नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तुम्हारा अपमान किया था, अब तुम्हीं को बुलाता हूँ
प्रातःकाल, तुम मेरे द्वारे आये और तुमने एक गीत गाया, मेरी नींद से मुझे दूर कर दिया और मेरे सामने आये बिना ही जब तुम चले गये तो मुझे तुम पर क्रोध आ गया।
मध्यान्ह में, मेरे दरवाजे पर आकर तुमने पानी माँगा और इस प्रकार तुमने मेरे कार्य में बाधा डाली। तभी मुझे क्रोध आ गया और मैंने तुम्हें गालियाँ देकर भगा दिया।
संध्या समय अपनी प्रज्ज्वलित मशालों को लेकर तुम मेरे द्वार पर आये। मुझे भय लगने लगा क्योंकि तुम मुझे डरावने से लगने लगे। तभी भयभीत होकर मैंने अपना द्वार बन्द कर दिया।
परन्तु अब मध्यरात्रि के दारुण अवसान में मैं अकेला ही दीप...हीन अंधकारमय कोठरी में बैठा हूँ और तुम्हें बार-बार बुलाता हूँ...हाँ, तुम्हें... जिनको अपमानित कर मैं अपने दरवाजे पर से ही भगा दिया था।
* * *
|