आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
मितव्ययता का जीवन में बड़ा महत्त्व है। यह एक असाधारण गुण है। जो लोग इसके महत्त्व को नहीं समझते और उसकी शक्ति से अपरिचित रहते हैं, वे हमेशा आर्थिक कठिनाइयों में फँसे रहते हैं, साथ ही परिवार की उन्नति रोक देते हैं और जिसने भी जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन का उपयोग किया है, अपव्यय नहीं किया, उनका जीवन सुखी रहा। सादगी को भारतीय जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसी व्रत को अपनाकर हमारे पूर्वजों ने ज्ञान की महान साधना की। उस ज्ञान की जिसके कारण समस्त संसार में भारत को सभ्यता का सूर्य, ज्ञान-विज्ञान का देश माना जाता रहा है और जिसके बल पर वह जगद्गुरु कहलाया। स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद राँची प्रवास पर थे। पैर में जूते की कील गड़ रही थी, इसलिए उन्होंने नए जूते मँगाए। सेक्रेटरी जब उन्नीस रुपए के जूते लेकर आया तो वे चिंता में पड गए बोले- ''दस रुपए के जूतों से भी काम चल सकता था।'' सेक्रेटरी जब उसे लौटाने चल पड़े तो उन्होंने कहा- 'अब वहाँ जाने में मोटर का पेट्रोल भी खरच करोगे, अब जब गाड़ी वहाँ से निकले तब बदल लेना।'' राष्ट्रपति की सादगी और किफायत पर वहाँ उपस्थित सभी लोग बहुत प्रभावित हुए।
मनुष्य को प्राप्त असंख्य विभूतियाँ यदि ठीक प्रकार से नियोजित की जा सकें तो क्या व्यक्तिगत, क्या सामाजिक हर क्षेत्र में स्वर्गीय परिस्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं। यह तथ्य समझने में हमारी बुद्धि अक्षम नहीं है, किंतु तथ्यों को समझना एक बात है, उसे चरितार्थ करना दूसरी। विभूतियों को सही दिशा में नियोजित करना संयम-साधना के बिना संभव नहीं। अस्तु संयमवृत्ति का विकास, संयम-साधना का अभ्यास हम जितनी अधिक तत्परता से कर सकें, आत्मकल्याण एवं जनकल्याण की दिशा में उतनी ही अधिक प्रगति कर सकेंगे।
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