पड़े रहने दिया है कि आने वाले लोगों को प्रकृति का अधिकतम प्राकृतिक अनुभव हो सके। यह नेशनल पार्क “नेश्योनाल पार्क डि ला जॉक कार्तिए” लगभग 250 वर्ग मील में फैला हुआ प्राकृतिक क्षेत्र है। अब मैं पहाड़ से उतरते हुए जिस स्थान से देख रहा था, वहाँ से कई छोटी पर्वत श्रंखलाएँ दूर-दूर तक दिख रहीं थीं। इन श्रंखलाओं का विस्तार सामान्य दृष्टि से बीसियों मील तक दिखता था। मुझे यह सोचकर रोमाञ्च हो आया कि इस समय संभवतः इस पूरे जंगली क्षेत्र में मैं मुश्किल से कुछ गिने-चुने मनुष्यों में से हूँ। पार्क का टूरिस्ट सेंटर अब तक मुझसे पाँच मील दूर होना चाहिए, और वहाँ पर भी इस काम-काज वाले दिन केवल मुझे दो लोग ही दिखे थे। आज शुक्रवार का दिन था इसलिए कुछ कम ही लोग पार्क आदि में घूमने आए होंगे, परंतु ऐसा केवल कैनेडा में ही संभव था कि आप धरती पर ऐसी जगह हों जहाँ पचासों मील तक केवल एक-दो मनुष्य ही हों।
लगभग तीन मील तक धीरे-धीरे चढ़ते रहने के बाद मैं उस पर्वत के शिखर तक पहुँच गया। वहाँ रुक कर उस जंगल में मैं थोड़ी देर तक प्रकृति का निश्छल आनन्द लेता रहा। पहाड़ से नीचे उतरकर घाटी में जाते हुए एक छोटे से टीले पर बैठ गया और जहाँ तक दृष्टि जा सके वहाँ तक प्रकृति की छटा देखता रहा। पाँच-सात मिनट तक दूर-दूर तक देखते रहने के बाद मैं पुनः अपने ट्रैक पर आगे बढ़ चला। बीच-बीच में कभी-कभी पछियों की आवाजें अथवा पत्तों की सरसराहट सुनाई दे जाती थीं, परंतु इसके अतिरिक्त नीरव स्तब्धता थी!
ट्रेल का चक्कर पूरा करता हुआ और प्रकृति का आनन्द लेता हुआ जब तक मैं वापस टूरिस्ट सेंटर पहुँचा तो मेरे सेल फोन की घड़ी पाँच बजकर 40 मिनट दिखा रही थी। मैं वापस चल पड़ा। पार्क से रूट 175 तक आते हुए मेरे सेल फोन में सिग्नल वापस नहीं आया था। अब इस पार्क का फैलाव देख कर और दक्षिण दिशा की ओर जाने वाला रुट 175 जो कि पार्क को बीच से काटता हुए जाता है, उस पर वापस आते हुए मैं यह अनुभव कर सकता था कि प्रकृति का कितना बड़ा हिस्सा अभी भी मानव आबादी से अछूता है। क्यूबेक सिटी से उत्तर की ओर जाते हुए रूट 175 पर चार लेन के हाइवे पर मुझे कारें कभी-कभी ही दिखतीं थीं। यहाँ से यदि उत्तर की दिशा ओर बढ़ा जाये तो आबादी और भी कम होती चली जाती है। कुछ देर तक चलने के बाद मैंने पाया कि फोन में सिग्नल वापस आ गया था। कुछ और समय तक इंतजार करने के बाद भी जब मुझे कोई टेक्सट मेसेज नहीं दिखा तो मैं इस बारे में पूर्णतः आश्वस्त हो गया कि मेरी एन ने मुझसे संपर्क साधने की कोशिश नहीं की थी। जीपीएस में अपने होटल का पता करके सीधे उसी दिशा में चल पड़ा। मेरे क्यूबेक सिटी तक पहुँचते-पहुँचते लगभग पौने सात बज रहा था। सड़कों पर ट्रैफिक बहुत कम दिख रहा था। कल शाम के अनुभव के कारण आज मैं सतर्क था और बासी भोजन नहीं करना चाहता था। शहर में प्रवेश करते ही मैने सबवे ढूँढना आरंभ कर दिया। अपने रास्ते का पहला सबवे देखते ही मैने गाड़ी रोकी और उसमें दाखिल हुआ। संभवतः शहर के अंदर होने के कारण इस सबवे में जो नवयुवक खड़ा था वह द्विभाषी था और उसे मुझे अपना आर्डर समझाने में कोई परेशानी नहीं हुई। गर्म ब्रेड पर सब्जी डालकर बने हुए सैंडविच को मैने स्वाद लेकर खाया।
सैंडविच खत्म होने के बाद मैं रेस्तराँ से बाहर निकल कर कार में बैठने ही वाला था कि मेरा ध्यान बगल के लिक्कर स्टोर पर गया। यदि मेरी एन इस समय मेरे साथ होती तो वह निश्चित रुप से वाइन ही लेना पसन्द करती, पर आज दिन भर की थकान मुझे निश्चय ही ठीक से सोने नहीं देगी, यह सोचकर अपने को शिथिल करने के उद्देश्य से मैंने 6 छोटी बोतलों वाला ब्लू मून बियर का एक गुच्छा ले लिया। मेरी एन की तरफ से अभी तक कोई समाचार नहीं था। होटल पहुँचने के समय तक शाम का आठ बज रहा था, परंतु धूप अभी तक छायी हुई थी। यहाँ अंधेरा आजकल 9 बजे के करीब ही होता था। दिन भर मन के मुताबिक घूमने के बाद मैं अब शाम का समय सोफे पर बियर की चुस्कियों और टीवी के कार्यक्रमों के साथ बिताना चाहता था।
मुझे अच्छी तरह मालूम था कि वापिस चैपल हिल पहुँचने के बाद थीसिस को पूरा करने और अपने लिए नौकरी खोजने की उलझनों के कारण मेरा बहुत सा समय और ऊर्जा उनमें लगने वाली थी, इसीलिए इस समय छुट्टियों का पूरा आनन्द लेना चाहता था। आज आठ दिनों के बाद यह पहली शाम थी कि जब मैं एकान्त का आनन्द ले रहा था। मेरी एन अच्छे स्वभाव की है, परंतु फिर भी हमारे बीच बहुत कुछ औपचारिक था। मैं उसे बहुत अधिक नहीं जानता और वास्तविकता में जानना भी नहीं चाहता!
होटल के कमरे में पहुँचकर मैने बियर फ्रिज में रख दीं और नीचे उतरकर स्विमिंग पूल की आराम कुर्सी पर अधलेटा होकर ठंडी हवा का आनन्द लेता रहा। कुछ समय पैर सीधे करने के उपरांत ऊपर अपने कमरे में गया और स्नान करने के बाद बियर को बोतल खोल उसकी चुस्कियाँ लेते हुए टीवी के कार्यक्रमों में अपनी पसन्द का कोई प्रोग्राम ढूँढ़ता रहा। टीवी के सारे चैनल दो तीन बार देखने के बाद भी पसन्द का कोई प्रोग्राम न दिखा तो मैने टीवी बंद कर दिया। अपने लैपटाप पर पुरानी ग़जलें सुनने के लिए प्रोग्राम खोल ही रहा था कि अपनी थीसिस से संबंधित कुछ पीडीएफ फाइलों पर अचानक मेरी दृष्टि पड़ी और मैंने बरबस उन्हें ही खोलना शुरु कर दिया। कुछ देर तक उन्हें देखते हुए अपने थीसिस के विषय ढूँढ़ने में कुछ ऐसा रमा कि समय का ध्यान ही नहीं रहा।
अचानक मेरे सेल फोन पर मेसेज आने की आवाज आई तो मैरा ध्यान फोन की स्क्रीन पर पड़ा। मेरी एन का मेसेज चमक रहा था। “अफसोस, दिन भर आंटी से बातों में ऐसा बीता कि मैं तुम्हे मेसेज नहीं भेज पाई!” मैने उसे जवाबी टेक्सट भेजा, “कोई बात नहीं।” मैने उससे आगे आने वाले कल के प्रोग्राम के बारे में पूछा, तो उसका टेक्सट आया, “मैं कल लंच के समय अपनी आण्टी के साथ बाहर खाने के लिए जाने वाली हूँ, तुम भी चलो तो अच्छा रहेगा।” उसका यह प्रस्ताव पढ़कर मैं सोच में पड़ गया। यदि मैं इन लोगों के साथ लंच करने जाता हूँ, तब कल के बाकी प्रोग्राम का क्या होगा? मेरा विचार तो कल क्यूबेक सिटी के उत्तर पश्चिम के स्थानों को देखने का था। यदि संभव हुआ तो शहर के बाहर जाकर यहाँ के गाँवों को भी देखूँगा। क्यूबेक सिटी तो अभी तक अमेरिका के शहरों जैसा ही लगा था, पर क्या यहाँ के गाँव भी वैसे ही थे? समस्या यह थी कि मेरी एन की आण्टी का घर दक्षिण पूर्व में था और मैं उसके बिलकुल विपरीत दिशा में जाने की सोच रहा था। मैने मेरी एन को अपना प्रोग्राम बताया और उससे पूछा, “अगर शाम को मिलने आऊँ तो कैसा रहेगा?” कुछ देर बाद उसका टेक्सट आया, “ठीक है।”
फोन बंद करते समय मेरा ध्यान गया कि अब तक रात के बारह पैंतालीस हो रहे थे। मैं लगभग पिछले तीन-चार घण्टों से अपनी थीसिस के लिए किस समस्या पर काम करूँगा, इस बारे में खोज-बीन में लगा था। मुझे इस बात पर सुखद आश्चर्य भी हुआ मैने इस बारे में चार विकल्पों (डाटा एनॉलिसेस संबंधी अत्याधुनिक क्षेत्र) में से दो चुन लिए थे। मैं आशा करता था कि मेरे गाइड इन दोनों विकल्पों में से एक पर अनुमति दे देंगे। आज मुझे अहसास हुआ कि वाकई भगवान जब देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है! अचानक मुझे थकान लगने लगी। मेरी पहली बियर का एक घूँट ही लिया, तब से बोतल वैसी ही पड़ी थी, उसकी सारी कार्बन डाइ आक्साइड निकल चुकी थी और वह अब किसी काम की नहीं रही थी, लेकिन अब आगे बियर की कोई आवश्यकता भी नहीं थी!


शनिवार


सुबह आठ बजे जब मैने गाड़ी पार्किंग से निकालकर रूट 73 पर आगे बढ़ाई तो मेरा सामना अचानक बहुत सारी गाड़ियों की भीड़ से हुआ। यातायात बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। इस समय सड़क पर इतनी कारें देखकर यह भी भरा-पूरा शहर लग रहा था, अन्यथा कल शाम तो बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ पर बहुत ही कम लोग रहते हों! मैं जीपीएस में दूसरा कोई रास्ता देखने लगा तो अचानक विचार आया कि मुझे तो यहाँ की छोटी सड़कें और गलियां तथा लोगों की बस्ती देखनी है, इस तरह बड़ी सड़कों पर जाऊँगा तो वह सब कुछ नहीं दिखेगा।

