श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
A PHP Error was encounteredSeverity: Notice Message: Undefined index: author_hindi Filename: views/read_books.php Line Number: 21 |
निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |
वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
छं.-मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरीं बिद्रुम रची।
मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची।।
सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे।
प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे।।
मनि खंभ भीति बिरंचि बिरची कनक मनि मरकत खची।।
सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रुचिर फटिक रचे।
प्रति द्वार द्वार कपाट पुरट बनाइ बहु बज्रन्हि खचे।।
घरों में मणियों के दीपक शोभा दे रहे हैं।
मूँगों की बनी हुई देहलियाँ चमक
रही हैं। मणियों (रत्नों) के खम्भे हैं। मरकतमणियों (पन्नों) से जड़ी हुई
सोने की दीवारें ऐसी सुन्दर हैं मानो ब्रह्मा ने खास तौर से बनायी हों। महल
सुन्दर, मनोहर और विशाल हैं। उनमें सुन्दर स्फटिक के आँगन बने हैं।
प्रत्येक द्वार पर बहुत-से खरादे हुए हीरों से जड़े हुए सोने के किवाड़
हैं।।
दो.-चारु चित्रसाला गृह गृह प्रति लिखे बनाइ।
राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ।।27।।
राम चरित जे निरख मुनि ते मन लेहिं चोराइ।।27।।
घर-घर में सुन्दर चित्रशालाएँ हैं, जिनमें
श्रीरामजी के चरित्र बड़ी
सुन्दरता के साथ सँवार-कर अंकित किये हुए हैं। जिन्हें मुनि देखते हैं, तो
वे उनके भी चित्त को चुरा लेते हैं।।27।।
चौ.-सुमन बाटिका सबहिं लगाईं। बिबिध भांति करि जतन बनाईं।।
लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसंत कि नाईं।।1।।
लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसंत कि नाईं।।1।।
सभी लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की पुष्पोंकी
वाटिकाएँ यत्न करके लगा
रक्खी हैं, जिनमें बहुत जातियों की सुन्दर और ललित लताएँ सदा वसंतकी तरह
फूलती रहती हैं।।1।।
गुंजत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिधि सदा बह सुंदर।।
नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए।।2।।
नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए।।2।।