लोगों की राय

श्रीरामचरितमानस (लंकाकाण्ड)

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (लंकाकाण्ड)

वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।

अंगद-राम-संवाद


इहाँ राम अंगदहि बोलावा।
आइ चरन पंकज सिरु नावा।।
अति आदर समीप बैठारी।
बोले बिहँसि कृपाल खरारी॥

यहाँ (सुबेल पर्वतपर) श्रीरामजीने अंगदको बुलाया। उन्होंने आकर चरण-कमलोंमें सिर नवाया। बड़े आदरसे उन्हें पास बैठाकर खरके शत्रु कृपालु श्रीरामजी हँसकर बोले॥२॥

बालितनय कौतुक अति मोही।
तात सत्य कहु पूछउँ तोही॥
रावनु जातुधान कुल टीका।
भुज बल अतुल जासु जग लीका।

हे बालिके पुत्र! मुझे बड़ा कौतूहल है। हे तात! इसीसे मैं तुमसे पूछता हूँ. सत्य कहना। जो रावण राक्षसोंके कुलका तिलक है और जिसके अतुलनीय बाहुबलकी जगतभरमें धाक है,॥ ३॥

तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए।
कहहु तात कवनी बिधि पाए।
सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी।
मुकुट न होहिं भूप गुन चारी॥

उसके चार मुकुट तुमने फेंके। हे तात! बताओ, तुमने उनको किस प्रकारसे पाया! [अंगदने कहा--] हे सर्वज्ञ ! हे शरणागतको सुख देनेवाले! सुनिये। वे मुकुट नहीं हैं। वे तो राजाके चार गुण हैं॥ ४॥

साम दान अरु दंड बिभेदा।
नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा॥
नीति धर्म के चरन सुहाए।
अस जियँ जानि नाथ पहिं आए।

हे नाथ! वेद कहते हैं कि साम, दान, दण्ड और भेद-ये चारों राजाके हृदयमें बसते हैं। ये नीति-धर्म के चार सुन्दर चरण हैं। [किन्तु रावणमें धर्मका अभाव है] ऐसा जी में जानकर ये नाथ के पास आ गये हैं॥५॥

दो०- धर्महीन प्रभुपद बिमुख काल बिबस दससीस।
तेहि परिहरि गुन आए सुनहु कोसलाधीस॥३८ (क)॥

दशशीश रावण धर्महीन, प्रभुके पदसे विमुख और काल के वश में है। इसलिये हे कोसलराज! सुनिये, वे गुण रावणको छोड़कर आपके पास आ गये हैं॥ ३८ (क)॥

परम चतुरता श्रवन सुनि बिहँसे रामु उदार।
समाचार पुनि सब कहे गढ़ के बालिकुमार॥३८ (ख)॥

अंगदकी परम चतुरता [पूर्ण उक्ति] कानोंसे सुनकर उदार श्रीरामचन्द्रजी हँसने लगे। फिर बालिपुत्रने किलेके (लङ्काके) सब समाचार कहे॥ ३८ (ख)॥

रिपु के समाचार जब पाए।
राम सचिव सब निकट बोलाए।
लंका बाँके चारि दुआरा।
केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा॥

जब शत्रुके समाचार प्राप्त हो गये, तब श्रीरामचन्द्रजीने सब मन्त्रियोंको पास बुलाया [और कहा-] लङ्काके चार बड़े विकट दरवाजे हैं। उनपर किस तरह आक्रमण किया जाय, इसपर विचार करो॥१॥

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login