जीपीएस को मैने उत्तर पश्चिम मे सेंट कैथरीन नामक जगह पर जाने का निर्देश दिया था, इसलिए जीपीएस मुझे राजमार्गों (फ्री वे) का प्रयोग करते हुए वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँचाने का मार्ग दिखा रहा था। मैंने जीपीएस की सेटिंग में देखकर राजमार्गों का प्रयोग करने वाले बटन का चयन हटा दिया। अब जीपीएस मुझे जो रास्ता दिख रहा था वह ल फ्लू सेंट लारेन नदी के किनारे जा रहा था। मैं थोड़ी देर तक यों ही सड़कों पर गाड़ी चलाता रहा फिर सेंट आगस्टीन डे मार से रूट 367 में शामिल हो गया।
शहर की सड़कों पर यातायात के निर्देशों का पालन करते हुए भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र से निकलने में लगभग आधा घण्टा लग गया। मैं शहर से बाहर निकल आया हूँ इस बात का अनुभव मुझे सड़क पर दिखने वाली अन्य कारों की संख्या से होने लगा। शीघ्र ही मैं एक दो लेन वाली सड़क पर था जिस पर केवल एक सफेद पट्टी बनी हुई थी जो आने और जाने वाले ट्रैफिक को अलग-अलग कर रही थी। अब सड़क के किनारे जो इक्का-दुक्का घर दिख रहे थे, वे सभी पुराने और सड़क से बहुत पीछे हटकर बने हुए थे। शहर के बाहर गाँवों की दुनिया आरंभ हो चुकी थी। दूर-दूर तक फैली जगह और नगण्य आबादी।  
कुछ दूर आगे जाने पर यह भी अनुभव होने लगा कि सड़क पुरानी थी इसलिए शहरों जैसा चिकनापन नहीं था, हालाँकि उनकी हालत ठीक ही थी। मैं लगभग एक घंटे तक इसी प्रकार गाड़ी चलाता रहा। सड़क के दोनों ओर अधिकतर जमीन पर खेत बने हुए थे। जिनमें विभिन्न प्रकार की खेती की जा रही थी। कभी-कभी उत्तरी अमेरिका की सहज वनस्पति भी दिखाई देती थी, जहाँ लोगों ने खेत नहीं बनाए थे। दो-चार घरों की कोई बस्ती दिखती और फिर सब कुछ खाली दिखने लगता। मैं जानता था कि चूँकि रास्ता मुझे जीपीएस ने दिखाया था, इसलिए मैं अभी भी अधिकांश प्रयोग होने वाले रास्तों पर ही था।
सेंट कैथरीन के पास मुझे थोड़ी बस्ती दिखी। यह कोई छोटा कस्बा था। शमीन डे हेत्रेस नामक एक सड़क का बोर्ड दिखा तो अचानक मेरा ध्यान गया कि अब जमीन कुछ पथरीली दिख रही थी। सेंट रेमांद और उसके भी आगे तक अब जमीन अधिकांश पथरीली थी। हरियाली अब भी दिख रही थी, परंतु अब पत्ते और भी छोटे और गठे हुए थे। अधिकांश वनस्पति टुंड्रा प्रकार की होती जा रही थी। यहाँ पर लोग और बस्ती और भी कम दिखते थे। आश्चर्य तो यह होता है कि इतने कम लोगों के होते हुए भी यहाँ लोग इतनी दूर-दूर तक बियाबान में कुछ थोड़े से घर बना कर रहते थे। रिवेय अ पिये से मैं वापस लौट पड़ा।
मार्ग में घरों के आस-पास अनाज रखने के टीन के गोदाम भी दिखते रहते थे। जो कि कभी-कभी घरों के एक तरफ और कभी हटकर उनसे काफी पीछे बने हुए थे। कुछ देर बाद सब कुछ एक जैसा दिखने लगा। इतनी विस्तृत जगह परंतु प्राकृतिक वनस्पति और जीवन बिलकुल सूना-सूना सा। शहर में रहने वाले हम सभी लोग गंभीर व्यस्तता में इधर से उधर आते-जाते हुए काम करते दिखते हैं, परंतु यहाँ सब कुछ धीरे-धीरे और इत्मीनान से होता दिखता है। अगर हैलीकाप्टर से रोज यहाँ से शहर जाकर वापस आते जाते हुए तीन चार सौ फीट की ऊँचाई से नीचे देखा जाये, तभी शहर और गाँव के जीवन की विभिन्नता का सही अनुभव होगा। मैंने कभी भारत में रहते हुए इस बात पर ध्यान नहीं दिया, परंतु अब विचार करता हूँ तो लगता है कि वहाँ का दृश्य भी लगभग ऐसा ही होगा। अंतर यही है कि भारत के शहरों में भीड़ अधिक है, वाहन विविध प्रकार के हैं, लोग गाड़ियाँ एक दूसरे के पीछे चलाने की बजाए मनमाने ढंग से चलाते है और यहाँ पर नियमों के कारण सब एक दूसरे के पीछे चलते हैं, इसलिए कुछ व्यवस्थित लगता है। परंतु चूँकि कनाडा का क्षेत्रफल भारत से बहुत अधिक है इसलिए क्षेत्र का विस्तार भी बहुत अधिक है, परंतु मुझे व्यक्तिगत तौर पर जो बात सबसे अलग लगी है, वह है, यहाँ के वातावरण में एक अलग किस्म का रूखापन है, जिसका कारण मुख्यतः यहाँ पर नौ महीने पड़ने वाली ठण्ड है। चूँकि लोग कम हैं इसलिए सब एक दूसरे पर चढ़े हुए से तो नहीं लगते है, परंतु जलवायु की तरह लोगों में भी अलग-अलग और अकेले रहने की आदत बन गई है।
सहसा मेरा ध्यान गया कि कार में गैस की सुई लगभग एक चौथाई से भी नीचे दिखा रही थी। यदि तीन-चार गैलन गैस भी थी तो भी मैं आबादी के निकट आसानी से पहुँच सकता था। परंतु कार पुरानी थी और यह कतई आवश्यक नहीं था कि सुई जितना दिखा रही थी उतनी गैस कार में वाकई हो! याद करने पर भी मुझे ठीक से यह याद नहीं आया कि रास्ते में गैस स्टेशन कहाँ दिखे थे। पर अब तो जो होना था वह तो होना ही था। मैंने अपना ध्यान गैस से हटाकर कार के म्यूजिक सिस्टम में बज रहे गानों पर लगाने की कोशिश की। ध्यान फिर भी रह-रह कर टैंक की सुई पर चला जाता था। लगभग 35 किमी तक चलने के बाद मैं सेंट रेमांद पहुँचा। वहाँ पहुँचकर पहले गैस स्टेशन को देखते ही मैने गाड़ी में गैस भराने के लिए गया। यहाँ पर गैस के दाम 2 कैनेडियन डॉलर प्रति लीटर थे, जिसका मतलब हुआ कि लगभग आठ डॉलर प्रति गैलन। गैस के दाम देखकर चिंतित हो गया। अब लग रहा था कि कैनेडा की प्रकृति देखने का कार्यक्रम महँगा पड़ने वाला था।
कैनेडा में आकर गैस भरवाने का यह मेरा पहला अनुभव था। मैं याद करने की कोशिश करने लगा कि क्यूबेक सिटी में गैस का दाम क्या था? गैस के पंप को कार्ड से पैसे देने की कोशिश की तो पाया कि कार्ड स्कैनर बार-बार त्रुटि दिखा कर रुक जाता था, उसके आगे बढ़ता ही नहीं था। शायद गैस खत्म होने की चिंता में मैं हड़बड़ा गया था, इसलिए अब साधारण काम भी मेरे लिए कठिन हो रहे थे। तीन-चार बार भी जब कुछ नहीं हुआ तब मैं बौखलाहट में इधर-उधर देखने लगा। तभी अचानक पंप पर लगी हुई एक सूचना पर मेरा ध्यान गया।
वहाँ लिखा हुआ था। “कृपया अंदर जाकर पैसे दें।“ मैंने गहरी साँस ली और अपने आपको संयत किया। अंदर जाकर वहाँ बैठे क्लर्क से मैंने पूछा,  “क्या पंप पर कार्ड नहीं काम करता है?” उसने एक क्षण मुझे देखा और फिर लड़खड़ाती हुई अंग्रेजी में मेरा कार्ड मुझसे माँगा और देखने के बाद पूछा, “क्या यह कार्ड कैनेडा का है?” उत्तर में मैने उसे बताया, “यह तो अमेरिका का है।” उसने अपना सिर हिलाया और बोला, “इसीलिए।” उसने मुझसे पूछा, “ आपको कितनी गैस लेनी है?” मैंने कहा, “पाँच लीटर”। उसने कार्ड को स्वाइप करने के बाद अपना मास्टर कोड डाला और कार्ड मुझे वापस कर दिया। गैस भरने के बाद कार मीटर देखा तो अब सुई अचानक टैंक पूरा भरा हुआ दिखा रही थी। अब समझ में आया कि मीटर में कुछ गड़बड़ है, पुरानी कार है शायद ठीक से काम न करता हो। लेकिऩ अब समस्या यह खड़ी हो गई कि कार में कब गैस भरवानी है इसका पता कैसे चलेगा? अंत में मैने यही सोचा कि होटल में नेट पर देखकर लगभग अंदाजा लगाना होगा कि गाड़ी कितने मील चली है? यदि यह पता और लग जाये कि यह कार औसत कितने मील प्रति गैलन चलती है तब इन दोनों जानकारियों का प्रयोग करके इस अनिश्चितता से बचा जा सकता है।  
अपने होटल के क्षेत्र में वापस पहुँचने तक लगभग दिन के डेढ़ बज रहे थे। रास्ते में एक पिजेरिया दिखा तो मन में आया कि हो सकता है कि यहाँ मुझे शाकाहारी भोजन में कुछ विविधता मिल सके। कार पार्किंग में लगाते समय मेरा ध्यान पिजेरिया के बगल में ही स्थित एक डेली पर गया। एक क्षण के लिए इन दोनों में मैं किसका चुनाव करूँ, इस दुविधा में पड़ा, परंतु फिर मैंने पहले पिजेरिया में जाने का ही मन बनाया।
‘पिजेरिया ओ पक्वे’ में जाकर देखा तो एक तरफ काउण्टर बना हुआ था जिसके पीछे खड़े हुए व्यक्ति ने मुस्कराकर मेरा स्वागत किया और फ्रेंच में कुछ कहा। मैंने उसे खेद व्यक्त करते हुए अंग्रेजी में कहा कि मैं फ्रेंच नहीं बोल पाता हूँ। उसने सबसे पहले तो अंग्रेजी में कहा, “कोई समस्या नहीं” उसके बाद वह पुनः किसी और भाषा में मुझसे कुछ कह गया। मेरा मस्तिष्क फेंच बोले जाने की संभावना में उलझा हुआ था, इसलिए कुछ क्षणों बाद समझ पाया कि उसने मुझे स्पैनिश में कुछ कहा था।
मैने फिर दोहराया कि मैं स्पैनिश भी नहीं जानता हूँ। चन्द क्षणों के लिए उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव आए, परंतु तुरंत संभलकर उसने मुझसे अंग्रेजी में पूछा कि मैं क्या लूँगा। मैंने उसे बताया कि मैं एक शाकाहारी पिज्जा खाना चाहता हूँ। उसने पिज्जा का आकार, उसमें क्या सब्जियाँ आदि डालनी हैं, यह सब पूछकर मेरा आर्डर रजिस्टर में डाला और पैसे बताए। उसे पैसे दे रहा कि वह मुझसे अचानक बोला,  यदि आप पतली रोटी वाली पिज्जा लें तो आपको अधिक अच्छी लगेगी। मेरे पहले के आर्डर में साधारण तौर पर पिज्जा में प्रयोग होने वाली मोटी रोटी की पिज्जा का ही आदेश था। मुझकी उसकी बात जँची इसलिए उसे मानते हुए मैंने कहा, “ठीक है, आप थिन क्रस्ट वाली पिज्जा बना दीजिए।”
पैसे देकर मैं वहाँ पर पड़ी खाली सीटों में से एक पर बैठने के लिए जाने वाला ही था, कि जाते-जाते  काउण्टर पर खड़े व्यक्ति से बरबस बोल उठा, “कितनी अच्छी बात है कि आप तीन-तीन भाषाएँ जानते हैं!” वह मुस्कराया और बोला, “हाँ, मैं एक छात्र हूँ और यहाँ के एक कॉलेज में पुरातत्व की पढ़ाई कर रहा हूँ।” मैंने भी उसे बताया कि मैं भी एक छात्र हूँ और यूनिवर्सिटी आफ चैपल हिल में मास्टर्स कर रहा हूँ। उसने पूछा, “क्या पढ़ रहे हो?” हम थोड़ी देर आपस में और भी बातें करते, तभी एक महिला अपने दो बच्चों के साथ आई और अपना आर्डर देने के लिए इंतजार करने लगी, यह देखकर मैं एक खाली टेबल की ओर बढ़ गया। मेरा पिज्जा बन कर आया तो काउण्टर पर खड़े व्यक्ति ने मेरे आर्डर का नंबर उद्घोषित किया, मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने मुझे संकेत से बुलाया।  मैंने उसके पास जाकर पिज्जा की प्लेट ली और अपनी सीट पर आकर बैठ गया। पिज्जा वाकई बहुत अच्छा बना था। सब्जियाँ, चीज़ और पतली कुरकुरी रोटी से बनी पिज्जा लज़ीज थी, या शायद अब तक मुझे बहुत तेज भूख लग गई थी।
पिज्जा खाने के बाद मेरी कार क्यूबेक सिटी की सड़कों पर टहलने लगी। रास्ते में जब मुझे फ्लुर डि ल सेंटर कामर्शियाल नाम की एक माल दिखी, तो उसकी पार्किंग में मैने गाड़ी खड़ी कर दी। वहाँ इधर-उधर टहलते हुए मैने अनुभव किया कि कैनेडा के शहरों का जीवन काफी हद तक अमेरिका जैसा ही है, बस अंतर कुछ बातों जैसे भाषा, मीट्रिक सिस्टम आदि में ही है। मैं माल के अंदर गया और पूरी माल का एक चक्कर लगाया। वहाँ एक सैलानी केन्द्र में कुछ फोटो देखकर मुझे पुनः याद आया कि मैं अभी तक मान्ट मोरेन्सी फाल्स नहीं गया हूँ।
मैं तुरंत कार के पास वापस आया और जीपीएस में मान्ट मोरेन्सी फॉल को अंकित किया तो पाया कि फॉल वहाँ से अधिक दूर नहीं था। मैं जल प्रपात की ओर चल दिया। फॉल के आस-पास की जगह पर्यटक स्थल की तरह ही बनी हुई थी। पार्किंग के 10 डॉलर देने के बाद मैं फॉल के पास पहुँचा। वहाँ पर कुछ लोग एक टिकट खिड़की पर टिकट ले रहे थे। मैंने वहाँ जाकर पूछताछ की तो पता लगा कि टिकट केबल कार (पहाड़ों पर तारों के सहारे चढ़ने वाली ट्रॉली) के लिए थे। जो लोग प्रपात के ऊपरी हिस्से पर सीढ़ियों के रास्ते नहीं जाना चाहते हों, वे केबल कार में चढ़कर ऊपर जा सकते थे। प्रपात का पानी बहुत उँचाई से नीचे गिरने के बाद नीचे इक्ठ्ठा होकर धीरे-धीरे फैल रहा था। टिकट लेने की जगह के पास जलधारा में पानी का प्रवाह अधिक तेज नहीं दिख रहा था और एक किनारे पर कुछ लोग पानी में खड़े होकर किल्लोल कर रहे थे।
नदी के दूसरी ओर जाने के लिए एक पुल था और पुल के दूसरी ओर के पहाड़ी हिस्से पर बनी हुई सीढ़ियाँ घूमती हुई प्रपात के दायीं ओर ऊपर तक जा रहीं थीं। मै पुल पार करके सीढ़ियों से चढ़ने लगा। प्रपात की ऊँचाई 85 मीटर की हैं, शुरु में तो चढ़ने की गति तेज रही, परंतु बीच में रुक कर आस-पास के दृश्य देखने के बाद मैं लगभग 20-25 मिनट में ऊपर पहुँच गया। वहाँ पहुँच कर पाया कि प्रपात के जल से लगभग 20-25 मीटर की दूरी पर एक लकड़ी का पुल बनाया गया है, ताकि लोग प्रपात के पानी को समीप से गिरते हुए देख सकें। प्रपात बहुत बड़ा तो नहीं है, पर देखने में अच्छा लगता है। नदी को लकड़ी के पुल से पार करके जब मैं दूसरी तरफ पहुँचा, तो पाया कि, वहाँ भी एक अलग पार्किंग थी और लोग प्रपात की दूसरी दिशा से आकर भी प्रपात के देखने का आनन्द ले रहे थे। कुछ देर तक वहाँ का दृश्य देखते रहने के बाद मैं पुल से होता हुआ सीढ़ियों के रास्ते वापस आ गया।
नीचे आकर प्रपात के जितने अधिक से अधिक समीप जाया जा सकता था गया और पानी में उतरा। कुछ समय ठंडे पानी का आनन्द लेता रहा। यहाँ पर पड़ने वाली ठंड को देखकर मन में विचार आया कि सर्दियों में यह सारा पानी जम जाता होगा। वहीं पर बनी एक छोटी सी दुकान में वहाँ के स्मृति चिह्न देखने पर वहाँ की कुछ पोस्ट कार्ड के आकार के चित्रों में जमे हुए पानी को देखकर मेरी बात की पुष्टि हो गई।
अब तक क्यूबेक सिटी और आस-पास जो कुछ देखना था, लगभग सभी कुछ देख चुका था। मेरी एन मेरे साथ नहीं थी, संभवतः उसकी दिलचस्पी वैसे भी इस समय अपनी मौसी के साथ समय बिताने में अधिक थी।
मेरी एन की आण्टी के घर तक पहुँचते हुए शाम का सात बज रहा था। मैंने घर के दरवाजे के बाहर लगी घण्टी बजाई तो कुछ ही देर में मेरी एन ने दरवाजा खोला। उसके पीछे-पीछे उसकी आण्टी भी आ पहुँचीं। मैने उन्हें अभिवादन किया और हम सभी लोग बाहरी कमरे में पड़े सोफों पर बैठ गये। मेरी एन की आण्टी दुबले पतले शरीर की लगभग पचास वर्ष की महिला लग रहीं थीं। उनके बाल भी मेरी एन की तरह ही लाल रंग के थे। इसलिए मैं ठीक-ठीक उम्र का अंदाजा नहीं लगा पा रहा था। मेरी एन ने मुझे औपचारिक तौर पर अपनी आण्टी से परिचित करवाया। हम थोड़ी देर तक औपचारिकतावश इधर-उधर की बातें करते रहे। मेरी एन ने मुझसे पूछा, “आज तुम कहाँ-कहाँ गये और क्या देखा?” उत्तर में मैंने उसे दिन भर का विवरण बताया। बातचीत बिलकुल सतही तौर पर चल रही थी।
पिछली रात हम दोनों के बीच टेक्सट पर जो बातचीत हुई थी, उसी के हवाले से मैंने उससे पूछा कि खाने के लिए कहाँ पर चलना है? उसने कहा कि हम लोग दिन में लंच करने बाहर गये थे, इसलिए अब बाहर जाने की इच्छा नहीं हो रही है, हमने कुछ घर पर ही बनाया है। मैं चिंता में पड़ गया कहीं माँसाहारी भोजन न हो। मेरे चेहरे के भावों को देखकर मेरी एन ने मुझे सान्तवना दी और बताया कि मैने आण्टी को बता दिया था कि तुम शाकाहारी हो। यह सुनकर मैंने राहत की साँस ली।
मेरी एन की आण्टी ने मेरी एन से कुछ कहा, तो मेरी एन ने उसका मेरे लिए अनुवाद किया। उनका मतलब था, भोजन तैयार है और अब हमें भोजन कर लेना चाहिए। मैंने सहमति में सिर हिलाया। हम लोग घर में भोजन करते समय जूते उतार देते हैं, मेरी एन की आण्टी का घर भी बिलकुल साफ-सुथरा दिख रहा था। इसलिए मैंने स्वभाववश मेरी एन से पूछा, “क्या मैं जूते उतार दूँ?” वह बोली, “जैसी तुम्हारी मर्जी”।
जब भी हम किसी के घर कुछ घण्टों के लिए जाते है तब यह स्वाभाविक है कि घर के अदंर जूते पहने रहना या उतारना मेजबान की सहूलियत के साधारण नियमों पर निर्भर करता है। यहाँ स्थिति विचित्र थी। भोजन घर के अंदर वाले कमरे में परोसा गया था और घर में उपस्थिति मेरी एन और उसकी आण्टी घरेलू चप्पल और मोजे पहने थीं। ऐसी स्थिति में मैं असमंजस में था कि जूते पहने रहूँ या उतार दूँ। बात कोई बड़ी नहीं थी, मैं सोचे बिना न रह सका कितनी और कैसी छोटी-छोटी बातें आदमी को उलझन में डाल देती हैं। अंत में मैने मुख्य दरवाजे के पास बने एक और दरवाजे की ओर देखकर पूछा कि क्या वह कोट क्लॉजेट है? मेरी एन बोली, “हाँ”। मैने वहाँ जाकर अपने जूते उतार दिए। मेरी एन मुझे रास्ता दिखाती हुई अंदर डायनिंग रूम की ओर चल पड़ी।
यह घर केवल एक मंजिल में ही बना हुआ था। डायनिंग रूम बाहरी कमरे के ठीक पीछे वाला कमरा था। मैं डायनिंग टेबल की एक तरफ वाली दो कुर्सियों में से एक पर बैठ गया। तभी आण्टी एक बड़े से कटोरे में कुछ लेकर आयीं। मेरी एन कुछ ब्रेड के टुकड़े लेकर आयी। यह ब्रेड पाव रोटी के आकार की थी। साथ में कुछ आलिव आइल और मक्खन के टुकड़े भी थे। मेरी एन से आण्टी ने कुछ कहा तो उसने पलट कर मुझसे पूछा, “तुम वाइन पियोगे?” मैं कुछ झिझक रहा था कि मेरी एन ने आण्टी से फिर कुछ पूछा। उनके जवाब को सुनकर वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली रेड वाइन तो चलेगी ना? मैं अब तक बिलकुल असमंजस में था। तब तक आण्टी अंदर गईं और एक रेड वाइन की बोतल और तीन ग्लास लेकर आ गईं। इससे आगे उस शाम का हमारे बीच का बाकी का वार्तालाप विचित्र तरीके से हुआ। मुझे फ्रेंच नहीं आती थी और आण्टी को इंग्लिश। भोजन के दौरान लगभग सारे समय हम लोग बातें करते रहे। मेरी एन हमारे बीच दुभाषिए का काम बखूबी करती रही। आण्टी मुझसे मेरे बारे में पूछती रहीं और मैं उनके बारे में।
भोजन खत्म होने तक मुझे आण्टी के कनाडा के जीवन के बारे में कुछ जानकारी मिल चुकी थी और यह भी पता चल चुका था कि मेरी एन आज रात वापस होटल न जाकर यहीं रुकने वाली थी। भोजन खत्म करके अब हम लोग प्लेट और प्यालियाँ सिंक में भिगो कर रख रहे थे कि मेरी एन ने मुझसे कहा, “आण्टी कह रही हैं तुम आज रात यहीं पर रुक जाओ। आण्टी इस घर में अकेली रहती हैं और उन्हें अच्छा लगेगा यदि तुम आज रात यहाँ रुको।” जहाँ तक अपने मित्रों से बातचीत के द्वारा मुझे जो जानकारी है, उससे मुझे यही मालूम था कि अमेरिका में न कोई किसी के घर रुकता है और न ही कोई किसी से अपने घर में रुकने के लिए कहता है। इसलिए मैंने मेरी एन को होटल के कमरे बारे में याद दिलाया और साथ ही यह भी कहा कि यहाँ आण्टी को मेरे कारण बेवजह असुविधा होगी। आण्टी ने सिर हिलाकर कुछ कहा जिसका अर्थ मेरी एन ने बताया, “मुझे कोई समस्या नहीं है, बल्कि अच्छा ही रहेगा।“ मुझे बहुत अटपटा लग रहा था। मेरी एन और उसकी आण्टी से मेरी सारी बातचीत औपचारिक तौर पर चल रही थी और अब रात को यहाँ रुकने का तो कोई भी औचित्य ही नहीं था। विशेषकर मेरे लिए। मैने मेरी एन को समझाने की कोशिश की वह रुक जाये, मैं सुबह आते समय उसका बाकी सामान लेता आऊँगा, तब हम यहीं से निकल जायेंगे। मेरी एन के बातचीत के तरीके से यह अंदाजा लग रहा था कि उसने अभी तक आण्टी को यह नहीं बताया है कि हम पिछले दिनों में कितने घनिष्ट हो चुके हैं। देखा जाये तो उसने न बताकर अच्छा ही किया था। अभी मात्र एक सप्ताह पहले तक हम एक दूसरे को जानते तक नहीं थे। ऐसी परिस्थिति में उसका व्यवहार तार्किक था।
अंत में मेरी एन और उसकी आण्टी के बीच में यही तय हुआ कि मैं उनके लड़के के कमरे में रुकूँगा। मेरा बिलकुल भी मन नहीं था, परंतु भाषा के अवरोध के चलते मैं इस बारे में ठीक से बात नहीं कर पा रहा था। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मेरी एन और उसकी आण्टी फ्रेंच में बहुत से वाक्य एक दूसरे को बोल लेती थीं और मैं केवल उनके हाव-भावों से समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या कहा जा रहा है। अंत में जब मेरी एन ने दोबारा यह कहा कि आण्टी अकेली रहती हैं, और अगर हम लोग यहाँ रुकेंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा, तब मैने हथियार डाल दिए। होटल के कमरे का पैसा व्यर्थ गया था। यदि पहले से पता होता तो मैं होटल का हिसाब करके ही निकला होता। यदि सुबह चेक आउट किया होता तब शायद कमरे का किराया कुछ बच जाता!
हम तीनों लोग लिविंग रूम में बैठकर कुछ समय तक कैनेडियन टीवी देखते रहे। असलियत है थी कि टीवी तो केवल मैं ही देखता रहा था, क्योंकि मैंने इंगलिश चैनल लगा लिया था। आण्टी और मेरी एन तो आपस में बातें करने में ही व्यस्त थीं। भाषा का अंदाजा न होने के कारण मुझे उनकी बातचीत बहुत कम समझ में आ रही थी। लगभग नौ बजे मैं लेटने चला गया। जल्दी ही मुझे उन दोनों की आपस में बात करती आवाजें सुनते-सुनते नींद आ गई।
मुझे नींद बहुत गहरी आई थी। पता नहीं कब, परंतु मुझे नींद में ही ऐसा लगा कि किसी ने कमरे का दरवाजा खोला हो और दरवाजा फिर बंद हुआ हो। शायद एक पल के लिए, परंतु दिन भर की थकान और कुछ वाइन, इन दोनों के कारण शरीर इतना ढीला था कि मैं बिना सोचे नींद से निकल कर पुनः निद्रा देवी की गोद में चला गया।
मैं नींद में ही रहा होऊँगा कि अचानक मुझे आभास हुआ कि किसी ने मेरा दायाँ हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा, इससे पहले की मेरी तंद्रा टूटती मेरा दायाँ पंजा किसी धागे वाली चीज से स्पर्श करता हुआ , अब किसी नरम और तरल चीज का स्पर्श कर रहा था। अचानक मुझे समझ में आया कि मेरी उंगलियाँ जिसको छू रही हैं उसका स्पर्श तरल तो था पर उसकी गरमाहट मेरी हथेलियों से अधिक थी। फिर वह अहसास कुछ क्षणों बाद इस जानकारी में तब्दील हो गया कि कोई मेरे साथ ही बिस्तर में लेटा हुआ है और मेरी हथेली उसके शरीर के अंतरंगतम भाग को छू रही है! एकबारगी तो मुझे लगा कि मैं कोई सपना देख रहा हूँ, परंतु शरीर के इस भाग का स्पर्श मेरे बुद्धि के लिए अत्यंत आंदोलनकारी था।
मैं अचानक चौंक कर उठने लगा तभी किसी ने श..श.. करते हुए मुझे अपनी ओर खींचा। निश्चित रूप से रात में पी गई वाइन ने मेरी बुद्धि को कुंद कर दिया था, अन्यथा मैं आमतौर पर हल्की नींद में ही सोता हूँ और आज तो किसी और घर में, किसी और बिस्तर पर था। मुझे स्वाभाविक तौर पर और अधिक चौकन्ना होना चाहिए था। मन-ही-मन मैंने सोचा और वाइन को कोसा, साथ ही कसम भी ली कि आज के बाद कोई भी कहे वाइन के लिए साफ मना कर दूँगा!
मैरे हाथों का उसके शरीर से स्पर्श क्रमशः निश्चित दिशा और दायरे में घूमने लगा। मेरे कानों में एक बहुत धीमी सिसकारी सुनी। अब किसी प्रकार के शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, और इस निर्णय पर पहुँचते ही मेरा सारा ध्यान आगे के गतिविधियों में व्यस्त हो गया।


रविवार


मेरी आँखों को तेज चमक अनुभव हुई जिसके कारण वे खुल गईं। सुबह का सूर्य खिड़की से झाँककर मेरे बिस्तर के सामने रखी हुई किसी चीज पर अपनी किरणें डाल रहा था। वहाँ से परावर्तित होकर वे किरणें सीधे मेरी आँखों में पड़ रहीं थी। मैने लेटे हुए अपनी गरदन को एक तरफ हटाया और देखने पर पाया कि धूप सामने रखे एक गोलाकार म्यूजिक सिस्टम की चमकदार सतह से होकर सीधी मेरी आँखों में पड़ रही थी। सेल फोन की स्क्रीन पर दृष्टि डालने पर मैंने पाया कि सुबह के सवा छह बज रहे थे। अन्य दिनों की अपेक्षा आज मेरी नींद देर में खुली थी, इतना ही नहीं, मेरा सिर अभी भी घूम रहा था और उसमें चिड़चिड़ाहट के अनुभव के साथ ही अड़चन भरा दर्द भी हो रहा था।

