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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक


भाववाच्य के प्रयोग स्थल

(क)  प्रायः असमर्थता या विवशता प्रकट करने के लिए नहीं के साथ भाववाच्य का प्रयोग होता है। इतना चल कर आए हैं कि अब खड़ा तक नहीं हुआ जाता।
(ख)  जब नहीं प्रयोग नहीं होता है, तो मूल कर्ता सामान्य जन होता है, जैसे —
(ग)  गर्मियों में छत पर सोया जाता है।

अन्विति (प्रयोग)

जिस प्रकार विशेषण में विशेष्य के साथ अन्विति होती है, उसी प्रकार क्रिया रूपों की अन्विति कर्ता/उद्देश्य में स्थित संज्ञा/संज्ञावत् विशेषण सर्वनाम से होती है। यह अन्विति अनु — पीछे-पीछे + इति < इ= गमन) (अनुगमन) वचन (एकवचन-बहुवचन) पुरुष उत्तम, मध्यम, अन्य) तथा लिंग (पुंलिंग-स्त्रीलिंग) में होती है। अर्थात् क्रियारूप आवश्यकतानुसार वही वचन — पुरुष लिंग का रूप लेता है जो उद्देश्य स्थितकर्ता का है।

हिंदी में अन्विति के निम्नलिखित नियम हैं:

कर्ता-क्रिया अन्विति : यदि कर्ता में कोई परसर्ग न लगा हो तो क्रिया उसके अनुसार क्रियारूप लेती है। जैसे — लड़का जाता है, लड़के जाते हैं, मैं जाता हूँ, तुम जाते हो, वह जाता है, लड़का गया, लड़की गई, मैं जाऊँगा, हम जाएँगे, वह जाएगी, वे जाएँगी।

कर्म-क्रिया अन्विति: यदि कर्ता में कोई परसर्ग "ने को से"  लगा है, और कर्म में कोई परसर्ग न लगा हो तो क्रिया कर्म के अनुसार चलती है। जैसे—

राम ने रोटी खाई/फल खाया।
राम से रोटी खाई नहीं गई। फल खाया नहीं गया।
राम को हिंदी आती है। गणित आता है।

क्रिया में अन्विति हीनता: यदि कर्ता में भी परसर्ग लगा है और कर्म में भी को परसर्ग लगा है, तो क्रिया अन्वितिहीन स्थिति में रहती है। इस स्थिति में क्रिया में पुंलिंग एकवचन रूप आता है। जैसे —

कर्तृवाच्य में — जब राम ने/सीता ने फल को/ रोटी को खाया तब...
भाववाच्य में — राम से/ सीता से चला/गाया नहीं जाता।

इन तीनों अन्विति-स्थितियों को कुछ लोग क्रमशः कर्तारि कर्माणि प्रयोग भावे प्रयोग भी कहते हैं।

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