नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मैं हार जाऊँ और तुम्हें अपना स्वामी बना लूँ–इसीलिए युद्ध किया
तुम्हें आहत करने की इच्छा से मैं तुम्हारे समीपतम पहुँच गया। पर आश्चर्य की बात है...तुम्हें आहत करने की इच्छा को तुम्हारे समीप पहुँचने से पहले मैं न जान सका।
अन्ततः मैंने तुम्हें अपना स्वामी बना लिया...यद्यपि मैंने तुमसे इसलिए युद्ध किया था कि मैं हार जाऊँ।
किसी गम्भीर और रहस्यपूर्ण स्थान पर आकर मैंने तुमसे तुम्हारा कुछ छीना पर ऐसा करने में तुम्हारा ऋण मेरे ऊपर और अधिक बढ़ गया। मैंने हठात् तुम्हारी जीवन-धारा से एक कलह किया...पर ऐसा मैंने इसलिए किया कि तुम्हारी जीवनशक्ति को पूर्णतया अपनी आत्मा में अनुभव कर सकूँ।
मैंने स्वयं ही विद्रोही बनकर अपने घर में रखे तुम्हारे प्रकाशमय दीप को बुझा दिया, किन्तु आश्चर्य चकित हूँ और एक गहन आश्चर्य तो मुझे उस समय हुआ जब तुम्हारे आकाश ने तुम्हारी आज्ञा पाकर अपनी दीप्तिमान तारकावलि को चमका दिया और मेरे घर को..अंधकारमय घर को फिर से ज्योतिर्मय बना दिया।
* * *
|