मेरा ध्यान गया कि सामने की मेज पर एक काँच के गिलास में पानी ढँका हुआ रखा था। मैने उठकर पानी पिया और पलंग के सामने कुछ हटकर दायीं ओर बने बाथरूम में प्रवेश किया। गर्म पानी से नहा कर निकलने के बाद मैं पहले से हल्का अनुभव कर रहा था। तभी मेरी एन ने मेरे कमरे की तरफ आते हुए मुझे सुबह का अभिवादन किया और बोली, “आंटी अभी सो रही हैं, क्या तुम कॉफी पीना चाहोगे?” प्रतिउत्तर में स्वाभाविक तौर पर मैने उससे कह दिया, “मैं थोड़ी देर बाहर घूम कर आता हूँ, तब तक शायद वे भी उठ जायें, तब कॉफी पीते हैं।”
असल बात यह थी कि मैं अपने साथ बदलने के लिए कोई कपड़े तो लाया नहीं था, और मुझे अपने अधोवस्त्र (अण्डरवियर) उलटकर पहनने पड़े थे, क्योंकि मेरा तो कल शाम ही वापस होटल लौटने का इरादा था। इसीलिए अब बाहर की हवा में निकल कर अपने मन को बहलाना चाहता था। साथ ही जब तक आँटी नहीं उठतीं, मैं मेरी एन से अकेले में कोई बात नहीं करना चाहता था। मेरे और मेरी एन के सम्बन्ध के बारे में आँटी जानें या न जानें, देखा जाये तो इस बात से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए था, परंतु पता नहीं क्यों, यह सब मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। पुरानी यादें अभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं थीं और मैं किसी किस्म के नये झमेले के लिए तैयार नहीं था।
वहाँ आस-पास किनारे पर फुटपाथ तो बना हुआ था, पर मेरे पास दौड़ने के जूते और दौड़ने के लिए सही कपड़े नहीं थे, इन कारणों से दौड़ने का तो कोई मतलब नहीं था, लेकिन कुछ समय के बाद सुबह की हल्की ठंडी हवा ने मन को प्रफुल्लित कर दिया और मेरा सिर दर्द भी नाममात्र को रह गया। मुझे टहलकर लौटने तक साढ़े सात बज रहे थे।
आँटी के घर के घंटी बजाने पर आंटी ने दरवाजा खोला और मुझे बॉन्जूर कहा, मैने भी उत्तर में बॉन्जूर से उत्तर दिया और अंदर गया। मेरी एन के दिखते ही मैंने उससे कहा, “अब हमें वापस चलना चाहिए। अभी उल्टा रास्ता तय करके होटल जाना है और फिर वापस मॉन्ट्रियाल की तरफ लौटना है।” मेरी एन बोली, “आंटी कॉफी बना रही हैं, उसके साथ कुछ लेकर निकलते हैं।”
मेरीएन की आँटी के घर से निकलते समय मैं यह देखकर हतप्रभ रह गया कि जगह दुनिया में कोई भी हो, लोगों के मनोभाव मिलते-जुलते ही होते हैं। आँटी का चेहरा बहुत गंभीर था, संभवतः चश्मे के पीछे उनकी आँखे भी नम हों! चलते समय मेरी एन और उसकी आँटी आपस में सामान्य से कुछ अधिक देर तक गले मिलीं। अब, जब एक बार दोनों लोग आपस में मिल ही लिए हैं, तब उनमें भविष्य के लिए आपस में बातचीत के संचार माध्यम भी सुनिश्चित हो ही गये होंगे। मैने उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए कामना की और भारतीय ढंग से हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए विदा ली।
होटल वापस जाते समय, रास्ते में मेरी एन बिलकुल चुप थी। स्वाभाविक था, इतने वर्षों के बाद अपनी मौसीजी से मिली थी और इस समय उनकी याद में भावुक हो ही रही होगी! मेरी एन की चुप्पी ने मुझे अच्छा मौका दे दिया। सुबह-सुबह टहलते समय तो मैं ऐसी बातों पर जानबूझकर विचार नहीं करना चाहता था, क्योंकि सुबह का समय मैं अधिकतर अपने मन को शांत और स्थिर रखना पसंद करता हूँ। यह अलग बात है कि दिन बढ़ने के साथ मन में कुछ न कुछ दुनियावी बातें आने ही लगती हैं।
मेरा मन इस सवाल का उत्तर ढूँढ़ रहा था कि रात में मेरी एन अपने कमरे को छोड़ कर मेरे कमरे में क्यों आई थी? हम आज वापस जाने वाले ही थे, इसके बाद तो हम अकेले ही यात्रा करते! ऐसी क्या बात हो गई जो वह पिछली रात इस तरह मेरे कमरे में आई? ठीक है, चलो वह आ भी गई तो क्या हुआ? मुझे इस बात से क्या समस्या हो रही थी? मैं निश्चित रूप से इस बात से उद्वेलित था। ऐसा क्यों?
अभी तक हमारे संबंध की घनिष्टता का पता हम दोनों के अलावा, हमारे अन्य किसी जानने वाले को नहीं था। कम से कम मैंने तो इस बारे में किसी और को नहीं बताया था। यूनिवर्सिटी के मित्रों को यह सब बताने के लिए मैं बहुत अधिक आतुर नहीं था। छुपाना भी नहीं चाहता था, पर अपनी तरफ से बताने के लिए भी कुछ नहीं था। उनका सबका अपना जीवन था। भारत के मेरे दोस्तों से अब मेरा संबंध बहुत अधिक नहीं था। दिल्ली में नौकरी करते समय आफिस में मेरा अत्यधिक समय काम में गुजरने के कारण वैसे भी समय बीतने के साथ-साथ कालेज के अपने साथियों से मेरी बातचीत धीरे-धीरे कम ही हो गई थी।
ऐसा नहीं था, कि हम कार में यात्रा करते समय आपस में मैं और मेरी एन हर समय बात-चीत ही करते रहते थे, परंतु एक-एक दिन बीतने के साथ हमारी घनिष्टता बढ़ती जा रही थी। इस बढ़ती हुई घनिष्टता से मुझे परेशानी क्यों हो रही थी? मैं बार-बार इसी उधेड़-बुन में पड़ जाता हूँ। संभवतः नीता के साथ हुआ अनुभव मुझे कहीं न कहीं अंदर से चेतावनी देता रहता था। यात्रा की योजना बनाते समय जब मैंने फेशबुक पर अपने सहपाठियों के समूह में लोगों से यात्रा में साथ चलने की बात की थी, उस समय मैं पता नहीं क्यों, पर आशा अवश्य कर रहा था कि कोई भारतीय युवक मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो जायेगा। आमतौर पर  भारत के एक छोटे से शहर से आये हुए नवयुवक के विचारों की सीमा से यह बाहर की बात थी कि उसके साथ एक योरोपियन लड़की यात्रा में साथ जाये। परंतु, असल दुनिया तो बड़ी तेजी से बदल रही थी। कल रात क्या वह केवल कोई साधारण शरारत ही कर रही थी, जैसी कि हम कभी-कभी उत्तेजना में अथवा दोस्तों के साथ मिल कर करते हैं? या फिर वह हमारे आपसी संबंध को दुनिया को बताने के लिए तत्पर थी। अब सोचता हूँ कि कहीं मेरी एन की जगह कोई भारतीय लड़की साथ जाने को तैयार हो गई होती, तब क्या होता!
अगर वाकई मेरी एन मन में किसी दूरगामी विचार के चलते रात को कमरे में आई थी, तब एक बात तो तय थी कि वह इस विषय में नीता से अधिक गंभीर थी। यह भी तय है कि दोनों के व्यक्तित्व बहुत भिन्न हैं। याद आता है कि नीता हमेशा बाहर भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मिलती थी। इस कारण उसके सभी दोस्तों में, मेरे और उसके आपस में दोस्त होने की (या आपस में फ्लर्ट करने की) बात जग-जाहिर थी, इसी तरह उसके अतिरिक्त मैने कभी भी इतनी घनिष्टता से अपने किसी भी मित्र से इस विषय पर बात नहीं की परंतु जो कुछ उन्हें दिख रहा था उससे वे जानते थे कि हमारे संबंध अंतरंग थे।
अधिकतर समाज में सब लोगों के बीच में मिलने वाले लड़के और लड़की के संबंधों के बारे में आम-तौर पर यह माना जाता है कि उनमें केवल बातचीत की मित्रता है, परंतु जहाँ तक शारीरिक संबंधों का प्रश्न है वे आपस में संयम बरतते हैं। जब तक नीता से मेरा शारीरिक संबंध नहीं हुआ था, तब तक मैं किसी लड़के और लड़की को देखकर यह नहीं समझ पाता था कि उनमें मात्र मित्रता है या आपसी शारीरिक संबंध भी हैं? लेकिन नीता के साथ अंतरंग समय बिताने के बाद अपने अन्य मित्रों के बारे में मुझे थोड़ी बहुत इन बातों की भनक लगने लगी थी। नोएडा, गाजियाबाद, बैंगलोर आदि शहरों मे काम करने वाले लोगों के बहुत से हॉस्टल बन गये हैं तथा इनमें रहने वाले लोगों का जीवन पारिवारिक लोगों के जीवन से कुछ अलग ही माना जाता है। अच्छी खासी कमाई और आफिस से आने जाने का कोई निश्चित समय नहीं है। इसके अलावा इन हॉस्टलों में रहने वाले लोग, स्थानीय लोगों के लिए तो अजनबी ही होते हैं। इसलिए यह सब पहचान करना कुछ हद तक कठिन हो जाता है। मेरी एन की आण्टी के चेहरे के भावों को याद करने पर मुझे लगता है कि उन्हें शायद हमारी मित्रता की परिधियों का अहसास हो गया था!
हम लोग होटल पहुँच कर अपना सामान उठाने अपने कमरे पर गये। मैं मेरी एन से बोला, “मुझे तो केवल कपड़े बदलने हैं, क्या मैं पहले बदल लूँ? आप बाथरूम का प्रयोग उसके बाद कर लें।“ अभी होटल में मिलने वाले मुफ्त के नाश्ते के लिए निर्धारित समय के खत्म होने में लगभग 15 मिनट का समय बाकी था। यह सोचते हुए मैंने मेरी एन से पूछा, “क्या आप नाश्ता करेंगी? मैं यह सोच रहा हूँ कि यहाँ से भर पेट नाश्ता करके निकलने से दोपहर तक फिर कुछ भी खाने-पीने के बारे में सोचना नहीं पड़ेगा।”
हमने मेरी एन की आँटी के घर दो ब्रेड के टोस्ट कॉफी के साथ लिए थे, पर अभी नाश्ते में यदि और कुछ खा लेते तो लंच देर में किया जा सकता था। उसने सिर हिलाया और बोली, “मुझे तो कोई विशेष भूख नहीं है, पर तुम नाश्ता करना चाहो तो मैं भी चलती हूँ।“ मेरी एन बोली, “मैने स्नान नहीं किया है, इसलिए पहले स्नान कर लूँगी।“ मैने सहमति में सिर हिलाया और अपना सामान रखने लगा।
अपना सामान बंद कर लेने के बाद मैंने टीवी खोल लिया और यों ही चैनल बदलने लगा। पाँच-सात मिनट बाद मेरी एन नहाकर निकली, उस समय जो तौलिया उसने अपने शरीर पर लपेटा हुआ था, वह बहुत चौड़ा न होने के कारण मुश्किल से उसके वक्ष और नितम्बों तक आ रहा था। मेरा ध्यान उसकी तरफ गया और मैं सोचने लगा कि क्या कल होटल के कर्मचारियों ने बड़ा तौलिया नहीं रखा था? परंतु, जिस तरह मेरी एन की आँखे एक ढँकी-छुपी सी शरारत से चमक रहीं थी, उससे यह भी हो सकता था कि उसने बाहर निकलने से पहले जानबूझ कर छोटा तौलिया चुना हो।
परंतु इस समय, मेरी बुद्धि तो नाश्ते के बारे में सोच रही थी। यदि मैं उसके आमंत्रण पर प्रतिक्रिया देता, तब नाश्ता तो निश्चित ही नहीं मिलने वाला था। इसी उलझन में पड़े होने के कारण मैने इस दिशा में कोई चेष्टा नहीं की। उसके बाद, जिस अंदाज में वह अपने कपड़े लेने सूटकेस की ओर बढ़ी तो मुझे अनुभव हुआ कि मैने कुछ गड़बड़ कर दी है। इस कारण बात साफ करने के लिए उसे आगे बढ़कर रोक लिया। मैंने उसके मनोभाव पढ़ने के उद्देश्य से उससे पूछा, “यहाँ या फिर माँट्रियाल में?” मेरे इस प्रश्न के उत्तर में उसने कुछ नहीं कहा। तभी मेरे मन में एक विचार आया, जो कि मैने उससे कह दिया, “ऐसा करते हैं, कि यहाँ से माँट्रियाल तक लगभग 3 घंटे का सफर है, तब तक के लिए अपने मन को रोकते हैं।”
हम दोनों तुरंत उतरकर रिसेप्शनिस्ट के पास बने हुए नाश्ते के कमरे में पहुँच गये। मैंने पेट भर कर नाश्ता किया, मेरी एन ने भी स्क्रेम्बल्ड एग और आलू की तली हुई पकौड़ियाँ लीं। फिर एक-एक कप गर्मागर्म कॉफी लेकर वापस अपने कमरे में पहुँचे। मैं अपना सामान तो रख ही चुका था। मेरी एन ने भी अपना सामान पाँच-सात मिनटों में रख लिया। हमने रिसेप्निष्ट को जाते हुए कमरे की क्रेडिट कार्ड नुमा चाबी वापस दे दी। मैं अपनी कॉफी तो कमरे में ही खत्म कर चुका था। मेरी एन की काफी थोड़ी ठंडी हो रही थी, इसलिए वह माइक्रोवेव में रखकर उसे गर्म करने लगी। उसे देखते हुए मैने भी अपने लिए एक और काफी निकाली और ढक्कन को ठीक से बंद करके ले चला। मेरा इरादा इस काफी को कम-से-कम आधे घंटे बाद पीने का था। कॉफी के बारे में मैं इतनी तैयारी इसलिए कर रहा था, क्योंकि अभी-भी रात की वाइन और उसके कारण सिर का भारीपन बना हुआ था। मैं नहीं चाहता था कि मार्ग में गाड़ी चलाने की एकरसता अथवा थकावट के कारण मुझे नींद या आलस आने लगे।  
क्यूबेक सिटी से लौटते समय मैंने रूट 40 लेकर आने का निश्चय किया। जाते समय हम रूट 20 लेकर गये थे। ये दोनों रास्ते एक दूसरे के समानान्तर चलते थे। रुट 20 सेंट लारेंट नदी के दक्षिण में नदी के समानान्तर चलता है और रूट 40 नदी के उत्तर में नदी के समानान्तर चलता है। हमें मार्ग में बहुत भीड़ नहीं मिली और हम लगभग सवा तीन घंटे में माँट्रियाल एयरपोर्ट पहुँच गये।
एयरपोर्ट के टर्मिनल से थोड़ी दूरी पर ही हमें एक हालीडे इन में रुकना था। एयरपोर्ट के आस-पास का क्षेत्र कुछ औद्योगिक क्षेत्रों की तरह और अन्य स्थानों से कम साफ-सुथरा था। हॉलीडे इन की लॉबी तो साफ सुथरी और अच्छी थी। पर गलियारे और कमरे पुराने और निश्चित रूप से अच्छे स्तर के नहीं कहे जा सकते थे। इस होटल में ठहरने वाले लोगों को कार की पार्किंग की सुविधा एक गेट से सुरक्षित की गई थी। लगता है कि एयरपोर्ट के आस-पास होने से यहाँ पार्किंग में कुछ गड़बड़ी होती होगी। अभी तक इस यात्रा में हर होटल में पार्किंग मैंने खुले में ही देखी थी। हमें माँट्रियाल में केवल एक दिन ही रुकना था, इसलिए अपने सामान को कमरे पर छोड़ा और माँट्रियाल देखने बाहर निकल पड़े।
मैंने सुना था कि माँट्रियाल में जमीन के नीचे एक बहुत बड़ी मॉल है। कहते हैं कि जमीन के अंदर ही अंदर लगभग कई मीलों मे फैली यह माल कैनेडा की सर्दियों में लोगों को बहुत भाती है। मॉल के पास पहुँच कर पार्किग ढूँढ़ने में कठिनाई होने पर समझ में आया कि इस मॉल के शहर के अंदर होने के कारण यहाँ पर मुफ्त की पार्किंग मिलनी मुश्किल थी। अधिकतर पार्किंग की जगहें 25 या 35 डॉलर में उपलब्ध थीं। मैं पार्किंग के लिए इतने पैसे देने को तैयार नहीं था। अमेरिका में तो आम-तौर पर उपनगरों में बनी सभी मॉलों के पास की पार्किंग मुफ्त होती है। अब समझ में आ रहा था कि अधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में शायद वहाँ भी वही समस्या रहती होगी। मैने मेरी एन से कहा, “पार्किंग तो यहाँ से दूर मिलने वाली है, इसलिए पार्किंग करने के बाद दूर से पैदल चलकर आना पड़ेगा। आप साथ चलेंगी, या फिर आपको मॉल के सामने छोड़ दूँ।” वह बोली, “नहीं साथ ही चलते हैं।”
हम दूर जाकर स्ट्रीट में एक खाली स्थान पर पार्किंग करके टहलते हुए मॉल वापस आए और अगले लगभग तीन घण्टों तक मॉल के विभिन्न हिस्सों को देखते रहे। एक बड़े हिस्से के एक पूरे तल में केवल खाने की दुकानों हीं थीं। मुझे स्वयं के लिए अथवा किसी और के लिए कुछ भी खरीदना नहीं था, इसलिए मेरी एन जहाँ भी देखना चाहती, वहाँ उसके साथ दूकान में चला जाता। मॉल इतनी बड़ी है कि, कम से कम दो जगह तो मुझे सूचना केंद्र दिखे, जहाँ पर लोग जानकारी देने के लिए उपलब्ध थे। मैने उनसे मॉल की जानकारी वाली सूची ले ली और उसको देखकर माल में बनी दुकानों और आफिसों के बारे में जानकारी हासिल की। मुझे स्मरण हुआ कि मेरी एन ने मेरे लिए एक टोपी ली थी और एक चित्रकार से मेरा चित्र भी बनवाया था। इसलिए मुझे भी उसके लिए कुछ लेना चाहिए।
मेरी एन को उपहार में देने वाली वस्तु को ढूँढ़ते हुए मुझे एक कृत्रिम आभूषणों की दूकान दिखी तो मैं उसके अंदर चला गया और वहाँ रखे आभूषणों को देखने लगा। मेरी एन इस बीच मुझसे आगे किसी दूकान में गई थी और कुछ समय बाद मुझे देखने के लिए वापस आ गई। मेरे साथ-साथ वह भी आभूषणों को देखने लगी। कई चीजों को देखने के बाद मुझे एक सोने की गले की जंजीर पसंद आई जिसके साथ एक गोल अमेरिकन हीरे वाला पेण्डेन्ट भी था। मैंने इस जंजीर में पेण्डेन्ट लगाया और उसे हाथ में लेकर मेरी एन को अपने पास बुलाया। वह मेरे पास आई तो मैंने आगे बढ़कर चेन उसके सिर से होते हुए गले में पहना दी। अठारह कैरेट सोने की कृत्रिम हीरों वाली जंजीर उसके गोरे गले और वक्षस्थल के बीच में बहुत सुंदर लगी, पर मैं इस मामले अधिक जानकारी नहीं रखता हूँ, इसलिए मैंने उसकी राय पूछी। अब तक उसका चेहरे खुशी से चमकने लगा था। वह बोली, “बहुत अच्छा है।” मुझे यह संदेह था कि शायद वह मेरा मन रखने के लिए कह रही थी, लेकिन इस स्थिति में इस कार्य के लिए न तो मैं अधिक पैसे ही खर्च करना चाहता था और न ही अधिक समय।
मेरी एन खंभे की दीवार पर लगे एक मनुष्याकर दर्पण के सामने खड़ी होकर अपने गले में पड़ी हुई चेन को देखने लगी। मैं भी उसके पीछे से आकर दर्पण में उसकी आकृति देखने लगा। दर्पण में देखने पर पेण्डेन्ट कुछ तिरछा लगा। इसलिए ठीक से देखने के लिए मैंने मेरी एन को अपनी ओर घुमाया और आगे हाथ बढ़ाकर उसकी पेण्डेन्ट जो कुछ तिरछा लटका हुआ था उसे उंगलियों से खिसकाते हुए उसके वक्षों के ठीक बीचों-बीच स्थापित कर दिया। मेरे चेहरे पर संतुष्टि और प्रशंसा के भाव अवश्य आये होंगे, लेकिन बरबस ही मेरे मुँह से निकल गया, “अति सुंदर!”
मॉल से निकलते हुए लगभग 7 बज रहा था। मॉल में सूचना अधिकारी ने मुझे बताया था कि यहाँ मांट्रियाल में एक ऐसी जगह भी है, जहाँ गर्मियों के समय में मेला लगा रहता है। हम भी वहाँ गये और उस कार्निवाल में सजी दुकानों और प्रदर्शनों के देखते रहे। इस मेले वाली जगह में कई लोग नाना प्रकार के करतब दिखा रहे थे। कुछ लोग गानों और चुटकुलों आदि से जनता का मनोरंजन कर रहे थे। यह सब कुछ मुफ्त में किया जा रहा था और देखने वालों को इसके लिए कोई पैसे देने की आवश्यकता नहीं थी। यदि लोग चाहें ही, तब वे अवश्य अपनी इच्छानुसार दान दे सकते थे। माँट्रियाल में इस जगह को देखने के बाद ही मुझे कैनेडा में छायी मस्ती का अनुभव हुआ। यह भी समझ में आने लगा कि अमेरिका के लोग क्यों कैनेडा के लोगों को पिछड़ा समझते हैं। मुझे तो यह अनुभव हुआ कि कैनेडा के लोग अपने जीवन को अधिक आनन्द से जीते है, जबकि अमेरिका के लोग सुख-सुविधा और पैसे के पीछे भागते रहते हैं। पता नहीं यहाँ ठंड में जीवन कैसा रहता होगा? परंतु यदि भारत से बाहर ही जीवन बिताना हो, तब संभवतः मुझे कैनेडा, अमेरिका से अधिक अच्छा लगे।


