अमेरिकी यायावर
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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी
पृथ्वी के लगभग हर देश के पर्यटक वहाँ पर दीख रहे थे। हमने लगभग आधा किलोमीटर
के वर्गाकार क्षेत्र में जो कुछ भी दिखा उस दृश्य का भरपूर आनन्द लिया। दिन में
हम जिन भोजनालयों में भोजन करने के बारे में सोच रहे थे उनमें से ही एक “माओज”
नामक फास्ट-फूड भोजनालय से मेडिटरेनियन फलाफल वाला सेंडविच लिया और एक-एक ताजा
संतरों के जूस का गिलास लेकर टहलते हुए उस स्थान पर पहुँचे जहाँ इकतीस दिसम्बर
की रात को नये वर्ष का अभिनन्दन करने के लिए क्रिसमस के खिलौनों और अन्य बहुत
सामग्री से भरी एक विशाल गेंद टाइम्स स्कवायर की एक ऊँची इमारत से गिराई जाती
है। इकतीस दिसम्बर को यहाँ आना तो पता नहीं कभी होगा या नहीं, लेकिन अब जब भी
टीवी पर यहाँ का चित्र दिखाया जायेगा तब मैं अपने आपको इस दृश्य से हमेशा जोड़
सकूँगा!
शाम के आठ बजे तक टाइम्स स्कवायर के आस-पास के स्थानों का बिना पैसे खर्च किये
जितना आनन्द लिया जा सकता था, वह हम ले चुके थे। यहाँ के ब्रॉडवे शो बहुत
प्रसिद्ध हैं, परंतु उनको देखने लायक, न तो हमारे पास पैसे ही थे और न ही समय।
इसी प्रकार यहाँ विश्व प्रसिद्ध शो रूम हैं, पर उनमें बेची जाने वाली चीजों को
खरीदने लायक पैसे मेरे पास नहीं थे। न्यू यार्क नगर में बहुत सी ऐसी चीजें
उपलब्ध हैं जो कि साधारण नगरों में नहीं मिलतीं, परंतु ऐसी बहुत सी वस्तुओं का
अभी मेरे जीवन से कोई संबंध नहीं है। संभवतः मेरी एन का भी वही हाल है। इसलिए
हमने वही किया, जो कि हम आसानी से कर सकते थे। एक आइसक्रीम की दुकान से
अपनी-अपनी मनपसंद की आइसक्रीम ली और अपनी कार की ओर बढ़ चले।
पार्किंग में जाकर टिकट देने पर क्लर्क ने हमसे पैसे लेकर हमें एक रसीद दे दी।
मैं रसीद को देख ही रहा था कि वह बोला, “इस रसीद को वेले को दे दो।” वहाँ और
कोई नहीं था, मैं कुछ क्षणों के लिए असमंजस में वहीं खड़ा रहा। फिर कैशियर की
खिड़की में झाँका और उससे कहा, “यहाँ तो कोई नहीं है जिसे यह रसीद दूँ।” वह
बोला, “पार्किंग करने वाला वेले अभी आता होगा, आप इंतजार करें।” थोड़ी देर बाद
एक मोटा और ठिगना लॉटिन अमेरिकी व्यक्ति न जाने किस दरवाजे से चुपचाप निकल कर
वहाँ आ खड़ा हुआ। पाँच-दस सेकेण्ड तक हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
अंततोगत्वा उसने मुझसे कहा, “रसीद कहाँ है?” उसका वाक्य सुनने के कुछ समय (लगभग
5 सेकेण्ड बाद) मुझे समझ में आया कि वह रसीद क्यों माँग रहा था। मैंने हाथ में
पकड़ी हुई रसीद उसे दे दी। वह रसीद लेकर पुनः एक दरवाजे से अंदर चला गया। अभी
तक मैंने जहाँ भी ड्रॉइव किया है, हमेशा कार स्वयं ही पार्क की है। इसलिए मेरे
लिए सब कुछ नया था। भारत में मेरे पास कार थी ही नहीं, परंतु औरों के साथ
दिल्ली में मैने हमेशा पार्किंग कर्मचारी को ही कार ले जाते देखा था। यहाँ का
हाल तो यह है कि अपने सब काम स्वयं ही करने होते हैं, इसलिए व्यक्तिगत सेवाओं
का दृश्य पहली बार देखने को मिल रहा था। जिस मार्ग से पार्किंग कर्मचारी आया था
उससे सब लोगों का आना-जाना कठिन नहीं तो असुविधाजनक अवश्य होता। मैं बार-बार
सामने के गलियारे की ओर अपनी कार के प्रगट होने की आशा से देख रहा था।
थोड़ी देर बाद मेरा ध्यान गया कि हमसे लगभग पचास-साठ फीट की दूरी पर, हमारे
बायीं ओर जिस प्रकार के गैराज यहाँ पर घरों में होते हैं, उसी प्रकार के एक
कमरे से हमारी कार बाहर निकलती दिखाई दी। कार के बाहर निकलते ही मैने देखा कि
पतली सलाखों वाला जंगला बंद हुआ और कमरे का फर्श ऊपर उठने लगा। तब मैं समझ पाया
कि वह एक बड़ी लिफ्ट थी। मैने कारों को लिफ्ट में आते-जाते पहली बार देखा था,
इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ, मैंने मेरी एन से कुछ आश्चर्य चकित होते हुआ कहा,
“मैने कारों को लिफ्ट में पहली बार जाते देखा है।“ इस पर मेरी एन ने बताया,
“अधिक आबादी वाली जगहों में, जैसे बड़े शहरों के डाउन टाउन आदि में यह आम बात
है।“ स्पष्ट था कि उसे यह बात पहले से ही मालूम थी, इसका मतलब शायद फ्रांस में
भी ऐसा ही होता होगा!
