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आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


सबके जीवन में एक परिवर्तनकारी समय आया करता है, किंतु मनुष्य उसके आगमन से अनभिज्ञ रहा करता है। इसीलिए हर बुद्धिमान मनुष्य हर क्षण को बहुमूल्य समझकर व्यर्थ नहीं जाने देता। कोई भी क्षण व्यर्थ न जाने देने से निश्चय ही वह क्षण हाथ से छूटकर नहीं जा सकता जो जीवन में वांछित परिवर्तन का संदेशवाहक होगा। आलसी अथवा दीर्घसूत्री व्यक्ति बहुधा किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते-करते ही सारी जिंदगी खो देते हैं और उन्हें कभी भी उपयुक्त अवसर नहीं मिल पाता। प्रमाद के मद में वह यह नहीं सोच पाता कि जीवन का प्रत्येक क्षण एक स्वर्ण अवसर है, जो यों ही चुपचाप आता और चला जाता है। जब तक उस क्षण का सदुपयोग करके परखा नहीं जाएगा तब तक निश्चयपूर्वक यह कैसे कहा जा सकता है कि अमुक समय उपयुक्त अवसर नहीं है। हर मनुष्य को समय के छोटे-से-छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्त्व समझना चाहिए। जीवन का समय सीमित है और काम बहुत है। समय की चूक पश्चात्ताप की हूक बन जाती है। जीवन में कुछ करने की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि वे अपने किसी भी काम को भूलकर भी कल पर न टालें। जो आज किया जाना चाहिए उसे आज ही करें। आज के काम के लिए आज का ही दिन निश्चित है और कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित है। आज का काम कल पर टाल देने से कल काम का भार दो गुना हो जाएगा जो निश्चय ही कल के समय में पूरा नहीं हो सकता। इस प्रकार आज का कल पर और कल का परसों पर ठेला हुआ काम इतना बढ़ जाएगा कि वह फिर किसी भी प्रकार पूरा नहीं किया जा सकता। जिस स्थगनशील स्वभाव तथा दीर्घसूत्री मनोवृत्ति ने आज का काम आज नहीं करने दिया, वह कल करने देगी ऐसा नहीं माना जा सकता। स्थगन-स्थगन को और क्रिया-क्रिया को प्रोत्साहित करती है। यह प्रकृति का एक निश्चित नियम है। कल के काम का दबाव काम को बेगार बना देता है, जो रो-झींककर ही पूरा होता है। ऐसा होने से अभ्यास बिगड़ता है और उसका विकृत प्रभाव नए काम पर भी पड़ता है। इस प्रकार स्थगनशीलता कार्य में मनुष्य की रुचि तथा दक्षता को नष्ट कर देती है। इन दोनों विशेषताओं से रहित कर्त्तव्य-परिश्रम का भरपूर मूल्य पाकर भी अपेक्षित पुरस्कार एवं पारितोषिक नहीं दिला पाते।

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