आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
यदि तुम इससे बचना चाहो, तो अपनी जीवन- शक्ति रूपी धर्म के भीतर से ही तुम्हें अपने सारे कार्य करने होंगे। अपनी प्रत्येक क्रिया का केंद्र इस धर्म को ही बनाना होगा। सामाजिक जीवन पर धर्म का कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह बिना दिखाए मैं अमेरिकावासियों में धर्म का प्रचार नहीं कर सकता था। इंग्लैण्ड में भी बिना यह बताए कि वेदांत के द्वारा कौन-कौन से आश्चर्यजनक परिवर्तन हो सकेंगे, मैं धर्म का प्रचार नहीं कर सकता था। इसी भांति भारत में सामाजिक सुधार का प्रचार तभी हो सकता है, जब यह दिखा दिया जाए कि इस नई प्रथा से आध्यात्मिक जीवन की उन्नति में कौन सी विशेष सहायता मिलेगी? अत: भारत में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म प्रचार आवश्यक है।''
लगभग सौ वर्ष पूर्व स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गई इस बात पर गंभीरता से विचार करें। आज हमारी जो स्थिति बनती जा रही है, उसका कारण क्या यह तो नहीं है कि हम धर्म के पथ से भटक गए हैं? अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं की उपेक्षा करने लगे हैं? और पाश्चात्य अंधानुकरणों के कारण स्वयं ही अपनी जड़ों को काटते जा रहे हैं? ऐसा लगता है कि स्वामी जी आज भी हमारे सामने खड़े हमें चेता रहे हैं, झकझोर रहे हैं। स्वामी जी की बात को आत्मसात् करके ही हम वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सकेंगे। धार्मिक जीवन के द्वारा ही हम स्वयं को सुधार सकेंगे और समाज व राष्ट्र को भी उन्नति के मार्ग पर ले जा सकेंगे। आवश्यक है कि हम स्वयं को पहचानें और धर्म के वास्तविक स्वरूप को भी जानें।
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