कार लेकर हम न्यूयार्क की मैनहटन बरो (तहसील) से बाहर निकले और ब्रॉंक्स से
होते हुए जार्ज वाशिंगटन ब्रिज तक हडसन नदी के किनारे-किनारे चलते रहे, ब्रिज
के पास ही हमने राष्ट्रीय राजमार्ग 95 पुनः पकड़ लिया था। अब तक रोज के अधिकांश
यात्री अपने घरों में पहुँच चुके थे, इसलिए सड़क पर भीड़ अब कम हो चली थी। हमें
अधिक ट्रैफिक नहीं मिल रहा था और हम लगभग एक घंटे बीस मिनट में ही कनेक्टीकट
राज्य के न्यू हेवेन शहर में पहुँच रहे थे।
काफी समय से चुप बैठी मैने मेरी एन से मैने कहा. “शायद आप जानती ही होंगी कि
येल यूनिवर्सिटी इसी शहर में है।” मेरी एन ने कुछ क्षण मुझे ऐसे देखा जैसे कि
मेरी बात उसे समझ में ही न आ रही हो। मैने उससे फिर कहा, “मेरा सपना है कि मैं
येल यूनिवर्सिटी में पढ़ूँ। पर जब तक मास्टर्स का काम पूरा नहीं हो जाता है, तब
तक तो सारा ध्यान मास्टर्स पर ही लगा रहेगा।” मेरी एन बोली, “अभी तो मैं सोच भी
नहीं सकती। तुम्हें अंदाजा नहीं है कि यूनिवर्सिटी आफ कैरोलाइना जैसी जगह पर ही
मैं कैसे पहुँच पाई!” मुझे नहीं मालूम था कि उसे जीवन में क्या कठिनाइयाँ आईं
थीं, परंतु अपने स्वयं के अनुभव से मैं इस बात का अंदाजा काफी अच्छी तरह से लगा
सकता था। मुझे भी जीवन ने काफी घुमा-फिरा कर ही अमेरिका में पढ़ने के प्रस्तुत
किया था इसलिए अभी तो येल दूर का ही सपना है।
परंतु व्यक्त में मैं उससे बोला, “क्यों, मैं तो सोच रहा था कि आपको तो निश्चित
ही बड़ी आसानी से चैपल हिल की यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलाइना में प्रवेश मिल
गया होगा, क्या आपको किसी प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ा था?” पता नहीं
क्यों, हम अधिकतर यही समझते हैं कि परेशानियाँ केवल हमें ही झेलनी पड़ती हैं,
बाकी सब तो मजे में जिंदगी गुजार रहे हैं?” मेरी एन बोली, “बहुत आसानी से भी
नहीं, और बहुत अधिक परेशानी से भी नहीं। समस्या प्रवेश से अधिक छात्रवृत्ति और
आर्थिक थी।”
मैं बोला, “पता नहीं क्यों, शायद इसलिए भी क्योंकि यूरो डॉलर से अधिक महँगा
होता है, इसलिए आमतौर पर माना जाता है कि यूरोपीय देश के लोग अधिक धनी हैं।
खासकर फ्राँस, जर्मनी जैसे देशों के लोग।” मेरी एन बोली, “हाँ, अभी भी यूरोपीय
देशों के पास बहुत सम्पदा है, परंतु इन देशों में भी हर कोई तो धनी नहीं होता।”
मैंने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखा तो वह बोली, “मेरे पिता समुद्री
यातायात के व्यवसाय में थे और जब हम कैनेडा छोड़कर फ्राँस गये थे, तब वे
व्यापारिक जहाजों की एक फ्रांसीसी कम्पनी में काम करते थे।” मेरी एन इतना कहने
के बाद चुप हो गई। ऐसा लग रहा था कि वह निश्चय नहीं कर पा रही थी कि इस बारे
में अधिक बोले कि नहीं। मैं शालीनता से उसके इस बारे में आगे बोलने की
प्रतीक्षा करता रहा। ऐसी स्थिति में कोई कुछ बोलेगा भी क्या! इस बीच राष्ट्रीय
राजमार्ग 95 की घुमावदार तीन लेनों पर बहुत कम गाड़ियाँ दिख रहीं थी। बीच-बीच
में सड़क निर्माण कार्य के कारण “अपनी लेन में रहें” के संकते दिख जाते थे। ऐसी
स्थितियों में गति सीमा 65 से गिरकर 45 तक रह जाती थी, परंतु उन निर्देशों का
कार चालकों पर कोई प्रभाव नहीं दिखता था और मुझे मिलाकर सभी चालक 65 से 70 मील
प्रति घंटा की गति से गाड़ी चला रहे थे। मैने राजमार्ग 84 जो कि हार्टफोर्ड
कनेक्टीकट से होता हुआ बॉस्टन जाता था उसकी जगह राजमार्ग 95 पर ही बने रहना
उचित समझा। एक तो यह रास्ता थोड़ा छोटा था, दूसरी बात यह थी कि इस समय इस सड़क
पर इतना ट्रैफिक नहीं था।
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