आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
वस्त्रों की आवश्यकता होती है तन को ढकने के लिए सरदी- गरमी से उसका बचाव करने के लिए। फिर क्यों जरूरी है कि कपड़ा बड़ा महँगा, कीमती और नई तर्जों एवं डिजायनों में हो। पेट भरने के लिए सात्विक, पौष्टिक भोजन आवश्यक है, लेकिन अपने स्वाद के लिए बड़प्पन जताने के लिए मिठाइयों, पकवान, चाट-पकौड़ी और न जाने क्या-क्या उड़ाते हैं, बीमार पड़ते हैं और अपनी कमाई का पैसा गँवाते हैं। यदि पेट भरने और स्वास्थ्य की दृष्टि से खाते तो बहुत कम खर्च में काम चल सकता है। महँगे वस्त्र, भोजन, व्याह-शादी, दावत-भोज, व्यसन, फैशन, आभूषणों में जो जितना धन फूँकता है, वह उतना ही अमीर और बड़ा माना जाता है। इन अनावश्यक बातों में खरच को रोककर उसी पैसे को अच्छे व्यवसाय, काम, शिक्षा या समाज-उत्थान के कार्यों में लगाएँ तो न केवल मुनाफा प्राप्त होगा, बल्कि हमारी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक उन्नति भी हो सकती है।
समाज में अधिकांश आर्थिक अपराधों की जड़ धन का उद्धत और अविवेकपूर्ण प्रदर्शन ही है। अनावश्यक खरचों की पूर्ति के लिए उचित-अनुचित साधनों का प्रयोग करना पड़ता है। प्रत्यक्ष में इसके परिणाम बेईमानी, घूस, चोरी, हत्या, गृह कलह आदि के रूप में देखे जा सकते हैं।
धन कमाना सरल है, पर उसे खरच करना कठिन है। संपन्न हो या निर्धन अपव्यय तो किसी को भी नहीं करना चाहिए। धन को विवेकपूर्वक कमाना चाहिए और विचारपूर्वक खरच करना चाहिए। कमाए हुए धन को अपव्यय से रोकना भी तो कमाना ही है।
|