नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तुम यह पूछ रहे हो ‘मैं क्यों दुखी हूँ’
अपनी बाँसुरी के गीत और पुष्पों को उपहार स्वरूप लेकर बसन्त की एक हठी बेला में तुम मेरे पास आये।
मेरा हृदय बस उसी समय से दुःखित हो गया जब तुमने लहरों में कम्पन छोड़ कर मेरे लाल ‘प्रेम कमल’ को एक चोट मार दी।
तुमने तो मुझसे कहा था कि जीवन के सम्पूर्ण रहस्य सहित मैं तुम्हारे साथ चला चलूँगा परन्तु इसमें मेरा क्या दोष है...यदि मई माह की गुँजनात्मक पत्तियों के मध्य में आने से मुझे नींद आ गई और मैं न जा सका।
पर नींद से उठने पर मैंने देखा कि आकाश में बादल घुमड़ आये हैं और वृक्षों की मरी हुई पत्तियाँ पवन के वेग में उड़ गई हैं।
वर्षा की झड़ियों के कारण अपने समीप आती हुई अपनी पद-चापों को मैंने सुन रहा हूँ, और साथ ही मैं यह भी सुन रहा हूँ कि चिल्ला-चिल्लाकर, मृत्यु के रहस्य को जानने के लिये, तुम मुझे अपने समीप बुलाना चाहते हो। तुम्हारे समीप पहुँचकर मैं तुम्हारी बाहों में अपने हाथ डाल देता हूँ।... यद्यपि ऐसा करने से पूर्व मैं जान लेता हूँ कि तुम्हारी आँखें प्रकोप से जल रही होती हैं और तुम्हारे केशों से स्वेद की बूँदें झड़ रही होती हैं।
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