सोमवार


सुबह उठकर जिस समय मैं व्यायाम कक्ष की ओर बढ़ा, तब तक मेरी एन बिस्तर में ही थी। यहाँ का व्यायाम कक्ष ढूँढ़ने में मुझे बड़ी देर लग गई। आम तौर पर सभी होटलों में व्यायाम कक्ष आदि के लिए निर्देश लगे रहते हैं। इस होटल में कहीं नहीं दिखा तो मैं लॉबी में पूछने गया। उससे निर्देश लेने के बाद भी कई गलियारों में घूमने के बाद ही मैं व्यायाम कक्ष तक पहुँच पाया। व्यायाम करते समय टीवी के चैनलों पर आने वाले कार्यक्रमों को देखकर स्पष्ट हुआ कि अमेरिका और फ्रांस दोनों देशों ने कैनेडा के जीवन पर कितना प्रभाव डाला है।  

व्यायाम करके जब तक मैं वापस आया उस समय तक मेरी एन स्नान करके तैयार हो चुकी थी। इस होटल का बाथरूम बहुत ही छोटा था। यहाँ तक कि पहली बार इस यात्रा में मैने यहाँ के किसी होटल में इतनी सीलन और नमी देखी थी। 110 डॉलर के प्रतिदिन के किराए पर मॉँट्रियाल में ठहरना काफी महँगा पड़ा था।
तैयार होने के बाद हम होटल के रेस्तराँ की तरफ गये। वहाँ देखकर आश्चर्य हुआ कि केवल दो-तीन लोग ही नाश्ता कर रहे थे। मुझे लगा, शायद हमने आने में देर कर दी है, इसलिए वहाँ खड़े एक वेटर से पूछा, “यहाँ पर नाश्ते का समय कब से कब तक होता है?” उसने मुझे यह बताया कि यहाँ पर नाश्ता तो 10 बजे तक मिलता है, पर नाश्ते के दाम कमरे के दामों में सम्मिलित नहीं है। यदि हम करना चाहें तो प्रति व्यक्ति नाश्ता आर्डर करके लेना होगा।
अब मुझे स्पष्ट हुआ कि क्यों यहाँ पर अन्य होटलों की तरह अधिक लोग नाश्ता नहीं कर रहे थे। मैंने मेरी एन से बोला, “हमें नाश्ता कहीं और जाकर करना होगा। ऐसा करते हैं,  कि हम यहाँ से चलते हैं, रास्ते में किसी मनपसंद जगह नाश्ता कर लेंगे।”
क्यूबेक सिटी से माँट्रियाल दक्षिण पश्चिम दिशा में है और लगभग उसी दिशा में आगे जाने पर टोरेन्टो आता है। मेरा इरादा टोरेन्टो में रुककर एक दिन वहाँ घूमने का था। उसके बाद वहाँ से न्यागारा फाल्स पहुँच कर वहाँ रुकने का था। कहते हैं कि न्यागारा फाल्स का दृश्य कैनेडा की ओर से अधिक भव्य दिखता है। जब हम इत्तफाक से कैनेडा में ही थे, तब इस आनन्द को छोड़ना समझदारी न होती।
मार्ग में कुछ दूर जाकर माँट्रियाल से बाहर निकलते ही एक टिम होर्टमेन में रुक कर हमने कॉफी ली। मैंने अपने लिए एक चीज की पेट्टी का सैंडविच बनवाया, तो मेरी एन ने भी उसी की माँग कर दी। मैने उसे कहा, “तुम्हें इस तरह के सैंडविच पसंद आते हैं? मैं तो यह समझता था कि तुम्हें माँसाहारी सैंडविचों की आदत है।” वह बोली, “हाँ, मुझे आदत तो माँसाहारी सेंडिवच की ही है, परंतु आजकल तुम्हारे साथ मैं भी आजमा रही हूँ, नहीं तो अकेले ये सब कौन करता है?” मुझे उसकी बात से इत्तफाक हुआ। हम अकेले नईं चीजें कम ही करते हैं, परंतु जब दोस्त साथ होते हैं तो उनकी देखा-देखी हम भी कुछ न कुछ नये प्रयोग कर लेते हैं।
माँट्रियाल से टोरेंटो का सफर लगभग तीन घंटे में पूरा हुआ। इस मार्ग में पहली बार मेरा ध्यान गया कि इस मार्ग पर हालाँकि सड़कों पर गति सीमा 80 अथवा 100 किमी तक की लिखी हुई थी, फिर भी अधिकांश चालक 120-130 किमी की गति से गाड़ी चला रहे थे। एक पोलिसमैन को किसी चालक को चालान देते हुए देखकर मैंने अपनी कार की गति सीमा 90-100 किमी के बीच ही कर ली। माँट्रियाल से निकलते ही मेरी एन झपकी लेने लगी थी। हम जब टौरेंटो पहुँचे, उस समय दिन का डेढ़ बज रहा था।
टोरेंटो में मुझे सीएन टॉवर तो देखनी ही थी, उसके बाद और क्या देखा जा सकता है, इस बारे में वहीं पहुँच कर सोचना चाहता था। इसलिए हम सीधे सीएन टॉवर पहुँचे। सीएन टॉवर पर ऊपर जाने के लिए प्रति व्यक्ति 40 डॉलर का टिकट था। जो कि मुझे महँगा लगा, पर अब कुछ नहीं हो सकता था। हम दोनों और सैलानियों के साथ लिफ्ट में सवार होकर सीएन टॉवर की दर्शक दीर्घा पहुँचे। न्यूयार्क में ऊँची बिल्डिंग पर जाकर वहाँ का दृश्य देखने के बाद यह मेरा दूसरा काफी ऊँची इमारत पर चढ़ने का अनुभव था। अधिकतर ऊँची इमारतों में एक दर्शक दीर्घा बनाई जाती है। इस दर्शक दीर्घा में सामान्य जनता आकर मनुष्य के द्वारा की गई प्रगति को देखने का आनन्द लेती है। चूँकि हर ऐसे स्थान पर जहाँ बहुत लोग आते-जाते हैं, वहाँ पर रख-रखाव और सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था में जो खर्च होता है उसकी भरपाई करने के लिए टिकट लेकर धन का इंतजाम किया जाता है।
व्यक्ति का मस्तिष्क उसके साथ किस तरह खिलवाड़ कर सकता है, इसका एक विचित्र अनुभव हुआ। लगभग 100 मंजिलों के ऊपर बनी दर्शक दीर्घा में कुछ हिस्सा एक बड़े छज्जे के रूप में बनाया गया था। इस छज्जे का फर्श पारदर्शी काँच की एक मोटी तह से बनाया गया था। फर्श का सीसा कार के सीसों की तरह हल्के नीले रंग का था। उस पर खड़े होकर अपने पैरों के नीचे से जाने वाली कारें, सड़कें और पार्क आदि देखते समय अत्यंत ही रोमांचकारी अनुभव होता है। जबकि उसी मंजिल पर जहाँ आप अपारदर्शी, अर्थात् सीमेंट वाली फर्श पर खड़े होकर आस-पास का दृश्य देखते हैं तो आपको बिलकुल भी डर नहीं लगता है। मजे की बात यह है कि काँच के फर्श की मोटाई इतनी अधिक है कि वह कई लोगों का भार बड़ी आसानी से उठा सकती है। फर्श सुरक्षित है, परंतु फिर भी साधारण परिस्थिति में हमारा अनुभव है कि काँच की मजबूती एक सीमा तक ही होती है और यदि किसी कारणवश काँच टूट गया तो शरीर यहाँ से सीधे जमीन पर दिखाई देगा। इस काँच के फर्श पर बैठकर नीचे देखने से ऐसा भी लगता है कि देखने वाला हवा में खड़ा अथवा बैठा है जो भी अपने आप में एक रोमाञ्चकारी अनुभव है। यह अपने आप में मृगतृष्णा का एक उदाहरण है।
नीचे उतर कर मैं अभी भोजन के बारे में सोच ही रहा था कि क्या किया जाये तभी मुझे वहाँ पर एक भारतीय रेस्टारेन्ट दिखा। मैं उसमें जाकर खाने के बारे में विचार कर ही रहा था, तभी मुझे अपने पास जिस तरह न्यूयार्क में खोमचे वाले दिखते हैं, उसी प्रकार का खोमचे वाला दिखा, जो कि छोले भठूरे बेच रहा था। दिखने में यह दुकान न्यूयार्क के हॉट डॉग स्टैंड जैसी ही थी, पर भोजन भारतीय था। मैंने मेरी एन से पूछा कि क्या वह छोले-भठूरे खाना चाहेगी? उसे कोई अंदाजा नहीं था कि यह क्या होता है। खोमचे वाले व्यक्ति ने मेरी मुश्किल आसान कर दी। वह मेरी तरफ मुखातिब होकर बोला, “मेरी गर्ल फ्रेण्ड जो कि कॉकेशियन है, उसको भी ये बहुत पसंद आते हैं।” मेरी एन ने फ्रेंच में उससे कुछ पूछा, तो खोमचे वाले सज्जन जिनका नाम राजीव ढिल्लों था, बड़े ही मजे में रस ले-लेकर मेरी एन को विस्तार से समझाने लगे।
एक प्लेट खाने के बाद मेरी एन ने छोलों और भठूरे की बहुत तारीफ की। तारीफ सुनकर राजीव ने हमें दो और प्लेटें तीन चौथाई दामों पर देने की पेशकश की। छोले और भठूरे दोनों ही ताजे और स्वादिष्ट बने हुए थे। इसलिए खाने में स्वाद तो बहुत आया, परंतु इतना अधिक खाना दोपहर में खाने के बाद मुझे सुस्ती आने लगी थी। संभवतः कच्चा प्याज हमें सुस्त बना रहा था। आलस का यह हाल हुआ कि हम वहाँ से निकलकर ऑनटेरियो झील के पास पड़ी एक बेंच पर कुछ देर के लिए बैठ गये। वहाँ पर पड़ी सीमेंट की सीट पर अधलेटे होने के कुछ देर बाद ही मुझे तेज नींद का झोंका आया। थोड़ी देर मैंने इसी तरह झपकी ली होगी कि मेरी गर्दन तिरछी हो जाने के कारण दर्द करने लगी और मेरी नींद खुल गई। नींद खुलने पर मैंने पाया कि मेरी एन भी मेरे कंधे पर सिर रख कर नींद का आनन्द ले रही थी।
लगभग पाँच बजे वहाँ से उठकर हम झील के आस-पास घूमे, उसके बाद पास की बाजार में यूँ ही इधर-उधर घूमते और चीजें देखते रहे। मेरी एन ने वहाँ पर लगी हाट की लगभग सभी दुकानों में जाकर सामान देखा और दुकानदारों से न जाने क्या-क्या बातें कीं। मैं मौनी व्यक्ति की तरह चुपचाप सुनता और कुछ हद तक इशारों से समझने की कोशिश करता रहा। वहाँ पर बनी ऑनटेरियो झील को वैसे तो झील कहते हैं, परंतु इसका क्षेत्रफल लगभग 7000 वर्गमील है तब आप समझ सकते हैं कि यह एक समुद्र के समान है। इस झील में पानी न्यागारा नदी से आता है और यह संसार में 14वीं बड़ी झील मानी जाती है। जल जीवन के बारे में अध्ययन करने के लिए इन पाँचो झीलों का समूह बहुमूल्य जानकारी का स्रोत है, एक ऐसा अखाड़ा है जो कि जलजीवन के अनुसंधान के लिए अत्यंत उपयोगी है। चूँकि महासागरों की अपेक्षाकृत इस झील का क्षेत्रफल कम है, इस कारण खोज और अनुसंधान का कार्य कुछ सीमा तक मनुष्य के नियंत्रण में संभव हो सकता है।
रात के समय जब हम पुनः भोजन के बारे में सोच रहे थे, तब टोरेंटो में बसे भारतीय लोगों के बारे में सोचते हुए मेरे मन में विचार आया आज रात हमें यहाँ के किसी अच्छे भारतीय रेस्ट्रां में भोजन करना चाहिए। मैंने मेरी एन से इस बारे में पूछा तो वह बोली, “हमारी आज की शाम तो राजीव के साथ है। उसकी गर्ल-फ्रेण्ड भी आने वाली है, हम सभी साथ चलेंगे।”
मैं आश्चर्यचकित रह गया, मुझे यह पता ही नहीं चला था कि कब मेरी एन और राजीव ने यह कार्यक्रम बना लिया था!
मैंने हैम्पटन इन को फोन करके बता दिया कि हमारे लिए कमरा सुरक्षित रखें। वहाँ की रिसेपशनिष्ट ने मेरा आरक्षण पक्का किया और मुझे आश्वस्त कर कमरे की उपलब्धिता के बारे में सुनिश्चित किया। मेरा अंदाजा था कि हमें होटल पहुँचते-पहुंचते लगभग 10 तो बजेगा ही। उसमें कुछ समय और जोड़कर मैंने उसे अपने पहुँचने का संभावित समय लगभग 11 बजे का बताया।
भोजन के समय तक बाजार में विंडो शापिंग करते हुए हम राजीव के स्टैण्ड पर पहुँचे तो वहाँ पर आयी अपनी गर्लफ्रेण्ड बॉनी से राजीव ने हमारा परिचय करवाया। बॉनी लगभग पाँच फीट और दो या तीन इंच की छरहरे बदन वाली लड़की थी। उसके बाल सुनहरे थे और मुस्कान आकर्षक! वह खुशमिजाज और चहकते हुए हर बात आरंभ करती थी। बॉनी और मेरी एन कुछ ही मिनटों में आपस में घुलमिल कर ऐसे बातें करने लगीं, जैसे कि एक-दूसरे को लंबे समय से जानती हों। हम वहाँ से राजीव की कार में बैठकर झील के किनारे-किनारे कुछ समय तक ड्रॉइव करने के बाद पार्किंग करके लकड़ी के तख्तों से बने हुए पुल पर चल कर रेस्तरां पहुँचे। यह रेस्तरां झील के अंदर पानी के ऊपर खंभों की मचान खड़ी कर के बनाया गया था। गर्मी के समय में पानी को छूकर आने वाली ताजी हवा तन और मन दोनों को प्रसन्न कर देने वाली थी।
बॉनी और मेरी एन आपस में ही लगातार बातचीत करती रहीं। उनकी सारी बात-चीत फ्रेंच में हो रही थी, इसलिए मुझे तो उनका एक भी शब्द समझ में नहीं आ रहा था। बातचीत के बीच में मैने राजीव से हिंदी में पूछा कि ये लोग आपस में क्या बातें कर रही हैं? प्रतिउत्तर में राजीव ने मुझसे अंग्रेजी और हिंदी की मिलावट वाली भाषा में पूछा, “कब से तुम हे इसके साथ?” मैंने उसे हिंदी में ही उत्तर दिया, “पिछले हफ्ते से” उसने आगे मुझे टूटी-फूटी हिन्दी मिश्रित पंजाबी में बताया. “मेरी एन ते बॉनी एक दूसर तो जाणण विच गलां करदी पईं। अस्सी ते ऐद्दरों विच ई रेंदे सी, सानू वी इंडिया कोल निक्का ही जाणदे सी।” फिर पलटते हुए बॉनी और मेरी एन से अंग्रेजी में बोला, “भारत के बारे में यदि कुछ जानना है तो इस बारे में सुरेश ही हमें सबसे अधिक जानकारी दे सकता है। आप दोनों की भारत के बारे में जो उत्सुकताएँ हैं, उनके बारे में वह अधिक अच्छी तरह से बता पायेगा।”
इस रेस्तराँ का मेनू देखने पर मुझे समझ में आ गया कि यहाँ पर बनने वाला लगभग सारा भोजन समुद्री जीव और वनस्पतियों से तैयार किया जाता है। मेरे शाकाहारी भोजन की माँग करने पर वेटर ने मुझे राय दी कि मैं समुद्री वनस्पति की नारियल के सूप में बना हुआ भोजन आजमा सकता हूँ। समुद्री वनस्पति में एक विशेष प्रकार की महक आती है, जो कि मुझे असह्य हुई, परंतु मैंने किसी के रंग में भंग न डालते हुए, किसी तरह उसे चुपचाप खाया। यही महक एक बार एक वियतनामी रेस्तरां के शाकाहारी खाने में भी मुझे अनुभव हुई थी, इसलिए मैं आश्वस्त था कि कम से कम मेरा भोजन शाकाहारी है। मैंने इसी बात से अपने को सान्तवना दी। भोजन करते समय दोनों लड़कियाँ, भारत और मेरे जीवन के बारे में नाना प्रकार के प्रश्न पूछती रहीं और मुझे जो कुछ भी मालूम था, उसे धैर्य से बताता रहा।
उन्होंने जो प्रश्न मुझसे पूछे उनका सार भारतीय परिवारों की संरचना, आपसी रिश्तों की गहराई और आज के भारत के नवयुवकों की जीवन-चर्या, उनकी आकाँक्षाएँ और रुचियाँ थीं। इन प्रश्नों के अतिरिक्त इस पूरी शाम बातचीत अधिकांश उन तीनों के बीच ही होती रही। इसका एक कारण यह भी था कि वे सभी एक ही भाषा बोलने वाले थे और मुझे वह भाषा बिलकुल नहीं आती थी। इसके अलावा एक बात यह भी थी कि आदतन मैं अपने अन्य मित्रों के बीच भी कुछ कम ही बोलता था, नये लोगों के बीच में खुलना तो और भी दूर की बात है।
भोजन करने के बाद आखिरी काफी पीकर रेस्तरां से निकलते हुए लगभग साढ़े दस बज रहा था। मैंने राजीव से उसका फोन नंबर और ईमेल लिया तथा मेरी एन ने बॉनी से इसी प्रकार की जानकारी का आदान-प्रदान किया और हमने उनसे विदा ली। ऐसा लग रहा था कि हमने कनाडा के दो लोगों से अच्छी मित्रता स्थापित कर ली है। वहाँ से निकलकर हम सीधे होटल पहुँचे, चेक-इन किया और कार से अपना सामान लेकर होटल के कमरे में पहुँचे। मैं स्नान करने चला गया। कुछ समय के बाद जब मैं बाहर निकला, तब तक मेरी एन गहरी निद्रा में थी। जो कमरा हमें आज मिला था, उसमें दो ट्विन आकार के पलंग थे। मेरी एन को शांति से सोते देख एक बार तो मेरा मन हुआ कि उसे आराम से सोने दूँ और मैं खाली पड़े बिस्तर पर सो जाऊँ, परंतु फिर मैं दुविधा में पड़ गया। न जाने मेरी एन इसका क्या अर्थ लगाए। मैं उसे यह कैसे कहता कि मुझे किसी के भी साथ चिपककर लेटना अच्छा नहीं लगता! आखिर में मैंने सुरक्षित मार्ग लिया और मेरी एन के बिस्तर में जाकर उसके बगल में निश्चल होकर लेट गया। मेरे लेटने के 10-15 सेकेंडों में ही मेरी एन ने अपना हाथ मेरी छाती के ऊपर रख दिया और पुनः निद्रा की गोद में चली गई। आज दिन में शारीरिक श्रम कम ही किया था और दोपहर में सो भी लिया था, इसलिए मुझे नींद आने कुछ देर लग गई।


