श्रीरामचरितमानस (सुंदरकाण्ड)
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
| श्रीरामचरितमानस |
पञ्चम सोपान
सुन्दरकाण्ड
श्लोक
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
| श्रीरामचरितमानस |
पञ्चम सोपान
सुन्दरकाण्ड
श्लोक
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१॥
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥१॥
शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणोंसे परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देनेवाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजीसे निरन्तर सेवित, वेदान्तके द्वारा जाननेयोग्य, सर्वव्यापक, देवताओंमें सबसे बड़े, मायासे मनुष्यरूपमें दीखनेवाले, समस्त पापोंको हरनेवाले, करुणाकी खान, रघुकुलमें श्रेष्ठ तथा राजाओंके शिरोमणि, राम कहलानेवाले जगदीश्वरकी मैं वन्दना करता हूँ॥१॥
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥
हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अन्तरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदयमें दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिये और मेरे मनको काम आदि दोषोंसे रहित कीजिये॥२॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥
अतुल बलके धाम, सोनेके पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन [को ध्वंस करने] के लिये अग्निरूप, ज्ञानियामाग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणोंके निधान, वानरोंके स्वामी, श्रीरघुनाथजीके प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमानजीको मैं प्रणाम करता हूँ॥३॥
- हनुमानजी का सीताजी की खोज के लिए प्रस्थान
- लंका में विभीषण के घर में भगवान का मंदिर
- अशोक वाटिका में सीताजी के दर्शन
- हनुमानजी-सीताजी संवाद
- अशोक वाटिका विध्वंस
- रावण की सभा में हनुमानजी का रामगुणगान
- लंकादहन
- लङंका जलाने के बाद हनुमानजी का सीताजी से विदा माँगना और चूड़ामणि पाना
- लंका से लौटकर समुद्र के इस पार आना, सबका लौटना, मधुवन-प्रवेश, सुग्रीव-मिलन, श्रीराम-हनुमान-संवाद
- हनुमान से भगवान श्रीराम की सीताजी के विषय में पूछताछ
- श्रीरामजी का वानरों की सेना के साथ चलकर समुद्रतट पर पहुँचना
- मन्दोदरी-रावण-संवाद
- रावण को विभीषण का समझाना और विभीषण का अपमान
- विभीषण का भगवान श्रीरामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्ति
- विभीषण का भगवान राम की शरण में जाना
- समुद्र पार करने के लिए विचार, रावणदूत शुक का आना और लक्ष्मणजी के पत्र को लेकर लौटना
- दूत का रावण को समझाना और लक्ष्मणजी का पत्र देना
- समुद्र पर श्रीरामजी का क्रोध और समुद्र की विनती
- श्रीराम-गुणगान की महिमा
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