आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
नासमझी जीवन के अनेक क्षेत्रों में देखी जा सकती है। विद्यार्थी जीवन में कुसंग में फँसना, आवारागर्दी करना, दुर्व्यसनियों के साथ रहकर नशेबाजी, व्यभिचार जैसे दोष-दुर्गुण अपना लेना, चटोरापन, उधार लेना, फैशन और ओछापन ये सब नासमझियाँ ही तो हैं। समय रहते यदि व्यक्ति समझदारी से काम नहीं लेता तो फिर हाथ मलने और अपनी भूल पर सिर धुनकर पछताने के अलावा कुछ शेष नहीं बचता। जैसे मछली थोड़े-से आटे के लिए प्राण गँवा देती है, वैसे ही नासमझ व्यक्ति थोड़े-से प्रलोभन के लोभ में अपना अमूल्य जीवन नष्ट कर देते हैं। यदि व्यक्ति थोड़ी भी समझदारी से काम ले तो वह इंद्रिय संयम, समय संयम और अर्थ संयम अपनाते हुए उन दुर्गुणों को सरलतापूर्वक दूर कर सकता है, जो उसकी जीवन संपदा को नष्ट करते हैं। दोष-दुर्गुणों को स्वभाव का अंग बना लेने वाले समय बीतने पर किस प्रकार हाथ मलते और अपनी भूल पर सिर धुन-धुनकर पछताते हैं, इसके उदाहरण अपने इर्द-गिर्द ही देखे जा सकते हैं। समझदार फूँक-फूँककर कदम रखते हैं, गुण-दोष पर विचार करते हैं। अनुचित के लिए दृढ़तापूर्वक 'ना' बोलते हैं, उचित को आत्मिक विकास के लिए एकाकी निश्चय के आधार पर अपनाते हैं। संकल्प और साहस के साथ निश्चित रहकर उद्देश्य-पथ पर चलते हैं तो लक्ष्य तक पहुँचकर रहते हैं।
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