मंगलवार


सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई। मैं नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद जब जिम की ओर जाने को उन्मुख हुआ तब मेरी एन ने आँखें खोलकर मुझसे पूछा, “यहाँ नाश्ता मिलेगा क्या, या हमें बाहर ही लेना होगा?” मुझे भी ध्यान नहीं आया कि कल रात होटल में चेक-इन करते समय रिसेप्शप्निष्ट ने क्या बताया था। मैंने आपरेटर को फोन किया तो उसने बताया कि नाश्ता कमरे के किराए में सम्मिलित है, तथा साढ़े 6 से 9 बजे के बीच मिलता है। अभी सुबह का 6 ही बजा था, इसलिए समय था। मैं वहाँ से निकल कर जिम पहुँचा और दिन का आरंभ अगले एक घण्टे के व्यायाम के साथ किया।

कमरे पर वापस पहुँचते समय तक मेरी एन अभी भी सो रही थी। मैं चुपचाप स्नानघर में घुस गया और मजे से एक लंबा स्नान किया। जब मैं निकला, तब भी मेरी एन सो रही थी। यह देखकर मैं कुछ चौंका, और बरबस उससे पूछ बैठा, “तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना?” मेरी एन ने आँखें खोलीं और बोली, “कुछ भारी सा लग रहा है।” मैंने आगे बढ़कर उसके माथे पर हथेली रखी ताकि पता लगे कि बुखार तो नहीं है। माथा तो ठंडा था। मैंने उससे पुनः पूछा, “रात नींद ठीक से आई थी?” वह बोली, “ठीक ही थी”, फिर अचानक बोली, “कुछ अजीब से सपने आ रहे थे, मैं थोड़ी देर में उठती हूँ।”
मैंने चुप रहा। कुछ देर बाद वह उठकर स्नान आदि करने चली गई। लगभग आठ बजे हम नाश्ते की मेज पर थे। व्यायाम आदि कर लेने के बाद मैं तो तरो-ताजा महसूस कर रहा था, परंतु मेरी एन ढीली लग रही थी। उसने अनमने होकर नाश्ता किया। हमेशा की तरह हमने अपने कमरे पर आकर सामान संभाला और कार में सवार हुए। पार्किंग से निकलने ही वाले थे कि मेरी एन बोली, “एक मिनट लॉबी में चलो।” मैंने कार लॉबी की दिशा में मोड़ दी। वहाँ जाकर कार रोकते ही मेरी एन बाहर निकलते हुए बोली, “मैं थोड़ी कॉफी लेकर आती हूँ।” मैं कार में बैठा हुआ उसका इंतजार करता रहा। वापस आकर जब वह कार में बैठी तो उसके चेहरे पर थकान और अड़चन के चिन्ह थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसकी मदद कैसे करूँ। मैंने फिर भी पूछा, “कोई दवा लेनी हो तो बताओ ड्रग स्टोर चलते हैं।” वह बोली, “नहीं मैं खिड़की खोल लेती हूँ, हवा चेहरे पर लगेगी तो अच्छा लगेगा।”
चूँकि कार की खिड़की खुली थी, इसलिए हाईवे पर पहुँचने के बाद भी मैंने कार धीरे ही चलाई। मैं कुछ कहना चाहता था, कुछ करना चाहता था, ताकि मेरी एन का मन ठीक हो, परंतु समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। मार्ग में लगभग दो घण्टे बाद एक टिम होर्टमैन में जब मैंने काफी लेने के लिए रुका, तब मेरी एन भी कार से निकलकर मेरे साथ आई। मैं कॉफी का आर्डर देते समय मेरी एन से उसकी पसंद पूछने के लिए मुड़ा तो पाया कि वह मेरे पीछे नहीं थी। शायद वह अपने चेहरे पर पानी डालने गई होगी। मैं अपनी कॉफी लेकर उसका इंतजार करने लगा। वह करीब दस मिनट बाद जब बाहर आई तो उसका चेहरा खिंचा हुआ लग रहा था। मैंने उससे पूछा, “अब कैसी तबियत है?” वह बोली, “मुझे उल्टी हो रही थी। शायद कल रात का खाना मुझे रास नहीं आया।” मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और उससे पूछा, “यहाँ से कुछ लेना है कि कार में रखे हुए कोल्ड ड्रिंक पीना चाहोगी।” उसने कहा, “नहीं, यहाँ से कुछ नहीं, पर आइस बाक्स से एक जिंजर एल ले सकती हूँ।”
मैंने आज ही सुबह चलने से पहले ही अपने आइस बाक्स की सफाई करके उसमें होटल की आइस मशीन से ताजी बर्फ डाली थी। कार में पहुँच कर मैंने उसके लिए एक जिंजर एल और ट्रेल मिक्स का पैकेट निकाला उसकी गोद में रख दिया। वह जिंजर एल को धीरे-धीरे चुस्कियों में पीती रही। वहाँ से आगे की न्यागारा फाल्स तक की यात्रा चुप्पी में ही गुजरी।
हम न्यागरा फाल्स लगभग डेढ़ बजे पहुँचे। मुझे अब तक तेज भूख लग आई थी। मेरी एन अब पहले से बेहतर महसूस कर रही थी और उसका चेहरा कुछ सहज लग रहा था। मैंने कार को दुनिया के सबसे बड़े जल प्रपात के सामने बनी सड़क पर ले जाकर एक अस्थायी पार्किग की जगह रोका और कार से निकलकर कुछ क्षणों तक उसे टिककर उस विशाल झरने को मंत्रमुग्ध हो देखता रहा। उसके बाद कार जिस होटल में हम ठहरने वाले थे उसी की पार्किंग में खड़ी की। इस समय यहाँ पर आने वाले सैलानियों की भीड़ के कारण हमें प्रपात के सामने वाले होटलों में तो कमरा मिल ही नहीं सका था। वहाँ के सभी होटल कम से कम दो सौ डॉलर या अधिक के किराए पर उपलब्ध थे। हमें इन होटलों की कतार के पीछे एक छोटे से इन में कमरा मिला था, इसका कारण यह था कि मैंने कमरे के किराए के लिए बोली लगाते समय 110 डॉलर की सीमा लगाई हुई थी। यहाँ का होटल अच्छा न देखकर मैंने मेरी एन से क्षमा माँगी और उसे बताया, “यहाँ पर सारे होटल बहुत महँगे है, क्योंकि सैलानियों के आने का समय तीन-चार महीने ही होता है, लेकिन मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि इस बार हमें इस तरह का होटल मिलेगा।”
होटल सस्ता और पीछे की तरफ था, पर कमरे की अंदर सफाई और साबुन, शैम्पू आदि अच्छी किस्म के थे और तौलिया का कपड़ा भी कोमल और त्वचा को अच्छा लगने वाला था। कुल मिलाकर कमरे के अंदर अच्छा लगता था। यदि मैं अकेला आया होता तब तो इस सब के बारे में शायद ही इतना सोचता, परंतु मेरी एन साथ थी, इसलिए इस तरह के विचार मुझे उद्वेलित कर रहे थे। फिर मैंने यही सोचकर अपने मन को तसल्ली दी कि कम-से-कम माँट्रियाल के होटल के कमरे से तो यह बहुत अच्छा था।
सामान कमरे में रखकर हम दोनों जल प्रपात के सामने बनी दुकानों में से एक सब शाप में गये और हमने अपने लिए सैंडविच बनवाए और उसे लेकर सड़क पार करके जल प्रपात की तरफ आ गए और वहां पड़ी हुए एक बैंच पर जल की विशाल धारा को देखते हुए अपने सैंडविच खाते रहे। इस समय धूप तेज थी और पानी की धारा और उससे नीचे पड़ी हुई शिलाओं पर टकराने से जो धुँआ उठ रहा था वह सफेद धुँध की तरह दिख रहा था। यह सबको मालूम है कि न्यागारा फाल दुनिया का सबसे चौड़ा जल प्रपात है। आम तौर पर पानी की जल धाराएँ फोटो और दूर से देखने पर हमारी बुद्धि उन्हें अपने में समा लेती है। परंतु इस जल प्रपात के सामने खड़े होकर पानी की इतनी मोटी धार और इतने अधिक आयतन में एक साथ गिरता हुआ पानी जब दृष्टि में आता है, तब प्रकृति में उपस्थित विशाल रचनाओं का पता लगता है। इस विशालता को प्रत्यक्ष देखकर ही मनुष्य के बौनेपन का वास्तविक अनुभव होता है। न्यागारा नदी के लगभग आधे किलोमीटर चौड़े पाट से जब प्रति सैकण्ड डेढ़ लाख से साढ़े पाँच लाख लीटर पानी नीचे गिरता है तभी इस प्राकृतिक प्रपात की विशालता का एक निराला अनुभव होता है। यह प्रपात की विशालता, धरती की लम्बाई चौड़ाई के सामने कुछ भी नहीं और ब्रह्माण्ड में हमारी धरती का अस्तित्व धूलि-कण के समान है, फिर भी मनुष्य अपनी ताकत पर फूला नहीं समाता है!
मैने मेरी एन से पूछा, “क्या नाव में जाकर जल प्रपात निकट से देखने चलोगी?” वह बोली, “अभी मैं पूर्णतया स्वस्थ नहीं अनुभव कर रही हूँ।” मैं सहानुभूति में सिर हिलाया और बोला, “तब ऐसा करते हैं, कि थोड़ी देर के लिए होटल चलते हैं, कुछ आराम करके दो-तीन घण्टे बाद देखते हैं।”
होटल के कमरे में पहुँच कर मेरी एन ने अपने ऊपर के कपड़े उतारे और अपने अधो वस्त्रों में बिस्तर में कंबल के नीचे घुस गई। मेरा अभी बिस्तर में लेटने जाने का मन नहीं था, परंतु मेरी एन ने अपनी बाहें पसार दीं और बोली, “तुम भी कुछ देर के लिए बिस्तर में आ जाओ।” मुझे अजीब सा लग रहा था। मैंने कहा, “हाँ”, पर ऐसा कोई उपक्रम करने से पहले मैंने पास पड़ी आराम कुर्सी को अपनी ओर खींचा और उसके सामने बैठ गया। उसके बाद उसके बायीं हथेली को अपने दोनों हाथों में लेकर बोला, “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है। क्या अभी भी उलझन हो रही है?” वह बोली, “नहीं अब उलझन नहीं है, बस थोड़ी सी कमजोरी लग रही है, बाकी ठीक है।” मैंने अपनी कुर्सी को उसके पलंग के बिलकुल समीप में कर लिया और पलटकर टीवी खोलकर उसमें चैनल बदलने लगा।
अब तक मेरी एन को संभवतः अंदाजा लग गया था कि मैं इस समय बिस्तर में लेटने का इच्छुक नहीं हूँ। उसने आगे कुछ नहीं कहा, परंतु आगे बढ़कर मुझसे टीवी का रिमोट ले लिया और फिर चैनल बदलने लगी। चैनल बदलते-बदलते शो टाइम में आ रही किसी डाक्यूमेंट्री पर रुक कर उसे ही देखने लगी। मैंने अपना लैपटाप खोल लिया और उसे इंटरनेट से कनेक्ट करके समाचार पढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद मेरी एन की हालत देखने के लिए उस पर नजर डाली तो पाया कि रिमोट उसकी उंगलियों में अटका हुआ था, परंतु उसकी आँखें बंद थीं और मुँह से हल्की सीटी निकल रही थी।
हम शाम के लगभग पाँच बजे पुनः प्रपात के सामने थे। पुल के ऊपर से खड़े होकर न्यागारा फाल्स के जल प्रपात को हमने विभिन्न कोणों से देखा और सराहा। मुझे यहाँ का विस्तृत इतिहास तो नहीं मालूम है, परंतु कुछ समय से इसे प्रेमी युगलों के लिए बीच में प्रेम का प्रतीक माना जाता है। स्वयं अपनी और मेरी एन की बात करूँ तो हमारे बीच में मेरी एन निश्चित रूप से प्रेम का अनुभव मेरी अपेक्षाकृत अधिक कर रही थी! नीता के साथ हुए अनुभव ने मुझे इतना अधिक शंकालु बना दिया है कि मैं स्वयं पर ही विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ। कहते हैं कि प्रेम स्वाभाविक तौर पर हो, तभी सुख देने वाला होता है। सीधे और साफ शब्दों में कहें तो अपने आप को यह स्वतंत्रता देने की अब मेरी हिम्मत नहीं हो रही है।
हालाँकि, यह अलग बात है कि हम दोनों को इस स्थान पर प्रपात के सामने इस समय हाथों में हाथ डालकर टहलते हुए देखकर, कोई अजनबी भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचता कि अन्य लोगों की तरह हम भी प्रेमी युगल ही हैं। यों, मेरी एन से मुझे कोई समस्या नहीं है, बल्कि अभी तक जो कुछ भी उसके बारे में जाना है, अच्छा ही है। परंतु प्रेम का समर्पण मेरी तरफ से बहुत कम है। इसीलिए मेरी एन जब भी कोई अंतरंग क्षण मेरे सामने प्रस्तुत करती है, तब मैं असहज हो जाता हूँ। ऐसा लगता है कि मैं अपने आप से आडम्बर कर रहा हूँ। एक तरफ तो मैं उसके साथ सहवास कर रहा हूँ, हम दोनों के बीच शारीरिक तौर पर अब कोई भी आवरण नहीं रहा है। इसीलिए यह कहना कि मैं उससे प्रेम की कोई अनुभूति नहीं करता हूँ, वह भी एक बड़ा और ऐसा विरोधाभास है, जिसका सामना करने मेरे लिए कठिन हो रहा है।
शाम होने तक मेरी एन लगभग पूर्णतः स्वस्थ अनुभव कर रही थी। इसीलिए हम दोनों न्यागारा फाल्स में दिखाए जाने वाले प्रकाश और ध्वनि के मनोरंजक कार्यक्रम के शो तक रुके रहे। इस बीच भी हम लगातार कैनेडा की साइड में पैदल ही टहलते रहे थे। कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद हम पैदल चलकर एक इटालियन रेस्तराँ में पहुँचे। रात का साढ़े नौ बजने के बाद भी हमें लगभग 15 मिनट का इंतजार करने के बाद ही बैठने के लिए सीट मिल पाई। इस समय तक भी बहुत से लोग इधर-उधर टहलते हुए वातावरण का आनन्द ले रहे थे। मैंने अपने लिए पास्ता का आर्डर दिया और मेरी एन ने अपने लिए पतली पिज्जा मँगाई। जब मेरी एन ने मेरलो वाइन के लिए वेटर को कहा, तब सबसे पहले तो मेरे मन में दो रातों पुरानी बात याद आई और मैं उसे मना करने के लिए तत्पर हुआ। परंतु फिर ध्यान गया कि मेरी एन को तो मेरी कसम के बारे में कुछ पता नहीं है, अभी उसके बारे में इस प्रकार की बात कहना एक समस्या बन सकती थी। मैंने अपने आप पर नियंत्रण किया और सोचा कि अपनी कसम को अपने तरीके से ही चलाना होगा। इसके अतिरिक्त एक और बात बुद्धि में आई जिसके कारण एक क्षण के लिए मैं उसे यह कहकर टोकने वाला था, कि अभी उसे वाइन नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि शायद इससे उसकी तबियत दोबारा बिगड़ जाए। परंतु इन दोनों कारणों को अपने मन में रखते हुए मैने चुप रहना ही उचित समझा। मैं लगभग पक्की तौर पर अनुमान लगा सकता हूँ, कि उसे आयुर्वेद और आयुर्वेदिक विधि से भोजन करने के भारतीय तरीकों के बारे में शायद न तो किसी ने अब तक बताया होगा और न ही उसने इसके बारे में स्वयं कोई जानकारी प्राप्त करने की कोई कोशिश की होगी अथवा ऐसा कोई कारण बना होगा!
रात का दस बजने के बाद भी लोग आते ही जा रहे थे। लगता है कि रेस्तरां के मालिक को इस बात का अनुभव था, इसीलिए उसने रेस्तरां का मुख्य द्वार बंद करके “बंद है” का साइन लटका दिया। भोजन आने में देर लगने के कारण वेटर हमारे सामने ब्रेड दूसरी बार रख गया। इसी बीच हमारी वाइन की बोतल खत्म हो गई थी, यह देखकर वेटर ने दोबारा वाइन लाने के बारे में पूछा तो मेरी एन ने फिर से वाइन मँगा ली। अभी तक मेरा वाइन का पहला गिलास ही चल रहा था। वाइन का स्वाद मुझे अच्छा नहीं लगता है, विशेषकर उसका खट्टापन, साथ ही उसे गले से उतारते हुए उबकाई की स्थिति आ रही थी। वाइन का छोटा सा घूँट लेने के बाद मैं पानी के कई घूँट पीकर उसका स्वाद मिटाने की कोशिश करने लगा।  कई घंटो से कुछ न खाने के कारण मेरा पेट खाली था और इस अवस्था में शरीर के अंदर जाता हुअ अलकोहल रक्त में सीधे मिल रहा था। इसके फलस्वरूप थोड़ी सी वाइन ने ही मुझे नशे की स्थिति में पहुँचा दिया। भोजन का इंतजार करते-करते मेरी एन अपने बचपन की याद करने लगी। वह बोली, “जब मैं लगभग 12 या 13 वर्ष की आयु की रही होऊँगी, उस समय माँ कभी-कभी हम तीनों बहनों को लेकर पास के एक फैन्सी रेस्तराँ में शाम के भोजन पर ले जाती थी।” अपने फ्राँस में बीते जीवन के बारे में वह आगे बताने लगी कि कैसे वह और उसकी बहनें स्कूल जाती थीं। वो लोग बचपन में क्या शरारतें करते थे। मेरा शरीर और मस्तिष्क दोनों ही शिथिल हो रहे थे, इसलिए उसकी बातें मन तक पहुँच नहीं रहीं थी!  पिज्जा और पास्ता के हमारी मेज पर आने तक हम दोनों पर वाइन का असर होने लगा था।
भोजन समाप्त कर हम जब होटल पहुँचे तो उस समय तक ग्यारह बज रहे थे। एल्कोहल के असर ने मेरी सोचने-समझने की शक्ति को कम कर दिया था। शायद मेरे अंतर्विरोध के शिथिल पड़ने का भी यही कारण था। हमारी कार तो पहले से ही होटल के पास वाली पब्लिक पार्किग में थी, इसीलिए हम होटल से शाम को पैदल ही आये और पैदल ही वापस लौटे थे। कमरे में प्रवेश करने के समय तक मेरे मस्तिष्क में सनसनी छायी हुई थी।


बुधवार


सुबह उठकर मैं जब जिम पहुँचा तो निराश हो गया। उसके दरवाजे पर फ्रेंच में “खेद है” जैसा कोई निर्देश लगा हुआ था। अब मेरे पास बाहर दौड़ने या टहलने के अलावा कोई चारा नहीं था। सुबह के साढ़े छह बजे ही धूप तेज हो चुकी थी। मैं अपने होटल से निकल प्रपात के सामने वाली सड़क पर आ गया। कुछ स्थानीय लोग अपने कुत्तों को लेकर टहलने के लिए निकले हुए थे। सूर्य की किरणें तिरछी होकर प्रपात के सामने खड़ी हुई होटलों की इमारतों पर पड़ रहीं थीं। कुछ दूर तक धीमी गति से दौड़ने के बाद मुझे लौटना पड़ा क्योंकि वहाँ से अमेरिकी सीमा आरंभ हो जाती थी। मेरा पासपोर्ट अभी मेरे पास नहीं था और यह संभव था कि मैं गलती से अमेरिकी सीमा में प्रवेश कर जाऊँ। यह भी संभव था कि दोनों देशों की सीमा जहाँ आपस में मिलती है उस क्षेत्र में कैनेडा की तरफ भी अधिकारी ही मुझसे मेरा पहचान-पत्र माँगने लगें, पूछे जाने पर मैं उन्हें यह कह सकता था कि मेरा पासपोर्ट होटल के सेफ में है, परंतु समस्या तो हो ही सकती थी। मैं इस तरह की बिन बुलाई झंझटों में नहीं पड़ना चाहता था।

