नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
नारी! तुम्हारे प्रति नर की श्रद्धा सबसे अधिक है
तुम्हारे लिए मेरे पास स्थान है। तुम चावलों की छोटी-सी गठरी सहित अकेली हो। मेरी नौका पूर्णतया भरी हुई है, बोझ से खचाखच लदी हुई है, किन्तु फिर भी, मैं तुम्हें कैसे लौटा दूँ?
तुम्हारा युवा शरीर कोमल, पुलकित और स्पंदित है। तुम्हारे नयनों के कोरों में एक टिंटिमाती मुस्कान है और तुम्हारे वस्त्र भी वर्षीले मेघों के तुल्य रंगीन हैं।
यात्री-गण भिन्न-भिन्न मार्गों और स्थानों को चल देंगे। पर तुम एक क्षण के लिए मेरी नौका में सबसे ऊँचे और अग्रगण्य स्थान पर बैठ सकोगी और यात्रा की समाप्ति पर भी तुम वहीं बैठी रहोगी और कोई तुम्हें पीछे न धकेल सकेगा।
‘तुम कहाँ जाती हो और किस स्थान को जाती हो?–क्या अपने चावलों की गठरी को सुरक्षित रखने जा रही हो?’–मैं तुमसे ऐसा प्रश्न न करूँगा। किन्तु पाल उतारते समय और नौका को बाँधते समय जब मैं बैठूँगा तो संध्या समय भी विस्मित होकर यही मनन करता रहूँगा–तुम कहाँ जाती हो और किस स्थान को? क्या अपने चावलों की गठरी को कहीं सुरक्षित रखने जा रही हो?’
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