लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848
आईएसबीएन :9781613012772

Like this Hindi book 0

मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।


भविष्य की संभावनाएँ


ऐसे अंधकारमय परिदृश्य में भी आशा की किरण तो होती ही है. माना कि हताशा व निराशा से ग्रस्त युवापीढ़ी में परिस्थितियों से जूझने की क्षमता चुकती जा रही है पर वह समाप्त नहीं हुई है 1 उसे विकसित करने के अनेकानेक साधन उपलब्ध हैं। सांस्कृतिक एवं मानसिक परतंत्रता के अदृश्य पाश से स्वयं को मुक्त करके विश्वक्रांति का अग्रदूत बनने की क्षमता भी उसमें है। युवाशक्ति ही राष्ट्र की उज्ज्वल आशा का प्रतीक है। देश को दुर्गति से प्रगति के पथ पर ले जाने की शक्ति उसके रग-रग में समाई हुई है। शून्य से शिखर तक पहुँचने का पुरुषार्थ वही कर सकता है।

दुनिया में बुराई तो बहुत है। चारों ओर झूठ, फरेब, धोखा और बेईमानी फैली हुई है, पर हर समय इन्हीं बातों पर चिंतन और चर्चा, करते रहने से क्या लाभ? संसार में आसुरी प्रवृत्ति के लोग तो सदैव रहे हैं चाहे वह रामायण-महाभारत काल हो या आज का युग। उनकी संख्या कभी कम तो कभी अधिक अवश्य होती है। यही कारण है कि सात्त्विक एवं दैवी प्रवृत्ति के लोग भी समाज में हर समय रहते हैं। हनुमान जी को भी रात के अंधेरे में लंका के राक्षसों के बीच एक देवस्वरूप व्यक्ति विभीषण के रूप में मिल गया था। हम भी यदि थोड़ा सा सजग होकर देखें तो अपने आसपास अनेक अच्छे व्यक्ति हमें मिल जाएंगे जो ईमानदार, चरित्रवान और नैतिक मूल्यों का पालन करने वाले हैं। वे सदैव जीवन के प्रति आशावादी एवं सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।

युवापीढ़ी में तो ऐसे सच्चरित्र लोगों की भरमार है। समस्या केवल इतनी भर है कि उन्हें बिगड़ने से किस प्रकार बचाया जाए और वे स्वयं भी किस प्रकार इस काजल की कोठरी से अपने को बचाकर बेदाग बाहर निकल सकें। असली दायित्व तो युवाओं का ही है। यदि वे सांसारिक दुष्प्रवृत्तियों के मकड़जाल में फँसने के कुप्रभावों को समय रहते समझ लें और उनके प्रलोभन में न आएं तो कोई भी उन्हें कुमार्ग पर नहीं ले जा सकेगा। यदि उनमें स्वयं को सुधारने की इच्छाशक्ति जाग्रत हो जाएगी तो अन्य सत्पुरुषों की बातें भी सरलता से उनके गले उतर जाएंगी। स्वयं को सुधार कर ही वे सारे संसार को सुधार सकेंगे। अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है', इस तथ्य को समझ लेने से ही सबका कल्याण होगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book