उपयोगी हिंदी व्याकरण
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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
समापिका और असमापिका क्रियाएँ
समापिका क्रियाएँ: इस अध्याय के आरंभ में दिए गए चारों
वाक्यों पर फिर एक दृष्टि डालिए। रेखांकित अंश यह बता रहा है कि चिड़िया क्या
कर रही है, मोहन सुबह क्या करता है, श्याम ने क्या किया या किताब की स्थिति
क्या है; अर्थात् ये व्याकरणिक कर्ता... की क्रिया संबंध बता रहे हैं। ये
वाक्य के अंत में हैं। ये व्याकरणिक कर्ता के अनुसार लिंग (लड़का पढ़ता है,
लड़की पढ़ती है), वचन (लड़का पढ़ता है, लड़के पढ़ते हैं) पुरुष (मैं पढ़ूँगा,
तुम पढ़ोगे) आदि रूपांतरणों में मिलते हैं। इन अंशो को क्रिया का समापिका रूप
कहते हैं। कोई भी सरल वाक्य ऐसा नहीं हो सकता, जिसमें क्रिया का समापिका रूप
न हो। ये वाक्य को समाप्त करे है और अंत में रहते हैं।
असमापिका क्रियाएँ : अब निम्नलिखित वाक्यों को देखिए:
वह सामने बहता हुआ कमल कितना अच्छा लग रहा है।
डाल पर चहचहाती हुई छोटी-सी चिड़िया कितनी सुंदर है।
कुर्सी पर बैठे हुए अध्यक्ष को प्रवेश करते ही नमस्कार करना।
बड़ों के कहने पर चला करो।
मेज पर पड़े कलम को उठा लाओ।
मैं गुरूजी से मिलकर अभी लौटा हूँ।
बड़ों को खड़े होकर प्रणाम किया करो।
मोहन ने बीमारी के कारण लेटे-ही-लेटे गुरूजी को प्रणाम किया।
उपरोक्त तिरछे छपे क्रिया रूप वाक्य में विधेयगत क्रिया स्थान (समापिका
क्रिया रूप के लिए निर्धारित स्थान) पर प्रयुक्त न होकर अन्यत्र प्रयुक्त हो
रहे हैं। ये क्रिया के असमापिका रूप के उदाहरण हैं। इन्हें क्रिया
का कृदन्त रूप भी कहते हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित दृष्टियों से किया जाता
है —
(क) रचना की दृष्टि से, और
(ख) बने शब्द भेद की दृष्टि से।
क. रचना की दृष्टि से: कृदंती रूपों की रचना चार प्रकार के
प्रत्ययों के लगाने से होती है।
1. अपूर्णकृदंत: — ता (ती/ते): जैसे — बहता/बहते फूल, बहती नदी, आते ही
2. पूर्ण कृदंत: — आ (ई/ए): जैसे — बैठा/बैठे पशु, बैठी स्त्री, बैठे, ही –
बैठे
3. क्रियार्थक कृदंत: — ना(नी/ने): जैसे — पढ़ना/पढ़ना/पढ़ने (हैं), पढ़ने के
लिए
4. पूर्वकालिक कृदंत: — Ø + कर : जैसे — बैठकर, खड़े होकर,
ख. शब्द भेद की दृष्टि से: कृदंती शब्द संज्ञा, विशेषण या क्रिया
विशेषण होते हैं।
1. संज्ञा: — ना :
पार्क में सुबह दौड़ना/टहलना अच्छी चीज़ है।
• ने : मोहन मिलने (को/ के लिए) आया था। गाड़ी आने को
है।
2. विशेषण: — ता/ती/ति :
चलती/गाड़ी पर कृपया न चढ़ें।
खिलते फूलों को कृपया न तोड़ें।
• आ/ई/ए :
मरा (हुआ) शेर,
खिला (हुआ) फूल,
खिली (हुई), कली,
गिरे /हुए पत्ते।
3. क्रियाविशेषण: — ते ही :
बंदर गिरते ही मर गया।
• ते-ते: वह पढ़ते-पढ़ते सो गया।
• कर : जाकर, खाकर, पढ़कर आदि,
• ए-ए : वह बैठे-बैठे थक गया।
ग. प्रयोग की दृष्टि से: इन कृदंतो का प्रयोग की दृष्टि से विवेचन
इस प्रकार है:
1. क्रियार्थक कृदंत:
भाववाचक संज्ञा के रूप में इनका प्रयोग प्रमुख है।
जैसे-लिखना, पढ़ना। उदाहरणार्थ:
सुबह अवश्य टहलना चाहिए।
2. कर्तृवाचक कृदांत:
धातु+ने+वाला /वाली/वाले।
इस कृदंत रूप से कर्तृवाचक संज्ञा बनती है, जैसे—भागने वालों को
पकड़ो।
3. वर्तमान कालिक कृदंत:
बहता (हुआ) पानी आदि। ये विशेषण हैं। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि
क्रिया उस समय हो रही है।
4. भूततकालिक कृदांत:
पका (हुआ) फल आदि। ये भी विशेषण है। विशेषण में यह भाव बताते हैं कि
क्रिया उस समय तक पूरी हो चुकी है।
5. तात्कालिक कृदंत:
धातु+ते ही रचना वाले इन कृदंतो से कृदंती क्रिया (जैसे—उदाहरण में
आना) के समाप्ति के क्षणों के साथ ही मुख्य क्रिया (जैसे—उदाहरण में कहना) का
होना सूचित होता है। उदाहरण: वे आते ही कहने लगे। अन्य उदाहरण —
चाकू लगते ही वह मर गया आदि।
6. पूर्वकालिक कृदंत:
धातु+कर रचना वाले इन कृदंतों से मुख्य क्रिया (जैसे—उदाहरण में सोना)
से पूर्व कृदंती क्रिया जैसे— उदाहरण में पढ़ना के होने या किए जाने की सूचना
मिलती है।
उदाहरण मोहन पढ़कर सो गया आदि।
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