आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
पाश्चात्य देशों की नकल करने वाले और अपने देश की आवश्यकताओं को न समझने वाले व्यक्ति भी देशद्रोही ही हैं। यदि आप अपने देश की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहते हैं, तो आपको साधारण मनुष्य के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना होगा। यह कार्य प्रत्येक व्यक्ति की सहायता से ही हो सकता है। आप मितव्ययी बनो और अपने आस-पास के दीन-हीन दुखियों की सहायता करो। दूध की नदी बहाने वाले, कुत्तों को मखमल पर सुलाने वाले यह भूल जाते हैं कि उनके देश के आधे से अधिक लोग आधा पेट भोजन कर, चिथड़ों से अपने अंगों को ढककर अपना समय काट रहे हैं। आपका कर्त्तव्य है कि आप अपव्यय रूपी दानव से देश की रक्षा करो और दीन-हीन जनों की सहायता करो। महात्मा टालस्टॉय कहा करते थे कि जब तक देश में एक भी व्यक्ति भूखा है, एक भी व्यक्ति नंगा है, तब तक तुम्हें दो बार भोजन करने और दो कोट रखने का कोई अधिकार नहीं। यदि आप ऐसा करते हो, तो ये आपका भयंकर स्वार्थ है। यह आपकी खुदगर्जी की हद है।
व्यर्थ की आलोचना करने वाले व्यक्ति से बचो, बस आपका कल्याण होगा। अपव्यय, ऋण, व्यर्थ की तड़क-भड़क और व्यर्थ में व्यय कराने वाली परंपराओं से बचो। यदि आप अपने घर में इतना संयम कर सके तो वास्तव में अपने देश को आप महात्मा गाँधी और टालस्टॉय का देश बना सकने में समर्थ होंगे। आपके हाथ में ही देश को स्वर्ग और नरक बनाना है।
अपने मन पर संयम रखो, अपनी आवश्यकताओं का दमन करो, बस इतना ही पर्याप्त है। कुछ ही दिनों में ही आप देखोगे, आपका देश फिर सोने की चिड़िया हो जाएगा।
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