आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
यह स्मरण रखो कि तुम्हारा इसी में कल्याण है कि तुम मितव्ययी बनो। अपनी आय की सीमा के बाहर खरच न करो। आज एक-एक पैसे की बचत कल का अनंत सुख साबित हो सकती है। आज का जीवन और वातावरण तो कई प्रकार से आकस्मिकताओं वाला बन चुका है। उस आकस्मिकता का ठीक तरह से सामना करने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति आज जितनी भी अधिकाधिक संभव हो बचत करे और ये तब तक संभव नहीं, जब तक तुम यह नियम नहीं बना लेते कि हम अनावश्यक एक पैसा भी खरच न करेंगे। तब तक न तो आप मितव्ययी ही हो सकते हो और न धन संचय ही कर सकते हो। अपनी, अपने घर-परिवार और अपने आश्रितों की सुरक्षा के लिए धन संग्रह करने का निषेध किसी ने कहीं भी नहीं किया।
प्रत्येक वस्तु खरीदने, प्रत्येक नई आवश्यकता को बढ़ाने के पूर्व अपने से ये प्रश्न करो कि क्या उस आवश्यकता अथवा वस्तु के बिना आपका कार्य नहीं चल सकता? क्या उसके लिए व्यय करना, आपके लिए अनिवार्य है? यदि उस वस्तु अथवा आवश्यकता के अभाव में आपके जीवन की, आपकी प्रतिष्ठा की और आपके सामाजिक संबंधों को कोई हानि नहीं पहुँचती हो, तो व्यर्थ में एक नई आवश्यकता बढ़ाने से बचो।
महात्मा गाँधी की व्यक्तिगत वस्तुओं की संपत्ति एक छोटी गठरी में बाँधकर कहीं भी रख दी जा सकती थी। लंगोटी, चादर, चप्पल और कंबल यही तो उनके जीवन की आवश्यक वस्तुएँ थीं। न तो उन्हें कभी क्रीम की जरूरत पड़ी और न वैसलीन की। यह सीमित सामग्री वाला व्यक्ति ही असीम शक्तियों वाला महापुरुष था, जिसके चरणों पर भारत का समस्त वैभव लोटने को आतुर था, परंतु उसे तो वास्तविक वैभव की आवश्यकता थी।
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