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आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848
आईएसबीएन :9781613012772

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।


क्या करें ? कैसे करें ?


सर्वप्रथम युवाओं को अपने मन से निराशा एवं हताशा के भावों को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। अपनी शक्तियों पर, अपनी क्षमता व प्रतिभा पर, अटूट विश्वास जगाना होगा। नेपोलियन ने कहा था कि 'असंभव' शब्द उसके शब्दकोष में है ही नहीं। इसे अपने जीवन का आधार बनाकर सदैव यही विचार करना होगा कि संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं जो हम न कर सकें। कल्पना करें कि आपके शरीर में शक्ति स्रोत फूट रहा है, ऊर्जा की धाराएँ प्रवाहित हो रही हैं, जो कठिन से कठिन कार्य को भी चुटकियों में पूरा कर सकती हैं। उज्ज्वल भविष्य हमारे स्वागत हेतु तत्पर है। अपने भीतर इस प्रकार का आत्मविश्वास दृढ़तापूर्वक स्थापित करने पर ही हम जीवन की अनेक चुनौतियों का सामना करने में सफल हो सकेंगे।

हमारे भीतर यह आत्मविश्वास कैसे जागे? कैसे परिपुष्ट हो? हम किस प्रकार अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाएं और वर्तमान चुनौतियों का भी सफलतापूर्वक सामना कर सकें? इसे समझने से पहले हमें भारत के महान् युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद के एक संदेश को आत्मसात करना होगा।

उन्होंने कहा है- ''प्रत्येक व्यक्ति की भांति प्रत्येक राष्ट्र का भी एक विशेष जीवनोद्देश्य होता है। वही उसके जीवन का केंद्र है, उसके जीवन का प्रधान स्वर है, जिसके साथ अन्य सब स्वर मिलकर समरसता उत्पन्न करते हैं। किसी देश में जैसे इंग्लैण्ड में राजनैतिक सत्ता ही उसकी जीवनशक्ति है। भारतवर्ष में धार्मिक जीवन ही राष्ट्रीय जीवन का केंद्र है और वही राष्ट्रीय जीवन रूपी संगीत का प्रधान स्वर है। यदि कोई राष्ट्र अपनी स्वाभाविक जीवन शक्ति को दूर फेंक देने की चेष्टा करे, शताब्दियों से जिस दिशा की ओर उसकी विशेष गति हुई है, उससे मुड़ जाने का प्रयत्न करे और वह इस कार्य में सफल हो जाए तो वह राष्ट्र मृत हो जाता है। अतएव यदि तुम धर्म को फेंककर राजनीति, समाजनीति अथवा अन्य किसी दूसरी नीति को अपनी जीवनशक्ति का केंद्र बनाने में सफल हो जाओ तो उसका फल यह होगा कि तुम्हारा अस्तित्व तक न रह जाएगा।

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