यह बाधा आ जाने से मेरा मन विचलित हो गया और मैं दौड़ने की बजाय प्रपात के सामने खड़े होकर पानी को गिरता देखता रहा। पानी को देखकर पुनः विचार आया कि इस प्रपात का पानी बहुत अधिक मात्रा में और बहुत अधिक वेग से नीचे की चट्टानों पर गिरता है। अभी तक साहस प्रदर्शन करके प्रपात से नीचे कूदने की कोशिश में और कई अन्य लोगों ने प्रपात के आस-पास लापरवाही के कारण पानी में फिसल कर अपनी जानें गवाँई हैं। इस प्रकार की बातें मन में आने से मेरा मन और अधिक विचलित हो गया। यहाँ तक कि मैं दुःखी होकर होटल की ओर लौट पड़ा। मेरी एन अभी सो रही थी। मैं स्नान करने चला गया। इस होटल का बाथरुम बहुत ही छोटे आकार का था। निकलने से पहले मैं अपने गीले तौलिये से बेसिन और टब को इतना पोछ दिया कि पानी की बूँदे आँखों के ठीक सामने न पड़ें। मैं इस सावधानी को पिछले सात-आठ दिनों से बरत रहा था, पर इस छोटे से बाथरूम में इस तरह की सफाई की आवश्यकता तो और भी अधिक थी।
बाहर निकला तो मेरी एन उठकर बिस्तर के किनारे बैठी हुई थी। उसका चेहरा बहुत अधिक मुरझाया हुआ लग रहा था।। सहानुभूतिवश मैंने उससे पूछा, “अब कैसी हालत है आपकी?” वह बोली, “कल से अच्छी है, पर अभी बिलकुल ठीक नहीं हूँ।” मैंने कहा, “आपको स्नान करके थोड़ा नाश्ता करना चाहिए, शायद उससे आप स्वस्थ अनुभव कर सकें।”
हमने अपना सामान लेकर होटल से तो चेक आउट कर लिया, परंतु अपनी कार अभी भी उसके सामने ही पार्क रहने दी। वहाँ से टहलते हुए लगभग 10 बजे हम प्रपात के सामने पहुँचे। प्रपात का पानी तेज धूप में नीचे पड़ी चट्टानों पर टकराकर सफेद बादल की तरह हवा में उठ रहा था। वहाँ आये सैलानी टिकट लेकर बड़ी नावों से नदी जाकर प्रपात का दृश्य समीप से देख रहे थे। हमें आज कनाडा छोड़कर पुनः अमेरिका में प्रवेश करना था। आज की रात मैंने पिट्सबर्ग पेनसेल्वानिया में रुकने के लिए होटल का कमरा आरक्षित किया था। मैं और मेरी एन दोनों ही इस बात पर विचारमग्न थे कि प्रपात का दृश्य यहीं से देखकर वापस जायें अथवा नाव की यात्रा करके प्रपात को निकट से देखने जायें। अंत में हमने यही निर्णय लिया कि यहाँ तक आकर प्रपात को निकट से देखकर ही जाना चाहिए।
हम टिकट लेकर नाव की ओर बढ़े तो एक व्यक्ति ने हमसे पूछा, “आपके साथ कितने लोग हैं?” मैंने उत्तर में उसे दो बताया तो उसने हमें पीले रंग के दो पॉलीथीन के लबादे दे दिए गये। हमने और लोगों की तरह उन लबादों को पहन लिया और नाव पर यात्रा करने के लिए खड़े हुए लोगों की एक लम्बी पंक्ति में पीछे लग गये। तीन नावों के आकर चले जाने के बाद हमें चौथी नाव पर चढ़ने का मौका मिल पाया। नाव में चढ़ने के बाद मेरा ध्यान गया कि हमारे चढ़ने तक नाव पूरी भर गई थी। प्रपात को पास से और अच्छी तरह देखने के लिए पहले आये लोगों ने नाव के ऊपरी तल पर किनारे के सभी अच्छे स्थानों पर अपना अधिकार कर लिए था। यहाँ तक लोग नाव की रेलिंग के पीछे एक और लाइन बनाकर भी खड़े हुए थे। उनके पीछे आये हुए लोगों ने बाकी जो भी जगह मिली उसमें खड़े हो गये। इतनी भीड़ में अब हमें ऊपरी तल पर कोई अच्छी जगह मिलनी अत्यंत कठिन थी। इसके ठीक विपरीत निचले तल पर अधिक से अधिक चार या पाँच लबादे दिख रहे थे। मजबूरी में हम नीचे के तल पर ही खड़े होकर प्रपात को पास से देखने का इंतजार करने लगे। नाव पानी के तेज बहाव और तेज हवा के विशाल झोंको के कारण बड़ी जोर से हिचकोले खा रही थी। जब पॉलीथीन की पारदर्शक बरसाती हमें दी गई थी उस समय मैंने सोचा था कि शायद थोड़े बहुत छींटों से बचने के लिए लोग इसे पहनते होंगे, परंतु निचले तल पर तो तिरछी बौछारें, धुँध और पानी की लहरें सभी अपना-अपना काम कर रहीं थीं! मेरी एन मुझसे कुछ आगे खड़ी थी, संभवतः उसका मन नहीं माना और वह मुझे भी आँखों से ऊपर की ओर जाने का इशारा करती हुई ऊपर के तल की ओर चल पड़ी। मुझे ऊपर कोई अच्छी जगह मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए मैंने नीचे ही खड़े रहना उचित समझा।
मैं नाव के पिछले हिस्से में था। जब नाव नदी में नीचे जाकर वापस घूमी तो मैं भी नाव के दायें हिस्से से घूमकर बायीं ओर आया जिससे प्रपात के अमेरिकी किनारे को और प्रपात को ठीक से देख सकूँ। तेजी से ऊपर-नीचे होती हुई नाव में ऊपर जाने वाली सीढ़ियों की दीवार के साथ लगी हुई रेलिंग को पकड़ कर मैं अपने को सुरक्षित करने वाला ही था कि तभी आई एक बड़ी लहर की तेज पानी की धार ने मुझे लड़खड़ा दिया। मैं संभलने की कोशिश कर ही रहा था कि एक और लहर नाव के निचले तल पर चढ़ी जिसके बड़े-बड़े छींटें सीधे मेरी आँखों में आकर लगे। पानी आँखों में लगते ही मैं चिहुँक कर पीछे हठा। अगले ही क्षण मैंने पाया कि एक तरफ झुकती नाव पर मैं तेजी से सरकता हुआ नाव के सिरे पर लगी रेलिंग की तरफ जाता हुआ गिर रहा था! पानी की लौटती लहर के साथ लगभग 12-14 फीट चौड़ी की जगह मैंने पीठ के बल फिसलते हुए एक से दो सेकेण्ड में तय की होगी कि तभी मुझे समझ में आया! इस तरह तो नाव के फर्श पर सरकते हुए रेलिंग के नीचे की लगभग एक फीट की खाली जगह से होता हुआ मैं सीधा पानी में जा गिरूँगा! इस संकट की घड़ी में अब मेरे सामने दो रास्ते थे। एक तो यह कि जब सरकते हुए मेरे पैर और धड़ रेलिंग के नीचे से निकल चुके हों, उस समय मैं किसी तरह रेलिंग की नीचे वाली छड़ को पकड़ कर अपने को पानी में गिरने से रोकूँ। दूसरा तरीका यह हो सकता था कि नीचे वाली रेलिंग को सहारा देने वाली लोहे की छड़ों में किसी एक पर अपने धड़ को टकरा दूँ जिससे मेरा गिरना रुक जाये। ये छड़े लगभग 6-8 फीट की दूरी पर लगी हुई थी और उनके बीच में खाली जगह थी। घबराहट में छटपटाते हुए मैंने अपने शरीर को रेलिंग के नीचे लगी छड़ की ओर ले जाने की कोशिश की, परंतु मेरा अनुमान बिगड़ गया और वह छड़ मेरी दोनों खुली टाँगों के बीच में हो गई। पीली बरसाती ने सबसे पहले मेरे शरीर के भार और वेग को सहन किया। छटपटाती हुई खुली टाँगों के कारण बरसाती घुटनों के पास खिंच रही थी कि तभी बरसाती का तना हुआ निचला हिस्सा रेलिंग के नीचे लगी हुए एक छड़ से जा टकराया। आमतौर पर बरसाती का निचला हिस्सा खुला होता है और इस बरसाती में भी वैसा ही था, परंतु छटपटाते पैरों के कारण शायद कुछ हिस्सा सामने आ गया था जो कि छड़ से टकराकर फटता चला गया। आखिर में मेरी दोनों जाँघों के बीच का हिस्सा छड़ से टकराया और मेरी दोनो टाँगे छड़ के इधर-उधर लटक गईँ। मेरी पौरुषीय अंगों में दर्द की तीव्र तथा असह्य लहर उठी और मेरी साँस रुक गई।
इस असंभव अवस्था में लटके हुए ही मुझे भान हुआ कि अब तक मैं रेलिंग के निचले हिस्से को अपने दोनों हाथों को पकड़कर स्वयं को पूरी तरह रोक चुका था। छड़ से टकराने के कारण दर्द अब भी तीव्र था, परंतु मैं झपट कर पीछे हटा और उठकर रेलिंग के सहारे खड़ा हो गया। अब तक नाव न्यागारा प्रपात के ठीक सामने खड़ी थी। लगभग आधे से एक मिनट तक नाव उस विशाल प्रपात के लाखों टन गिरते हुए पानी के झरने से लगभग 50 से 100 मीटर की दूरी पर खड़ी रही। गिरते हुए पानी की आवाज बहुत गंभीर और गहन लग रही थी। मैंने इस तरह की आवाज कभी नहीं सुनी थी। गिरकर संभलने के बाद अब मुझे अनुभव हुआ कि मेरे हाथ और पैर बुरी तरह काँप रहे थे। लेकिन फिसलने के अनुभव के कारण अब मेरा अपनी जगह और वह रेलिंग छोड़ने का साहस भी नहीं हो रहा था। हमारी नाव प्रपात के सामने अधिक देर नहीं खड़ी रही और घूमकर वापस चल दी। इस समय तक मेरी संज्ञा लौट चुकी थी। मैंने दृष्टि घुमाकर इधर-उधर देखा तो पाया कि एक भारतीय लड़की मेरी ओर देख रही थी। संभवतः उसने मेरे साथ हुई दुर्घटना देखी हो, परंतु उसके मुख के भाव निस्पृह थे।
नाव पुनः घूम जाने के कारण अब कैनेडा का तट मुझे पुनः दिखने लगा। धीरे-धीरे मेरी संज्ञा वापस लौटने लगी। विशाल प्रपात के चारों तरफ से गिरते पानी और झरने की तेज आवाज का चित्र मेरी आँखों के सामने से घूम गया। मैं अपनी जगह जड़वत् खड़ा था! कुछ देर बाद मेरा ध्यान पीली बरसाती पर गया तो पाया कि वह न केवल सामने से नुच गई थी, बल्कि उसका दायां हिस्सा कंधे, छाती और कमर से चिपका हुआ था जबकि बायाँ हिस्सा झूल रहा था। मैंने हाथों से खींच कर दोनों हिस्सों को एक जैसा बनाना चाहा, परंतु काँपते हाथों के कारण यह साधारण सा काम भी करना कठिन हो रहा था। दो-तीन बार प्रयास करने के बाद मैंने उसे छोड़ दिया। हमारी नाव अब कैनेडा के तट की ओर बढ़ रही थी।
मुश्किल से दो-तीन मिनट समय पहले मैं नदी में डूबते-डूबते बचा था। उसके सदमें से मेरा मष्तिष्क अब भी सुन्न था और बुद्धि कुछ भी ठीक से सोच नहीं पा रही थी। लंबी-लंबी साँसे भरते हुए मैंने अपने आपको नियंत्रित करने की कोशिश की। लगभग पाँच मिनट बाद नाव कैनेडा के तट पर वापस आकर रुकी। अब तक लोग ऊपर के तल से नीचे आने आरंभ हो गये थे। मैं निचले तल पर ही था, इसलिए आगे बढ़ कर उतरने वालों के साथ शामिल हो गया। नाव छोड़ कर उतरते ही सबसे पहले मैंने अपनी बरसाती को उतारा। वह घिसने और नुचने के कारण बेढंगी सी हो रही थी। अंदर-ही-अंदर मैं अभी भी सहमा हुआ कांप रहा था। नदी के किनारे बने लकड़ियों के मचान पर एक ओर खड़े होकर, मैं मेरी एन के भीड़ में से निकलने का इंतजार करता रहा। अपनी घबराहट और बदहवासी को दूर करने के लिए मैंने तीन-चार बार खाँसा और गले को साफ करने की कोशिश की। मुझे अपनी आवाज बहुत ही दबी-दबी और मिमियाती सी-लगी। इस समय यदि कोई मुझे निकट से देखता तो यही सोचता कि शायद मेरी तबियत खराब है।
मेरी एन लगभग सबसे बाद में निकल कर बाहर आई। उसे देखते ही मैंने अपने आपको एक बार पुनः संयत किया। उसे दूर से देखकर मैंने हाथ उठाकर संकेत किया। जैसे ही मेरी एन का ध्यान मुझ पर गया। वह मेरी ओर चल दी। उसके पास आते ही कुछ भी कहने की बजाए, मैं आगे बढ़कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। ऊपर सड़क पर पहुँचते-पहुँचते मैं कुछ सीमा तक सामान्य अनुभव कर रहा था। मेरे साथ नाव के निचले तल में मेरे अतिरिक्त चार-पाँच लोग ही और थे। मेरे फिसलने की घटना पर अधिक से अधिक उस महिला का ध्यान गया हो सकता था। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि प्रपात के सामने पानी का शोर इतना अधिक और नाव पर पानी की बौछारें इतनी सघन थी कि यदि किसी ने अपने सामने गिरते हुए देखा हो, तब तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें पता न चलता।
मुख्य सड़क पर पहुँचकर मेरी एन बोली, “कितना चौड़ा और विशाल था न!” मैंने सहमति में सिर हिलाया और कहा, “यहाँ सड़क से इसकी विशालता अनुभव नहीं होती। मेरा मतलब है कि दूर से देखकर व्यक्ति यह तो समझ जाता है कि प्रपात बहुत बड़ा और विशेष है, पर इसका असली अनुभव उसके सामने खड़े होकर ही आता है।” नाव की यात्रा में अधिक-से अधिक दस मिनट लगे होंगे, परंतु लोगों के नाव में चढ़ने उतरने और नाव आने जाने को मिला कर, नाव के एक चक्कर में 40-45 मिनट लग जाते हैं।
लगभग साढ़े बारह बजे हम न्यागारा फाल्स से वापसी के लिए निकल पड़े। कैनेडा से अमेरिका लौटते हुए चेक पोस्ट पर 20-25 कारें हमारे आगे थीं। हमारी बारी आने में लगभग 15 से 20 मिनट लगे। सीमा अधिकारी ने औपचारिक तरीके से हमारा स्वागत किया। फिर बिना अन्य कोई बात किए हमारे पासपोर्ट और उन पर लगे वीसा की मोहर देखी। उस जानकारी को कम्प्यूटर में अंकित जानकारी से मिलाया। हमारे पासपोर्टों पर अमेरिका में प्रवेश करने की तिथि और अमेरिकन चेक पोस्ट की मोहर लगाई और हमें अमेरिका में घुसने की अनुमति दी। पुनः अमेरिका में घुसते ही मैंने राहत की साँस ली और मेरी एन से बोला, “आपका मुझे कैनेडा लेकर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! यदि आप न्यूयार्क में प्रयत्न न करतीं तो मेरा आना कम से कम इस बार तो संभव नहीं था। आगे कैनेडा कब आना होता, आ भी पाता कि नहीं यह सब सोचना असंभव न भी हो तो भी कठिन तो अवश्य ही था।” वह शालीनता से बोली, “कोई बात नहीं।”
मैं उससे बोला, “क्या कुछ देर के लिए अमेरिकी तट से भी न्यागारा नदी का दर्शन किया जाये?” वह बोली, “क्यों नहीं।” मैंने कार अनुमान से नदी के तट की ओर मोड़ ली। कार लेकर मैं न्यागारा नदी के दक्षिणी तट की ओर पहुँचा। कार को पार्किंग में लगाकर हम दोनों नदी की ओर पहुँचे तो पाया कि यह जगह नदी से काफी दूर है और यहाँ से पानी ठीक से नहीं दिखता। पार्किंग से दूर उत्तर-पूर्व की ओर चलते-चलते हम एक ऐसी जगह पहुँच गये जहाँ से नदी का प्रवाह निकट से दिख रहा था। मैं जल के प्रवाह की गति देखकर अंचभित हो गया! परंतु फिर नीचे नाव से देखा हुआ जल का विशाल आकार स्मृति में आया तो इस प्रवाही की गति का कारण भी स्पष्ट हो गया। स्पष्ट था कि यदि कोई नदीं में बिना किसी सहारे के पैर रखे तो अगले ही क्षण जल के बहाव में बह जायेगा। इतनी अधिक मात्रा में पानी यहाँ से निकलकर नीचे चट्टानों पर गिरता है कि पहले से गिरे हुए पानी में तेज लहरे उत्पन्न करता है। इसी कारण हमारी नाव बुरी तरह से हिचकोले खा रही थी। मैं अपने साथ हुई दुर्घटना को याद करके पुनः सिहर उठा।
न्यागारा फाल्स नगर से पिट्सबर्ग का रास्ता लगभग 4 घंटों का था। नाव पर हुए सदमे का असर मुझ पर अभी भी था। भूख लगने की बात तो दूर पेट में खलबली सी मची हुई थी। न्यागारा फाल्स नगर से दक्षिण के मार्ग में थोड़ी दूर चलते ही बफैलो नगर आ गया। कुछ देर तक चलने के बाद मुझे विचार आया कि मुझे तो भूख नहीं है, परंतु मेरी एन तो अब तक कुछ अवश्य खाना चाहेगी। चुप्पी तोड़ते हुए मैंने मेरी एन से पूछा, “क्या आपको भूख लग रही है? क्या खाना चाहेंगी आप?” वह बोली, “मुझे अभी भी मितली आ रही है, सोचती हूँ एक सेवन अप पी लूँ तो शायद ठीक लगे।” मुझे उसकी बात जँची। यूनिवर्सिटी से निकलने से पहले मैंने कोक, फैन्टा, माउन्टेन ड्यू और सेवन अप के 12 डिब्बों के पैक खरीदे थे। मैंने कार रूट 190 के आगे आने वाले पाँचवे निकास से बाहर निकाली और राजमार्ग से बाहर निकलते ही मुझे एक आवासीय भवनों का समूह दिखा। उसके सामने बनी पार्किंग में कई जगहें रिक्त थीं। उनमें से एक में गाड़ी खड़ी कर मैंने कार के ट्रंक में से बर्फ के बीच रखे हुए ठंडे पेयों में से एक सेवन अप मेरी एन के लिए और एक फैन्टा अपने लिए निकाली। भोजन करने की इच्छा नहीं थी, परंतु फिर भी मेरा प्रयास था कि यहाँ से अधिकाधिक दूर तक कार मार्ग में न रोकनी पड़े। इसलिए मैंने नेचर वैली के तीन सीरियल बार और तोसितोस चिप्स का बैग निकाल कर अपने साथ कार में रख लिया। हमने पुनः दक्षिण की ओर जाने वाले रूट 190 के पाँचवे प्रवेश मार्ग द्वारा राजमार्ग में प्रवेश किया।
आगे चलकर हमने पश्चिम की ओर जाने वाले राजमार्ग 90 को पकड़ा। राजमार्ग 90 को न्यूयार्क थ्रू वे भी कहते हैं। इस मार्ग पर हमारी दिशा में जाने कारें संख्या में बहुत कम दिख रहीं थी। हमारी विपरीत दिशा में आने वाली कारों की संख्या अधिक थी। इस बीच मेरी दृष्टि मेरी एन के चेहरे पर पड़ी तो पाया कि उसकी आँखें तो बंद थी, परंतु चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। मुझे उससे सहानुभूति हो उठी और मैंने बरबस उसके बायें हाथ को अपनी दायीं हथेली से सहानुभूति पूर्वक थपथपाया। मेरे हाथ का स्पर्श पाकर मेरी एन कुछ मेरी तरफ होकर अधलेटी सी हो गई।
राजमार्ग 90 पर लगभग दो घंटे बाद हमें राजमार्ग 79 को लेना था। इस मार्ग अंतर-परिवर्तक तक पहुँचने के लगभग पाँच मील पहले ही अकस्मात् गाड़ियाँ धीमीं होकर रुक गईं। कार का स्टीयरिंग व्हील संभालने के लिए मैंने अपना दायाँ हाथ मेरी एन के हाथ से हटाया तो वह भी चौंक कर जाग पड़ी। कारें धीरे-धीरे रेंगती रहीं और लगभग पंद्रह मिनट के बाद हमें विपरीत दिशा से आने वाली सड़क पर एक भीषण दुर्घटना के दर्शन हुए। एक बड़ा ट्रक और उसके पीछे का बीस हजार पाउण्ड का सामान ले जाने वाला कैरियर दोनों पूरी तरह जलकर काले हो चुके थे। यदि उनमें कोई व्यक्ति रहे होंगे तो उनकी स्थिति चिंताजनक तो अवश्य ही रही होगी। आने और जाने वाली सड़क को विभाजित करने वाली चौड़ी घास की पट्टी पर तीन कारें क्षतिग्रस्त अवस्था में थीं। एक कार पूरी तरह उलट गई थी। बाकी दोनों कारों के एयर बैग खुल चुके थे। चार या पाँच दमकल और 2 आपातकालीन गाड़ियाँ खड़ी हुई थीं। कार वहाँ से निकलने पर हमें कोई व्यक्ति तो नहीं दिखा। शायद घायलों को अस्पताल की गाड़ियाँ ले जा चुकी थीं।
इस तरह की दुर्घटना देखने के बाद व्यक्ति का हृदय कुछ समय के लिए बहुत विचलित हो जाता है। आज का दिन कुछ अच्छा नहीं चल रहा था। पहले नाव में फिसलने के कारण और अब इस दुर्घटना को देखकर मैं सशंकित हो गया था। मैंने चुपचाप अपनी कार बायीं लेन से हटाकर दायीं लेन में कर ली और सड़क की निर्धारित गति सीमा में कार चलाने लगा। इसके पहले राजमार्ग पर अन्य चालकों की तरह मैं भी लगभग 80 या अधिक मील प्रति घंटा की गति से गाड़ी चला रहा था। अब चुपचाप 70 मील या उससे कम पर ही गाड़ी चलाने लगा।
