लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार

प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839
आईएसबीएन :9781613011799

Like this Hindi book 0

रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

काश, धुंधले प्रकाश में तुम अपने मार्ग से विचलित हो जाओ, तो क्या बात है?

नारी! तुम्हारी डलिया भारी है। तुम्हारे पैर थक गये हैं। बताओ तो! कहाँ के लिए और किस लाभ की आशा को लेकर तुम निकल पड़ी हो। तुम्हारी राह लम्बी है और मार्ग की धूलि भी सूर्य से जली जा रही है।

देखो तो! ये झील भी गहनता और पूर्णता-मय है। इसका जल भी कउए की आँखों के सदृश काला है। इस झील के किनारे भी ढालू हैं और घास की नम्रता में लीन हो रहे हैं।

अपने थके पावों को इसके पानी में डुबा लो। तब मध्यान्ह ज्वार की वायु अपनी अंगुलियों से तुम्हारे केशों को कुरेदेगी। तब कबूतर अपने शयन-गीत तुम्हें सुनावेंगे और उसी समय पत्तियाँ भी अपनी छायाओं में छिपे रहस्य को तुमसे कह देंगी।

और क्या बात है?  क्या हो जायगा? यदि उसी प्रकार सारा दिन बीत जाय तथा सूर्यास्त आरम्भ हो जाये और उस निर्जन वन के धुंधले प्रकाश में तुम अपने मार्ग से विचलित हो जाओ?–अथवा यहीं कहीं खो जाओ?

डरो नहीं! देखो, सामने ही मेरा घर –कुस्मित और प्रफुल्लित हीना-पुष्पों की झाड़ियों के समीप। मैं तुम्हें मार्ग बता दूँगा। मैं ही तुम्हारे शयन का भी प्रबन्ध कर दूँगा। उषा कालीन बेला में जब दूध-दूहने का शब्द पक्षियों को जगा देगा, तब ही मैं भी तुम्हें दूँगा, अच्छा।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book