आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
सेठ सकपकाकर चुप ही रह गए। आचार्य फिर बोले- ''जिसे तुम समय की कमी कहते हो, वह समय की कमी नहीं, समय की अव्यवस्था है। उसी कारण समय अनुपयोगी कार्यों में लग जाता है। उपयोगी कार्यों के लिए रह ही नहीं जाता। जो समय का सुदपयोग नहीं कर पाते, वे जीवन जीते नहीं, काटते हैं, नष्ट करते हैं। कोई कितने वर्ष जिया यह जीवन नहीं, किसने कितने समय का सदुपयोग कर लिया, वही जीवन की लंबाई है।'
समय की बरबादी का अर्थ है - अपने जीवन को बरबाद करना। जीवन के जो क्षण मनुष्य यों ही आलस्य अथवा प्रमाद में खो देता है, वे फिर कभी लौटकर वापस नहीं आते। जीवन प्याले की जितनी बूँद गिर जाती हैं, प्याला उतना ही खाली हो जाता है। प्याले की वह रिक्तता फिर किसी भी प्रकार भरी नहीं जा सकती। मनुष्य जीवन के जितने क्षणों को बरबाद कर देता है, उतने क्षणों में वह जितना काम कर सकता था, उसकी कमी फिर वह किसी प्रकार भी पूरी नहीं कर सकता।
जीवन का हर क्षण एक उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। कोई भी घडी एक महान मोड़ का समय हो सकती है। मनुष्य यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि जिस समय, जिस क्षण और जिस पल को वह यों ही व्यर्थ खो रहा है, वह ही क्षण, वह ही समय उसके भाग्योदय का समय नहीं है? क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ समझकर बरबाद कर रहे हैं, वह ही हमारे लिए अपनी झोली में सुंदर सौभाग्य की सफलता लाया हो।
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