घड़ी में पाँच बजकर 10 मिनट हुए थे जब हम कार्नेगी मेलान यूनिवर्सिटी पहुँचे। कुछ महीने पहले, खालिद का एक हैदराबादी मित्र श्रीनिवास, खालिद से मिलने हमारे यहाँ आया था। तब मेरी और उसकी भी मित्रता हो गई थी। श्रीनिवास यहाँ सीएमयू में मेटीरियल साइंस में मास्टर्स कर रहा था, यह याद रखते हुए जब मैंने उसे दिन में मिलने के बारे में टेक्सट किया, तो उसने मुझे तुरंत सहर्ष आमंत्रित कर लिया था। श्रीनिवास के अपार्टमेंट के सामने पहुंचकर मैंने मेरी एन को बताया, “हम कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी में आये हैं। यहाँ मेरा एक मित्र श्रीनिवास रहता है। कुछ देर उससे मिलेंगे, तब उसके बाद अपने होटल चलेंगे। आप एक मिनट कार में ही रुकें मैं उसका अपार्टमेंट पता करता हूँ।“  उसे कार में ही बैठे छोड़कर मैंने श्रीनिवास के अपार्टमेंट के बाहर दरवाजे के निकट बने बजर में देखते हुए 7F का बटन दबाया।
तीसरी मंजिल पर बने अपार्टमेंट से नीचे आकर सीढ़ियों का दरवाजा खोलने के बाद श्रीनिवास बाहर आया तो हम दोनों आपस में गर्मजोशी से गले मिले। श्रीनिवास बोला, “यार अच्छा किया जो अपने यहाँ से गुजरने के कार्यक्रम को बताया। अच्छा लगा तुमसे मिल कर!” मैंने भी उससे उत्तर में अपनी प्रसन्नता को व्यक्त किया। श्रीनिवास बोला, “आओ ऊपर कमरे पर चलते हैं।” मैंने सहमति में सिर हिलाया और इसके पहले कि मैं उसको यह बता पाता कि मेरे साथ मेरी एन भी इस यात्रा में आई है और वह इस समय कार में बैठी है। वह पुनः बोल पड़ा, “मैं असल में वेकंटेश्वर मंदिर जाने की सोच रहा था। तुम्हारा भी मन हो तो पहले वहाँ हो आते हैं, फिर बैठकर आपस में बात-चीत करेंगे। वैसे यहाँ का यह मंदिर भारतीय लोगों में बहुत प्रसिद्ध है।”
मंदिर जाने का उसका आमंत्रण मैं ठुकरा नहीं पाया। आज दिन में मुझे बहुत बड़ा जीवन दान मिला था, जिसके लिए मैंने रास्ते भर प्रभु को धन्यवाद दिया था। इसलिए अपनी इस मनः स्थिति में मुझे लगा कि मंदिर जाना अच्छा रहेगा। मेरी कार तो तैयार थी ही, मैंने तुरंत उससे कहा, “तुम अपनी कार क्यों निकालोगे, मेरी कार में ही चलते हैं।” श्रीनिवास मान गया और हम जैसे ही कार की ओर बढ़े तो श्रीनिवास बोल पड़ा, “यह तो खालिद की कार लगती है? है न?” मैंने उससे कहा, “हाँ, मैंने खालिद से उधार लेकर आया हूँ, अभी तक मैंने कार नहीं खरीदी है।”
इस बीच श्रीनिवास की दृष्टि मेरी एन पर पड़ी तो उसने उलझन भरी आवाज़ में पूछा, “यह कौन है?” मैंने उससे कहा, “मैं यात्रा का खर्च बाँटना और यात्रा में किसी का साथ चाहता था, छुट्टी के इस समय में यूनिवर्सिटी में मेरे साथ यात्रा करने के लिए यही तैयार हुई।” श्रीनिवास अभी इस बात का अर्थ समझ ही रहा था, कि तब तक अपनी ओर का दरवाजा खोलकर मेरी एन बाहर निकली। मैंने श्रीनिवास और मेरी एन का आपस में परिचय करवाया। संक्षिप्त परिचय होते ही मेरी एन बोली, “मैं रेस्ट रूम का प्रयोग करना चाहती हूँ” फिर श्रीनिवास की ओर मुड़ी और बोली, “क्या मैं आपके यहाँ रेस्टरूम का प्रयोग कर सकती हूँ?” श्रीनिवास मुड़कर अपने अपार्टमेंट की ओर चल पड़ा और हम उसके पीछे हो लिए।
ऊपर जाकर मेरी एन रेस्टरूम में चली गई। श्रीनिवास हल्की-फुलकी बातचीत आगे बढ़ाते हुए बोला, “तो तुम लोग कहाँ-कहाँ घूम आये हो?” मैंने श्रीनिवास के दो कमरों वाले अपार्टमेंट में इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई और बोला, “हम दो सप्ताह पहले निकले थे, वाशिंगटन, न्यूयार्क, बॉस्टन और मेन होते हुए क्यूबेक सिटी और फिर वहाँ से माँट्रियाल, टोरेन्टो होते हुये न्यागारा फाल्स। अभी हम सीधे न्यागारा फाल्स से ही आ रहे हैं।” श्रीनिवास उत्तर में बोला, “तुम लोग कई स्थानों पर घूम आये हो!” मैंने कहा, “हाँ, मैं तो इसी उद्देश्य से निकला था।” तब तक मेरी एन रेस्टरूम से बाहर निकली। उसे देखकर मुझे भी याद आया कि मंदिर जाने से पहले निवृत्त हो जाना चाहिए। रास्ते में पिये गये कोल्ड ड्रिंक और पानी को अब तक शरीर ने अपने प्रयोग में ले लिया था और उसके बाकी बचे अवशेषों को अब बाहर निकालना आवश्यक था। मैं उन दोनों को देखते हुए बोला, “मैं भी रेस्टरूम का प्रयोग कर लेता हूँ।”
अपार्टमेंट से निकलकर हम कार में बैठ गये। मैं कार में लगे जीपीएस में मंदिर ढूँढने लगा। पीछे बैठे श्रीनिवास ने यह देखकर कहा, “यहाँ से सीधा रास्ता है, पूर्व की ओर जाने वाला राजमार्ग 376 लेकर आधे घंटे में पहुँच जायेंगे।”  उसकी आवाज़ सुनकर मेरी एन बोली, “आप आगे वाली सीट पर आ जाइए, इससे आप लोग आपस में बातें भी कर सकेंगे और रास्ता भी बताना आसान होगा।” यह कहकर दरवाजा खोलकर बाहर निकल आई और श्रीनिवास के बाहर निकलने की राह देखने लगी। श्रीनिवास पहले तो हिचकिचाया फिर पिछली सीट छोड़कर आगे आ बैठा।
रास्ते भर हम पिछली बार की याद करते हुए आपस में बातें करते रहे। श्रीनिवास सीएमयू में कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में पीएचडी कर रहा है। हम लगभग 35 मिनटों के बाद 12-13 मील की दूरी तय करके शाम के यातायात में भीड़ का सामना करते हुए मंदिर पहुँचे। यह मंदिर दक्षिण भारतीय कला का एक सुंदर रूप है। बाहर की सतह सीमेंट की दीवारों से और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हुई है, जिस पर इस समय सफेद रंग की पुताई की हुई थी। इस मंदिर को वास्तविकता में वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। कार मंदिर के बगल में बने पार्कंग में खड़ी करके हम दोनों तो बाहर निकल आये, परंतु संभवतः मेरी एन कुछ समझ नहीं पा रही थी कि उसे मंदिर में जाना चाहिए कि नहीं। श्रीनिवास उससे बोला, “आप भी आइये। मंदिर में हम सभी जा सकते हैं और यहाँ पर अन्य लोगों के लिए आना मना नहीं है।” मुझे दक्षिण भारत के कुछ मंदिर याद आये, जहाँ पर हर जाति के लोग नहीं जा सकते हैं। शायद कुछ मंदिर तो ऐसे भी हैं जिनमें महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है। स्पष्ट था कि अमेरिका में बसे भारतीय लोग इतने रूढ़िवादी नहीं हैं।
मंदिर में अंदर जाने से पहले जूते आदि उतारकर और हाथ धोने के बाद हम तीनों लोगों ने मंदिर की चिकनी और ठंडी सतह पर पैर रखे। सामने भगवान विट्ठल अथवा श्रीनिवास जिन्हें हम उत्तर भारत में भगवान विष्णु के नाम से भी जानते हैं, उनकी साधारण मानवीय शरीर से कुछ बड़ी मूर्ति स्थापित थी। मूर्ति के दायें और बायें दो पुजारी सफेद धोती पहने और यज्ञोपवीत धारण किये हुए लोगों के द्वारा लाया गया प्रसाद भगवान की मूर्ति के सामने अर्पित कर रहे थे। एक पुजारी लोगों को प्रसाद दे रहा था। मैंने और श्रीनिवास ने पूरी श्रद्धा से भगवान की मूर्ति को प्रणाम किया। मुझे पुनः सुबह नाव में फिसलने की घटना याद आ गई। उसे याद करके सिहरते हुए मैंने भगवान को अपनी पूरी श्रद्धा से धन्यवाद दिया और अपना जीवन उनका आभार मानता हुआ प्रसाद लेने गया। हम लोगों के देखते हुए मेरी एन ने भी हमारा अनुसरण किया।
पुजारी ने मुझे और श्रीनिवास को तिलक लगाया। मेरी एन को इसका कोई अनुभव नहीं था, इससे पहले कि मैं उसे कुछ कह पाता, पुजारी ने अपना हाथ उसके माथे की ओर बढ़ाया तो मेरी एन भी आगे बढ़कर उसके लिए प्रस्तुत हुई। मैंने तिलक लगवाते समय अपना रुमाल अपने सिर पर रख लिया था। जब मेरी एन की बारी आई तब मुझे ध्यान नहीं रहा कि उसके पास रूमाल या चुन्नी आदि नहीं है जिससे सिर ढँका जा सके। पुजारी एक क्षण के लिए रुका, संभवतः वह सोच रहा था कि वह भी अपने सिर पर कोई कपड़ा आदि रखेगी। तभी वहीं पर खड़ी एक आँटीजी ने अपनी साड़ी के पल्लू से मेरी एन के सिर को ढँक कर इस असमंजस को दूर कर दिया। पुजारी जी ने मेरी एन के माथे पर गोल तिलक कर दिया। मैं सोचने लगा यह भी कैसा संयोग है। आमतौर पर मंदिरों में सब प्रकार के लोग आते है और पुजारी यंत्रवत् उनका तिलक करते रहते हैं। शायद काकेशियन महिला को देखकर पुजारी कुछ सोच में पड़ गया होगा!
अन्य लोगों के साथ-साथ हम लोग भी मूर्ति की परिक्रमा करने लगे। एक परिक्रमा करके वापस आने के बाद हम कुछ देर के लिए वहीं मंदिर की भूमि पर बैठ गये। श्रीनिवास मेरी एन से बोला, “क्या आप पहले भी किसी मंदिर में आईं है?” इस प्रश्न के उत्तर में मेरी एन बोली, “सुरेश के साथ यात्रा करते हुए भारत और भारत के लोगों के बारे में पहली बार कुछ जानने को मिला है। हिन्दू मंदिर में भी मैं जीवन में पहली बार आई हूँ।”
मंदिर के खुले हिस्से में कुछ लोग हवन आदि कर रहे थे। मेरी एन ने मुझसे पूछा, “वहाँ क्या हो रहा है?” इसके पहले कि मैं उसके प्रश्न का उत्तर दे सकूँ, श्रीनिवास ने बताया, “इसे अग्निहोत्र कहते हैं।” मेरी एन ने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा। श्रीनिवास ने आगे बताया, “वैदिक काल से जन-जन प्रातःकाल और साँध्यकाल दोनों समय ईश्वर की आराधना में एक कुण्ड बनाकर उसमें लकड़ी, समिधा, घी और हवन की अन्य सामग्री लेकर अग्नि प्रज्वलित करते हैं। इस समय कुछ विशेष श्लोकों का पाठ किया जाता है। अग्नि की पूजा विशेष विधि से की जाती है। अग्नि की ज्वाला के कई रूप होते हैं, हवन करने वाले ज्वाला के विभिन्न रूपों की पहचान करते हैं, फिर उसके अनुसार हवन में समिधा, घी इत्यादि डालते हैं।”
हम सभी अग्निहोत्र की क्रिया को ध्यान से देखते रहे। अग्नि की ज्वाला में आने-जाने वाले विभिन्न आकारों और रंगों की विविधता पर मेरा ध्यान जीवन में पहली बार गया। अग्निहोत्र समाप्त होने के बाद हमने मंदिर में होने वाली अन्य गतिविधियों को भी देखा। मंदिर में प्रसाद के रूप में कई प्रकार के दक्षिण भारतीय व्यंजन जैसे उपमा, इडली, साँभर आदि मिल रहे थे। स्वादिष्ट भोजन की सुगन्ध ने मेरी भूख जाग उठी। हम तीनों ने प्रसाद के रूप में भोजन किया और मंदिर से वापस लौट पड़े।
सीएमयू पहुँचकर श्रीनिवास के साथ मैं और मेरी एन कैम्पस में जगह-जगह घूमते और वहाँ के वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में बात करते रहे। लगभग नौ बजे वहाँ से निकल कर हमने श्रीनिवास को उसके अपार्टमेंट पर छोड़ा और उसके बाद अपने ठहरने वाले होटल पहुँचे।
अगले दिन सुबह यहाँ से सीधे यूनिवर्सिटी के लिए निकलने वाले थे। यह सोचकर मैंने मेरी एन से कहा, “कमरे में चेक-इन करने के बाद मैं वापस आकर में फैले सामान को व्यवस्थित कर देता हूँ।“ उसने सहमति में सिर हिलाया। हम दोनों ने स्वागत कक्ष में पहुँच कर अपने कमरे की चाबी ली और कमरे की ओर चल पड़े। कमरे में अपना बैग आदि रखने के बाद मैं कार को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से चलने लगा तो मेरी एन ने मुझसे पूछा, “अभी आइस बाक्स में कोल्ड ड्रिंक बचे हैं क्या?” मैं बोला, “हाँ, अभी तो सभी प्रकार के कोल्ड ड्रिंक हैं, आपको क्या चाहिए मैं ले आता हूँ।” वह बोली, “तुम्हें तो कार ठीक करने में थोड़ी देर लगेगी। चलो मैं चलकर खुद ही ले लेती हूँ।”
कार के पास वापस आकर मैंने कोल्ड ड्रिंक और काफी के खाली कप और चिप्स तथा सीरियल बार के रैपर आदि एक पालीथीन के बैग में डाले और उन्हें रिसेप्शन के पास खड़े कूड़ेदान में डालने गया। इस बीच मेरी एन अपने लिए ड्रिंक लेकर कमरे पर वापस चली गई। बाकी का सामान आदि ठीक करके मैंने आगे और पीछे दोनों सीटों को हाथ से झाड़कर साफ किया और कार की सफाई पर एक संतोषजनक दृष्टि डालकर होटल के कमरे की ओर चल पड़ा।
कमरे पर वापस पहुँचकर मेरी टीवी पर चलते प्रोग्राम पर नजर पड़ी तो पाया कि मेरी “हाउ आई मेट योर मदर” का कोई एपीसोड देख रही थी। मैं तुरंत स्नानघर में घुस गया और कम से कम 30 मिनट या उससे भी अधिक समय फव्वारे के नीचे स्नान करके अपनी थकान मिटाई। कल यात्रा समाप्त होने वाली थी, इसलिए मेरा ध्यान अब पुनः यूनिवर्सिटी के काम की ओर लौटने लगा था।
स्नान करके बाहर निकला तो पाया कि कमरे की लाइट बंद हो गई थी, परंतु टीवी अभी खुला हुआ था। मैंने समझा कि मेरी एन भी थकी हुई होने के कारण अब तक सो गई थी। टीवी की रोशनी में मैं घूम कर मेरी एन के सामने वाले बिस्तर पर बैठ गया। टीवी पर चलते प्रोग्राम पर एक दृष्टि डालकर जब मैंने मेरी एन की ओर देखा तो पाया कि वह मुझे इशारे से अपने पास बुला रही थी। मैं उठकर उसके बिस्तर पर किनारे की तरफ बैठ गया। मेरी एन ने मेरे गले में बाहें डालकर मुझे अपनी ओर खींचा। झुकते हुए मेरा ध्यान गया कि उसके हाथ में कोल्ड ड्रिंक का कैन न होकर ब्लू मून की बोतल थी। दोनों बिस्तरों के बीच में पड़ी हुई टेबल के पाये के पास दो और खाली बोतलें मुझे दिखाई दीं।
मैं समझ गया कि कार से मेरी एन कोल्ड ड्रिंक के साथ-साथ ब्लू मून भी ले आई थी। मैंने सोचा अच्छा ही हुआ कि वह बीयर ले आई, बीयर ठंडी अधिक हो जायें यह सोचकर कैनेडा में ही मैंने आइस बाक्स में सबसे नीचे डाल दीं थी। नीचे दबी होने के कारण वे मुझे दिखीं नहीं और मैं उनके बारे में लगभग भूल ही गया था। मेरी एन ने अपनी बोतल की बीयर एक बड़े घूँट में खत्म की और फिर बोतल बीच की टेबल पर रख दिया। परंतु शायद बोतल ठीक से स्थिर नहीं हो पायी थी। इस कारण अथवा रखते समय एक दिशा में झुकी होने के कारण पहले मेज पर लुढ़की और फिर घूमते हुए नीचे धरती पर जा गिरी। मुझे अनुभव हुआ कि उसका शरीर नशे में शिथिल हो रहा था। पलंग के पीछे लगे बोर्ड पर पीठ टिका कर बैठी हुई मेरी एन फ्रेंच में कुछ कहती हुई मेरी ओर आई और मेरी टी शर्ट पकड़ कर ढीले हाथों से मुझे अपनी ओर खींचने लगी। मैं उसकी बात सुनने के लिए उस ओर झुका तो वह टी शर्ट खींच कर उतारने लगी। टी शर्ट पूरी तो नहीं उतरी, हाँ उसका बटन टूट गया और सिलाई उधड़ गई।
मेरी एन की मनःस्थिति को समझते हुए मैंने टी शर्ट स्वयं उतार दी। मेरी एन ने लहराते हुए मुझे पीछे की ओर धक्का दिया तो अचानक मैं अपना संतुलन संभाल नहीं पाया और संभलते-संभलते भी पलंग पर पीठ के सहारे गिर गया। मैं उसके व्यवहार से आश्चर्यचकित हो रहा था! अगले ही क्षण नशे में झूमती हुई शरीर के ऊपरी भाग से पूर्णतया निर्वस्त्र मेरी एन मुझ पर सवार हो गई थी। मैं निःशब्द उसके चेहरे को देख कर उसके भावों को समझने की कोशिश कर रहा था! बीयर के प्रभाव के कारण उसके गाल लाल सुर्ख हो रहे थे, परंतु टीवी की झपझपाती रोशनी में और उसके छाते की तरह खुले बालों की छाया में वे गाल काले दिख रहे थे। तमतमाहट के कारण उसके गालों और माथे पर पसीने की बूँदें भी चमक रही थीं। नीचे पड़ी बोतलों का चित्र मेरी आँखों के सामने घूमा तो यह स्पष्ट हो गया कि वह कम से कम तीन बोतलें पी चुकी थी। यह भी हो सकता है कि छह के पैक की बाकी बची पाँचों बोतलें भी उसने पी ली हों! मुझे यदि स्नान करने में आधे घंटे से अधिक या हो सकता है कि एक घंटा भी लग गया हो तो इतनी थोड़े समय में चार या पाँच बीयर पी जाना बड़ी बात थी! स्वाभाविक था कि वह ऐसा व्यवहार कर रही थी। एक दिन पहले भोजन-संक्रमण से उसकी जो हालत हुई थी, उसको सोचते हुए संभवतः यह कोई बुद्धिमानी का काम नहीं था, लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता था!
मैं कुछ मिनट पहले ही स्नान करके निकला था। देर तक स्नान करने से मेरा शरीर और मन शांत हो चुके थे। इस अवस्था में इस तरह अचानक सहवास के लिए न तो मैं मानसिक रूप से तैयार था और न ही शारीरिक रूप से। परंतु उस पर निश्चित ही उन्माद छाया हुआ था! टीवी की आती जाती रोशनी में मैं यह समझने की चेष्टा कर रहा था कि इस आवेश का कारण उत्तेजना है या क्रोध? मेरी जाँघों और पेट के निचले हिस्से पर बैठी हुई मेरी एन की स्कर्ट कमर से ऊपर उठ गई थी।
ऐसा संभव था कि वह मुझसे किसी बात से नाराज थी। यह सर्व विदित है कि व्यक्ति को झुँझलाहट, चिड़चिड़ापन और क्रोध आदि तभी होते हैं, जब कोई काम उसके मन के अनुसार नहीं होता। मैंने पिछले दिनों की घटनाएँ याद कीं। मुझे ऐसा कोई काम याद नहीं आया जो कि आपत्तिजनक कहलाने की श्रेणी में आता हो। बीते कल की याद करने पर केवल एक बात मेरी समझ में आई, जो कि मैंने उसकी इच्छा के विरुद्ध की थी। मैं कल दोपहर जब उसकी तबियत ठीक नहीं थी तो उस समय उसके साथ बिस्तर में लेटने के बजाय मैं अपने लैपटाप में उलझा रहा था। हो न हो यही बात थी, जिसने उसे क्रोधित कर दिया था। मेरे विचार में तो यह ऐसी बात नहीं थी जिस पर इतना गुस्सा किया जाये, पर इसके अतिरिक्त तो मुझे कुछ भी याद नहीं आता जिसके कारण उसे गुस्सा आया होगा। मैं अभी इस समस्या का हल ढूँढ़ने में लगा हुआ था कि उसी समय फ्रेंच मे कोई वाक्य सुनकर मेरी विचारों की श्रंखला टूटी। मेरी एन कुछ कह रही थी।
मेरी एन ने जाने अनजाने में एक बात मुझे अवश्य अनुभव करवा दी थी। स्त्री यदि चाहे तो वह अपने साथ-साथ अपने साथी को भी प्रकृति प्रदत्त शारीरिक आनन्द की सीमाओं तक ले जा सकती है। प्रकृति ने मात्र शारीरिक सुख के इतने अधिक प्रभावशाली प्रलोभन यदि स्त्री और पुरुष दोनों के सामने न प्रस्तुत किये होते तो शायद इस धरती पर मानव जाति कबकी लुप्तप्राय हो गई होती। अग्नि की वह अंतरिम ज्वाला जो अपने संपूर्ण वैभव के साथ पूरे विश्व को मोहित करती हुई जलती है, सभी जीवित प्राणियों को उनकी बुद्धि और शरीर की जटिलता के विकास के अनुसार प्रिय होती है।


