उपयोगी हिंदी व्याकरण
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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
कारक के भेद
कारक के मुख्य भेद छह माने जाते हैं:
1. कर्ता — (क्रिया को करने वाला)
2. कर्म — (जिस पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े)
3. करण — (जिस साधन से क्रिया हो)
4. संप्रदान — (जिस की हित-पूर्ति क्रिया से हो)
5. अपादान — (जिससे अलगाव हो)
6. अधिकरण — (क्रिया-प्रकिया संचालन का आधार)
कुछ लोग निम्नलिखित दो भेदों को भी कारक के अंतर्गत रखते हैं:
7. संबंधकारक — (क्रिया से भिन्न किसी अन्य पद से संबंध
सूचित करने वाला)
8. संबोधन कारक — (जिस संज्ञा को पुकारा जाए)
इनका विवरण क्रमानुसार नीचे दिया जा रहा है:
1. कर्ता : प्रत्येक क्रिया के साथ कर्ता अवश्य
होता है, बिना कर्ता के क्रिया हो ही नहीं सकती। कर्ता प्रायः चेतन होता है,
जैसे कोई मनुष्य या कोई प्राणी। उदाहरणार्थ — लड़का खेल रहा है, कुत्ता दौड़
रहा है, चिड़िया उड़ रही है। कर्ता कोई प्राकृतिक शक्ति या पदार्थ भी हो सकता
है, जैसे सूर्य चमकता है, बादल गरजते हैं, पत्थर लुढ़क रहा है, नदी बह रही
आदि। इस प्रकार क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं।
जैसा कि आपने ऊपर के उदाहरणों में देखा कर्ता में कोई परसर्ग
प्रायः नहीं लगता। परसर्ग ने का प्रयोग सीमित क्रिया रूपों के साथ
(सकर्मक पूर्णकृदंती समायिका क्रिया के साथ) होता है, जैसे — मोहन ने बड़े
आराम से पूरी किताब पढ़ ली। परसर्ग से का प्रयोग कर्मवाच्य/भाववाच्य में होता
है, जैसे — मोहन से मारे दर्द के खाया नहीं जा रहा है। परसर्ग को
वाक्य — मोहन को कल दिल्ली जाना है, आदि में मिलता है। इस प्रकार कर्ता के
परसर्ग Ø ने, से, को हैं।
2. कर्म: मोहन दूध पी रहा है। श्याम किताब पढ़ रहा
है। गोविंद गेंद खेल रहा है। इन वाक्यों में मोहन क्या पी रहा है? का उत्तर
होगा दूध, श्याम क्या पढ़ रहा है? का उत्तर होगा किताब, गोविंद क्या खेल रहा
है? का उत्तर होगा गेंद। इन वाक्यों में दूध, किताब, गेंद कर्म हैं। इनके
बिना क्रिया संपन्न नहीं हो पाती।
ऊपर के उदाहरणों से आप को स्पष्ट हुआ होगा कि कर्म के साथ प्रायः परसर्ग नहीं
मिलता है। कभी-कभी को परसर्ग का प्रयोग अवश्य दिखाई पड़ता है जैसे — उस किताब
को ज़रा उठा दीजिए। राम ने रावण को अन्ततः मार डाला।
3. करण : कर्म के समान ही करण महत्वपूर्ण है। आप किसी
क्रिया-प्रक्रिया को कर ही नहीं सकते जब तक उस क्रिया को पूरी करने के लिए आप
के पास आवश्यक साधन न हों जैसे — यदि आप लिखना चाहते हैं, किंतु आपके पास कलम
आदि न हों, तो लिखेंगे कैसे। इस प्रकार करण साधनरूप होने के कारण कारक होता
है।
करण के सूचक परसर्ग से और संबंध बोधक अव्यय के द्वारा प्रमुख रूप से युक्त
होते हैं। जैसे —मोहन चाकू से फल काट रहा है। मोहन ने यह किताब नौकर द्वारा
भिजवाई है।
4. संप्रदान : प्रत्येक क्रिया किसी-न-किसी प्रयोजन से तथा
किसी-न-किसी की हितपूर्ति के लिए की जाती है। जिसके लिए क्रिया की जाती है
अथवा जिसे कुछ दिया जाता है वह संप्रदान कारक में होता है। संप्रदान के सूचक
परसर्ग को, के लिए तथा संबंध बोधक अव्यय के वास्ते, के हेतु आदि हैं। जैसे —
मोहन ने सोहन को अपनी पुस्तक दे दी है।
मैं अपनी माता के लिए दवा ले आया हूँ।
वह इलाज के लिए दिल्ली आ रहा है।
टिप्पणी: को परसर्ग कर्म कारक और संप्रदान
कारक दोनों में आता है। इसलिए ध्यान-पूर्वक वाक्य पढ़ें और निश्चय
करें कि को किस कारक में हैं। यदि देना आदि द्विकर्मी क्रियाएँ
हैं, तो को संप्रदान में होगा।
5. अपादान : अपादान कारक उस स्थिति की ओर इशारा करता है, जो
क्रिया चालू होने के पूर्व थी और क्रिया के कारण जिससे अलगाव हुआ। जैसे —
पेड़ से पत्ता गिरा, वाक्य में पत्ता पहले पेड़ पर लगा था, गिरना क्रिया से
उसका पेड़ से अलगाव हुआ। अपादान कारक मुख्तया गत्यर्थक क्रियाओं में स्रोत
(मूल्यस्थान) के साथ लगता है। जैसे —
मोहन दिल्ली से आज ही आया है।
गंगा हिमालय से निकलती है।
अपादान का मुख्य परसर्ग से है।
टिप्पणी: से परसर्ग करण कारक और अपादान कारक दोनों में आता है। अतः
ध्यानपूर्वक वाक्य को पढ़ें और देखें कि वहाँ साधन/करण का अर्थ है या अलगाव
का।
6. अधिकरण: प्रत्येक क्रिया किसी-न-किसी स्थान पर होती है और
किसी-न-किसी काल से संबंद्ध होती है। इस स्थान संबंधी या काल संबंधी आधार को
अधिकरण कहते हैं। अधिकरण के सूचक परसर्ग में, पर तथा स्थान-कालवाची संबंध
बोधक अव्यय के ऊपर, के भीतर, के बाद, के पहले आदि हैं। जैसे —
मेज पर के ऊपर किताब रखी है।
पिताजी घर पर कमरे में हैं।
चारपाई पर चादर बिछा दीजिए।
समय के साथ में पर के अतिरिक्त को भी आता है।
वह अगले साल आयेगा।
मैं शाम को आऊँगा।
परीक्षा मार्च में होगी।
गाड़ी दस बजकर दस मिनट पर छूटती है।
7. संबंध कारक : संबंध कारक संज्ञा या सर्वनाम से किसी संज्ञा
का संबंध स्थापित करता है। इस में संबंधवाचक रूप (-का, -की, -के) लगता है।
जैसे —
यह राम की किताब है।
इन फूलों का रंग बहुत सुहावना है।
8. संबोधन कारक : यह ध्यान आकर्षित करते समय अथवा चेतावनी देते
समय प्रयुक्त होता है। शब्द के पूर्व प्रायः विस्मयादि बोधक अव्यय हैं। अरे!
आदि लगते हैं, जैसे —
अरे मोहन ! यहाँ आना !
सज्जनो और देवियो ...
यहाँ यह ध्यान रखें कि प्रत्यय –ओ है, -ओं नहीं।
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