लोगों की राय

श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।


बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ।।
मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा।।3।।

भाँति-भाँति के [बन्धनकारक] कर्म, गुण, काल और स्वभाव-ये चकोर हैं, जो [रामप्रतापरूपी सूर्यके प्रकाशमें] कभी सुख नहीं पाते। मत्सर (डाह) मान, मोह और मदरूपी जो चोर हैं, उनका हुनर (कला) भी किसी ओर नहीं चल पाता।।3।।

धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना।।
सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका।।4।।

धर्मरूपी तालाबों में ज्ञान, विज्ञान- ये अनेकों प्रकार के कमल खिल उठे। सुख, संतोष, वैराग्य और विवेक-ये अनेकों चकवे शोकरहित हो गये।।4।।

दो.-यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास।
पछिले बाढ़िहिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास।।31।।

यह श्रीरामप्रतापरूपी सूर्य जिसके हृदय में जब प्रकाश करता है, तब जिनका वर्णन पीछे से किया गया है, वे (धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सुख, संतोष, वैराग्य और विवेक) बढ़ जाते हैं और जिनका वर्णन पहले किया गया है, वे (अविद्या, पाप, काम, क्रोध, कर्म, काल, गुण, स्वभाव आदि) नाश को प्राप्त होते (नष्ट हो जाते) हैं।।31।।

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login