नई पुस्तकें >> रश्मिरथी रश्मिरथीरामधारी सिंह दिनकर
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रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है
‘‘कल तक था पथ शान्ति का सुगम,
पर, हुआ आज वह अति दुर्गम,
अब उसे देख ललचाना क्या?
पीछे को पाँव हटाना क्या?
जय को कर लक्ष्य चलेंगे हम,
अरि-दल को गर्व दलेंगे हम।”
‘‘हे महाभाग, कुछ दिन जीकर,
देखिये और यह महासमर,
मुझको भी प्रलय मचाना है,
कुछ खेल नया दिखलाना है;
इस दम तो मुख मोडि़ये नहीं;
मेरी हिम्मत तोड़िये नहीं।”
”करने दीजिये स्वव्रत पालन,
अपने महान् प्रतिभट से रण,
अर्जुन का शीश उड़ाना है,
कुरुपति का हृदय जुड़ाना है।
करने को पिता अमर मुझको,
है बुला रहा संगर मुझको।’’
गांगेय निराशा में भर कर,
बोले-‘‘तब हे नरवीर प्रवर !
जो भला लगे, वह काम करो,
जाओ, रण में लड़ नाम करो।
भगवान् शमित विष तूर्ण करें;
अपनी इच्छाएँ पूर्ण करें।’’
भीष्म का चरण-वन्दन करके,
ऊपर सूर्य को नमन करके,
देवता वज्र-धनुधारी सा,
केसरी अभय मगचारी-सा,
राधेय समर की ओर चला,
करता गर्जन घनघोर चला।
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