गुरुवार


अन्य दिनों की अपेक्षाकृत सुबह उठने में देर हो गई थी। सुबह उठते ही सबसे पहला विचार कल की घटनाओं के बारे में आया। बीता हुआ कल कई समस्याओं लेकर आया था। आज इस यात्रा का आखिरी दिन था, एक तरफ तो थीसिस, रास्ते में अब तक हुआ खर्च आदि बातें मस्तिष्क में घूम रहीं थीं वहीं दूसरी ओर कल नाव पर हुई दुर्घटना और फिर मार्ग में देखी हुई भीषण दुर्घटना खलबली मचाए हुई थी। मैं नित्य क्रिया से निवृत्त होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ़ा तो मेरी ध्यान मेरी एन के बिस्तर की ओर गया। उसका बिस्तर खाली पड़ा था। इतने दिनों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मेरी एन मुझसे पहले जाग गई थी।
मैं मुँह हाथ धोकर जिम की ओर चला गया। रोज का व्यायाम करके लौटा तब भी मेरी एन कमरे में नहीं थी। अब मुझे चिंता होने लगी, आज हमें वापस लौटना था और वह पता नहीं कहाँ गई हुई थी? मैंने फटाफट स्नान किया चलने के लिए अपना सामान बैग में रखा और सबसे पहले नाश्ते के कमरे में देखने पहुँचा। मेरी एन वहाँ नहीं थी। समझ में नहीं आ रहा था कि अब किससे उसके बारे में पूछूँ। सुबह इस समय रिसेप्शन पर नया स्टॉफ था। अचानक मुझे ख्याल आया कि अगर मुझे रिसेप्शन पर पता करना हो तो मैं किस हवाले से उनसे पूछूँगा! यदि मुझे मेरी एन नहीं मिलती तो मुझे क्या करना चाहिए? क्या पोलीस को सूचित करना चाहिए? उनसे मेरी एन के साथ अपना क्या संबंध बताऊँगा?
अचानक मुझे अपनी स्थिति विचारणीय लगने लगी।  क्या मैं किसी झंझट में फँस गया था? पिछली रात मेरी एन समझ में न आने वाला व्यवहार कर रही थी। कल रात वाली मेरी एन और जो मेरी एन अब तक पिछले दिनों से मेरे साथ थी उन दोनों में बहुत फर्क था। कल शाम मंदिर और बाद में जब हम कार्नेगी मेलान यूनिवर्सिटी के कैम्पस में घूम रहे थे, तब तक तो सब कुछ ठीक लग रहा था! फिर अचानक क्या हो गया? कल रात से ही मेरी एन रूखा और विचित्र व्यवहार कर रही थी। जब तक सब कुछ ठीक चलता है, उस समय तक इस प्रकार की बातों पर ध्यान नहीं जाता है, पर तनिक सी भी गड़बड़ होते ही सब कुछ बिखर गया सा लगता है।
मेरी एन का सामान कमरे में ही पड़ा था। यदि मेरी एन किसी गंभीर समस्या में थी, तब तो ऐसी अवस्था में उसके सामान को छूना तक भी मेरे लिए समस्या बन सकता था। मेरी एन मेरे साथ यूनिवर्सिटी की छात्रा थी, पर मेरा और उसका साथ मात्र इस यात्रा के कारण ही हुआ था! जब उसे सुबह कमरे पर नहीं देखा तब पहले तो मैंने इसे साधारण बात समझा था, परंतु एक घण्टे के व्यायाम के बाद भी जब वह कमरे पर नहीं दिखी तभी से मैं परेशान होने लगा था। यहाँ नीचे न दिखने पर अब मेरे मन में उल्टे-सीधे विचार आने लगे थे। इन्हीं विचारों मे उलझा हुआ मैं रिसेप्शन के स्वचालित काँच के द्वार  (आटोमेटिक डबल डोर) से निकल बाहर पोर्टिको में आया। मैं अभी यह याद करने की कोशिश ही कर रहा था कि कल रात मैंने कार कहाँ पार्क की थी, कि तभी मुझे मेरी एन मुख्य द्वार से लगभग पचास मीटर दूर बायीं तरफ वाली पार्किंग के फुटपाथ पर सेल फोन पर किसी से बात करती दिखी।
मुझे एक-एक करके शांति, झल्लाहट और निस्पृहता का अनुभव हुआ। पता नहीं कितनी देर से वह फोन पर बात कर रही थी। कमरे से तो वह कम से कम डेढ़ घंटे से गायब थी। उसे सही सलामत देखकर शांति मिली, उसने मुझे कुछ भी बताने तक की आवश्यकता नहीं समझी, इस बात पर झल्लाहट हुई और आखिर में यह ध्यान आने पर कि मैं उसके बारे में जानता ही किस सीमा तक हूँ, और देखा जाये तो उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है कि, वह कहीं आने-जाने से पहले मुझे बता कर जाये, अंततोगत्वा उसे मेरे बारे में और मुझे उसके बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह अमेरिका है, यहाँ सब स्वतंत्र हैं। जिसे जो अच्छा लगे वह उसे कर सकता है!
मैं बिना किसी कारण के अब तक उसके बारे में चिंता कर रहा था। मार्ग में उसकी सुख-सुविधा का हर प्रकार से ख्याल कर रहा था। मेरे परिवार में, मुझे हमेशा से माँ और मेरी बहनों तथा स्त्रियों का सम्मान करना सिखाया गया है। हमारे यहाँ पुरुष न केवल घर की महिलाओं का, बल्कि समाज में भी अन्य सभी महिलाओं का विशेष ख्याल रखते हैं। हर स्त्री मात्र स्त्री न होकर, माँजी, बहनजी, या मैडमजी होती है। मैं भी उसी सहज भाव से इस रीति का निर्वाह कर रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं जिस वातावरण में पला-बढ़ा था उसमें लोग लड़कियों से असभ्यता अथवा छेड़खानी नहीं करते थे। समाज में ऐसे लोग हमेशा से रहे हैं, लेकिन ऐसे लोग मुझे हमेशा ही छिछोरे और अविकसित, यहाँ तक कि पशु भी लगे।
मेरे विचारधारा योरोप के मनोवैज्ञानिक साइमंड फ्रॉयड से बिलकुल विपरीत है। स्त्री मात्र एक मादा ही नहीं है। न ही पुरुष केवल नर। बल्कि स्त्री और पुरुष पहले व्यक्ति हैं और किसी भी व्यक्ति की पहचान मात्र उसके लिंग से नहीं होती, बल्कि उसके व्यक्तित्व से होती है। केवल नीता ही एक ऐसी स्त्री थी जिसे मैंने अपना भविष्य के जीवन का साथी समझा, उसे एक स्त्री समझा और उसके साथ दोस्ती भी उसी भाव से आरंभ की तथा उसी भाव से आगे बढ़ाई भी!
अभी तक मेरी एन की दृष्टि मुझ पर नहीं पड़ी थी। मेरी एन को देखकर मेरा दुविधा दूर हुई और अब मुझे स्मरण हुआ कि असल में मेरी कार, मेरी एन से विपरीत दिशा में खड़ी हुई थी, परंतु अब कार की ओर जाने का कोई अर्थ नहीं था, मैं कार की ओर तो उसे ही देखने जा रहा था। मैं पुनः होटल के स्वागत कक्ष की ओर वापस लौट पड़ा। द्वार से अंदर घुसते समय तक मैंने देखा था कि मेरी एन अभी भी फोन पर बात करने में तल्लीन थी। यहाँ से विश्वविद्यालय की सीधी यात्रा आठ घंटों में पूरी हो सकती थी, इस कारण से मुझे यहाँ से निकल जाने की कोई बहुत जल्दी नहीं थी। अभी तक की योजना के अनुसार मैं आगे की यात्रा सहज और उन्मुक्त मन से करना चाहता था। अब कहीं पहुँचने या किसी होटल में रात बिताने के लिए समय पर पहुँचने की कोई शीघ्रता नहीं थी। अपने मन की चिड़चिड़ाहट को उतार फेंकते हुए मैं अल्पाहार वाले कमरे की ओर उन्मुख हुआ।
इस समय सुबह का आठ भी नहीं बजा था, नाश्ता डेढ़ घंटे और मिल सकता था। मैंने एक काफी ले ली और मेरी एन के अंदर आने की राह देखने लगा। लगभग साढ़े आठ बजे वह अंदर आई तो मेरी दृष्टि उससे मिली, पर मुझे देखते हुए भी बिना कुछ बोले वह सीधी लिफ्ट की ओर चली गई। मैं अवाक् था! कुछ क्षणों बाद अपनी काफी समाप्त कर मैं कमरे पर पहुँचा तो द्वार खटखटाने पर भी नहीं खुला। मैंने अपने कार्ड से दरवाजा खोला तो बाथरूम से फव्वारे की आवाज आ रही थी। मैंने अपना बाकी का सामान आदि ठीक कर लिया और उसके निकलने की प्रतीक्षा करते हुए टी.वी. देखने लगा।
स्नान करके निकलने के बाद भी मेरी एन कुछ नहीं बोली। मैं भी चुपचाप उसे अपना सामान रखते हुए देखता रहा। मुझे यह भी नहीं समझ में आ रहा था कि क्या बोलूँ। वह केवल चुप थी या फिर क्रोध में थी। अंत में मैंने उससे पूछा, “आपकी तबियत ठीक है?” उसने छोटा सा उत्तर दे दिया, “हाँ।” बड़ी ही असमंजस की स्थिति हो रही थी। उसके सामान समेटने के बाद हम दोनों अपनी-अपनी स्ट्रॉली लेकर नीचे कार के पास पहुँचे। सामान कार में रखा और वापस नाश्ते के कमरे में पहुँचे। दोनों लोगों ने चुप-चाप नाश्ता किया और कार में सवार होकर चल दिए।
कार में बैठते ही वह अपने फोन में शायद मेसेज या इंटरनेट देखने लगी। इस असहज चुप्पी में मुझे हिन्दी गाने लगाने की हिम्मत भी नहीं हुई। पिट्सबर्ग से निकलने में ही कम-से-कम डेढ़ घंटा लग गया। सुबह के यातायात में गाड़ी धीरे-धीरे चल रही थी। यातायात की व्यस्तता का लाभ उठाते हुए मैंने अपनी कार में गैस भरवा ली। मेरी एन मुझसे विपरीत दिशा में होकर खिड़की से लुढ़क कर आँखे बंद किये बैठी थी। बीच में एक बार मैंने उससे पूछा, “क्या आपको चिप्स या कोल्ड ड्रिंक चाहिए?” तो उत्तर में उसने “हूँ” कह दिया। चिप्स और कोल्ड ड्रिंक देने के बाद मैं भी नीरा के साथ बिताए समय और उसके बाद की अवसाद वाली स्मृतियों में डूबता-उतराता रहा।
मॉरगनटाउन नामक नगर के पास पहुँचते हुए लगभग तीन बज रहे थे। सड़क पर अधिक कारें नहीं चल रहीं थीं। मैं भी लगभग सुन्न सी अवस्था में कार चला रहा था, निशान कार के इंजन और सड़क पर से आती टायरों की तेज आवाज की एकरसता बनी हुई थी, तभी मुझसे लगभग 100 मीटर आगे चल रही एक डॉज डुरांगो अचानक पहले बायीं ओर बहकी, फिर संभल कर दायीं ओर बहकी। उसके बाद पुनः एक बार बायीं और आयी। इस बार बायीं ओर आने के बाद घूम कर दायीं ओर चली तो उस समय सड़क पर बनी हुई पाँचो लेन काटती हुई “सुरक्षा पट्टी” (सोल्डर एरिया) जहाँ आपात् काल में कारे रुकतीं उस पर जाकर एक दिशा में पलट गई। सत्तर मील प्रतिघंटा पर चलती हुई अपनी कार से अपनी आँखों के सामने यह हृदय-विदारक दृश्य मैं देखता रहा! अनायास ही मैंने अपनी कार में ब्रेक लगाकर अपनी कार की गति को धीमा कर लिया था। परंतु पीछे आने वाली कारों पर दृष्टि रखने के उद्देश्य से मैं कार में लागे दर्पण पर अपना ध्यान बनाए हुये था, ताकि पीछे से आने वाली कोई कार हमसे ही न लड़ जाये।
तेज गति से जाती हुई अपनी कार से मैं पलटने वाली (एसयूवी) कार के बड़ी तेजी से घूमते पहिए ही देख पाया। पता ही नहीं लगा कि उस कार में कितने लोग थे और उनका क्या हाल हुआ था। चलते राजमार्ग पर अचानक मुड़कर तो वापस आना भी अपनी मृत्यु को दावत देने के समान था। आगे बढ़ते हुए मैंने अपनी कार में लगे पीछे का दृश्य दिखाने वाले दर्पण में देखा तो हमसे काफी पीछे आने वाली कारें अब दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता के लिए रुकने लगीं थीं। मेरी आह की आवाज सुनकर और अचानक कार के धीमे पड़ जाने के कारण मेरी एन ने अपनी आँखें खोलीं, लेकिन जब तक वह ठीक से कुछ देख पाती हमारी कार आगे बढ़ती जा रही थी। उसने मुझसे कोई प्रश्न करने की आवश्यकता नहीं समझी और मैंने भी अनपूछे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया!
तीन-चार बार चिप्स खाते और कोल्ड ड्रिंक पीते हुए और बिना किसी रेस्तराँ में खाना खाने के बाद भी हम लगभग साढ़े नौ बजे रात को मेरी एन के घर पर पहुँच पाये। मैंने कार रोकी और उसका सामान निकाला। वह फँसे स्वर में बोली, “सहयात्रा के लिए धन्यवाद (थैंक्यू फॉर द ट्रिप)”। मैं बोला, “आप किस मंजिल पर रहती हैं, लाइए सीढ़ियों में सामान चढ़वा दूँ।” वह बोली, “नहीं, धन्यवाद।”
उसके व्यवहार से मैं पूरी तरह आश्चर्यचकित था, लेकिन दिन भर नीता के साथ बीते समय और मेरी एन के विचित्र व्यवहार पर जी भर कर विचार और गहन विश्लेषण करने के बाद अब मैं अपने स्नातकोत्तर की आगामी कार्यवाही के लिए तत्पर था।
अचानक मुझे अपने एक अमेरिकी मित्र के द्वारा बताई अमेरिकी कहावत याद आई, “फूल मी वन्स, शेम आन यू, फूल मी ट्वाइस शेम आन मी।” यह सिद्ध हो चुका था कि अब मुझे अपने आप पर शर्म करनी चाहिए।
खालिद को यह बता कर मैं वापस आ चुका हूँ और कार लेकर कल सुबह तुम्हारे घर आऊँगा, मैंने अपनी इस विचित्र अनुभवों से भरी हुई यात्रा की इतिश्री की।
अगले दिन सुबह उठा और दैनिक कार्यक्रम से निवृत्त होकर मैं अपनी रोज की दौड़ के लिए निकला। फोन की स्क्रीन पर समय देखने के लिए दृष्टि डाली तो पाया कि एक टेक्सट मेसेज चमक रहा था। टेक्सट भेजने वाला राजीव था। “यदि तुम्हारे पास बॉनी का कोई काल या मेसेज आये तो फोन मत उठाना या मेसेज का उत्तर देना। हम लोग कल अलग हो चुके हैं।”
मेरे पास तो बॉनी का कोई मेसेज नहीं आया था, पर हो सकता है कि मेरी एन के पास आया हो!
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