लोगों की राय

नई पुस्तकें >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


इन दिनों जहां पर आज फोर्ट विलियम है, वहां पर उन्होंने अपना एक मकान बनाया। जब मुर्शिदाबाद के नवाब अलीवर्दी खां से अंग्रेजों की लड़ाई छिड़ गई तब वहां पर अंग्रेजों को अपना किला फोर्ट विलियम बनाना पड़ा। वहां के निवासियों को ढेर सारा पैसा देकर उन्हें उत्तर की तरफ भेज दिया गया। ठाकुर परिवार पाथुरियाघाटा में चला गया।

पंचानन के बेटे का नाम जयराम था। वे सरकारी अमीन थे। उनके कारण घर में और पैसा आया। उनके बेटे का नाम नीलमणि था। नीलमणि के छोटे भाई थे दर्प नारायण। सभी भाइयों के पास काफी पैसा था। इसलिए उनमें आपसी झगड़े भी शुरू हुए। नीलमणि ने परिवार से अलग होकर जोड़ासांको इलाके में एक बस्ती की नींव डाली। सन् 1784 में उन्होंने वहां एक काफी बड़ी कोठी बनवाई। वही कोठी जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी, बाद में महर्षि भवन के नाम से मशहूर हुई।

नीलमणि के बड़े बेटे का नाम रामलोचन था। वे खूब प्रभावशाली और धनी थे। उन्होंने अपने धन को और बढ़ाया। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, इसीलिए उन्होंने अपने छोटे भाई राममणि के दूसरे बेटे द्वारकानाथ को गोद ले लिया। द्वारकानाथ 1794 को पैदा हुए थे। वे काफी दबंग और बुद्धिमान थे। उन्होंने अपनी जमीन-जायदाद खूब बढ़ाई। अपना कारोबार भी बढ़ाया। उन्होंने कोयले का धंधा शुरू किया, कार टैगोर एंड कम्पनी की नींव डाली। मध्यबंग और उड़ीसा में एक के बाद एक जमींदारी खरीदते-खरीदते वे कलकत्ता शहर के सबसे ज्यादा धनी और नामी आदमी बन गए। सन् 1842 में पहली बार विलायत पहुंचकर उन्होंने इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया के साथ दोस्ती की। रानी उन्हें ''भाई प्रिंस'' कहती थी। तभी से वे प्रिंस द्वारकानाथ कहे जाने लगे। वहां के अन्य जाने-माने लोगों में कथाकार चार्ल्स डिकेन्स उनके अच्छे दोस्त बन गए। उस समय के जितने नामी लेखक, कलाकार और प्रभावशाली अंग्रेज थे उन सभी से उनकी खूब निकटता थी। फ्रांस और जर्मनी में भी उन्हें राज सम्मान मिला। पेरिस में मैक्समूलर से भी दोस्ती कायम हुई। भारत वापस लौटने के बाद सन् 1845 में वे एक बार फिर इंग्लैंड गए। सन् 1846 में इंग्लैंड में ही उन्होंने आखिरी सांस ली।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book